शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

कविता : "त्योहारों की शुरुआत "

"त्योहारों की शुरुआत "

हो गई है त्योहारों की शुरुआत | 

जिसमे दीपावली और दशहरा है खाश ,

मेले सब जायेगे बच्चे हो या बूढ़े | 

सब मौज मस्ती करके आयेगे ,

खिलौने होंगे और मिठाई विभिन्न वाइराइटी | 

जिसमे खिलौने की नहीं होगी गांरटी ,

सब लोग इकट्ठे और होंगे भरमार |  

क्यों की त्योहारों का है जो ये भण्डार ,

और भारत का है यह मुख्य त्यौहार | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

कविता: "पुरानी झलक देखा "

"पुरानी झलक देखा "

पुरानी झलक देखा | 

आज मै अपने गाँव को अलग देखा ,

पर मैने पुरानी झलक देखा | 

वो सड़क , वो गलिया ,

बदल तो गयी है | 

पर उसमे चलने की ,

अंदाज वही है | 

पैन से बहता पानी ,

किसान और खेत की कहानी | 

बदल तो गयी है ,

लेकिन गाँव की आवाज वही है | 

नदी के पुल बदल गयी है ,

मेरे पुराने स्कूल बदल गये है |  

पर गाड़ियों और बच्चो की ,

शोर वही है | 

हा बहुत कुछ बदल गया ,

मेरे गाँव में | 

पर वही शाम और भोर वही है ,

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

सोमवार, 11 अक्टूबर 2021

कविता : "पुरानी यादें"

"पुरानी यादें"

आज उस चीज को | 

याद करके हसीं आती है ,

और मजाक सा लगता है | 

वो पुरानी बातें करके ,

आज भले ही भूल गए हो | 

लेकिन कुछ बातें अभी भी याद है ,

जैसे क्लॉस के समय | 

लंच करना , मैम का नकल करना ,

दिन बदलते गए | 

यादें हमारी बढ़ती गई ,

आज इतनी हो गई कि | 

अगर रोज लगातार बात करे ,

तो भी खत्म नहीं होगी | 

क्योकि पुरानी यादे होती है ,

कुछ ऐसी | 

जो कभी मिटाया नहीं जाता ,

मिट भी गया तो उसे याद भी नहीं किया जाता | 

कवि : नितीश कुमार ,कक्षा : 11th 

अपना घर

 

मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

कविता : सर्दी

 सर्दी

 सर्दी ने कर दिया परेशान | 

खास -खासकर शरीर हो गया बेजान ,

रात की नीद नहीं आती है | 

दिन में नाक बहुत सताती है ,

दवा भी हो गया बे असर |

ठीक करने की नहीं छोड़ी में कोई कसर ,

खाने में न लगता है मन  | 

 पुरे शरीर हो गया है भांग ,

सर्दी ने कर दिया परेशान | 

खास खासकर शरीर हो गया बेजान ,

कवि : कुलदीप  कुमार 

अपना घर