मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

कविता : जल - जलकर जलता जाऊँ

" जल - जलकर जलता जाऊँ "

जल - जलकर जलता जाऊँ,
किसी को नुकसान न हो पहुँचाऊँ  |
मेरे जलने से जग की सोभा हो, 
न जलूँ तो सृस्टि में अँधेरा हो |  | 
हर एक ख्वाब को सजाऊँ, 
हर सपना को साकार करूँ | 
जल जलकर जलता जाऊँ | | 
उजालों का मैं ही एक जरिया हूँ, 
लाखों करोड़ो वर्ष पुराना हूँ | 
मेरी जिंदगी कब ख़त्म हो जाय, 
किसी को भी ये ही पता नहीं |  
लेकिन फिर भी मैं जलता हूँ,
जल जलकर जलता जाऊँ | | 
   
                                                                                                 नाम : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर




कवि परिचय : नितीश कुमार वैसे तो बिहार के रहने वाले हैं फिर भी कानपुर में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | इनके परिजन कानपुर में रहकर ईंट भट्ठों में काम करते हैं | पढाई में बहुत मेहनत  करते हैं और टेक्नोलॉजी में बहुत माहिर हैं | 

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