रविवार, 25 फ़रवरी 2018

कविता : " काश कोई समझ पाता "

" काश कोई समझ पाता "

काश मुझे कोई समझ पाता,
आकाश को भी मैं छू पाता |  
सबसे ऊँचा मैं कहलाता ,
अपने ख्वाइशों को आजमाता|  
माँ का दुलार और प्यार पाता ,
 सपनों को स्वीकार कर पाता | 
सारा संसार में छा जाता,
तब मैं तेरे पास आता,
बदल बनकर बरस जाता || 

नाम : संतोष , कक्षा : 4th , अपनाघर 

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