गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

शीर्षक :जो कली खिली बाग में ...

 "जो कली खिली बाग मे"

जो कली खिली बाग में ।
जों कली है समाज मे ।।
वह क्यों कुचल गई ।
फूल बनकर कली ने जग को महकाया ।।
क्यों कि फिर कली को समाज ने ठुकराया ।
फूलों का खिलान तो गले का हार होता है ।।
क्यों कि ये गले का फंद्दा बन गया ।
जिस कली का हार हो ये ।।
कली फूल बनकर सारे।
संसार को महकाएगी ।।
लेकिन कली को फूल बनाने का मौका तो मिले
तब तो वह कुछ करके दिखाएगी ।।
नाम : जितेन्द्र कुमार, कक्षा : 9, "अपना घर" ,कानपुर

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