गुरुवार, 31 मार्च 2011

कार्यक्रम:- भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन, कानपुर ...

भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आन्दोलन को गति दे...........
कार्यक्रम दिन, स्थान और समय : 5 अप्रैल 2011
उपवास: सुबह 10 बजे से गाँधी प्रतिमा फूलबाग मैदान, कानपुर
केंडिल मार्च: शाम 5.30 बजे से शिक्षक पार्क, परेड से गाँधी प्रतिमा फूलबाग मैदान, कानपुर तक
संकल्प सभा: शाम 6 .30 बजे से गाँधी प्रतिमा फूलबाग मैदान, कानपुर
आजादी के लिए संघर्ष
आजादी की अब दूसरी जंग जारी है.
कानपुर में भी इस जंग की तैयारी है..
कब तक आप चुप बैठेंगे.
यूं खामोश होकर सहेंगे..
अब तो अपनी चुप्पी तोड़ो. .
. भ्रष्टाचार के खिलाफ अब जंग छेड़ो..
हर एक की तैयारी है.
आईये अब आपकी बारी है..
महेश, ९८३८५४६९००

मंगलवार, 29 मार्च 2011

कविता : एक दिन किसके लिए

एक दिन किसके लिए
एक दिन किसके लिए ,
जीवन जीने के लिए ....
मदद करने के लिए ,
या फिर हंसने के लिए  ,
दुखियों के दुख बांटने के लिए .....
एक दिन किसके लिए ,
हर मंजिल पर मोड़ चाहिए ....
बैठने के लिए एक पेड़ चाहिए ,
धूप की गर्मी से बचने के लिए  ....
इस पेड़ की छाँव चाहिए ,
सभी को रोटी चाहिए पेट के लिए  ....
एक दिन किसके लिए ,
लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर  

सोमवार, 28 मार्च 2011

कविता : जल

जल 
जल ही जीवन है हम सबका ,
इसका उपयोग करना हम सबका .....
कदापि न करें दुर्पयोग इसका ,
जल ही जीवन है हम सबका ....
एक-एक बूंद को बचाकर हम ,
जीवन को अत्यंत सुखी बनाएं .....
जल के दुर्पयोग को रोके हम ,
जीवन को हम आगें बढायें ....
जल का है यहाँ महत्त्व बड़ा ,
इसके द्रारा ही हम करते उधोग खड़ा ....
जल का हम सब करते उपयोग ,
इसलिए न करें इसका दुर्पयोग ......

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : ८
अपना घर  

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

कविता - मंजिल अब दूर नहीं

 मंजिल अब दूर नहीं 
कदम से कदम बढ़ाओ डरो नहीं ,
जो सही था वही हैं सही ....
आज के गौरव हो तुम्ही ,
आगे बढ़ो" मंजिल अब दूर नहीं" .....
मंजिल तक पहुँचना हैं अगर ,
तो तय करनी पड़ेगी कठिन से कठिन डगर.....
रूकावटे डालेगे भ्रष्टाचार करने वाले ही ,
आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" .....
चाहे लाख करे कोई प्रयास ,
सिर पर पड़े भले ही ईंट या बाँस.....
ईंट का जवाब पत्थर  से देना नहीं ,
आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" ....
हाथ से हाथ मिलाते रहना ,
अपने कदमों को डगमगाने न देना.....
अब जो डरा समझा वह बचा नहीं ,
आगे बढ़ो "मंजिल अब दूर नहीं" ....
लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ८ अपना घर , कानपुर

गुरुवार, 24 मार्च 2011

कविता - भारत में कोई नहीं बोलने वाला

 भारत में कोई  नहीं बोलने वाला  
देश में अपने होता घोटाला ,
नेता -मंत्री न कोई बोलने वाला ....
नेता मंत्री क्यों बोले ,
अपना मुँह वह क्यों खोले ....
नेता मंत्री खुद करते है घोटाला,
लगाके गोदामों में ताला ....
राजा हो या कलमाड़ी ,
सब के सब करते हैं घोटाला...
भारत में कोई नहीं बोलने वाला,
ये हैं देश के भ्रष्ट नेता ....
गरीबों की रोजी मारे,
पैसों से भरते अपने झोले....                                                                                                  देश में अपने होता  घोटाला, 
नेता -मंत्री न कोई  बोलने वाला ....
लेखक - मुकेश कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर , कानपुर

कविता - काम की तलाश में

 काम की तलाश  में 
मैं रोज सुबह उठता हूँ 
काम की तलाश  में जाता हूँ 
काम मिला तो कर लिया 
नहीं तो वापस आ गया
घर में यूँ ही बैठकर
कुछ काम करने के लिए  सोचता हूँ
अगर काम मिल जाता हैं तो उसे करता हूँ
रोज मेहनत करता हूँ 
आखिर इतनी मेहनत क्यों करता हूँ 
शुरू से लेकर आखिरी  तक मेहनत करता हूँ 
बिना रुके बिना झुके खूब मेहनत करता हूँ 
जब तक प्राण निकल न जाये 
तब तक रोज मेहनत करता हूँ 
केवल दो रोटी के लिए मेहनत करता हूँ 
शारीर को कभी आराम नहीं दे पता हूँ
ऐसे ही काम  करते - करते थक कर मर जाता हूँ
लेखक -मुकेश कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर , कानपुर






बुधवार, 23 मार्च 2011

"शहीद भगत सिंह अमर रहे ,राजगुरु अमर रहे , सुखदेव अमर रहे "

आज २३ मार्च हैं शहीद भगत सिंह , रह्गुरु और सुखदेव के शहदाद के दिन | २३ मार्च १९३१ को इन्होने हँसते हँसते देश की आजादी के खातिर  फँसी के फंदे को चूम लिया | हम सभी उनकी शहदाद को नमन करते हैं  | ये हमारे दिलों
में हमेशा जिन्दा रहेगे और हमारे प्रेरणा स्रोत्र  बने रहेगे |  "शहीद भगत सिंह अमर रहे ,राजगुरु अमर रहे , सुखदेव अमर रहे",
हम बच्चों की एक भाव मीनी श्रहजंली
अपना घर के सभी बच्चें

कविता - मच्छर का गाना

कविता - मच्छर का गाना 
सुनो -सुनो सब भाई- बहना ,
मैंने सुना हैं मच्छर का गाना ...
गाने में क्या लय थी और सुर ताल,
सुनकर गाना हुआ  मैं बेहाल ...
गाना तो वह  ऐसा गाते ,
हाँ -हाँ कर जैसे हम हँसते....
ज्यादा गाना याद नहीं हैं ,
ये बात हकीकत हैं कोई जोग नहीं हैं .....
एक लाईन याद मुझे हैं आयी ,
खून पियेंगे हम सब मच्छर भाई....
नींद खुली जब हमने देखा ,
मुझे हुआ बहुत ही धोखा ....
मच्छरों का मुझ पर जाल बिछा था ,
एक मच्छर आ कान में कुछ कह रहा था .....
सो जा मेरे प्यारे राजा मुन्ना ,
हम पेट भरेंगे सुना के तुझको गाना....
लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ८ अपना घर , कानपुर


सोमवार, 21 मार्च 2011

कविता : लड्डू चार

 लड्डू चार 

एक डिब्बे में लड्डू चार ,
बिक रहे थे वे बीच बाजार ....
तभी एक ग्राहक आया,
उस डिब्बे में हाथ लगाया ....
डिब्बा उठाते ही ग्राहक को लगा हल्का ,
तभी ग्राहक लड्डू वाले के तरफ सनका ....
एक डिब्बे में लड्डू चार ,
बिक रहे थे वे बीच बाजार ....

लेखक : ज्ञान कुमार
कक्षा :7
अपना घर

रविवार, 20 मार्च 2011

कविता - बादल

कविता - बादल
काले- काले बादल आये ,
साथ में अपने पानी लाये....
छायी चारों तरफ हरियाली ,
फूला समाया न खुशी से माली ....
फूलों ने भर दी हैं बगिया ,
कहते हैं झरने और नदियाँ....
बढ़ी आक्सीजन  खत्म हुई आक्साइड,
अगर हम इंसान न करे पेड़ो से फाइट ....
लेखक - सोनू 
कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

कविता : बादल

बादल 

काले - काले बादल आये ,
साथ में अपने पानी लाये ....
छाई चारो तरफ हरियाली ,
फ़ूला समाया न खुशी से माली .....
फूलों से भर गयी है बगिया ,
कहतें हैं झरनें और नदियाँ ....
बढ़ी आक्सीजन ख़त्म आक्साइड ,
अगर हम इंसान न करें पेड़ों से फाइट ....
लेखक : सोनू कुमार 
कक्षा :9
अपना घर  

बुधवार, 16 मार्च 2011

कविता : पहने घूमें हिन्दुस्तानी

 पहने घूमें हिन्दुस्तानी 

हिन्दुस्तान  की गलियों में ,
जगह-जगह पर बाजार है ....
जिसमें सबसे ज्यादा चाइनीज माल है ,
है आश्चर्य की बात अनोखी ....
है क्या हिन्दुस्तानी ,
नहीं किसी को इसकी जानकारी ....
बिकता कहाँ ? माल स्वदेशी ,
जिसको ले हिन्दुस्तानी ....
  जगह-जगह पर बिकता माल विदेशी,
जिसको पहने घूमें हर हिन्दुस्तानी ....

लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा :8
अपना घर 

सोमवार, 14 मार्च 2011

कविता : मेरा मन

 मेरा मन 

रास्ते हैं सभी कठिन ,
मंजिल को है पाना .... 
इन रास्तों पर ,
संभल कर चलना ....
एक बार लड़खड़ाये ,
तो मुश्किल है संभलना ....
इन रास्तों पर चलते-चलते  ,
बीत गए हजारों दिन ....
लेकर अपनी उम्मीदों को ,
दुखी रह गया मेरा मन ....
लेखक :आशीष कुमार 
कक्षा :8
अपना घर 

 

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

कविता - सावधान रहना

सावधान रहना 
सुनो सभी भाई बहना ,
हम से तुम सावधान रहना ....
सबकी हैं हालत खस्ता ,
इसी लिए मिलते हैं बाजार में बस्ता ....
बस्ते को जो लेता हैं ,
वह स्कूल जाता हैं ....
जो स्कूल जाता हैं ,
वह कूल -कूल हो जाता हैं.....
स्कूल जाने में हैं फायदा ,
जिसमें  होते हैं ढेर  सारे नियम कायदा .....
विश्राम सावधान करना पड़ता हैं ,
सावधान रहना पड़ता हैं .....
जो सावधान नहीं रहता हैं ,
उसे मार के सावधान कर देते हैं .....
बाल कवि:  हंसराज, कक्षा - ७ अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 10 मार्च 2011

कविता : सूरज

 सूरज 

सूरज निकला लेकर धूप ,
सुबह-सुबह जब सब पर पड़ती धूप .....
कलियाँ हँसती-खिलती सब मुस्काती ,
पेड़ों पर चिड़ियाँ चहचहाती .....
बच्चे खाना खाकर स्कूल को जाते ,
बापू हल लेकर खेतों में जाते .....
फिर घर लगता बिल्कुल खाली-खाली ,
पर खेतों में दिखती हरियाली .....
जैसे-जैसे सूरज ढलता ,
घर में सब कोई वापस आता .....
 लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : ८
अपना घर
 

मंगलवार, 8 मार्च 2011

कविता -सुनो -सुनो

कविता -सुनो -सुनो 
सुनो- सुनो मेरे प्यारे भाइयों,
गन्दगी को दूर हटाना हैं  ....
अपने कानपुर को स्वस्थ बनाना हैं,
गन्दगी को रास्ते में मत फैलाओ ....
गन्दगी अगर पड़ी हो उसको दूर हटाओ,
अपने कानपुर का  अच्छा निर्माण कराओ....
गन्दगी को दूर हटाओ- गन्दगी को दूर हटाओ,
गन्दगी को दूर करने में सब का हाथ बटाओ ....
प्रदूषित रहित कानपुर हो जायेगा,
तब खुशहाल कानपुर कहलायेगा .....
जल प्रदूषण ,वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण को दूर हटायेगे,
कानपुर को स्वस्थ बनायेगे ....
पेड़ -पौधे खूब लगायेगे,
पानी खूब बरसायेगे....
शुध्य हवा हम पायेगे,
और स्वथ्य कानपुर बनायेगे....
सुनो- सुनो मेरे प्यारे भाइयो ,
गन्दगी को दूर हटाना हैं ....
अपने कानपुर को स्वथ्य बनाना हैं.....
लेखक - मुकेश कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर , कानपुर

सोमवार, 7 मार्च 2011

कविता -गर्मी

कविता -गर्मी 
गर्मी हैं आने वाली ,
सबका पसीना छुड़ाने वाली....
गर्मी में जब उगता सूरज ,
तब सबको दिखता हैं पूरब.....
गर्मी में जब पकते हैं आम ,
इसलिए आमो के कम हो जाते हैं दाम.. 
गर्मी हैं अब आने वाली  ,
सबका पसीना हैं छुड़ाने वाली......                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   
लेखक - ज्ञान 
कक्षा - ७, अपना घर , कानपुर

रविवार, 6 मार्च 2011

कविता - हुआ सबेरा

हुआ सबेरा 

सुबह सुबह जब चिड़ियाँ बोली.
माँ ये बोली बेटा मुन्ना उठ जा  तू ..
देर बहुत जब हो जायेगी .
तो स्कूल कब जाओगे..
मम्मी एक दिल की बात हैं.
पापा कि वह बाइक कहाँ ..
उससे मैं चला जाउँगा.
फिर तो देर कभी  न होगी..  
रजाई में घुस जाऊंगा . 
एक और नीद सो जाऊँगा..  
जब पता चली थी यह बात ..
सपना देखा था वह रात .
रजाई से उठे फिर झट से.. 
 पहुँच गए स्कूल पट से
लेखक - तुलसी , कक्षा - ७ , अपना स्कूल , कानपुर

शनिवार, 5 मार्च 2011

कविता: पता नहीं कैसी हवाएं चलें .......

पता नहीं कैसी हवाएं चलें......

इन हवाओं से कितना मजा आता ,
अगर गर्मी का दिन होता ....
ये तो प्रक्रति की देन है ,
पता नहीं कब कैसी हवाएं चल जाएँ .....
या तो इन हवाओं से खूब सारी धूल उड़ जाए ,
नहीं तो कीचड का भण्डार हो जाए ......
जिससे इस जग के लोग हो जाएँ परेशान ,
ये तो प्रक्रति की देन है .......
पता नहीं कब कैसी हवाएं चल जाएँ ,
या तो बदन में बीसों कपड़ों का ढेर हो .....
जिसे देखकर लोग हों परेशान,
ये तो प्रक्रति की देन है .....
लेखक :अशोक कुमार , कक्षा :८, अपना घर  

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

कहानी - समाज कुछ कहता हैं

शीर्षक  - "समाज कुछ कहता हैं "
हमने सुना हैं कि समाज कुछ कहता हैं |आखिर कहता हैं ,तो क्या कहता हैं ? जरा मैं भी तो जानू कि समाज हम सब से क्या कहता हैं ? समाज तो यह कहता हैं कि लोगों की मदद करो , आपस में एक दुसरे से प्रेम करो ,भेद भाव न रखो ,झगड़ा मत करो , दहशत न फैलाओ , नशा न करो , चोरी न करो ,सत्य बोलो ,असत्य न बोलो ,किसी से अकड़कर मत बोलो , गाली मत दो ,चिढाओ नहीं , बेवजह किसी को मरो मत | ये बातें  तो समाज के   कहने की हैं , लेकिन मनुष्य क्या कहता हैं और क्या करता हैं ? क्या आपने कभी सोचा हैं ? कि समाज इतना सब कुछ कह रहा हैं , और हम सब क्या कर रहे हैं ,आइए मैं आपको बताता हूँ कि आप क्या कर रहे हैं , इस वर्तामान में | किसी भी तरह से धन को प्राप्त करना हैं , चाहे उसके लिए चोरी करे ,चाहे किसी का क़त्ल करे ,चाहे झूठ बोले या फिर मारपीट करे | किसी का हक़ छीन कर आप लोग ऐशोआराम की जिन्दगी जिए | यह सब कुछ समाज नहीं कहता कि तुम ये सब करो | समाज तो कहता हैं कि आप सब लोग सदा अच्छे मार्ग पर चलें | लेकिन न बुरे  मार्गो पर लोग ही चलते हैं | चोरी करना ,दहशक फैलाना ,झगड़ा करना , क़त्ल करना आदि इस तरह के बुरे कार्य तो मनुष्य ही करते हैं| यदि आप सभी लोगों को समाज को अच्छा बनाना हैं ,तो फिर अपने द्वारा किये जा रहे कार्यो को छोड़ना पड़ेगा ,और अच्छे कार्यो को चुनना होगा | 
लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ८ 
अपना घर , कानपुर 

गुरुवार, 3 मार्च 2011

कविता - गाड़ी

कविता - गाड़ी 
गाड़ी जब मेरी चलती हैं ,
मनजिल  तक पहुँचती हैं.....
गाड़ी पर हो जाते हैं ,
भइया तीन सवार ....
दूसरा भइया बोलता ,
ओं मेरे प्यारे भइया ....
सम्भलकर चलाना गाड़ी को ,
रस्से में खड़ी हैं  एक गईया.....
लड़का बोला हाय रे ,
रस्ते से हट जा मेरी मईया....
अगर गिर गया भइया ,
तो मर जायेगे  भइया ....
गाड़ी जब चलाती हैं ,
मनजिल तक पहुँचती....
लेखक - जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा - ७ 
अपना घर ,कानपुर

फिल्म:- अपना स्कूल.... एक छोटी सी फिल्म इस खुशियों के स्कूल की .....

कानपूर में 280 ईट भठ्ठें है. जंहा पर बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर  काम करते है जिसमे से ज्यादतर अभी भी बंधुआ मजदूर है. इन्हीं ईट - भठ्ठा प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए जाग्रति बाल विकास समिति द्वारा इन भठ्ठों पर स्कूल चलाया जा रहा है जिसे बच्चे प्यार से "अपना स्कूल" कहते है. ईट-भठ्ठों पर हजारो बच्चों का बचपन और सपने काम के बोझ तले  सदियों से दम तोड़ते  आ रहे है . "अपना स्कूल" उन दम तोड़ते बचपन और सपनो को जिन्दा रखने के साथ-साथ उन्हें फिर से जीने की परिवेश और अवसर देता है... बच्चे "अपना स्कूल" में आकर अपने बिखरते सपनो को सजाते है और उनमे नए रंग भरते है. प्यार, ख़ुशी, हंसी, शरारत, मजे, खेल गाना - बजाना और खाना इनके बीच होती है पढाई भी, इसी लिए शायद प्यार से कहते है बच्चे इसे अपना स्कूल.... एक छोटी सी फिल्म इस खुशियों के स्कूल की .....


Mahesh , Kanpur

फिल्म:- अपना स्कूल.... एक छोटी सी फिल्म इस खुशियों के स्कूल की .....

कानपूर में 280 ईट भठ्ठें है. जंहा पर बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर  काम करते है जिसमे से ज्यादतर अभी भी बंधुआ मजदूर है. इन्हीं ईट - भठ्ठा प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए जाग्रति बाल विकास समिति द्वारा इन भठ्ठों पर स्कूल चलाया जा रहा है जिसे बच्चे प्यार से "अपना स्कूल" कहते है. ईट-भठ्ठों पर हजारो बच्चों का बचपन और सपने काम के बोझ तले  सदियों से दम तोड़ते  आ रहे है . "अपना स्कूल" उन दम तोड़ते बचपन और सपनो को जिन्दा रखने के साथ-साथ उन्हें फिर से जीने की परिवेश और अवसर देता है... बच्चे "अपना स्कूल" में आकर अपने बिखरते सपनो को सजाते है और उनमे नए रंग भरते है. प्यार, ख़ुशी, हंसी, शरारत, मजे, खेल गाना - बजाना और खाना इनके बीच होती है पढाई भी, इसी लिए शायद प्यार से कहते है बच्चे इसे अपना स्कूल.... एक छोटी सी फिल्म इस खुशियों के स्कूल की .....

 

Mahesh , Kanpur

बुधवार, 2 मार्च 2011

कविता : रहे न बदन में लत्ता

रहे न बदन में लत्ता 
पूरब से निकला सूरज ,
पश्चिम को जाता है ....
मध्य में जब वह आता है ,
ऐसी रोशनी फैलाता है ....
हर मानव छाया में जाता है ,
क्योंकि उस समय ऐसा लगता है .....
जैसे बदन मानव का जलता है ,
क्योंकि बदन में न होता लत्ता है .....
पूरब से निकला सूरज ,
पश्चिम को जाता है  ......

लेखक :अशोक कुमार , कक्षा: 8 ,अपना घर 

मंगलवार, 1 मार्च 2011

kavita - kanun hain andha

शीर्षक - कानून हैं अन्धा 
जुल्म वहाँ पर होता हैं ,
पुलिस वाला जहाँ पर सोता हैं ....
भ्रष्टाचार यही बढ़ाते हैं ,
रिस्वत लेकर चोर जुआरी छोड़े जाते हैं .....
अपनी वर्दी पर रोब जमाते हैं ,
रिस्वत लेते वह सब देखे जाते हैं .....
चोर हो चाहे हो जुआरी ,
रिस्वत लेने वाला हैं रिस्वत खोरी .....
रिस्वत लेना काम नहीं ,
यह हैं इसका धन्धा .....
इसीलिये तो कहते हैं,
कि "कानून हैं अन्धा" ......
लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा -८ 
 अपना घर , कानपुर 


kavita - anokha basta

शीर्षक  - अनोखा बस्ता 
मेरा बस्ता अनोखा बस्ता ,
लगता हैं भरा हैं उसमे खस्ता ....
मिलता हैं बस्ता बाजारों में सस्ता ,
मेरा बस्ता अनोखा बस्ता .....
जो मेरी किताबो को  सुरक्षित रखता हैं ,
मेरा बस्ता अनोखा धुप से हैं तप्ता......
लेकिन किताबो को सुरक्षित रखता ,
अनोखे बस्ते  से ही शिक्षा हम पाते हैं .....
फिर उस शिक्षा को हम अपनाते हैं,
बस्ता के ही  माध्यम से जिलाधिकारी बन पाते .....
मेरा बस्ता अनोखा बस्ता ,
ज्ञान की बात बताता हैं .....
विभिन्न जानकारियाँ हम तक पहुँचाता हैं ,
मेरा बस्ता अनोखा बस्ता ......
वस्तु को  सुरक्षित रखना मेरी जिम्मेदारी हैं ,
अगर फट जाये बैग को सिलाना हमारा अधिकार हैं.....
क्यों  कि मेरे बैग में पुस्तक का भंडार हैं......
लेखक -मुकेश कुमार 
कक्षा - ९
अपना घर ,कानपुर