" आंधी"
किस ओर चली ये आंधी |
ठण्ड हवाओ का झोखा अपने संग बांधी ,
थोड़ी वर्षा यहाँ भी गिरा जाओ |
इस भीषड़ गर्मी में हमको न तड़पाओ ,
सारे पेड़ों में मारी है आम की झोली |
तुम देखका डर गई हमारी पेड़ भोली ,
थोड़ा हमपर रहम है करना |
सारे आम को तुम मत झोरना ,
खटटे -मिट्ठे पके आम हमारे |
तेरे आते डर जाते हम सारे ,
झोपड़ियों को तुम मत उड़ा ले जाना |
पड़ता है उन्हें फिर दुबारा बनवाना ,
किस ओर चली ये आधी |
कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 10th
अपना घर
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