बुधवार, 5 दिसंबर 2018

कविता : साल की पहली बरसात

" साल की पहली बरसात "

कर रहे थे वर्षों से इंतज़ार,
कब आएगी साल की पहली बरसात |
देखते रहते थे हम आसमान को,
कहीं दिख जाए काले घटा हमको |
हुई अचानक एक ऐसी घटना,
पड़ा मुझे छज्जे के निचे छुपना |
आ गई साल की पहली बरसात,
बूंदों की हुई जमीं से मुलाकात |
देखा जब काला घटा का रंग,
जैसे लग रहा था बरसात जाएगा तुरंत |  
सुनहरी - सुनहरी जब बुँदे बरसे,
पानी के लिए अब नहीं तरसे |
तब जाके हमको सुकून मिली,
बारिश के संग कुछ बूंदें गिरी |
चरों तरफ हरियाली अब छाई,
मुरझाए हुए घास की मुस्कान खिली |
कर रहे थे वर्षों से इंतज़ार,
कब आएगी साल की पहली बरसात |

                                    कवि : नितीश कुमार : कक्षा : 8th , अपना घर



कवि परिचय : यह कविता नितीश कुमार के द्वारा लिखी गई है बिहार राज्य के निवासी हैं और अपना घर संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे है | इस कविता के माध्यम से यह बताना चाहते हैं की साल की पहली वर्षा की कीमत कितनी होती है सूखे हुए पत्तों को क्या लगता है जब वह पहली बरसात में पानी की बूंदें उनके पत्तियों में पड़ती हैं |  



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