शनिवार, 29 अक्टूबर 2016


माँ 
ये दुखों को लेकर भी माँ जन्म हमको देती है ,
हर अँधेरे के उस डगर में उजियाला दिखा देती है /
माँ का नाम लेते सारे  दुःख पिघल जाते है ,
अगर माँ से दूर हो तो एक दिन मिल जाते हैं /
ये खून जो हमारे रगों  में बह रहा है ,
माँ के सहारे ये दुनियां चल रहा है /
रोते -रोते भी वो शब्द जुबान पर आ जाते है ,
जो बचपन में माँ हमको सिखाते है /

नाम =प्रांजुल कुमार 
कक्षा = 7th 

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

शीर्षक = इंसान 

जिंदगी के हालात से जूझ रहा है इंसान /

कभी -कभी अपनी ही बनाई इंसानियत 

से ही हार जाता है इंसान /

वह सोच नहीं पता पर वह क्या करे /

अपने उस दिल के दर्द को बयां नहीं 
कर पता इंसान /

सपनो का भंडार खूब सजता है /

जो इस काबिल नहीं वह 
उन अपने यादो में बनी सपने /

के उस जाल को बिछा  नहीं 
पता इंसान /


                          नाम = राज  कुमार
                            अपना घर             

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016


हवा 
हिमालय चढ़ना हमारे बस में नहीं ,
हवा  को मोड़ने चले/
मुसीबतों से पार होकर  ,
दुनियां को बदलने चले /
हर कदम में मुसीबतों का ढेर है ,
फिर भी अपने कदम आगे है /
हम ठोकर खाते -खाते ,
सफलता की सीढियाँ चढ़ रहे हैं /
चूर -चूर हो गए शरीर ,
पर हौशलों में हमारे दम है /
सबको बता कर रहना है हमको ,
नहीं किसी से कम है /

नाम = रविकिशन 
कक्षा = 7th 

बुधवार, 26 अक्टूबर 2016


मौसम 
मौसम बन जाय  काश अगर ,
काले बादल छा  जाय अगर/
बारिश की बूंदो को लेकर ,,
धरती पर गिर जाय अगर /
जो लोग थे आश लेकर बैठे ,
कब बारिश की बूंदे लौटे /
हरियाली भी तो थम गई थी ,
सूरज की गर्मी से सहम गई थी /
तब हो जाएगी साफ डगर ,
मौसम बन जाइ काश अगर /

                     नाम = प्रांजुल कुमार 
                       कक्षा =7th  

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

हिंदी दिवस 
        हिंदी दिवस आया ,हिंदी दिवस आया ,
हम सबको हिंदी बोलना सिखाया /
तरह -तरह के भाषा लाया ,
हिंदी है हमारी भाषा ,
इससे जुडी है सारी आशा /
हिंदी में बिंदी लगाना नहीं भूलते ,
हिंदी का बुक पढ़ना नहीं भूलते /
     कुछ लोगों को हिंदी पढ़ना नहीं आता 
उनको कुछ बुद्धि दो दाता /
                    नाम = अजय कुमार 

                         कक्षा = 2nd 

सोमवार, 24 अक्टूबर 2016



जानवर
जानवरों का जीवन नाश किया 
उनके घरों का विनाश किया /
      जानवरों को रहने के लिये घर नहीं ,
मनुष्य के दिल में रहम नहीं /
तुमने उनके घरों को उजाड़ा ,
रहने के जगह पर  घर बनाया /
      तेरे इस व्यव्हार से जानवरों का हो जायेगा  खात्मा  ,
तब शांत होगी तुम्हारी आत्मा /  ...... 
                                
                           नाम = विक्रम कुमार 
                             कक्षा = 6th 

कविता : फूल

 "फूल"

            सुन्दर -सुन्दर फूल जीना सिखाती है ,
         हर मुश्किलों से लड़ना सिखाती है /
चाहे बाधाएं हो कितनी 
उन बाधाओं से लड़ना  सिखाती है /
काँटों में खिलती है और 
हर जगह महकाती है /
    कुछ -कुछ हमसे कहती है फूल ,
    याद रखना मुझको जाना भूल /

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय :  बिहार के रहने वाले देवराज | आजकल कविताओं के बादशाह माने जाते है | ये हमेशा कुछ नई सोच  के साथ अपनी कविताओं  को ख़ूबसूरत बनाते है | ये क्रिकेट खेल में भी माहिर है|  ए बी डिविलियर्स इनके बेस्ट खिलाडी है | इनको डांस करना बेहद पसंद है | उम्मीद है की ये हमेशा नई सोच के साथ अपनी कविता को लिखेगें | 
                                                               
                   

               

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016



 चिड़िया 
कु कु  करती चिड़िया आयी ,
डालों  पर फिर  शोर मचाई /
नाच रही थी फुदक -फुदक कर ,
उस डाल पर इस डाल पर /
जा रही थी उदक उदक ,
पंख फैलाए ,गाना गाये /
पेड़ में एक लकड़ी थी सूखी,
चिड़िया ने उस पर चोंच  ठोकी /
आवाज़ उससे आई चुर्र ,
चिड़िया उड़ गयी फुर्र। ....... 

                                                                                          नाम =विक्रम कुमार
                                                                                          कक्षा =6th 

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016



बारिस 
            ये बारिस कुछ कहना चाह रही हैं ,
शायद ये हमें बुला रही हैं /
हवा के बहाव में वृते ,
       झूम-झूमकर कुछ जता रही हैं /
जिंदगी में हँसते रहना ,
ये हमें बता रही हैं /
   सुहानी हवा की बहती लहरे,
चलते रहना हमें सिखाती /
   जब तक मंज़िल पालों न अपनी ,
   रुकने का शब्द ज़ुबान पर न आती /
  ये बारिशें कुछ कहना छह रही हैं ,
 हवाओं के साथ संदेसा ला रही हैं /

                                 नाम = देवराज 
                                कक्षा = 6th 

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

                                                                  सपनों का संसार 

 सपनों का संसार सुहाना लगता है '
मैंने कल्पना की हर चीज़ पुराण लगता है /
मुझे  हर चीज़ अनदेखी सी लगती है
 बस मुझे आवाज़ सुनी सी लगती है /
मेरी आँख  तो बंद होती है 
पर मेरे दिल -दिमाग की सोंच बंद  है /
मैं  तो सपनों में  सोया रहता हूँ ;
बेड  पर ही सोया रहता हूँ /
मुझे हर चीज़ अदृश्य दिखाई देती है ;
 मुझे सपनों का ख्याल ही  ख्याल दिखाई देता है /

                                                                                 नाम = विक्रम कुमार
                                                                                     कक्षा =6th 

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

रात 
सुहानी से ये रात है ;
कहने को कुछ बात है /
            अपने दिल से मैंने ये महसूस किया ;
इसलिए मैंने इसे चूस किया /
                   ये सुहानी सी बात हर बार कुछ नया लती है ;
              मेरी आँखों में नींदों का समंदर भर जाती है /
                        बस यही  सुहानी सी रात मेरे दिल को खुश कर जाती है ;
हर बार ये रातें कुछ अहसास दिलाती है /
                                                                               नाम = विशाल कुमार 
                                                 कक्षा = ७