शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

शीर्षक = इंसान 

जिंदगी के हालात से जूझ रहा है इंसान /

कभी -कभी अपनी ही बनाई इंसानियत 

से ही हार जाता है इंसान /

वह सोच नहीं पता पर वह क्या करे /

अपने उस दिल के दर्द को बयां नहीं 
कर पता इंसान /

सपनो का भंडार खूब सजता है /

जो इस काबिल नहीं वह 
उन अपने यादो में बनी सपने /

के उस जाल को बिछा  नहीं 
पता इंसान /


                          नाम = राज  कुमार
                            अपना घर             

कोई टिप्पणी नहीं: