रविवार, 30 सितंबर 2012

शीर्षक :- पानी

     शीर्षक :-  पानी
 पानी बरसा झमाझम ।
 धान लगाएंगे  खेतो  मे हम ।।
 मक्का भी अब लगायेंगे ।
 मक्का  खूब हम खायेंगे ।।
 किसानो की तो  प्रसन्नाता आ गई।
 बदल तो पानी बरसा गई ।।
 किसानो के खेत  लहलहाने लगे।
 बादल अब तो पानी  बरसाने लगे।।
 रात की  चाँदनी मे लहलहाएंगे खेत।
 खेतो मे  नही है कोई रेत ।।
 पानी बरसा झमाझम ।
  धान लगाएंगे  खेतो  मे हम  ।।
नाम :मुकेश  कुमार 
कक्षा :11
 अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 29 सितंबर 2012

शीर्षक :- जिंदगी

शीर्षक :- जिंदगी
 जिंदगी के इस भव सागर का ।
 कोई तो किनारा होगा ।।
 मेरी इस जिंदगी मे ।
 मेरा कोई तो सहारा होगा ।।
 उस किनारे का ही तो ।
 मुझे है इन्तजार ।।
 वो जो आ जाये तो ।
 जिंदगी में मेरे आये बहार ।।
 जिंदगी बड़ी अनमोल है ।
 बिना किनारे के नहीं चलती ।।
 बचपन और बुढ़ापा दो स्टेप है इसके ।
 जो बिना सहारे के नहीं चलते।।
नाम : सोनू कुमार 
कक्षा :11
अपना घर, कानपुर  


शीर्षक :- अंतर

 शीर्षक :- अंतर
 गाँव जैसा माहौल ।
 वो शहरों में कहां।।
 शहरों जैसी दुकाने ।
 वो गाँव में  कहां।।
 सभी स्थानो  का है।
 अपनी -अपनी जगह ।।
  अपना -अपना महत्व।
 फिर क्यों होता है।।
 एक -दूसरे मे मतभेद ।
  गाँव के निवासी ।।
  शहरों में बसे है ।
  फिर क्यों वो अपने को ।।
  शहरी समझ रहें हैं ।
  गाँव से ही अन्न जाता है।।
  सभी शहरों में ।
  इसीलिये ठहरे हुए  हैं ।।
  वो शहरों में।
नाम : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 


 

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

शीर्षक :- पढ़ाई

    शीर्षक :- पढ़ाई
 बड़ा भारी ये अपना बस्ता लेकर ।
 जाते है रोज सुबह स्कूल ।।
 स्कूल पहुंचते ही आती है नींद ।
 और सब कुछ जाते है भूल।।
 जब शुरू होती है पढाई ।
 पहले ही पीरियड मे पढ़ाते है भुगोल ।।
 कुछ न समझ मे आता है ।
 सब कुछ हो जाता है गोल ।।
 इतिहास की तो  मत पूछो बात ।
 पुराने से भी पुराने जमाने की हैं बात बताते ।।
 समझ नही आता है कि क्यों ।
 भूतकाल की बातों को ये दोहराते।।
नाम :धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर , कानपुर 

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

शीर्षक :-नेता




 शीर्षक :-नेता
रात मे एक ,
घनघोर  अँधेरे ।
कुछ आये मच्छर ,
पैसा बटोरे ।
उसने    मेरे हाथ मे,
 एक गड्डी जो  थमाई ।
 आने वाले पाँच साल की ,
 कुर्सी उसने हथियाई ।
 पाने के बाद कुर्सी,
 उसने  ऐसा हड़कंप मचाया ।
 आने वाली सुबह को ,
  न आये आंसू न  जा रहा रोया ।
  अब  तो है  केवल उनके ,
  सिर पर भय सवार ।
  बैठा था इन पांच सालो में ,
  जो नेता हाथ - पांव पसार ।
  उसने अपना मुंह ऐसा  फाड़ा ,
  और ऐसा पांव पसारा ।
  उस नेता के चक्कर मे,
  अपना देश फंसा बेचारा ।
  एक रात ............
  घनघोर  अँधेरे।
    आये मच्छर ,
      पैसा बटोरे ।
  
 नाम :सोनू कुमार 
कक्षा :11
अपना घर ,कानपुर 
  

शीर्षक :-खेल

शीर्षक :-खेल

 शुरू हुआ ट्वेंटी -ट्वेंटी खेल।
 मैदानों पर उतरेंगे मेल ।।
 जो जीतेगा वही होगा सिकंदर ।
 जो जीतेगा वही होगा सेमीफाईनल के अंदर ।।
 सभी खेल -खिलाड़ी आयेंगे ।
 रनों का अम्बार लगायेंगे ।।
 छक्के -चौक्के की कर देंगे बरसात ।
 क्यों न बीत जाये आधी रात ।।
 गेंदबाज ,गेंदबाजी में हाथ जमायेंगे ।
 बल्लेबाज , बल्ले से रन बरसायेंगे ।।
 शुरू हुआ ट्वेंटी -ट्वेंटी खेल ।
 मैदानों पर उतरेंगे मेल ।।
नाम :मुकेश कुमार 
कक्षा :11
अपना घर  ,कानपुर 

बुधवार, 26 सितंबर 2012

शीर्षक :-सभी के दिन



शीर्षक :-सभी के दिन
आते है सभी के,
खुशी के दिन । 
आते है सभी के,
दुखी के दिन ।
फर्क दोनों में,
काफ़ी बड़ा है । 
दुख खुशी से,
काफ़ी बड़ा है ।
दुःख के दिन,
आते है जब । 
तब खुशी के,
दिन चले जाते है सब ।
नाम :ज्ञान कुमार 
 कक्षा :7
अपना घर, कानपुर 

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

शीर्षक :- पानी

  "पानी"

  रिम -झिम -रिम झिम ,
 पानी बरस रहा है ।
 बच्चे  स्कूल जा रहे है ,
 बच्चा उठाता बर्तन धोता ।
 बर्तन धोकर पढ़ने जाता ,
 और कक्षा मे प्रथम है आता ।
 और मम्मी पापा को पढ़ाता ,
 पानी बरसे झम -झम ।
 स्कूल रोज जायेंगे हम ,

नाम :चन्दन कुमार, कक्षा :7, अपना  घर  ,कानपुर

शीर्षक :-मौसम

शीर्षक :-मौसम
मौसम सुहाना ,
मन   सुहाना ।
बदल को है आना ,
जल को है बरसाना।
मन को है  नहलाना ,
बरसात मौज मस्ती करना ।
दोस्तों को खुंशिया बाटना,
ये दिन हो अनमोल ।
इसका न कोई मोल ,
ये रतन बड़ा है अनमोल ।
नाम : हंसराज कुमार , कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर

सोमवार, 24 सितंबर 2012

शीर्षक:सीख ले


 शीर्षक:सीख ले
कोई तुझे कुछ कहे ।
तू जाने या ना जाने ।।
हो सके की वह कुछ और कहे ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
चाहे रात हो या दिन ।
तेरी चीजे मांगे तुझसे जबरन ।।
ऐसी न आये कोई घड़ी ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
यदि कोई नेता आये तेरे घर पर ।
जब बैठा हो तू अपनी चौखट पर ।।
आकर तुझे फसाये अपने चुंगल में ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
 बाप बड़ा ना भईया ।
सबसे बड़ा रुपैया ।।
ऐसी न सुनाने को मिले कहावात ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
घर का आदमी घर के काम न  आवे ।
कुछ करवाने को कहो तो वह अपनी औकात दिखावे।। 
ऐसे रंगीन सियारों से तू बच ले ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
एक मदारी बन्दर और बंदरिया ।
भरता अपनी झोली -डलिया ।।
तुझे भी ना बनना पड़े  बन्दर  -बंदरिया ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
ऐसी ना कर तू दोस्त से दोस्ती ।
जू तुझे रोज खिलावे चाट पकौड़ी ।।
संकट आने पर बना दे तुझे ही बलि का बकरा ।
 इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
हो ना हो तेरे नसीब में ।
मिले तुझे  जी न हो तेरे नसीब मे ।।
ऐसे सपने मन मे जग जाये ।
जो ना पूरे हो इस काल मे ।।
 इससे पहले तू कुछ सीख ले ।                                                       नाम : आशीष कुमार 
                                                                                             कक्षा :10
                                                                                           अपना घर ,कानपुर 

रविवार, 23 सितंबर 2012

शीर्षक :- स्वत: के नजारे में


स्वत: के नजारे में 
ख्यालों  की बारिश  में , 
बारिश  के   झोंके  में । 
पसीने मे लतपत ,
उस नज़ारे को देखने में । 
प्रार्थना की खुदा से ,
उन्हें लाने  की ।
वो तो नहीं आये ,
ख्यालों  के सपनों में । 
बारिश  की कोई सीमा न रही ,
जिनको आना था ।
ख़ुदा की दुआ से ,
जिनके ख्यालों मे ।
डूबे थे हजारों  लोग ,
उनके आने के ख्यालों में  ही ।
बारिश के नज़ारे थे ,
वो जो पड़े थे ।
उनके ख्यालों में ,
वे ही बूंदों का मजा ले रहे थे ।
रास्ते में  चलते हुये ,
हाथों  में  हाथ लिये ।
बालों  को सहलाते हुये , 
ख्यालों की बूंदो से ।
स्वतः  को ही वे ,
गम  के बूँद पिला रहे थे  ।

                                        नाम :  अशोक कुमार 
                       कक्षा : 10
                                                       अपना घर ,कानपुर 

शीर्षक:-बचपन

"बचपन"..

जब मैं छोटा था।
मन चाहा खेल -खेला करता था ।।
जब दीदी गोद में सुलाती थी ।
कविता कहानिया रोज सुनती थी।।
ये मेरा बचपन था ।
माँ मुझे मारने दौडती थी।।
मै पेड़ पर चढ़ जाती थी ।
ये मेरा बचपन था ।।
मेरा बचपन खो गया ।
पता नही कहा खो गया  ।।

  नाम:-चन्दन कुमार, कक्षा:-7, "अपना घर"

बुधवार, 19 सितंबर 2012

शीर्षक :- महंगाई

शीर्षक :- महंगाई 
महंगाई की ऐसी मार पड़ी। 
कि जनता सारी हो  बेहाल।। 
टूट गई अब सारी आशाएँ। 
महंगाई ने जब बिछाया जाल।। 
गरीबी नहीं है इस देश में। 
गरीबों को तो बनाती है ये सरकार।। 
महंगाई को बढ़ा-बढ़ा कर। 
कर दिया सबको बेरोजगार।। 
महंगा हो गया आटा चावल। 
महंगाई ने जब बिछाया जाल।। 
आलू टमाटर का मत पूछो भाव। 
लेकर खाली झोला वापस जाओ।। 
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर  

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

शीर्षक :- मनुष्य

शीर्षक :- मनुष्य 
मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव आते है। 
कभी सफल हो जाते है।। 
तो कभी असफल हो जाते है। 
यदि मनुष्य ले उद्देश्य को ले पहचान।। 
तो उसे है पाना आसान। 
और अपने काम को महान बनाना है आसान।। 
अपनी जिन्दगी में कोई फेल तो कोई है पास। 
मेहनत और लगन की आदत ही खास।। 
सपने देखना है आसान। 
लेकिन उसके बराबर मेहनत करना आसान।। 
मनुष्य के जीवन में उतार चढ़ाव आते है। 
कवि:- मुकेश कुमार 
कक्षा:- 11 
अपना घर  

रविवार, 16 सितंबर 2012

शीर्षक :-उम्मीद

शीर्षक :-उम्मीद  
खुद में एक उम्मीद लिए।
अपने में एक आस लिए।।
पंखो में आकाश लिए।
उड़ते चले गये हम।।
सहते हुए सभी गम।
अब गमो के पार चले हम।।
हमसे सब हार गये गम।
चलेंगे एक साथ जब।।
ये आकाश जायेगा थम।
उनको हमने हराया कुछ ऐसा।।
अब समय वापस न आएगा वैसा।
हम हो गए अब इसमें निपुण।।
आया हममें एक अच्छा गुण।
कवि:- सोनू कुमार 
कक्षा:- 11 
अपनाघर  

शनिवार, 15 सितंबर 2012

शीर्षक :- समस्या विश्व पर्यावरण की

शीर्षक :- समस्या विश्व पर्यावरण की ...................।
वर्तमान समय के इस दुनिया में। 
विकट एक समस्या आ गई।। 
विश्व पर्यावरण है वो समस्या। 
जो संक्रामक की तरह छा गई।। 
एक तरफ दौड़ती कार और मोटर गाड़ियाँ। 
और एक तरफ कटते पेड़ जंगल और झाड़ियाँ।। 
विश्व पर्यावरण दिवस सब मन रहे। 
और फैक्ट्रियों का पानी गंगा में बहा रहे है।। 
पर्यावरण समस्या है ये विश्व समस्या। 
इसका निदान नहीं हो सकता।। 
जब तक हम स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर।
इसके प्रति सचेत न हो जाएँ।। 
कवि :- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर 

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

चित्र:- बगुले को है इंतजार

चित्र:- बगुले को है इंतजार .................। 


नाम :- लवकुश कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर 

शीर्षक :- सपने

शीर्षक :- सपने
सपनों को साकार किये। 
आखों में एक आस  लिए।। 
वे आगे बढ़ते जाते है।
इच्छा अपने पास लिए।।
इच्छा बिना पूरी उनकी।
सब अधूरा सा लगता है।। 
जब तक न हो लक्ष्य तो। 
सब कूड़ा सा लगता है।। 
कवि:- सोनू कुमार 
कक्षा:- 11
अपना घर 

बुधवार, 12 सितंबर 2012

शीर्षक:- प्रथ्वी को बचाओ

शीर्षक:- प्रथ्वी को बचाओ 
चल रहा है चक्र। 
बदल रहा है युग।। 
मानव ने तो हद कर दिया है। 
प्रथ्वी को प्रदूषित कर दिया है।। 
मानव ने जंगलों को काट डाला। 
बहुत से जीव-जंतु को मार डाला।। 
अगर ऐसी ही तबाही मचेगी। 
तो प्रथ्वी भी नहीं बचेगी।। 
अभी भी हमारे पास मौका है।
प्रथ्वी को बचाने का।। 
और प्रथ्वी को फिर से।
हरा-भरा और सुन्दर बनाने का।। 
कवि :- ज्ञान कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर  

सोमवार, 10 सितंबर 2012

शीर्षक:- कुछ पल की बातें

शीर्षक:- कुछ पल की बातें 
हर पल एक बात। 
नयी शुरू होती है।। 
दो पल की बातें है। 
जो हर पल होती है।। 
शुरू में वे मीठी लगती है। 
घुल मिल जाने के बाद।। 
वही बात बुरी लगती है। 
हा-हा ही-ही की बातों में।। 
वही बात बुरी लग जाती है।
वही बात सभी से होती है।। 
जो मिलता उसी पर चर्चा होती है। 
जब भी होती चर्चा।। 
एक नयी बात जुडती है।
हर पल एक बात।। 
नयी शुरू होती है। 
कवि:- अशोक कुमार 
कक्षा:- 10 
अपना घर 

शनिवार, 8 सितंबर 2012

शीर्षक :- क्या वह आदमी है

शीर्षक :- क्या वह आदमी है 
क्या वह आदमी है।
उसके दो पैर है।। 
और दो हाथ है। 
क्या वह आदमी है।। 
हाथ में कटोरा है। 
और भीख मांग रहा है।। 
अपने पापी पेट के लिए। 
इस पेट से मजबूर है।। 
पेट की भूख से चूर-चूर है। 
क्या वह आदमी है।।
कवि:- मुकेश कुमार 
कक्षा:- 11
                                           अपना घर 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

शीर्षक:- बीती जिन्दगी

शीर्षक:- बीती जिन्दगी 
बीती हुई जिन्दगी के। 
कुछ पल हमें याद आते है।। 
याद उन्हें करके अब। 
हम बहुत पछताते है।। 
तब हम सोंचते है कि। 
काश! ये जिन्दगी इससे।।
आगे न बढ़ी होती। 
तो उस समय हमने।। 
ये कहानी न गढ़ी होती।
गढ़ी हुई कहानी के।। 
कुछ पैराग्राफ याद आते है। 
उस समय के कुछ दोस्त।। 
साथ है तो कुछ चले गए। 
जाते-जाते कुछ दोस्त।। 
हमें हैं कुछ दे जाते। 
उन्ही ग़ालिब दोस्तों की।। 
याद कर हम बहुत पछताते है। 
कवि :- सोंनू कुमार 
कक्षा :- 11 
अपना घर 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

शीर्षक :- लापरवाही

शीर्षक :- लापरवाही 
हर मोड़ मुकाम पर मिलते है राही। 
सडको पर अपनी मर्जी से, चलने में नहीं कोई लापरवाही।।
ठेके पर बैठकर पीने में, या चौपाल पर सही। 
पीकर एरोप्लेन चलाने में, नहीं कोई लापरवाही।।
बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने में। 
ट्रैफिक पुलिस के रोकने में।। 
उनसे बचने के लिए घूंस देना सही। 
इसमें नहीं कोई लापरवाही।।
बच्चे हो या बूढ़े। 
अमीर हो या गरीब सही।। 
उनको गाली देने और सुनने में कोई ऐतराज नहीं। 
ये कविता जिसने लिखी याद नहीं।। 
कवि ने शीर्षक दिया ही नहीं। 
पर इसमें कवि की नहीं कोई लापरवाही।। 
कवि:- आशीष कुमार 
कक्षा:- 10 
अपना घर 

सोमवार, 3 सितंबर 2012

शीर्षक :- बचपन

शीर्षक :- बचपन 
याद आते वो बचपन के दिन।
न बीतता था समय खेले बिन।। 
वो मौजमस्ती और बीते वो पल।
याद आ जाते है आजकल।। 
वो कबड्डी और गुल्ली डंडा। 
दिन भर खेलना अपना था बस यही फंडा।। 
दोस्तों संग वो लुका छुपाई। 
कभी याद आ जाते है भाई।। 
खेल-खेल में समय गया कब बीत। 
समझ आई अब दुनिया की रीति।। 
दोस्तों में न करते थे भेदभाव। 
एक दुसरे के लिए था दिलों में घाव।। 
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर  

शनिवार, 1 सितंबर 2012

शीर्षक :- सपने में

शीर्षक :- सपने में 
सुबह के सुहाने मौसम में।
मैं निकल पड़ा अपने स्कूल।। 
आकाश की बदरिया छाने लगी। 
बुँदे बारिश के बरसाने लगी।। 
मै भागा तेजी से स्कूल।
अचानक में मुझसे हुई एक भूल।। 
मैं उल्टे पैर पहुंचा स्कूल। 
स्कूल से कर ली कुट्टी।। 
मैं सपने में मन रहा था छुट्टी। 
कवि:- चन्दन कुमार 
कक्षा:- 7 
अपना घर