शीर्षक :- देखा है हमने
सहसा दिन को रात में बदलते....
आसमान में सूरज को उगते....
समुन्दर के किनारे,
लोगों को नहाते....
लहरों को ऊपर उठते,
देखा है हमने....
जहाजों को तैरते....
पक्षियों को उड़ते,
फूलों को खिलते....
कोयल को गाते,
देखा है हमने....
सहसा दिन को रात में बदलते....
बादलों को गरजते,
बिजली को कड़कड़ाते....
किसानो को हँसते,
देखा है हमने....
सुख को आते....
दुःख को जाते,
किसी को खिसियाते....
बच्चों को चिढ़ाते,
देखा है हमने....
खेतों को लहलहाते....
खेतो में बीजों को बोते,
आम के पेड़ में बौरों को आते....
कच्चे आम को पकते,
देखा है हमने....
बारिश में छाता लेकर जाते....
फिसलन से किसी को गिरते,
उसके गिरने से किसी को हँसते....
माँ को बच्चे को बहलाते,
देखा है हमने....
पतझड़ के मौसम में....
पेड़ों से पत्ते गिरते,
पक्षियों को चहचहाते....
मच्छरों को काटते,
देखा है हमने....
बस में लटक कर सफ़र करते....
कंडक्टर से झगड़ते,
किसी को पीकर झगड़ते....
लड़कों को बिगड़ते,
देखा है हमने....
कवि : आशीष कुमार
कक्षा : 10
अपना घर