भोर मुसाफिर घर से निकला
भोर मुसाफिर घर से निकला ,
संग में लेके एक थैला ....
आगें बढ़ा तो पड़ा मिला झोला,
जैसे ही उसने उसको खोला ....
जिन हां-हां कर निकला ,
बोला जो हुक्म मेरे आका ....
कोई न कर पायेगा आपका बाल भी बांका ,
तुमने मेरी जान कैद से छुड़ाई ....
जो मागोगे सब कुछ दूंगा चाहे हलुआ हो या मिठाई,
मुसाफिर बोला यदि तुम हो जिन .....
तो मुझको करो मालामाल रातो-दिन ,
मैं बन जाऊं इतना अमीर ....
और कोई न हो मुझ जैसा बीर ,
भोर मुसाफिर घर से निकला ,
संग में लेके एक थैला ....
आगें बढ़ा तो पड़ा मिला झोला,
जैसे ही उसने उसको खोला ....
जिन हां-हां कर निकला ,
बोला जो हुक्म मेरे आका ....
कोई न कर पायेगा आपका बाल भी बांका ,
तुमने मेरी जान कैद से छुड़ाई ....
जो मागोगे सब कुछ दूंगा चाहे हलुआ हो या मिठाई,
मुसाफिर बोला यदि तुम हो जिन .....
तो मुझको करो मालामाल रातो-दिन ,
मैं बन जाऊं इतना अमीर ....
और कोई न हो मुझ जैसा बीर ,
लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर
1 टिप्पणी:
मजेदार है कविता ....
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