गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

शीर्षक - भट्ठों के हलात

कविता  - भट्ठों के हलात
जब भट्ठों में ईंटा  बनता हैं ,
तब बच्चा- बच्चा साँचा भरता हैं .....
नन्हे- नन्हे हाथो से बच्चे ,
ये हैं बिलकुल दिल से भोले सच्चे .....
कर्जा जब बढता  हैं ,
मजदूर तब नहीं लड़ता हैं.....
बच्चों से काम करवाता हैं ,
मालिक बच्चों के हाथ जलाता हैं.....
गर्म -गर्म रहते हैं ईंट ,
बच्चों की हालत नहीं रहती हैं फिट.....
जब भट्टों में ईंटा बनता हैं ,
तब बच्चा बच्चा साँचा भरता हैं ......
लेखक - सोनू       
कक्षा - ९ 
अपना घर ,कानपुर

2 टिप्‍पणियां:

Neha Mathews ने कहा…

सुंदर भावपूर्ण रचना...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!
आपकी इस खूबसूरत पोस्ट की चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2011/02/34.html