शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

Cards & Log-ins

शीर्षक -आँखों का धोखा
एक बार की बात हम बता रहे हैं 
तुम मन लो कि हम बस से जा रहे हैं
गाडियों की भीड़ लगी थी  
जनता बस में भरी पडी थी 
ड्राइवर बस को किसी तरह भगा रहा था 
कंडेक्टर जाकर  टिकटे काट रहा था 
तभी एक व्यक्ति बोला इधर 
कंडेक्टर बोला किधर 
व्यक्ति बोला मेरे पास "पास "हैं 
कंडेक्टर ने कहाँ टिकट का बंक्सा तो मेरे पास हैं 
यह सफर करते - करते 
बस में धक्के खाते - खाते 
गाडियों का शोर सुनते हुए 
पाक ,अमेरिका ,भारत से आते हुए 
बस को अपने घर पास से जाते हुए
एक व्यक्ति को चिल्लाते हुए 
देखा मैंने देखा 
जो था सिर्फ "आँखों का धोका"
लेखक -आशीष कुमार 
कक्षा - ८ 
अपना घर , कानपुर

1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर!