रविवार, 16 जनवरी 2011

कविता: कड़ाके की है सर्दी आई.....

कड़ाके की है सर्दी आई.....

ये कड़ाके की है सर्दी आई।
सबको है अब धूप सुहाई॥
रजाई ओढ़ कर बैठे अब हम।
स्कूल जाने का कोई गम॥
सर्दी में सबको ये धूप सुहाती।
बर्फीली हवाएं रोयें खड़ी कर देती
ठंढे पानी से अब लगता है डर।
फिर भी नहाना पड़ता है मगर॥
तापमान तो है घटता ही जाता।
सुबह को कोहरा छाता ही जाता॥
घने कोहरे में हमको कुछ नहीं दिखता
घने कोहरे से हम सबका जी घबराता

लेख़क: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा , अपना घर