शनिवार, 15 जनवरी 2011

कविता : न सुनने को मिलते किस्से-गाने

न सुनने को मिलते किस्से-गाने

जब भी देखे बचपन के सपने ,
दादा के किस्से नानी के गाने .....
सुनने को करता मेरा मन ,
न होते सपने ये पूरे .....
क्योंकि हम न रहते उनके संग ,
न ही हमें सुनने को मिलते .....
दादा-दादी के किस्से-गाने ,
सबसे मुश्किल तो यह है .....
कि वह तो हैं अपने घर द्वार पर ,
हम भी किसी दूसरे के साथ हैं .....
एक छोटे से शिक्षा के केंद्र पर ,

लेख़क :अशोक कुमार
कक्षा :8
अपना घर

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

बच्चे ने मन की सच्ची बात कही। बचपन के वो सुख जो दादी नानी के साथ थे पता नही कहाँ खो गये। अशोक को बधाई सुन्दर कविता के लिये।