सोमवार, 23 मार्च 2009

कविता:- साईकिल


साइकिल
गाँव शहर जाती हमारी साइकिल
बिना पेट्रोल के सैर कराती साइकिल
बिना पट्रोल के चलती साइकिल
दो पहिया होती साइकिल
छोटी सी साइकिल सैर कराती
घुमा - घुमा कर मन बहलाती
मेरे मन को भाती साइकिल
गाँव शहर को जाती हमारी साइकिल
साइकिल है बड़े मजेदार
मैंने चलाया है बार - बार
साइकिल मेरी सैर कराती
घुमा - घुमा करके मन बहलाती
आदित्य कुमार
अपना घर, कक्षा 6



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