सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

kavita :bhaiya ji

 भइया जी 

अब जागो मेरे भइया जी ,
सुबह हो गई उठने की .....
हाथ पैर मुंह धोकर आओ ,
नींद को अपने दूर भगाओ .....
नींद आने की आदत है खराब ,
नहीं अपनाना इसको अपने साथ ......
अब जागो मेरे भइया जी ,
सुबह हो गई उठने की ......

लेखक :जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा :७
अपना घर 

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

शीर्षक -विज्ञान का चमत्कार

 शीर्षक - विज्ञान का चमत्कार 
विज्ञान का यह युग हैं,
चला गया अब कलयुग हैं....
विज्ञान का यह अनोखा खेल हैं,
इन्सान बन गया भगवान .....
करके दूसरों का गुणगान ,
इन्सान ने जहाज आदि बनाया.....
चन्दा मामा से मिलवाया ,
इन्सान ने अपने बुध्दि मानी से....
एक से एक बढकर  चीज बनाया ,
इसलिये इन्सान भगवान कहलाया..... 
विज्ञान का यह कमाल हैं ,
मचाया पुरे संसार में धमाल हैं....
हर वस्तु का निर्माण हुआ   ,
जहाज से लेकर साईकिल तक बनाया.....
साधन का अच्छा अविष्कार किया  ,
विज्ञान का यह युग हैं ....
चला गया अब कलयुग हैं,
विज्ञान का यह चमत्कार हैं....
विज्ञान का अपना आकार हैं....
लेखक -मुकेश कुमार 
कक्षा - ९ 
अपना घर ,कानपुर 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

Cards & Log-ins

शीर्षक -आँखों का धोखा
एक बार की बात हम बता रहे हैं 
तुम मन लो कि हम बस से जा रहे हैं
गाडियों की भीड़ लगी थी  
जनता बस में भरी पडी थी 
ड्राइवर बस को किसी तरह भगा रहा था 
कंडेक्टर जाकर  टिकटे काट रहा था 
तभी एक व्यक्ति बोला इधर 
कंडेक्टर बोला किधर 
व्यक्ति बोला मेरे पास "पास "हैं 
कंडेक्टर ने कहाँ टिकट का बंक्सा तो मेरे पास हैं 
यह सफर करते - करते 
बस में धक्के खाते - खाते 
गाडियों का शोर सुनते हुए 
पाक ,अमेरिका ,भारत से आते हुए 
बस को अपने घर पास से जाते हुए
एक व्यक्ति को चिल्लाते हुए 
देखा मैंने देखा 
जो था सिर्फ "आँखों का धोका"
लेखक -आशीष कुमार 
कक्षा - ८ 
अपना घर , कानपुर

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

शीर्षक - भट्ठों के हलात

कविता  - भट्ठों के हलात
जब भट्ठों में ईंटा  बनता हैं ,
तब बच्चा- बच्चा साँचा भरता हैं .....
नन्हे- नन्हे हाथो से बच्चे ,
ये हैं बिलकुल दिल से भोले सच्चे .....
कर्जा जब बढता  हैं ,
मजदूर तब नहीं लड़ता हैं.....
बच्चों से काम करवाता हैं ,
मालिक बच्चों के हाथ जलाता हैं.....
गर्म -गर्म रहते हैं ईंट ,
बच्चों की हालत नहीं रहती हैं फिट.....
जब भट्टों में ईंटा बनता हैं ,
तब बच्चा बच्चा साँचा भरता हैं ......
लेखक - सोनू       
कक्षा - ९ 
अपना घर ,कानपुर

कविता : चोरी मत करना

 चोरी मत करना 
 एक राजा के बेटे चार ,
निकले सब लेकर तलवार.....
चारो बेटे जाते थे जंगल ,
वहां पर पशु-पक्षी से करते थे दंगल .....
नहीं कोई था इनमें से पढ़ा लिखा ,
इसलिए करते थे सब उलटे काम.....
एक राजा के बेटे चार  ,
निकले सब लेकर तलवार......
लेखक :चन्दन कुमार 
कक्षा 5
अपना घर

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

कविता : दादा जी ने समझाया

दादा जी ने समझाया  

दादा जी ने यह समझाया ,
बच्चों धमा-चौकड़ी मत करो .....
पढ़ो लिखो तुम आराम करो,
जग में रोशन नाम करो तुम .....
अच्छे नागरिक बन जाओगे ,
समाज को अच्छी राह दिखलाओगे......
बच्चे बोले धमा-चौकड़ी नहीं करेगें ,
अपने घर में जी जान से पढ़ेगें .....


लेखक :मुकेश कुमार 
कक्षा :9
अपना घर 

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

कविता :देखो तारे

देखो तारे 
 देखो तारे रंग-बिरंग ,
आओ बच्चो खेले इनके संग ....
मिलजुल कर खेलेगें इनके साथ ,
तभी बच्चे रहेगें अच्छे....
तभी कहलायेगें सच्छे ,
तभी वो होगें अच्छे बच्चे...
देखो तारे रंग-बिरंग ,

लेखक :चन्दन कुमार 
कक्षा :५
अपना घर 

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

कविता -भारत बसता हैं गाँव में

शीर्षक  -भारत बसता हैं गाँव में
पीपल का पत्ता ,
लगता जैसे कपड़ा का लत्ता.....
वह हमेशा रहता हिलता ,
२४  घंटे सबको आक्सीजन देता .....
दिखता हमें हरा भरा ,
कोंपे खाने में लगती गरी छुहारा......
गंगा की पावन धार से ,
पवित्र हैं यह भारत हमारा......
हरे पीपल के पत्तो की छाँव में ,
हमारा भारत बसता हैं मेरे में ....
लेख़क - आशीष कुमार 
कक्षा - ८ 
अपना घर, कानपुर

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

कविता :चंपक है कितनी सुंदर

चंपक है कितनी सुंदर

चंपक है किताब कितनी अच्छी ,
ज्ञान जो हमको देती सच्ची ....
कहानी अच्छी लाती है ,
खुश हमको कर जाती है ....
हंसती और हंसाती है ,
मोटापन हमारा घटाती है ....
नज़र तेज कराती है ,
दिमाग लगाने को कहती है ....
हमारा डर दूर भगाती है ,
हिम्मत हममें जगाती है ....
चंपक है किताब कितनी अच्छी ,
ज्ञान जो हमको देती सच्ची ....

लेख़क :सोनू कुमार 
कक्षा :9
अपना घर

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

kavitaa :bhor mausaphir ghar se nikala

भोर मुसाफिर घर से निकला

भोर मुसाफिर घर से निकला , 
संग में लेके एक थैला ....
आगें बढ़ा तो पड़ा मिला झोला,
जैसे ही उसने उसको खोला ....
जिन हां-हां कर निकला ,
 बोला जो हुक्म मेरे आका ....
कोई न कर पायेगा आपका बाल भी बांका ,
तुमने मेरी जान कैद से छुड़ाई ....
जो मागोगे सब कुछ दूंगा चाहे हलुआ हो या मिठाई,
मुसाफिर बोला यदि तुम हो जिन .....
तो मुझको करो मालामाल रातो-दिन ,
मैं बन जाऊं इतना अमीर ....
और कोई न हो मुझ जैसा बीर ,

लेख़क :आशीष कुमार 
कक्षा :८
अपना घर 

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

शीर्षक -महंगाई

कविता - महंगाई
सुनो सुनो भाई सब देश वासियों ,
धनिया प्याज मिर्चा हो गया महंगा ....
लगता हैं पेट्रोल  पानी में बहेगा ,
अगर इतनी महंगाई हो जायेगी ....
गरीब जनता भूखी मर जायेगी ,
जो सौ रुपये कमाता है....
वह केवल सब्जी ही ला पाता है ,
पढाई-लिखाई का अन्य पैसा .....
गरीब ब्यक्ति नहीं जुटा पाता हैं ,
आखिर इतनी महंगाई क्यों बढ़ गई .....
हमको नहीं बताया हैं ,
सरकार ने अपने मन से ....
महंगाई को बढ़ाया है ,
एक दिन येसा आयेगा ....
पानी भी मंहगा हो जाएगा ,
जो लोग गरीब हैं ....
उनकों कौन बचाएगा ,
सुनों-सुनों भाई सब देश वासियों .....
धनियाँ,प्याज,मिर्चा हो गया मंहगा ,






लेख़क :मुकेश कुमार 
कक्षा :९
अपना घर

शीर्षक -पक्षी आवारा

कविता -पक्षी आवारा
चल रही हैं पवन की लहरें
उड़ रहे आसमान में  पक्षी बहरे
पक्षी को हवा का इशारा हैं
लेकिन पक्षी आवारा हैं
पक्षी का कोई साथ मिल जाये
ताकि वह हवा का इशारा समझ जाये
चल रही हैं पवन की लहरें
उड़ रहे असमान में पक्षी बहरे
लेख़क - ज्ञान 
कक्षा -७ 
अपना घर ,कानपुर

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

शीर्षक - खिली कलियाँ

शीर्षक - खिली कलियाँ
आयी आमो की मजरियां ,
खिल रही हैं फूलों की कलियाँ ..... 
उसमे तितलियाँ गाती हैं गीत ,
मधुमक्की संग मिल जाती हैं ....
दोनों आपस में  मिल कर रहती हैं,
तितली और मधुमक्की हैं दोनों दोस्त .....
नहीं किसी को देती हैं दुख ,
आयी आमों की  मजरियां ......
लेख़क - चन्दन कुमार 
कक्षा -५ 
अपना घर, कानपुर

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

शीर्षक- गंगा

कविता - गंगा
गंगा हमारी कितनी प्यारी ,
पानी होता न्यारा.....
गंगा हैं साफ और निर्मल,
गंगा हैं मेरी कितनी शीतल.....
लगता हैं बिलकुल  हैं पीतल,
एक बात हैं बड़ी निराली ......
नहीं हैं यह सुनने वाली ,
गंगा हमारी कितनी हो गयी मैली......
क्यों की सभी लोग फेकते हैं थैली ,
लोग कितनी गन्दगी फैलाते हैं ....
गंगा को प्रदूषित कर देते हैं ,
गंगा को साफ स्वच्छ बनाना हैं....
 गन्दगी को दूर हटाना हैं ,
तब हमारी गंगा साफ स्वच्छ हो जायेगी......
तब सभी के लिए खुशी की बात हो पायेगी......
लेख़क -मुकेश
कक्षा -९
अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

शीर्षक : भारतवर्ष

 भारतवर्ष 
एक राग एक ही धुन में रहते , 
गणतंत्र दिवस सभी मनाते ....
एक ही गीत को रटकर गाते  ,
भारत-माता की जय-जय करते  ....
जय-जय करना और नारे लगाना ,
जब मन में आये तब से सब करना ....
क्योंकि आजादी मिले हुये कई बरस ,
फिर भी धरती रही हरियाली को तरस  ....
सबके सब आपस में लड़ते ,
फिर भी हिन्दुस्तान का नाम रटते  ....
कहते भारत वर्ष हमारा है  ,
यह हम सब को जान से प्यारा है  ....

लेख़क :आशीष कुमार 
कक्षा :८ 
अपना घर

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

शीर्षक : बसन्त ऋतु

बसन्त ऋतु 
बसन्त ऋतु का मौसम,
बड़ा ही ठंडा और शीतल ....
नदियों का पानी ठंडा-ठंडा,
बहता रहता कल-कल ....
हवा चली है पुरवायी,
झूमें हर पेड़ की डालें ....
हरे-भरे फूलों के ऊपर ,
बैठें हैं भँवरे मतवाले.....
चिड़ियाँ चहकें पेड़ों पर ,
तितली उड़ती फूलों पर .....
हवा के एक झरोखे से ,
सब पत्ते गिरते पेड़ों से .....

लेख़क :आशीष कुमार 
कक्षा :८
अपना घर