शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

कविता : अच्छे काम करना सीखो

 अच्छे काम करना सीखो 

अच्छे काम करना तुम सीखो ,
दुश्मन को दोस्त बनाना तुम सीखो.....
काटों में चलना तुम सीखो,
न किसी से बैर करना सीखो..... 
साथ में रहना तुम सीखो,
किसी से लड़ना मत सीखो.....


लेखक : चन्दन कुमार 
कक्षा : ६
अपना घर 

रविवार, 25 दिसंबर 2011

अधूरी कविता

कविता -अधूरी कविता 
 कविता अब बन नहीं रही हैं,
 शब्द कोई मिल नहीं रहे .....
 जब बैठता हूँ मैं कविता लिखने,
 तो मन मचल उठता हैं कही और.....
 सोचा मैंने देख लूँ कुछ पुरानी कविताये,
सीख लूँ कुछ उनसे जान लूँ कुछ उनसे ....
 नहीं आया समझ में कुछ ,
 तो लिख  डाला ......
 कुछ टूटे फूटे शब्दों से,
 फिर एक अधूरी कविता......
लेखक - ज्ञान कुमार 
 कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

स्त्री

कविता - स्त्री 
 स्त्री को समाज में क्यों बुरी नजर से देखा जाता हैं ,
 क्यों उन्हें घरो में मारा पीता जाता हैं ......
 क्या यही हमारी सभ्यता हैं ,
 क्यों लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता हैं......
क्या मरना ही हमारा विकल्प हैं ,
 लेकिन स्त्री प्रत्येक कामो में आगे हैं..... 
 क्यों न वो खेल हो या शिक्षा ,
 उनका प्रत्येक कार्यो में दबदबा हैं......
 इस समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए,
 स्त्री को माँ की तरह समझाना चाहिए .....
 लेखक - मुकेश कुमार 
 कक्षा - १० अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

कविता - गलती

कविता - गलती 
 गलती  करते हैं सभी   ,
 इस संसार में ....
 गलती से आगे बढते हैं सभी,
 इस संसार में ......
 जो करता हैं गलती,
 इससे कुछ सीखता हैं हर व्यकित.......
 जो न सीखे कर के गलती  ,
 वो भोगे खाकर दुलत्ती .......
 हर प्रकार की गलती अच्छी नहीं होती हैं,
 हर गलती सजा लायक नहीं होती ......
 हर गलती पर माफ़ नहीं किया जा सकता ,
 हर गलती को समझकर साफ किया  .....
 नहीं जा सकता .....
 लेखक - सोनू कुमार 
 कक्षा - १० अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

कविता : शोर

 शोर 

देखो शोर सुन लो शोर !
सुबह-सुबह चिड़ियों का शोर !!
सुन लो घर में बच्चों का शोर !
हर तरफ शोर ही शोर !!
स्कूल जाते समय वाहनों का शोर !
कक्षा में हैं बच्चों का शोर !!
टीचर डांटें तो उसका शोर !
चारो ओर शोर ही शोर !!

लेखक : हंसराज कुमार 
कक्षा : 8 
अपना घर  

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कविता : अधूरी कविता

 अधूरी कविता 

कविता अब बन नहीं रही !
शब्द अब कोई मिल नहीं रहे !!
जब बैठता हूँ मैं कविता लिखने !
तो मन मचल उठता है कहीं और !!
सोचा मैने देख लूँ कुछ पुरानी कवितायेँ !
सीख लूँ कुछ उनसे जान लूँ कुछ उनसे !!
नहीं आया समझ में कुछ !
तो लिख डाला !!
कुछ टूटे-फूटे शब्दों से !
फिर एक अधूरी कविता !!

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 
 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

कविता - जीवन

कविता - जीवन 
 जीवन का मार्ग मिला हैं,
जिन्दगी के लिए निकल पढ़े ....
जीवन की डोर पकड़ कर समुद्र की गहराई में गया ,
 वहां देखा तो सब नया नया सा था ....
यह  सब देखकर परेशान तो नहीं हैरान था ,
 फिर भी साहस के साथ आगे बड़ा ....
हीरे मोतियों का  ढेर लगा ,
जीवन के मार्ग मिला हैं....
 जिन्दगी के लिए निकल पढ़े ,
 तुफानो के झोंके से गिर कर उठ गए  ....
यूँ बना  ध्रुव नाम का एक तारा,
 जो लगता है  सबको प्यारा  ....
 जीवन का मार्ग मिला हैं ,
 जिंदगी के लिए निकल पढ़े  ....
नाम :अताउल्लाह 
कक्षा :10 
प्रयास आई० आई० टी०,कानपुर 

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

कविता - शोर

कविता - शोर 
 शोर -शोर में ,
सब हो गए बोर.....
 कहने लगे बंद करो ये शोर,
 बंद हुआ जब मुख का शोर .....
 शुरू  हो गया मोबाइल का शोर ,
 शोर -शोर में .....
 सब हो गए बोर ,
बनाना पड़ेगा कोई ऐसा फोन.....
 जिससे हो न कही शोर ,
 लोग भी न हो बोर.....
करे हम सब ऐसा विचार,
जिससे बन जाये ऐसा टेलीफोन........
लेखक - अशोक कुमार 
 कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

कविता : सर्दी

 सर्दी 
पड़ने लगी है अब सर्दी ,
सर्दी ने तो है हद कर दी.....
पड़ने लगा कोहरा अचानक,
दूसरे दिन से शुरु सर्दी भयानक ....
अब तो बस सबको भाई ,
 भाती है बस रजाई......
निकाल लिए हैं कपडें गरम,
कोई है गरम तो कोई नरम.......
ठंडे-ठंडे इस पाने से,
लगता है अब सबको डर....
लेकिन इसका उपयोग तो ,
होता है घर-घर  ......


लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 
 

कविता - बात

कविता - बात 
 एक बार की बात हैं  ,
 यह बात कुछ खास हैं....
 जब भी आती हैं ठण्डी ,
 तो कपड़ो की लग जाती हैं मंदी ....
अगर ठण्डी से सबको बचना ,
 तो मोटे कपड़ो से तन हैं ढकना.....
 एक बार की बात हैं ,
 यह बात कुछ खास हैं......
 लेखक - ज्ञान कुमार 
 कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर

कविता : हमारा ब्रह्माण्ड

 हमारा ब्रह्माण्ड 
क्या-क्या है इस ब्रह्माण्ड में,
सोंच कर होता है आश्चर्य......
क्या होगा इस ब्रह्माण्ड के बाहर,
इन बातों को सोचकर होता आश्चर्य.....
क्या कहीं और भी है दुनियाँ,
कैसे होगें लोग वहां के.....
कैसा होगा उनका जीवन,
आश्चर्य होता ये बातें जानकार.....
क्या है ये अपना ब्रह्माण्ड ,
बड़ी आजीब है इसकी कहानी.......
क्या-क्या है इस ब्रह्माण्ड में ,
यह बात हमनें कब जानी .....
 लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर    

तारे और सितारे


कविता -तारे और सितारे 
 रात में तारे ,
 दिन में सितारे.....  
 कहाँ से आते हैं ,
कौन हैं इनको लाते.....
 यदि पता चले हमको ,
 तारे सितारे तोड़ के बांटू  सबको.......
 चाहे दिन हो या हो रात  ,
 न करने देगे चंदा सूरज से बात......
 जब मन करेगा तब उनको निकालेगे,
 जहाँ अँधेरा होगा वहां उजाला कर देगे......
 लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर 

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

कविता : मन

मन
मन क्यों मचलता है,
जाने किधर चलता है .....
हर समय ये मन,
कुछ न कुछ करता है .......
जहाँ कहीं कुछ होता ख़ास ,
मन करता जाने को पास .....
जहाँ पुराना कुछ भी देखें ,
मन न जाने क्यों होता उदास ......
मन हमेशा कहता है ,
सबसे अलग कुछ करने को .......
मगर ये आलस कहता है,
बस करो अब रहने दो ......
मन क्यों मचलता है ,
जाने किधर चलता है ......
हर समय ये मन ,
कुछ न कुछ करता है  ......

लेखक : सोनू कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर 

रविवार, 27 नवंबर 2011

बच्चा

बच्चा 
 वे  कहते है बच्चा ,
 हम में, तुम में कौन है? अच्छा..... 
 किलकारी मार कर हंसना है ,
 गोद में कभी नहीं आता हैं.....
अन्दर- अन्दर मुस्काता हैं ,
 तन का हैं कितना अच्छा .....
 मुस्काता है मन के अन्दर ,
 भेद भाव बिलकुल नहीं समझता.....
 लगा हैं लार चुवाने में ,
 कभी नहीं हम उसको लेते हैं.....
हमेसा  गोद को रोता हैं ,
  वे कहते हैं बच्चा ......

 लेखक - जीतेन्द्र कुमार
 कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर

दूर देश से आया हैं बादल

दूर देश  से आया हैं  बादल

दूर देश  से आया हैं  बादल,
 दिन दुपहरियां में छाया हैं बादल......
 कितनी गर्मी हो रही हैं ,
 लोग निकलना भी भूल गए हैं.....
 घर में ही सो रहे हैं  ,
 किरणों से थे सब घायल......
 दुपहरियां में भी छाया हैं बादल,
 दूर देश से आया हैं बादल......
 लेखक - चन्दन कुमार 
 कक्षा - ६ अपना घर ,कानपुर

 

बस्ती में मस्ती

बस्ती में  मस्ती 
 बस्ती झूमे मस्ती में ,
 बच्चे घूमे बस्ती में .....
  बाँकी जो बचे बस्ती में,
 वो भी जाते मस्ती में ......
 बूढ़े बैठे खटिया  में ,
 कर रहे बाते मस्ती में.....
 जो भी दिखा बस्ती में ,
 कर रहा मस्ती बस्ती में....
 बस्ती झूमे मस्ती में ,
 बच्चे घूमे बस्ती में ......
 लेखक - अशोक कुमार 
 कक्षा -९ अपना घर,कानपुर

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

कविता : जल

 जल 

जल से ही जीवन हमारा ,
उपयोग है बहुत इसका.....
इससे ही जीवन सबका,
उपयोग हैं करते हम जिसका,
गली,शहर,मुहल्लों में तो .....
बर्बाद होता है ये पानी ,
अब एक दिन येसा आयेगा....
जब खत्म हो जायेगी इसकी कहानी,
जल से ही है पेड़ों का जीवन ......
आक्सीजन हैं पाते जिससे,
काम बहुत आता है ये जल .....
जीवन हैं पाते हम जिससे ,

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

सोमवार, 21 नवंबर 2011

गलती स्वीकारेगे

कविता -गलती स्वीकारेगे 
धमकियाँ कौन  देते हैं,
  नेता पड़े सोते हैं .....
गलती हमने नहीं की हैं,
 घूस हमने नहीं ली हैं ....
 कुछ गलती esee होती हैं,
jo sabako दुःख detee हैं ....
नहीं कयेगे ab ham गलती ,
yah हैं nara  kal  ka......
स्वीकारेगे apnee गलती,
yah हैं nara ab ka
.
धमकियाँ कौन  देते हैं,
  नेता पड़े सोते है......
 lekhak - gyan 
kaksha - 8 apna ghar ,kanpur 
 

बुधवार, 16 नवंबर 2011

कविता : आराम ही आराम

 आराम ही आराम 
एक सुबह कि आये शाम ,
जिसमें हो सिर्फ आराम ही आराम....
न करना पड़े कोई भी काम,
और हमें न करें कोई बदनाम....
न कोई डांटे न कोई चिल्लाये,
न कोई मुझसे काम करवाये...
हर दिन हो जाये येसा ही,
जिसमें केवल हो मजा ही....

लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

कविता : सर्दी

 सर्दी 
सर्दी आयी सर्दी आयी ,
सबके मन में खुशियाँ लायीं...
अब पहनेगें नए-नए स्वेटर,
बैठेगें हम रजाई के भीतर ....
जब खायेगें हम बादाम-छुहारा,
तब भागेगा हमरा जाड़ा....
गरम-गरम पूड़ी सब्जी खायेगें,
स्कूल न जाकर घर पर मौज उडायेगें...
सर्दी है सबसे बढ़िया मौसम ,
जिसमें न होता किसी को कोई गम.....

लेखक : आशीष  कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

रविवार, 13 नवंबर 2011

सुन्दर प्रकृति

कविता - सुन्दर प्रकृति 
 कितनी बड़ी हैं यह प्रथ्वी हमारी ,
जिस पर हैं ये दुनिया सारी .....
हर तरफ इसके पानी हैं,
दुनिया जो जानी पहचानी हैं....
बिखरा पड़ा हैं यहाँ सौन्दर्य अपार,
फूलो की घाटी, हिमालय और पहाड़......
नष्ट न होने दो इस सौन्दर्यता को  ,
 ख़त्म करो न तुम इसकी जड़ता को .....
जम्मू के इस प्राकृतिक सौन्दर्य को ,
देख हर्षित होता हैं सबका मन .....
अच्छा लगता हैं सभी को ,
बस ऐसा ही जीवन .....
लेखक - धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर  

मंहगाई

कविता - मंहगाई
 मंहगाई का आया जमाना ,
 महंगा को गया खाना-दाना.....
 घोटाले बाजों का कहना ,
मंहगाई में हमको रहना .....
इसी बात तो देख मंहगाई ,
गरीबों को याद आयी नानी .....
बन्द को गया दाना- पानी,
आम आदमी भोला भाला .....
2g ने किया घोटाला,
मंहगाई का आया जमाना .....
 महंगा हो गया खाना- दाना.....
 लेखक - सोनू कुमार  
कक्षा - १० अपना   घर ,कानपुर  

-आस -पास परिवर्तन

कविता -आस -पास परिवर्तन 
 ये मौसम में क्या परिवर्तन को रहा हैं ,
हर चीज में परिवर्तन हो रहा हैं ....
परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं ,
 प्राकृतिम  कृत्रिम होते हैं....
 कभी हवा तेज चलती हैं,
 कभी गर्म चलती हैं ....
 जो तीव्र गति से चलतीa हैं,
 वह तीव्र पवन कहलाती हैं .....
 जो परिवर्तन  मंद गति से होता हैं ,
वह  मंद परिवर्तन कहलाता हैं......
 लेखक -चन्दन कुमार 
 कक्षा -६ अपना घर ,कानपुर

देश

कविता - देश 
 जो देश बिगड़ चुका हैं उन्हें फिर सुधारिए,
ये कहना तो आप मेरा मन जाइये  .....
डर लगता हैं इन नेताओं से ,
 कही फिर से इसे बेच न  दे ....
अगर बेचा  तो फिर दुबारा संभलेगा नहीं,
बचाना हैं तो इन नेताओं को हटाना हैं ...
जो देश बिगड़ चुका हैं उन्हें सुधारिए ,
 ये कहना तो आप मेरा मान जाइये ......
लेखक - सागर कुमार 
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर   

शनिवार, 12 नवंबर 2011

मेहनत

कविता -मेहनत 
 रात- दिन हो गयी एक ,
 खून पसीना कर दिया एक......
 इस  मेहनत की कमाई से ,
सुख से जियेगे हम .....
 आज के इन नेताओं की तरह,
नहीं करेगे हम घोटाले .......
क्योकि इस देश में ,
बहुर हैं भूखे मरने वाले ...... मेहनत
लेखक -ज्ञान
कक्षा - ८ अपना घर, कानपुर 
      

सफ़र जिन्दगी का

कविता -  सफ़र जिन्दगी का 
 जिस पथ में चला हैं ,
वह पथ बहुत कठिन हैं.....
 जैसे कि प्रथ्वी के तीन भाग में जल हैं,
और एक भाग में जमीन हैं ......
समय नहीं करता हैं इंतजार ,
आप चाहे जितना करे विचार......
आपका हैं इतना कठिन सफ़र ,
यदि पथ से भटके तो न होगा बेडा पार.....
 ये सफ़र हैं आपकी जिन्दगी का ,
अब समय इंतजार न करेगा आप का.....
पथ में कांटे भी आयेगे ,
लोग भी आप को सतायेगे......
आप किसी से न दरियेगा ,
आप अपने लक्ष्य में अडिग रहकर चलियेगा......
लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर  

आओ करे विचार

कविता - आओ करे विचार 
 दो -दो चार ,
 आओ करे विचार.....
 चार थे साथी ,
 उनके पास नहीं था हाथी....
 जिसके कारण से थे वे उदास,
 चारो मिलकर रहते साथ .....
दो -दो चार ,
 आओ करे विचार......
 लेखक - ज्ञान 
 कक्षा - ८ अपना घर , कानपुर

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

शीर्षक - पक्षी उड़े हैं जोर - जोर से

कविता - पक्षी उड़े हैं जोर - जोर से 
 पक्षी उड़े हैं जोर - जोर से ,
हवा चली हैं शोर -शोर से .....
 गगन में  सब नाचे गए ,
 सुबह -सुबह जैसे खेत लहाराये.....
 पेड़ो की डाले यूँ बहके ,
 बागो के सरे फ़ूल महके......
 शुध्द हवा दे रही ताजगी ,
 अब न रहेगी गन्दगी......
 यहाँ का मौसम सब को भाता,
बिन मांगे  बारिस करता ........
यहाँ का जाड़ा सबको भाता ,
 बिन बुलाये सर्दी लाता ......
 गर्मी भी सबको भाये ,
 यहाँ का मौसम गर्नी में ठंडी हवा बहाये......
 पक्षी उड़े हैं जोर -जोर से ,
 हवा चली हैं शोर- शोर से ........
 लेखक -आशीष कुमार 
 कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 9 नवंबर 2011

कविता : गलतियाँ

 गलतियाँ

मेरे मन में एक विचार आता है ,
वह मुझे बेहाल कर देता है ....
मै प्रतिदिन सोचता हूँ,
आखिर गलतियाँ हमसे क्यों होती हैं....
मैं गलतियाँ नहीं करना चाहता हूँ ,
गलतियाँ तो सभी करते हैं ....
बच्चे हों या बूढ़े हों ,
गलतियाँ कुछ बड़ी और छोटी होती हैं.....
अगर गलतियाँ होती हैं तो ,
उस पर सुधार करना चाहिए.....
लेकिन गलतियाँ क्यों होती हैं ,
इस पर विचार करना चाहिए .......

लेखक : मुकेश कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर
 

रविवार, 6 नवंबर 2011

कविता : नहीं मिलेगी अब सजा

नहीं मिलेगी अब सजा 

सुनों-सुनों सब भाई बहना ,
सावधान तुम रहना ....
क्योंकि ठंडी आने वाली है,
सबको थर-थर कपाने वाली है.......
ठंडी का मौसम है सुहाना,
सब मिलकर अब गाओ गाना .......
ठंडी में है अब बहुत मजा,
क्योंकि स्कूल में नहीं मिलेगी सजा.......


लेखक : मुकेश कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर 

बुधवार, 2 नवंबर 2011

कविता: पटाखे

पटाखे 

पटाखे की आयी बारात,
दीपावली है साथ आयी .....
गया अन्धेरा आया उजाला,
उजाले में आयीं हैं लक्ष्मी .....
घर में भर गयीं है कितना धन,
धन को अच्छे से है रखना ....
पटाखे की आयी बारात ,
दीपावली है साथ आयी ....
लेखक : चन्दन कुमार 
कक्षा : 6
अपना घर  

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

कविता : पृथ्वी

 पृथ्वी

पृथ्वी पर है कितना भार,
इस पर चलती मोटर-कार....
पानी भरा है इसमें प्यारा,
पहाड़-झरनों से निकला सारा....
जब तेजाबी वर्षा होती ,
पृथ्वी पर विनाश की क्रिया होती है.....
पृथ्वी पर कितना भार,
इस पर चलती मोटर-कार.....

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर  

सोमवार, 31 अक्टूबर 2011

कविता : जनता

 जनता 
भूख,बेरोजगारी और गरीबी,
झेल रही है जनता.....
फिर भी चुपचाप जिन्दगी का,
खेल,खेल रही है जनता.....
खुश हैं लूटने वाले,
और सो रही है जनता.....
पर वह दिन दूर नहीं,
जब-सब कुछ बदल जाएगा.....
तब एक ही नारा बोला जाएगा,
कमाने वाला खायेगा....
लूटने वाला ललचाएगा,

लेखक : हंसराज कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर   

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

मैं सोचता हूँ

मैं सोचता हूँ
जब मैं सुबह स्कूल जाता हूँ ....
गरीब बच्चों को देखकर बहुत  पछताता हूँ|
फुटपाथ पर वे बस्ती बनाकर रहते हैं....
उन बच्चों को देखकर मेरा मन दुखी हो जाता है|
ये बच्चे रहते होंगे  कैसे....
इन बच्चो को पढ़ाने के लिए नहीं होंगे पैसे|
ये बच्चे न पढ़ पाते न लिख पाते ....
ये बच्चे मजदूरी व अन्य कार्य करके घर को चलाते|
 इन बच्चों का भी पढने  का होता होगा मन....
लेकिन माता पिता के पास  इतना नहीं है धन |
 इनके माता पिता रोज खाते हैं रोज कमाते हैं ....
अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे क्यों नहीं बचाते है |
हमें ऐसे परिवारों को समझाना चाहिए.....
शिक्षा  और अशिक्षा का मतलब भी बताना चाहिए |
ऐसे बच्चों के लिए एक घर बनवाना चाहिए ....
इन बच्चों के माता पिता को नरेगा के |
तहत सौ दिन का कम दीवान चाहिए ....  
इन बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवाना चाहिए|
 जब मैं सुबह स्कूल जाता हूँ ....
गरीब बच्चों को देखकर भुत पछताता हूँ|
नाम: मुकेश कुमार 
कक्षा:10 
अपना घर ,कानपुर

देश के जवान

देश के जवान 
आज के जवानों के बांहों में है शक्ति ....
इसीलिए इनमें झलक रही देश भक्ति |
प्राण ये अपने गवां देंगे ....
लेकिन देश को दुश्मनों के हाथ नहीं लगने देंगे |
देश की सुरक्षा है इनका काम....
दुश्मनों का जीना कर देना हराम|
देश की करते है ये ऐसी सुरक्षा ....
सभी को कर देते हक्का बक्का |
आज के जवानों के बांहों में है शक्ति....
इसीलिए इनमें झलक रही देश भक्ति |
नाम: सोनू कुमार 
कक्षा:10 
अपना घर, कानपुर 

जवानी

जवानी 
प्राण लिए खड़ी है पागल जवानी....
कौन कहता है दूध पीते है या पानी|
पहन ले नर गोलियों की माल....
चल उठ बन जा देश का रखवाल|
रक्त है या नसों में कायर पानी....
देख क्र पता चल जायेगा क्या है कहानी|
चढ़ा दे प्राण अपना स्वतंत्रता पर....
सबको पता चल जायेगा क्या है पागल जवानी|
प्राण लिए खड़ी है पागल जवानी....
कौन कहता है दूध पीते है या पानी|
नाम :सागर कुमार 
कक्षा :8 
अपना घर , कानपुर
 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

कविता : दीपावली

 दीपावली 

दीपावली का है आया त्यौहार  ,
खुशियाँ खूब मनाया इस बार ....
घर के चारो ओर हैं दिए जलाए ,
लेकिन पटाखा छुडाना नहीं मुझे भाये ....
हर एक इस दीपावली में ,
करोड़ों पटाखे हैं बनते ....
दीपावली के इन पटाखों से ही ,
जाने कितने बच्चे हैं मर जाते ....
बच्चों, दीपावली तुम खूब मनाना,
लेकिन पटाखे तुम कभी मत छुडाना ...
दीपक जलाना और खूब मिठाई खाना,
साथ में मिलकर खुशियाँ खूब मानाना ....
लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 
 

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

कविता : पर्यावरण

 कविता 

पर्यावरण हो रहा है बहुत प्रदूषित,
है मौक़ा अभी मत करो दूषित ......
पेड़-पौधों से तुम जोड़ो नाता ,
जो हम सबके कम है आता ......
बड़ी-बड़ी ये फैक्ट्रियों को करो बंद,
पर्यावरण को अपने तुम रखो स्वच्छंद.....
पेड़-पौधे है हमको खूब लगाना,
इस धरती से है प्रदूषण भगाना.....
सडको पर ये दौड़ती हैं गाड़ियाँ,
हैं फैलाती प्रदूषण, भर के सवारियाँ.....
मेरा सबसे बस यही है कहना ,
पर्यावरण न तुम प्रदूषित रखना.....   

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

रविवार, 23 अक्टूबर 2011

मैं सोचता हूँ

मैं सोचता हूँ 
क्या लिखूं  क्या याद करूँ ,
मन में कुछ उमंग सी उठती है....
ह्रदय में कुछ स्फूर्ति सी आती है ,
मस्तिष्क में आवेग सा उत्पन्न होता है ....
मुझे कविता लिखना ही पड़ता है ,
उस समय नहीं रहती किसी विषय की चिंता ....
कोई भी विषय क्यों न होता ,
उसमे अपने मन को आवेग से भर देते है ....
और जो कविता मन में उठती है,
हम उसको लिख देते हैं ....
लिखावट कितनी भी ख़राब हो ,
हमें लिखने की कोशिश करनी चाहिए ...
उठते हैं जो हमारे मन में विचार ,
उन्हें लिखना  ही चाहिए ....
नाम :मुकेश कुमार 
    कक्षा :10                
अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 22 अक्टूबर 2011

कंहा डालें हम डेरा

कंहा डालें  हम डेरा 
दो दिन का है मेला,
कंहा डालें हम डेरा ....
ये जिन्दगी का है फेरा,
कंही तेरा कंही मेरा ....
दो दिन के सपनों में ,
जिनगी को हमने फेरा....
एस मेले में हमको उन्होने ढकेला,
जिन्होने हमको एस दुनियां में अकेला छोड़ा....
दो दिन का है मेला ,
कंहा डालें हम फेरा  .... 
नाम  : अशोक कुमार 
 कक्षा : 9                       
अपना घर ,कानपुर     

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

कविता - खेल और स्वास्थ्य

कविता - खेल और  स्वास्थ्य  
खेल और स्वास्थ्य में हो जाये मेल ,
खेल- खेल में बन जाये रेल.......
खेल हैं एक जीवन का हिस्सा हैं ,
हमने सुना हैं दादी माँ से किस्सा .....
एक बार की बात बताये ,
साईकिल का चक्का हाथ चलाये .....
यह देखकर हुआ अचमभा ,
सर्कस  वाला था भिखमंगा......
खेल स्वास्थ्य में हो जाये मेल ,
 खेल- खेल में बन जाये रेल .......
लेखक -ज्ञान कुमार 
 कक्षा- ८ अपना घर, कानपुर

सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

कविता - शिक्षक दिवस 

शिक्षक दिवस आया रे ,
 धूम धाम से मनाया रे .....
 नहीं हुई बिलकुल लापरवाही,
 खूब धमा चौकड़ी मचाई ......
५ सितम्बर हैं तारिख ,
 राधा कृष्णन दे गये सीख.....
 मौज करो तुम जल्दी पढ़कर,
अपने गॉव को रखो न अनपढ़......
 लेखक - सोनू कुमार 
 कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

अंधेरी- रात

 कविता =अंधेरी -रात
अंधेरी काली रात थी ,
 नेताओ की बारात थी.....
 बारात में नेता जी आये थे,
 भ्रष्टाचार फैलाये थे .....
अंधेरी काली रात थी ,
 नेता जी फैलाये झोला ....
 करते हैं गड़बड़ घोटाला ,
 जनता को पता चला .....
लगता हैं सब करते हैं घोटाला,
 अंधेरी काली रात थी .....
 नेताओ की बारात थी......
 लेखक - सागर कुमार 
 कक्षा - ८ अपना घर, कानपुर

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

पढ़ने से माँ- बाप ने रोका

शीर्षक -पढ़ने से माँ -बाप ने रोका
वक्त के हालात ने रोका ,
हम को पढ़ने से माँ- बाप ने रोका .....
 जब पहली बार पढ़ने को कहाँ ,
 तब टाल दी मेरी मेरी बात .....
 बोले पढ़कर क्या करोगे ,
 सही नहीं हैं इस देश के हालात......
 एक -एक करके कट गए सभी दिन,
 जब पढ़ना था तब पढ़ न सका .......
 मेरी बातो को कोई समझ न सका ,
 हमको पढ़ने से माँ- बाप ने रोका .......
 लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर  



सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

कविता : सूरज

सूरज 
 
ऊपर उठ आया,
ले रोशनी की भरमार....
सारी रात इंतजार किया,
अब आ छाया सब के सिर पर.....
जिसने दिया इस धरती को जीवन,
दिखला सबसे अपनापन.....
नाम तो आपको पता ही होगा,
उसके बिन जीवन जीना असंभव होगा.....
उससे ही है इस धरती पर हलचल,
नाम है जिसका सूर्य चंचल.....   

लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर  

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

कविता - मकसद एक हैं

मकसद एक हैं
इस दुनिया में हैं फूल अनेको रंग के ,
लेकिन इसका मकसद हैं सिर्फ एक ......
इस जग को हरपल महकाते रहना,
क्यों न हो इनके रंग अनेक ......
इस कमल को देखो जो कि ,
कीचड़ में भी हैं उग आता ......
इतना सुन्दर होता हैं ये ,
अपनी सुन्दरता पर नहीं ये इठलाता ......
इस तरह मकसद कई हैं इस दुनिया में ,
उनका भी हो सिर्फ एक मकसद ......
लोगो को रखना हैं खुश ,
तभी होगा जीवन सफल ......

लेख़क  -धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर

रविवार, 18 सितंबर 2011

कविता : प्रकृति के रस गान

 प्रकृति के रस गान 

संसार है अपना कितना अनमोल ,
कितना अच्छा है हम लोगों का भुगोल.....
इस संसार में तरह-२ के जन्तु पाए जाते,
जो हम लोगों को सुंदर गीत सुनाते....
हरी भरी दुनियाँ है हमारी,
इसमें होती हैं फसलें प्यारी....
कृषी प्रधान है देश हमारा,
किसानों से प्यार करने वाला.....
जहाँ गंगा माँ जैसी नदी है बहती,
वहाँ की धरा खूब उपजाऊ है होती.....
संसार है अपना कितना अनमोल,
कितना अच्छा है हम लोगों का भुगोल....

लेखक : मुकेश कुमार 
कक्षा :10
अपना घर  

कविता -अन्ना हजारे

अन्ना हजारे
देश का एक अन्ना हजारे ,
जिसकी एक पुकार से ...
सरकार के नेता हिल गये,
 जन लोकपाल बिल देखकर.....
उनके रूह  कॉप गये ,
भ्रष्टाचार के समर्थक में युवा बच्चे सब कूद गये.....
युवा बच्चो बूढों की लड़ाई  देखकर ,
भ्रष्टाचार फैलाने वाले नेता गये भाग......
यह तो अन्ना हजारे की एक शांतिपूर्ण लड़ाई हैं ,
उनका जज्बा जोश देखकर .......
हम युवाओ की अंगड़ाई जग गई,
हम लाखो को देखकर .......
भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाले नेतओं के अन्दर खामोशी छा गई,
हम युवाओ  के लिए अन्दर दूसरी आजादी छा गई .......
देश के लिए दूसरी लड़ाई  आ गयी ,
यह एक भ्रष्टाचार नहीं आजादी की दूसरी लड़ाई हैं......
हम सभी लोगो ने मिलकर  ,
जब जन लोकपाल बिल की अपील की........
जन लोकपाल बिल पास हो जायेगा ,
अन्ना जैसे व्यकित हजारो  देश में आ जायेगे...... 
घुसखोरी भ्रष्टाचार को देश से दूर हटायेगे ,
जो नेता करोडो रुपयों का घोटाला करते हैं.......
वह गरीबो लोगो के पेट काटकर पैसा अपने थैले  में भरते हैं,
जन लोक बिल आ जायेगा ........
बड़े -बड़े घोटाला करने वाले नेतओं को देश दूर भागायेगा.......
लेख़क - मुकेश कुमार
कक्षा - १० अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

कविता -आओ सब एक साथ

आओ सब एक साथ
 कैसे गये कैसे गाये,
इस देश के गुणगान ....
नहीं बचा हैं ऐसा कुछ ,
लुट गया हैं सारा देश .....
कैसे गाये कैसे गाये,
इस देश के गुणगान.....
लूटने वाले ले गये सारा माल,
साथ में ले गये सारा इमान......
लोगो   की बात करे ,
सब नहीं आते सामने......
बैठे रहते छाव के नीचे ,
करते रहते कुछ बाते .....
उनको क्या परवाह ,
क्या हो रहा हमारे यहाँ ......
क्या- क्या करे एक इंसान  ,
आओ सब एक साथ .....
करो संघर्ष एक साथ ,
जिससे हो देश का कल्याण ......
न हो आज जैसा हलात ,
सबको आना चाहिए एक साथ .......
करने चाहिए कुछ ऐसे काम,
जिससे हम गये देश के गान......

लेख़क -अशोक कुमार
कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

कविता - भ्रष्टाचार


भ्रष्टाचार
 आज के इस भ्रष्ट समाज  में ,
 भ्रष्टाचार से त्रस्त समाज में .....
हो गया हैं जीना मुश्किल ,
छाये हैं देश में कई अखिल,
भ्रष्टाचार से मुक्ति के पाना ......
अन्ना का समर्थक करते जाना,
एक बार देखो करके समर्थन ......
अन्ना का तो करके दर्शन ,
जान लोकपाल से होगे तुम मुक्त......
नेता सभी होगे जायेगे दुरुस्त ,
अन्ना हैं इस देश का सहारा .....
सुधरेगा अब ये देश हमारा .......
लेख़क -सोनू कुमार
कक्षा -१० अपना घर ,कानपुर

चीटीं

चीटीं 

चीटीं होती कितनी हल्की ,
बोझा लेके चलती हिलती-डुलती .....
जाड़े के लिए भोजन करती एकत्र,
 इसलिए वह घूमा करती सवत्र....
देख रही है वह एक दाना ,
जो उसको है अपने बच्चों को खिलाना ...
जाड़े में है वह ठंडी सहती ,
अपनी शरीर की सुरक्षा करती.....
चीटीं होती कितनी हल्की ,
बोझा लेके चलती हिलती-डुलती....

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : ८
अपना घर 

रविवार, 11 सितंबर 2011

कविता :आ गए काले अंग्रेज

आ गए काले अंग्रेज 

अच्छे खासे देश में 
आ गए काले अंग्रेज
खाते हैं मुर्गा और आचार 
करते हैं देश में भ्रष्टाचार 
कहलाते हैं देश के नेता 
इनसे देश का हर आदमी रोता
अच्छे खासे देश में
आ गए काले अंग्रेज

लेखक : सागर कुमार 
कक्षा : ८
अपना घर  


शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

कविता - जल

 जल
लोग करते हैं जल का खूब दुर्पयोग ,
नहीं करते ये इसका सही उपयोग .....
नल के पास ही ये हैं गन्दगी करते ,
उसी नल से ये पानी हैं भरते हैं .....
गाँव में अधिकतर ऐसा ही होता हैं ,
जहाँ नल हमेशा हैं रोता  रहता .....
इसीलिए तो लोगो को होती बीमारी,
कुछ को हैजा तो कुछ जो महामारी ......
इन गाँव को करना हैं शिक्षित ,
कोई रहे न अब अशिक्षित .....
जल हैं हम सब का जीवन ,
जल को रखो साफ तुम हर दम.....
लेख़क - धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा -९ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

कविता भ्रष्टाचार

 भ्रष्टाचार
१५ अगस्त हम सबने हैं मनाया ,
सबने खूब मिठाई हैं खाया .....
क्या हम पूर्ण रूप से हैं क्या आजाद,
ये नेता तो कर रहे हैं देश  बरबाद .....
अग्रेजो से तो हो गये  आजाद ,
ये भ्रष्ट नेता कर रहे हैं देश बरबाद.....
क्या ये गांधी सुभाष के  हैं सपनों का देश, 
यहाँ भ्रष्टाचारी रहते हैं बदल के भेष ......
अन्ना के अब इस आन्दोलन से  ये ,
पूरा देश लगा रहा हैं नारे .....
  भ्रष्टाचार ख़त्म करने में अब,
पूरा देश हैं साथ तुम्हारे ......

लेख़क -धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर

सोमवार, 29 अगस्त 2011

कविता : हम किसे कहें आजादी

 हम किसे कहें आजादी

हम किसे कहें आजादी ,
हम तो हैं बचपन से गुलामों के बंधन में.....
कभी घर के तो कभी बाहर के,
यह क्या है फिर आजादी......
सारा जीवन तो है गुलामी में,
फिर हम किसे कहें आजादी......
हम हैं बचपन से गुलामों के बंधन में,
कभी घर के तो कभी बाहर के.......

लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर

शनिवार, 27 अगस्त 2011

कविता : पूरा नहीं कर पाते

 पूरा नहीं कर पाते 

आज की इस भीड़ में ,
हो न जाना तुम मत शामिल......
क्योंकि हर जगह हो रही है,
सरकार की अब दादागिरी......
पंद्रह अगस्त के दिन तुम देखो,
झंडा पहले फहराते हैं......
अन्ना जी की मांगों को,
पूरा नहीं कर पाते हैं.....

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

कविता - भ्रष्टाचार

 भ्रष्टाचार
ख़त्म करो यह भ्रषाचार,
ख़त्म करो यह दुराचार ......
यूथ का हैं यह जमाना  ,
देश तेरे साथ हैं अन्ना हजारे ........
कल्यामानी जैसे लोगो का ,
क्यां हैं अब कहना .......
उन्हें तो पड़ा हैं बस लूटना ,
सोना चांदी और गहना........
अन्ना के यूथ समर्थन में ,
आ सकती हैं क्रान्ती.......
इससे बंद हो सकता हैं ,
नेतओं का हुक्का और पानी ..........
लेख़क - सागर कुमार
कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

कविता -नानी की कहानी

नानी की कहानी
नानी कहे  एक कहानी, 
किसने जानी बात पुरानी     ....
जिसमे थे राजा और रानी ,
न करते थे मनमानी.....
तब नानी ने सुनायी कहानी,
यह भूल गये हम क्या था उस पल......

लेख़क - चन्दन
कक्षा - ६ अपना घर ,कानपुर

कविता - रोटी

  रोटी
रोटी तो भाई रोटी हैं ,
रोटी का अलग इतिहास हैं.....
रोटी का हैं कितना महत्त्व हैं,
काम केवल करते हैं रोटी के लिए.....
मरते हैं जीते हैं रोटी के लिए ,
लडडू पेडा खाने से केवल मन भरेगा ....
रोटी सब्जी खाने से पेट भरेगा ,
रोटी को भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता हैं......
रोटी को चपातियाँ .कुलचा .फुलके ,रोगन ,
के नाम से पुकारा जाता हैं .....
रोटी तो मनुष्य की जान हैं,
रोटी तो मनुष्य का भगवान हैं.....
रोटी तो हमारी तो भूख मिटाती हैं,
 रोटी हमें काम करने के लिए उर्जा देती हैं .....
रोटी तो भाई रोटी हैं कितनी अनोखी रोटी हैं ......

लेख़क- मुकेश कुमार
कक्षा - १० 
अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

कविता - चाहत

 चाहत
वे लोग भी क्या होते हैं ,
जिनकी कुछ चाहत होती हैं.....
वे कुछ भी करते ,
उनकी अलग ही पहचान होती .....
उसमे जरुर किसी  की बात होगी ,
यह पता  नहीं कौन सी बात होगी ......
जरुर उसकी कुछ खास बात होगी ,
जिसमे उसकी पहचान होगी .....
अपनी हर बात होती हैं ,
जो किसी तरह से खास होती हैं ......

 
लेख़क - अशोक कुमार
कक्षा - ९ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

काली रात

काली रात 
रात हुई सुबह .सुबह हुई शाम ,
शाम हो गयी काली रात ....
 छाया था चारो तरफ सन्नाठा,
 सन्नाठे के डर से मैं झाड़ियो के पीछे था बैठा......
सोच ही रहा कि कब होगा उजाला ,
तब तक पास वाली झाड़ी से एक खतरनाक  जानवर निकला.......
देखते ही देखते उन जानवरों ने ले लिया डेरा ,
मन ही मन कह रहा था कि  कब होगा सबेरा ........
 क्योंकि इन  जानवरों ने लगा लिया हैं डेरा ,
यदि मुझे देख लिया तो क्या होगा मेरा .......
कुछ ही देर में बन गया मानव  ,
एक ने कहाँ कि लोगो की सेवा करेगे हम मानव....... 
उनमे से एक आया मेरे पास ,
मैं डर के मारे हो गया उदास ........
उसने मुझे पकड़ा और सब के पास लाया,
मेरे बारे में  सबको उसने बताया ........
कहाँ कि यह हैं हमारे राजा  ,
हम हैं इनकी प्रजा .......
थोड़ी ही देर में बीती काली रात,
दोस्तों अब मेरी कविता हुई समाप्त......

लेख़क -आशीष कुमार
कक्षा - ९ अपना घर .कानपुर
 

बुधवार, 17 अगस्त 2011

कविता : चाहत

 चाहत 

वे लोग भी क्या होते हैं ,
जिनकी कुछ चाहत होती.....
वे कुछ भी करते ,
उनकी अलग ही पहचान होती.....
उसमें जरुर किसी की बात होगी,
वह पता नहीं कौन सी बात होगी....
जरुर उसकी कुछ ख़ास बात होगी,
जिसमें उसकी यह पहचान होगी .....
अपनी हर बात होती है ,
जो किसी तरह से ख़ास होती है.....

लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा : ९
अपना घर  

कविता : सावन का महीना

 सावन का महीना 
  
सावन का है मौसम आने वाला ,
सबको मन को है भाया ....
सावन के महीने में ,
बारिश के बूदों में.....
नहायेगें सब घर के आँगन में,
छाई है हरियाली सब के खेतों में.....
चिड़ियाँ उड़ती हैं आकाश में,
चुगती हैं दाना हरी-हरी घासों में.....
चिड़ियों को देख कर ख्याल आता हैं मेरे मन में,
एसा लगता है मैं भी उड़ा करू आकाश में......

लेखक : सागर कुमार 
कक्षा : ८
अपना घर

रविवार, 14 अगस्त 2011

कविता : पानी बरसा

पानी बरसा 
पानी बरसा झम-झम-झम,
सामग्री लेने निकले थे जब हम.....
बूंद गिरी मेरे सर पर,
बिजली गिरी आसमान पर.....
पानी बरसा धरती में,
मोर नाच रहे हैं जंगल में......
कोयल गाती पेड़ों में,
हम भींग रहे हैं पानी में....
पानी में जब पानी गिरता है,
तब खाली गड्ढा भी भरता है.....
येसी बारिश में बच्चे खूब नहाते हैं,
किसान को अपने हरे-भरे खेत सुहाते हैं.....
जब न बरसे पानी,
तुम याद करो कोई एक कहानी.......
फिर सबको सुनाओ 
बारिश हो जब कूंद-कूंद नहाओ 
लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

शनिवार, 13 अगस्त 2011

कविता - हुआ मन सुहाना

 हुआ मन सुहाना 
 सभी के दिल में पंहुचा ,
 एक नया प्रकाश ......
 तभी बारिस का दिखा प्रभाव,
देख बूदो के नज़ारे.....
 मौसम हुआ सुहाना,
 देखने लगे वे लोग .....
 बैठे थे जो लोग घर के अन्दर, 
 नहीं लग रहा था मन.....
कोठरी के अन्दर,
लग रही थी बदन में......
सुहानी सी पवन ,
जिससे हो रहा था बदन नर्म......
सभी के दिल में पंहुचा ,
एक नया प्रकाश......
तभी बारिस का दिखा प्रभाव.......

 लेखक - जमुना कुमार 
  कक्षा - ६ अपना घर कानपुर

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

कविता - सैर चलो हम करे

  सैर चलो हम करे
चलो हम सैर करे ,
किसी से बैर न करे......
लड़ाई किसी से न करे,
सभी बच्चो ने देखा चीता....
लेकिन मैंने देखी सूत ,
वही से निकल पड़ा भूत.....
हम अब सैर नहीं करेगे ,
क्योकि मिल जाता हैं रास्ते में भूत....

 लेखक  - चन्दन कुमार 
 कक्षा - ६ अपना घर , कानपुर

कविता - जल और पर्यावरण

 जल और पर्यावरण 
पानी से ही हैं हम सबका जीवन ,
खूब करो तुम जल का उपयोग .....
लेकिन कभी अपने लिए तुम,
पानी का मत करो  दुर्पयोग.....
 जल के  द्वारा ही होते  ये ,
हरे - भरे पेड़ पौधे.....
मत काटो इन पेड़ो को तुम,
आक्सीजन हमको ये प्रदान  करते.....
 गाडी मोटर और फैक्ट्रियो से ,
  प्रदूषित  होता हैं ये पर्यावरण......
   मेरा कहना  हैं सब लोगो से,
 साफ रखो तुम अपना वातावरण.....

लेखक - धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर

रविवार, 7 अगस्त 2011

कविता : हमारा ब्रम्हाण्ड

कविता : हमारा ब्रम्हाण्ड

हमारा ब्रम्हाण्ड है बड़ा अनोखा,
गौर से नहीं इसको हमने देखा ....
क्या वहां पर भी होगा येसा जीवन,
कैसा होगा वहां का पर्यावरण ....
रात को हैं ये टिमटिमाते तारे ,
देखने में लगते हैं ये कितने प्यारे....
ब्रम्हाण्ड को जानने की बड़ी लालसा ,
चाँद पर जाने की है मेरी भी आशा .....
एक छोटा सा है संसार हमारा ,
कितना अच्छा है कितना प्यारा....
धरती हमारी सहती है कितना भार,
क्या सोंचा है कभी हमने एक बार ...
लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर


शनिवार, 6 अगस्त 2011

कविता - पहल होगी चारों ओर

 पहल होगी चारों ओर  
जब सूरज  ढल जाएगा ,
 तब बालक सो जाएगा .....
 सूरज के आते ही ,
वह भी उठ जाएगा......
 कलियाँ खिलेगी पुष्प सुगंध देगे,
 भँवरे उस पर मंडराएगें ......
 कौवा बैठा डालपर बोल उठेगा,
 आम खाता तोता टाव - टाव कर गाएगा   ......
 सब पक्षी चह चाहएंगे    ,
बच्चे शोर मचाएंगे   ......
हवा चलेगी चारों ओर ,
 बच्चो की पहल होगी चारों ओर...... 


लेखक - आशीष कुमार 
 कक्षा - ९ अपना घर कानपुर

कविता - जल

जल 
पानी जीवन हैं सबका 
 आदमी हो या बच्चा  
 जल तो होता हैं तरल 
 बहे तभी जब ढाल 
 H और O का मिश्रण  
 साथ में होता हैं लवण  
 रसायन  में जाना हमने 
  दो H और O इसमे 
 फ्री  में जल मिलेगा भइया 

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

कविता - हर उमगों से

हर उमगों से 
 मन की हर उमगों से ,
 ये जीवन भरा हैं तरंगो से.....
 हर एक की अपनी उमगें,
निकल रही उसमें तरंगें .....
 कैसी हैं हर उमगें ,
 नहीं निकलेगी ज्वाला की तरंगें.....
 मिला दो उसमे ऐसी उमगें ,
  मिट जाए  उसकी तरंगें .....
 मन की हर उमगों से ,
ये जीवन भरा हैं तरंगों......

 लेखक - अशोक कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर

सोमवार, 1 अगस्त 2011

कविता : गंगा के उस पार चलें

गंगा के उस पार चलें 

 चलो-चलो अब सैर करें, 
गंगा के उस पार चलें....
गंगा के उस पार जायेगें,
मौज मस्ती करके आयेगें.....
हवा चलेगी ठंडी-ठंडी,
 मौसम होगा खूब सुहाना....
चलो-चलो अब सैर करें,
गंगा के उस पार चलें....
पानी होगा कितना निर्मल,
ठंडा और होगा शीतल....
 चलो-चलो अब सैर करें,
गंगा के उस पार चलें...

लेखक : मुकेश कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर 

शनिवार, 30 जुलाई 2011

कविता - भ्रष्ट नेता

भ्रष्ट नेता 
भ्रष्ट हैं पुलिस भ्रष्ट हैं नेता ,
बैठे- बैठे कुछ नहीं करते .....
जब चोरी चमारी होती हैं  ,
 तो  खड़े- खड़े बस ताका करते....
 जब आती हैं चुनाव की बारी ,
 तो सबके घर जाया करते ......
 भ्रष्ट हैं पुलिस भ्रष्ट हैं नेता......
 लेखक - सागर कुमार
 कक्षा -८  अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

कविता - लुगाई के खातिर की कमाई

लुगाई के खातिर की कमाई 
 एक व्यक्ति ने की इतनी कमाई ,
जिससे ला सके वह एक लुगाई......
 एक दिन बैठा लगा सोचने ,
 उसी दिन गया वह लुगाई देखने .....
 लुगाई उसको पसंद आई ,
 तय हो गयी उन दोनों की सगाई,
जब वापस घर को था लौटना ......
 उसी क्षण हुई उसके संग एक दुर्घटना ,
 दुर्घटना में उसने एक हाथ ,एक पैर ,एक आंख गंवाई.....
ठीक  होने के लिए उसने सारी सम्पति लगाई,
 लुगाई को तब पता चला ......
 उसने तोड़ दिया उससे रिश्ता,
सारा जीवन रह गया बेचारा  कुंवारा घिसता...... 
 जितना गम नहीं था उसे अपने अंग खोने से ,
उससे ज्यादा गम  था उसकी सगाई न होने से..... 
   

लेखक - आशीष कुमार , कक्षा  - ९,  
अपना घर कानपुर               

बुधवार, 27 जुलाई 2011

कविता : सरकार को शायद नहीं पता

सरकार को शायद नहीं पता 

हर एक चौराहों पर ,
खड़े हैं पुलिशवाले.....
चौराहों की चौकी में बैठकर,
पूंछते हैं अपनी जन्म कुंडली......
 उनकों शायद यह नहीं पता कि,
चौराहों पर लग गयी है वाहनों की मंडली....
सरकार को भी शायद यह नहीं पता ,
पुलिशवाले किसको रहें हैं सता ..... 

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

कविता : हो मानव का कल्याण

 हो मानव का कल्याण

 मच गया सभी जगह हा-हा कार ,
कौन है तेरे बिन बेकार .....
समझ है पर ज्ञान नहीं ,
लेकर तू गुरुजनों का ज्ञान ....
कर तू विश्व में अपना नाम ,
जिससे देश न हो बदनाम .....
कर तू हर दम येसे ही कार्य ,
जिससे मानव का हो कल्याण.....

लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

रविवार, 24 जुलाई 2011

कविता : बरसात का मौसम

 बरसात का मौसम 


बरसात का है मौसम आया,
हरियाली से पृथ्वी को सुंदर बनाया....
बरसात हुई तो पक गयी जामुन ,
खाने में लोगों को बड़ा मजा आया....
बरसात में हरे,नीले,पीले फूलों से ,
इस संसार को है खूब महकाया .....
रंग-बिरंगे सुंदर से फूलों ने मिलकर,
इस संसार को क्या खूब चमकाया .....
आज हुई है जमकर खूब बरसात ,
हम सभी लोगों ने खूब नहाया .....

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  धर्मेन्द्र

शनिवार, 23 जुलाई 2011

कविता - जिन्दगी हैं एक पल की

शीर्षक - जिन्दगी हैं एक पल की 
 जिन्दगी हैं एक पल की ,
  बन्दे खो मत इसको .....
 जब प्राण ले जायेगे यमराज तुम्हारे,
 नहीं रोक पाओगे तुम उनको ....
 पल भर के लिए ,
 हर एक क्षण जीवन के लिए.......
 धैर्य रखना सीख लो ,
यह एक अच्छा गुण हैं जीवन के लिए.....
 तुम बाधाओ से न घबराओ ,
 काट के जंगल उसमे भी तुम रह बनाओ..... 
हर मुश्किल को आसान करने के लिए ,
 अपने जीवन को सुखमय  बनाने के लिए......
 जिन्दगी हैं एक पल ले लिए ,
 बन्दे खो मत उसको ......
 एक - एक पल क्षण हैं  कीमती,
प्यर्थ न करके प्रयोग कर उनको  ......

 लेखक -आशीष कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर