सोमवार, 24 दिसंबर 2012

शीर्षक : ग्रामीण महिला और अधूरे सपने

        ग्रामीण महिला और अधूरे सपने 
एक अदद जहाँ घूमने की आजादी मिल जाए अगर ।
सपनो की दुनिया बसाने की एक राह मिल जाए अगर ।।
अपने न भी हो तो कम से कम अपनों का साया मिल जाए अगर ।
रिस्तो का परिवार न सही बस  जिंदगी जीने का एक बहाना मिल जाए अगर ।।
भूखे पेट को भोजन न सही कम से कम अन्न का एक दाना मिल जाए अगर ।
चार दीवारों का आसियान न हो बस रहने का एक  ठिकाना मिल जाए अगर ।।
रेशमी  कपड़ो का ताना  बना   न सही कम से कम तन ढकने को एक टुकड़ा कपड़ा मिल जाए अगर ।
सोना चांदी का आभूषण न हो बस एक चुटकी सिन्दूर का सहारा मिल जाय अगर ।।
दर्द से करहाती देह को दावा न सही कम से कम हाल पूछने वाला कोई मिल जाए अगर ।
मान सम्मान की माला न सही बस स्वाभिमान को जगाने वाला कोई मिल जाए अगर ।।
सुख सौंदर्य न सही कम से कम बहते आसुओ को पोछने वाला कोई मिल जाए अगर
एक अदद जहाँ घूमने की आजादी मिल जाए अगर ।
 सपनो की दुनिया बसाने की एक राह मिल जाए अगर ।।
नाम : के .एम भाई 
अपना घर , कानपुर 

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

शीर्षक : रात हमारी

 रात हमारी 
अगर न होती रात हमारी ।।
हमको दिखता उजाला ही उजाला ।
अगर न होता सूरज दिन को ।
कैसे चमकता हमारा वातावरण ।।
पर्वत न  होते ऊँचे - ऊँचे ।
तो इसको पहाडो से बहाता  कौन ।।
 अगर न होती रात हमारी ।।
तो उजाला हमको दिखाता  कौन ।
रात को तारे चमकते है सारे  ।
दिखने में लगते चाँद सितारे ।।
नाम : जितेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

शीर्षक : हो रहा विवाद है

    हो रहा विवाद है 
दूर कहीं एक स्थान है ।
जो देखने में पर्वत के सामान है ।।
वहां जाने का अनोखा विचार है ।
पर उस रास्ते में नहीं कोई इंसान है ।।
लोगों की इच्छा ने जाने की लालसा दी ।
इंसानियत की पहचान दी ।
हम जमाने  के इंसान ने ।।
विश्व में छोड़ दी अपनी परवाह ।
जहां देखो वहां इंसान है ।।
पर उसमे कोई इंसानियत की पहचान नहीं ।
देखने में बड़े प्रकृति वाद है ।।
करते हर दम अपवाद है ।
निकले न उसमे कोई सार ।।
बढ़ता और उसमे विवाद ।
दूर कहीं एक स्थान है ।
जहां विवाद  रहा विवाद है  ।।
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर  

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

शीर्षक : बचपन

      बचपन 
ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए ?
जब हम खेले थे लुका -छिपी ।।
एक दूजे के मारते थे धप्पी ।
हमें अपने दे दूर करके ।
बचपन के सारे साथी भी गए ।।
ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए ?
बारिस से भरे गड्ढे - नालों में ।।
उस नाव पे बैठाते थे चीटे को हम ।
कागज की नाव बहाते थे संग -संग ।।
हमारी ये खुंशिया कौन ले गए ।
ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए ?
पतंगों की डोर सी अपनी कहानी ।।
बचपन की गलती है हमने मानी ।
फूलो सा खिलाना सिखाया था तुमने ।।
बचपन का गुसा भी  सहते गए ।
 ओ मेरे बचपन कहाँ तुम गए?
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 1
अपना घर ,कानपुर  

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

शीर्षक : स्त्री

           स्त्री
भारत की राजधानी दिल्ली में ।
घटी एक भयानक घटना ।।
पढ़ी - किखी समाज की लड़की को ।
उन दानव ने जिंदगी  कर दी बर्बाद ।।
वह लड़की जिंदगी मौत से कहरा रही है दिन -रात।
रात के दानवों ने आबरू छीन ली ।
और  अधेड़ स्त्री के भाँती सड़को में फेक दिया ।।
आखिर वह भी एक स्त्री है ।
वह भी एक माँ की बेटी  है ।।
जिन लोगों ने ऐसा काम किया ।
उनको गोली मार देनी चाहिए ।।
और सरेआम फांसी पर झुला देना चाहिए ।
नेताओं को केवल सुझाव देना आता है ।।
स्त्री की सुबिधा के लिए कोई काम करना नहीं आता ।
18 घंटो में दिल्ली मे होती है बालात्कार ।।
दिल्ली मे क्यों करते है दरिंदगी नहर चमत्कार ।
22 मिनट मे भी महिलाएं देश भर में नहीं है सुरक्षित ।।
आखित ये मंत्री नेता क्या करते है दिल्ली मे बैठे - बैठे ।
छोटे - छोटे मासूम बच्ची भी है हैरान ।
कुछ लोग है जो उनको दन रात करते है परेशान ।।
हमें ऐसे लोगों के मौत के घाट उतार देने चाहिए ।
ताकि देखा लोगों के रोंगटे खड़े हो जाए ।।
ताकि वह गलत काम करने से पहले एक बार सोचेगा ।
भारत की राजधानी दिल्ली में ।
घटी एक भयानक घटना ।।

नाम : मुकेश कुमार
कक्षा : 11
अपना घर .कानपुर

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

शीर्षक : सोचो फिर चलो

    सोचो फिर चलो 
पहले सोचो फिर समझो ।
फिर करने की ठानो ।।
ये कुदरत की कहानी है ।
हस करके तो देखो ।।
हिम्मत रखो करने की ।
पहले से क्यों डरते हो ।।
चलने से पहले उस पथ में ।
क्यो पीछे हटते हो ।।
कुछ नहीं है ।
हम में तुम में ।।
सब एक जैसी तो है ।
फिर क्यों नहीं चलते एक साथ ।।
कुछ तो है ।
आपस में भेद ।।
जो करने नहीं दे रहा भेट ।
 पहले सोचो फिर समझो ।
 ये कुदरत की कहानी है ।।
डर  कर के तो देखो ।
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा :10
अपना घर , कानपुर 

रविवार, 16 दिसंबर 2012

शीर्षक : उसी पथ से गुजरना है

उसी पथ से गुजरना है 
आसान समझ कर देखो तो ,
हर पथ सरल है ,
उसमे चल के देखो तो ,
हर मोड़ पर पर्वत है ,
उसी मोड़ पर ,
एक और मोड़ है ,
उसमे भी पर्वत की दीवाल है ,
पर उनके लिए ,
हाथो में मजबूती की जरूरत है ,
वह मजबूती दिखाने की नहीं ,
किसी को डराने को नहीं ,
वह हाथो को हाथो मे ,
ल्र्कत चलने वाली है ,
जरूरत हमें इसी की है ,
फर्क खाली इतना है की ,
स्नेह और प्यार को चलना है ,
एक ही पथ से गुजरना है ,
हाथो को हाथो में ,
लेकर चलना है ,
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर , कानपुर 

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

शीर्षक : हिन्दुस्तान हमारा

   हिन्दुस्तान हमारा 
वहां दूर एक जहान है,
नाम जिसका हिन्दुस्तान है ,
लोग वहाँ के जिनके पास ,
न रोटी , न कपड़ा और न ही मकान है
नेताओं की इस राजनीति मे फसकर ,
यंहा का हर एक बंदा परेशान  है ,
आजाद हुए ज़माना गुजर गया ,
लेकिन गरीब अभी परेशान है ,
बालत्कार ,चोरी ,डकैती
इनका भी सबसे ऊपर नाम है ,
नेता ,अफसर सब यहाँ के ऐसे ,
पैसो मई भी इनकी जान है ,
रोज पढ़ता हूँ ऐसी खबरे ,
तो मेरे दिल मे एक उठता है तूफान ,
इस सब के बावजूद भी आज  मेरा ,
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

शीर्षक : हकलाने के कारण

 हकलाने के कारण 
 एक लड़की को मैंने देखा ,
 वह  गरीब 8  साल की होती है ।
वह रोज स्कूल पढ़ने जाती है ,
और हर होम वर्क पूरा कर लती है ।
वह  कहानी सुनना चाहती है ,
वह बाल  सभा के सामने भी आती है।
और वह कड़ी होती है कुछ सुनाने के खातिर ,
लेकिन वह अपना नाम भी नहीं ले पाती  है।
पूछो क्यों ?
क्यों की वह हक्लाती है ,
हकलाने के कारण वह अपनी बाते नहीं बता पाती ,
 जब मैनें उसको हकलाते देखा ,
तो मेरे आखों में आंसू टपकने लगे ,
उसका आने वाला समय क्या होगा ,
उसकी सभी लोग हसीं उड़ायेंगे ,
क्योंकि  वह हक्लाती है ,
और वह अपने बारे में भी नहीं  बोल पाती है ,
लेकिन वह पढ़ना - लिखना अच्छा   जानती 
नाम : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर , कानपुर 
   

रविवार, 9 दिसंबर 2012

शीर्षक : जीवन यात्रा

    जीवन यात्रा 
जीवन के इस अदभुत संसार मे ,
पाया तूने जो मनुष्य का जीवन ।
इस समाज के लिए है कुछ करना ।
महसूस न करना कभी अकेला पन ।।
जीवन की इस लम्बी यात्रा मे ।
मुश्किले बहुत है आयेंगी ।।
डटकर लड़ना इन मुश्किलों से ,
सफलता तुझे खुद मिल जायेगी ।
पद का अपने मत करना अभिमान ,
देना तुम सबको सम्मान ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर , कानपुर 

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

शीर्षक : उम्मीदों को छोड़ो

शीर्षक : उम्मीदों को छोड़ो
उम्मीदों को छोड़ो ।
हकीकत को मानो ।
पता को पहचानो ।
उस पथ  पर  चलाना सीखो ।
खुद की उमीदो को छोड़ो ।
 बात मानो तो ,
खुद को पहचानो ।
न मिले कोई तो ,
अकले ही चल दो ।
थोडा कष्ट  होगा जरूर ।।
लेकिन पता को पहचान होगी ।
चलने का अनुभव होगा ।।
न  भोजन हो तो भी ।
जल से भूख मिटा लेंगे
हिम्मत करके ।
कुछ करके देखे ।
जो होगा ।।
उसका झेलेंगे ।
लेकिन उम्मीदों को ,
न छोड़ेंगे ।।
इस जग मे भूखे ही ।
 सो लेंगे ।
नींदों को छोड़ेंगे ।।
न मिलेगा इंसान तो ।
पौधों को ही मित्र बना लेंगे ।।
इस धरती को ।
अनंत सा बना   देंगे ।।
 उम्मीदों को छोड़ो ।
 हकीकत को मानो
  नाम : अशोक कुमार
कक्षा 10
अपना घर ,कानपुर 

 

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

शीर्षक : 2012

शीर्षक : 2012
जब आया 2012 का झोका ।
समेट  लाया अपने साथ मे मातम का झोखा ।।
चल बसे इस प्रथ्वी से जो मनुष्य ।
घरो मे  मातम आया ।।
रोते माँ ,बाप ,भाई , बहनों को देखा ।
जब 2012 का अंत आया ।।
साथ मे अपने साथ एक दिन लाया ।।
जब आया 2012 का झोका ।
समेट  लाया अपने साथ मे मातम का झोखा ।।

नाम : लवकुश कुमार
कक्षा :9
अपनाघर ,कानपुर

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

शीर्षक : हमारे नेता के वादे

शीर्षक : हमारे नेता के वादे
एक बार मुझे सरकार बनाने दो ।
और फिर सत्ता मे आने दो ।।
कसम खुदा की भारत को स्वर्ग बना दूँगा ।
भाषण से अपने गरीबी का भूत भगा दूँगा ।।
सड़क नाली और बिजली पानी ,
ख़तम होगी इन सब की परेशानी ,
मई जनसेवक हूँ थोड़ा पुण्य कमाने दो ,
बस एक बार मुझे सरकार बनाने दो ।।
ऐसे होते  हमारे नेता के वादे ।
सरकार बनाने पर बदल जाते है इनके इरादे

फिर जगह - जगह ये ठेके खुलवाते ।
लेकर के घूस खूब पैसे कमाते ।।
भोली - भाली  सी इस जनता को ।
मीठे - मीठे वांदो का ये जूस पिलाते है ।।
अरबो - खरबों , करोड़ो ,रुपये ये गटक जाते है ।
नाम:  धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा 9
अपना घर कानपुर

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

शीर्षक : सबका अधिकार है

         सबका अधिकार है 
जहाँ देखो चोर ,डकैत अपहरण से भर मार है ।
लड़कियो  को इज्जत नहीं मिलती यही लोगो की गुहार है ।।
लड़कियो  को निकलना बड़ा मुस्किल हो गया ।
यहाँ ,वहाँ शोहदों का घर हो गया ।।
मेरा यही कहना है ।
पुरुषों की संख्या ज्यादा है ।।
लडकियो की संख्या कम है ।
लड़कियो को भी जीने  का अधिकार है ।।
न ही  पुरुषों का अधिकार है ।
नाम : चन्दन कुमार 
कक्षा : 7
अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

शीर्षक : कुत्ता
काश मै भी सेठ जी का कुत्ता होता ।
तो हमारे मजे ही मजे होते ।
सुबह - सुबह बाइक मे बैठ कर ।।
करता मै भी सैर ।
खाने को मिलता माखन , बिस्कुट ,
प|नी मे होता ताजा दूध ।
खुल जाते भाग्य  हमारे ।।
यदि सेठ के कुत्ते होते हम बेचारे ।
सर्दी की तो बात निराली ,
एक बढ़िया सा होता मेरा बिस्तर ।।
जिस पर  सोता,बैठता ,लेटता ।
सबकी जुंबा पर एक ही पुकार ।।
कोई कहता नीलू ,
तो कोई कहता पीलू ,
तो प्यार से बोलता डॉगी,
तो किसी की  जुंबा पर होता मैगी ।।
न पढ़ना पड़ता न कुछ ,
बैठ - बैठ मिलता सब कुछ ।
यदि मौका मिले तो न चून्कू ,
सेठ के दुश्मन पर बड़े जोर से भौकूँ।

नाम : आशीष कुमार
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर

शीर्षक : मजदूर

      मजदूर 
 गाँव से दूर .....
एक सुबह को मजदूर ।
आज की दुनिया .....
आज का मजदूर ।।
आज के भी ठेकेदारों ..
 का है कोई जवाब नहीं ।
 एक रात ऐसी नहीं ....
 जो मिले कवाब नहीं ।
 मजदूरों पर क्या बीतती ....
 क्या है उनकी मजबूरी ।
 जो इस तरह जुटकर ....
 दिन -रात करते मजदूरी ।
 नहीं उठता है फावड़ा ....
 फिर करते है काम ।
 क्या इन सब न्र नहीं सुना ....
 एक शब्द भी होता है ''आराम''।।
 आराम की दुनिया में ....
 हराम का पैसा है ठेकेदार ।।
 बेच दो इनको और ....
 छीन लो अपना अधिकार ।।
  गाँव से दूर .....
  एक सुबह को मजदूर ।
  आज की दुनिया .....
  आज का मजदूर ।।
नाम : सोनू कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर , कानपुर 

रविवार, 2 दिसंबर 2012

फिर भी मेरा भारत महान

     फिर भी मेरा भारत महान
आजाद हिंदुस्तान की आजाद कहानी ,
हिंदुस्तान की है ये जवानी ,
अनगिनत होते है अत्याचार ,
बनकर नेता करते भष्ट्राचार ,
 आजाद हिंदुस्तान की आजाद कहानी ,
हर नेता करता मनमानी ,
माँ बेटियो पर होते अत्याचार ,
कन्हा गया वो अब शिष्टाचार ,
आँखों मे वो डर बसा है ,
  आँखों मे वो इतिहास रचा है ,
बाहर निकलने  मे भी लगता है डर ,
ये मासूम बेचारे  अब जांए किधर ,
नरक से बद्तर हो गया हिन्दुस्तान ,
  फिर भी कहते हम ,मेरा भारत महान ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

शीर्षक : दुष्ट दरिन्दे

        दुष्ट दरिन्दे 
कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
अपने लिए अपनो को लूटा करते है ।।
वो चिल्लाती रहती नहीं - नहीं  ,
फिर भी हम तरस नहीं करते है ।।
फिर कहते है जाने दो यार ,
अपनी बहन कौन , पड़ोसी की है ।।
कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
उनके भी कुछ अरमान होंगे ।।
नहीं सोचते हम उनकी वर्तमान की ।
कैसे वो रहेगी क्या करेगी ।।
नहीं सोचते उनके परिवार के लिए ,
कि उन पर क्या बीतेगी ।।
नहीं सोचते उनके लिए ,
कैसे वो घुट -घुट जियेगी ।।
 कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
 अपने लिए अपनो को लूटा करते है ।।
नहीं सोचते उनके समाज के लिए ।
क्या वो मुंह दिखाने लायक रहेगी ।।
 कुछ लोग तो दुष्ट  दरिन्दे है ।
  अपने लिए अपनो को लूटा करते है ।।
नाम : सागर कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

शीर्षक : 2012

      "2012" 
 
2012 बड़ा है खतरनाक ।
अमेरिका मे ले आया तूफान ।।
2012 ने दिखा दी अपनी शान ।
जाने कितने मारे गए बेजान ।।
भारत में 2012 का रहा जलवा ।
मुंबई नगरी में मचा दी तबाही।।
इसकी हम कैसे दी गवाही ।
कितने फिल्म स्टारों को ले गया अपने साथ ।।
लेकिन 2012 ने नहीं छोड़ा हमारा साथ ।
2012 को जब याद किया जायेगा ।।
सैंडी तूफान की याद दिलाएगा ।
2012 बड़ा है खतरनाक ।
अमेरिका मे ले आया तूफान ।


नाम : मुकेश कुमार , कक्षा : 11, अपनाघर ,कानपुर 

शीर्षक :लक्ष्य

    "लक्ष्य " 

सभी को एक लक्ष्य ,
की तलाश होती  है
लक्ष्य तक पहुँचने के लिए ,
एक कठिन राह होती है ...
सभी को कठिनाइयों की राहों से,
एक दिन गुजरना पड़ता है ......
कोई राहों से गुजर जाता है ,
तो कोई राहों से भटक जाता है ।
सभी को एक लक्ष्य ,
की तलाश होती  है ।

नाम : ज्ञान कुमार, कक्षा : 9, अपना घर , कानपुर 

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

शीर्षक : भूखा मजदूर

    " भूखा मजदूर"

अगर न होते बाग - बगीचे ।
और न होते खेत - खलिहान ।।
कहाँ से आता गेंहूँ चावल ।
कैसे भरता हम लोगो का पेट ।।
किसान उगाता है सब्जी।
गेंहूँ, चावल, और भांटा ।।
किसान अपनी मेहनत करके खाता है ।
और हमें खिलाता है ।।
नाम : जितेन्द्र कुमार, कक्षा : 9, अपना घर , कानपुर  

बुधवार, 28 नवंबर 2012

शीर्षक : जिंदगी डस्टबीन

      "जिंदगी डस्टबीन" 

कैसी ये जिंदगी है ,जो  डस्टबीन की तरह लगती है ।
डस्टबीन की तरह लुढ़कती है ।।
लुढ़क - लुढ़क कर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचती है ।
पहुंच- पहुंच कर कूड़े करकट को ढूँढती है ।।
कैसी ये जिंदगी है ,जो  डस्टबीन की तरह लगती है ।
और ये उधर ,इधर घूमा करती है ।।
कूड़े कर कट को ढूँढा करती है ।
कैसी ये जिंदगी है ,जो  डस्टबीन की तरह लगती है ।

नाम : सागर कुमार कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

शीर्षक : कवि की छवि

   "कवि की छवि" 
 
एक था बहुत बड़ा कवि ।
जब हमने देखी उसकी छवि ।।
उड़ गए होश हमारे ,
गश खाकर हम गिरे,
देख के हमको दौड़े लोग बेचारे ।
मै तो था बेहोश ,
पानी ही पड़ते हमको आया होश ।।
कवि ने पूछा अरे ओ भईया ,
हमने बोला क्या रे कविया ?
सुनकर हमारी ये बतियाँ ,
कवि के गुस्से से लाल हो गई अँखियाँ ।
काले बादलो की भाँती मेरे पास में छाया ,
उसका यह रोब हमरे मन को भाया ।
हमने कहा अरे ओ भईया ,
सुन लो तनि हमरी ये बतिया ।
हमने सुना था  कि तुम हो शांत रस के कवि ,
तो शान्ति के जैसी होगी तुम्हारी छवि ।
पर तुम तो निकले रौंद्र रस के कवि ,
तुमने बदल दी हमारी छवि ।।
नाम : आशीष कुमार , कक्षा : 10, अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 26 नवंबर 2012

शीर्षक :जिंदगी

   " जिंदगी"
 
बड़ी तो कठिन है जिंदगी ।
वक्त पर चलना सिखाती है जिंदगी ।।
लक्ष्य जो तेरे हाथ मे है ।
उस लक्ष्य तक पहुचाती है जिंदगी ।।
तेरे सभी सपनों को ।
सच में बदलती है जिंदगी ।।
बन गया लक्ष्य तेरा तो ।
झूम के हंसती , गाती है जिंदगी ।।
वक्त से पहले अगर संभल न पाये ,
तो हर शाम भूखो सुलाती है जिंदगी ।।
नाम :धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

शीर्षक : कुछ तो सीखो

  "कुछ तो सीखो"

बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।
हमें अपने वातावरण मे ।।
बन जाता है मौसम अचानक ।
पानी गिराने लगता है गगन से ।।
नहीं किसी को पराया समझाना ।
कभी - कभी  धूप में छाया भी करना ।।
लेकिन नहीं सीख  पाते है हम कुछ ।
अपने वातावरण और गगन से ।।
अपने ब्रम्हाण्ड और धरती से सीखो ।
एक दूसरे की सहायता करना सीखो ।।
नाम : ज्ञान कुमार, कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर 

बुधवार, 21 नवंबर 2012

शीर्षक : यह भी जिंदगी

"यह भी जिंदगी"

क्या इंसान भी वो होते है ।
जो भूखे ही सोते है ।।
नहीं है उनका कोई सहारा ।
भूखा रहता उनका पेट बेचारा ।।
जो देता है उनको दान ।
वो करते है उनका सम्मान ।।
भलाई का जमाना नहीं रहा।
युग कलयुग का चल रहा।।

नाम : ज्ञान कुमार , कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर 

शीर्षक : काम ही काम

"काम ही काम"

तू किस सोच मे डूबा है ।
अब तो सोच अपनी बदल ।।
वरना चला जाएगा यह समय ।
तू अपने को न बदल पायेगा ।।
हाथ है तेरे स्वतंत्र ।
फिर भी तेरा मन है परतंत्र ।।
फिर भी अपने के वास्ते ।
तू खुद  को कर स्वतंत्र।।
तुझे पता नहीं है तू है न फूलो सा राजा ।
जो जब मन आये बैठे कर ली आराम ।।
आराम तेरे लिए है हराम ।
अब  तुझे करना है  बस  काम ही काम ।।

नाम : आशीष कुमार , कक्षा : 10, अपनाघर , कानपुर

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

शीर्षक : पिंडो के सामान

 "पिंडो के सामान "

आकाशीय  पिंडो में ,
भिड़ने की छमता नहीं होती ।
आकर्षण के कारण ,
उन मे  की  मिलने की ,
सम्भावना नहीं होती ।
पक्षियों को झुण्ड में 
चलने  की आदत  होती है,
उन में  भी,
मिलने की सम्भावना नहीं होती ।
इंसानों में तो ,
सारी योग्यता होती है फिर भी ,
हर एक पथ  में,
एक अलग  ही चाहत होती है ।
सामंजस्य एवं एकता की , 
कोई खास भावना नहीं होती ,
इन में मिलने जुलने की ,
वर्षों से परम्परा है ,
फिर भी आपस में ,
कोई विशेषता नहीं होती ,
सारे के सारे इंसानों में भी 
आपस में आकर्षण ,
पिंडो से ज्यादा ,
भावनाओं का भंडार  है  ,
ये सारे के सारे ,
पिंडो के सामान  हैं ।
   नाम : अशोक कुमार , कक्षा : 10, अपना घर कानपुर  

  

बुधवार, 14 नवंबर 2012

शीर्षक : दीपावली

 " दीपावली"

दीपावली तो है , आ गई ।
आसमान मे तारे आ गए ।।
जगमग -जगमग करते बादल छा गए ।
लड्डू ,पेड़ा  तुम खूब खाओ ।।
मौज - मस्ती तुम खूब कर आओ ।
थोड़ी दिन के लिए तुम पढाई भूल जाओ ।।
पड़ाका , हथगोला  थोडा कम जलाओ ।
किसी भूखे को थोडा खाना खिलाओ ।।
हर अँधेरे घरों में तुम जाओ ।
एक नन्हा दिया तो जलाओं ।।
नाम : मुकेश कुमार , कक्षा : 11, अपना घर ,कानपुर

शनिवार, 10 नवंबर 2012

शीर्षक : समय

 " समय"

उस समय की बात है ।
जब वक्त था सोने का ।।
सूनसान हो गया था ,सारा महौल ।
मन  तो चंचल  होता ही है ।।
कुछ करने को जी करता है ।
किसी तरह से मन को रोक पाया ।।
तब उसको कुछ अच्छा करने को भाया ।
लिया कलम कापी का सहारा ।।
उनके आगे भी वह हारा ।
धोखा दे दिया पेन ने उसका ।।
इतने मे वह बड़े जोर से बमका ।
गलत नहीं थी पेन की कोई ।।
सर्दी से इंक थी उसकी जम  गई ।
तब तक सब जाग गए थे उसके शोर से ।।
बूढ़े ,बच्चे ,युवा सभी चिड़िया के शोर से ।
 नाम : सागर कुमार , कक्षा: 9, अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 7 नवंबर 2012

शीर्षक : बदलाव

    "बदलाव"

समाज में आते है बदलाव ।
बदलाव से आती है कठिनाइयाँ ।।
कभी मुस्किल हो जाता है ।
साथ में खाना मिठाइयाँ ।।
जबआखिर हो ही जाती है ।
विद्यालय की लम्बी छुट्टियाँ ।।
तब हमको मजा आता है ।
घर मे बिताने मजा छुट्टियाँ ।।
लेकिन कुछ परिवर्तनों से ।
छुट्टियाँ में मजा नहीं आता है ।।

नाम : ज्ञान कुमार , कक्षा : 9, अपनाघर ,कानपुर 

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

शीर्षक : आदी है

  "आदी है"
सुनने की आदत नहीं ।
बोलने की बेसर्मी है ।।
माँगने की आदत नहीं ।
खाने की बिमारी है ।।
गाने की आदत नहीं ।
चिल्लाने के हम आदी है।।
बेसर्मी की कोई सीमा नहीं ।
ओके सर ,एस सर ,कहने की आदत है ।।
सही गलत की पहचान नहीं ।
बुलंद आवाजो को सुनने के ।।
हम आदी है।
कामचोरी मे भी ।।
सीना -जोरी मे भी।
सुनने की आदत नहीं ।
बोलने की बेसर्मी है ।।

नाम : अशोक कुमार , कक्षा : 10, अपनाघर ,कानपुर

रविवार, 4 नवंबर 2012

शीर्षक: डर लगता है

   "डर लगता है" 

डर लगता है मौसम के बदलने से ।
बीमारी लोग डरते है अच्छे से ।।
डर लगता है शोर -सराबे से ।
धरती को प्रदूषित करते है अच्छे से ।।
डर लगता है अकेले चलने से ।
डर लगता है नियम का पालन करने मे ।।
कही सजा न मिल जाए ।
डर लगता है झूठ बोलने से ।।
कंही हजार बार झूठ न बोलना पड़े।
डर लगता है ज्यादा प्यार करने से ।।
कंही मै इसमें घायल न हो जाऊं ।
बच भी जाऊ तो कंही सम्हाल न पाऊ ।।

नाम : लवकुश कुमार , कक्षा : 9 , अपनाघर ,कानपुर 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

शीर्षक : गाँधी के भारत में राज्य बटते हुय

"गाँधी के भारत में राज्य बटते हुए "
 
गाँधी तू  कहाँ गया ।।
तेरा देश बट गया ।।
तेरे लोग बात गए ।
जातिया बात गई ।।
और अब तेरे राज्य भी बात बंट रहे है ।
गाँधी तू  कहाँ गया ।।
तेरा भारत टूट रहा है ।
नदियाँ बंट गई ।।
बंट गई फसले और तेरे जिले भी बंट रहे है ।
गाँधी तू  कहाँ गया ।।
तेरा देश मिट रहा है ।
मिट गई तेरी बिरासत ।।
मिट गई तेरी संस्कृति ।
और अब तेरे रिश्ते भी मिट रहे है ।

के .एम .भाई , सामाजिक कार्यकर्ता, कानपुर 

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

शीर्षक :मेरा भारत महान

"मेरा भारत महान"

अपना ये भारत है महान ।
इसकी महानता का करले ज्ञान ।।
महान है इसका हरेक मानव ।
उसके बारे मे भी कुछ जानो ।।
रोज सुबह मंदिर को जाते है सज्जन ।
कुछ मिले जाये ये करके आस ।।
इसलिए भजते रहते है ये ।
भगवान शिव को बारो मॉस ।।
प्रतिदिन गंगा स्नान को जाते ।
फल ,भोजन इत्यादि वानरों को खिलाते ।।
लम्बी आयु की है मांग करते ।
करके घोटाला अपनी जेब भरते ।।
उस ओर कभी मुड़ कर नहीं देखा ।
जिस ओर बैठा वह गरीब बेचारा ।।
जिसके पास नहीं है ।
जीने का को सहारा ।।
अपने ज्ञान का करते है बखान ।
और कहते है मेरा भारत महान।।

कवि: धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा :9, अपना घर ,कानपुर 

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शीर्षक : ये सब सपने

"मुझसे दोस्ती करोगे रवि..."

तपती धरती उबलता रवि ।
प्रकृति पर लिखता कवि ।।
ये कैसा संसार है ।
सबको अपने जीवन पर प्यार है ।।
ये संसार हमारा है ।
इसको मिल कर बचाना है।।
संसार मे जो आता है ।
वह जरूर ऊपर जाता है।।
प्रकृति के साथ रहना है ।
ये तो कवि का कहना है ।।
कवि रवि से कहता है ।
तू क्यों अकेला रहता है ।।
तेरी दोस्ती के लिए हर कोई मरता है।
तुझसे संसार का हर दुश्मन डरता है ।।
क्या इन्सान की दोस्ती से डरते हो रवि।
या हमसे दोस्ती नहीं करना चाहते हो रवि ।।
तुझसे कहता है ये कवि ।
तेरी दोस्ती चाहता हूँ रवि ।।
मानवों को तूँ इतना रोशनी देता है ।
फिर क्यों तूँ इतना उदास रहता है ।।
तुम्हे ठंढी मे देखने के लिए लोग तरसते है ।
गर्मियों मे तुम में फिर क्यों आग बरसते है।।
मै हूँ एक छोटा सा कवि ।
मुझसे से दोस्ती करोगे रवि।।

नाम :चन्दन कुमार , कक्षा : 7 , "अपना घर", कानपुर

शीर्षक : शिक्षा

            शिक्षा 
हम खो गए तो राहो मे ढूंढा करोगे ।
एक -एक  को रोककर पूछा करोगे ।
जिंदगी आपकी होगी अधूरी ।
हर वक्त हमें ही सोचा करोगे ।
समझ गए जो आप हमारी कीमत ।
तो किस्मत को भी वश मे रखोगे ।
हम अभी कहते है आप से ।
की न बनाओ हमसे दूरियाँ ।
वरना चाह कर भी रो न सकोगे ।
नाम : संजय कुमार 
कक्षा : 12 

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

शीर्षक : यह देश का हाल है

शीर्षक : यह देश का हाल है 
यह देश का हाल  है ,  जनता तो  बेहाल है ।
नेताओं की मनमानी है , जनहीत में आनाकानी है ।
दंगे और लड़ाई से इनको प्रॉफिट है ,
    आगे पीछे  चमचे इनकी बुलेट प्रूफ जाकिट है ।
सुनते है जब कि यहाँ घटना घटी ,
 चले जाते हैं वहां घूमते ,
और साथ में ' दैनिक जागरण ' में फोटो खिचवाना भी  भूलते   ।
  इनका तो यही व्यापार  है,
तभी तो इनके पास चार बंगले और  सफारी कार है ।
आते है जब चुनाव निकट ,
बनते है ऐसे जैसे गरीब ये हैं हम नहीं ।
और  जीतकर 10,000 वोटो से 
समझते हैं कि हम ओबामा से कम नहीं ।
ऐसे लोगों को इस देश से भागना है ,
भ्रस्ताचार को मिटाना है ।
इस देश को पूर्ण स्वतंत्र बनाना है ।
नाम : संजय कुमार 
कक्षा : 12

लता मंगेशकर

   शीर्षक : लता मंगेशकर
 इंदौर की है वह बाला ।
 जिनको पंडित दीनानाथ ने पाला ।।
 संसार मे जो डंका  बजया ।
 सबको अपना लोहा मनवाया ।।
 लता मंगेशकर  ने ऐसा जादू चलाया ।
  कुदरत ने खुश होकर भारत रत्न दिलवाया ।।
 मै  भी उनका प्रशंसक हुई हूँ ।
  उनके संगीत सुनने को उत्सुक हूँ ।।
 चाहता हूँ यह की रहे सदा वो अमर ।
  नाम है जिनका लता मंगेशकर ।।
नाम: संजय कुमार 
स्कूल :पंडित रामनारायण इन्टर कॉलेजे 
कक्षा :12

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

शीर्षक : हड़ताल

     शीर्षक : हड़ताल
रोज -रोज ये कैसी हड़ताल ।
कभी बस करे हड़ताल ।।
कभी टेम्पो करे हड़ताल ।
रोज -रोज ये कैसी हड़ताल ।
कभी कर्मचारी करे हड़ताल ।।
कभी नेता करे हड़ताल ।
कभी सामजिक कार्यकर्ता करे हड़ताल ।
रोज -रोज ये कैसी हड़ताल ।।
कभी स्कूल करे हड़ताल ।
कभी कॉलेज करे हड़ताल ।।
कभी स्टूडेंट करे हड़ताल ।
 रोज -रोज ये कैसी हड़ताल।।
नाम : चन्दन कुमार 
कक्षा :7
अपना घर , कानपुर 

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

शीर्षक : योगी

शीर्षक : योगी 
अवसर मिले करो प्रयोग ,
चाहे वह क्यों न हो योग ।
 योग के करने से भी बढ़ी हैं कई चीजे  ,
चाहे हो मानसिकता की बीमारी ।
ख़तम हो जाये इससे बीमारी सारी ,
क्योंकि योग करने से बढती है कई चीजे ।
यदि योग की साधना करली पूरी ,
तो आ जाएगी तुम्हारे अंदर श्रद्धा और सबूरी ।
श्रद्धा से है जीना जरूरी ,
बुरे समाज के लोगो से बचना अति जरूरी ।
अब के हर बालक, युवाओं के मुँह  पर  है गाली ,
एक हाथ से बजे न कभी भी ताली ।
ये है सब एक तरह के रोगी ,
इनसे बचना है तो बन जा योगी ।
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर कानपुर      

शीर्षक : चाह नहीं

शीर्षक : चाह नहीं 
चाह  नहीं है मिलने कि ,
फिर भी जाओ जबरन मिलने को ।
चाह नहीं है विद्यालय जाने की ,
फिर भी जबरन जाओ कक्षाओं में  ।
चाह नहीं है सोने की ,
फिर भी जाओ जबरन बिस्तर में ।
चाह  नहीं है बोलने की,
फिर भी जबरन बोलो लोगों से ।
 चाह नहीं है लोगों को देखने की ,
फिर भी जबरन देखो लोगों को ।
चाह  नहीं है जनलोक में रहने की,
फिर भी जबरन रहो इस लोक में  ।
चाह नहीं कुछ बनने की ,
 फिर भी जबरन अफसर बनने की ,
अक्सर ऐसा ही होता है ।
जो चाहो वह होता नहीं ।
               नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10 

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

शीर्षक : संसार

   शीर्षक : संसार
 संसार के सभी जीवजन्तु ।
 रहते है सब मिलकर ।।
 कुछ जंतु है अनोखे ।
 जिनको हम सभी लोगो ने ।।
 कभी नहीं देखे ।
 प्राकृतिक मे संतुलन ।।
 कैसे बना रहता है ।
 शेर जंगल मे और ।।
 इंसान शहर मे रहता है ।
 अगर ऐसा न होता ।।
 प्राकृतिक मे सन्तुलन न रहता।
नाम : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

शीर्षक : संघर्ष...

   "संघर्ष "

 हो चक्र   चाहे ही भवर ।
 हरगिज कभी डरना नहीं।।
 आ जाए चाहे सुनामी ।
 तुम पीछे हटाना नहीं ।।
 संघर्स करके रोज तुम ।
 जीवन के रास्ते मे आगे बढ़ते रहो।।
 आ जाए चाहे आंधी ।
 उन झोंको से तुम डरना नहीं ।।
 यह जिंदगी अनमोल है ।
 इसे कभी खोना नहीं ।।
 संघर्स के रास्ते पर चलकर ।
 रास्ते में सोना नहीं ।।
नाम :संजय कुमार , कक्षा :12 
स्कूल : पंडित रामनारायण इन्टर कॉलेज ,कानपुर 

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

शीर्षक : एक दिन

   "एक दिन"

कला घना अँधेरा रात था ।
बड़ा ही भयानक रात था ।।
पवन भी धीरे -धीरे बह रहा था ।
मानो मुझसे कुछ कह रहा था ।।
किचन मे कुछ शोर था ।
मेरे मन मे भी जोर था ।।
सर -पट , झटपट मै अन्दर भागा।
खिड़की से तब मै अन्दर झाँका ।।
पसीने से में डूब गया था ।
फिर भी मुझसे रहा न गया था ।।
सोचा की अब किचन मे जाऊं।
सहसा आवाज सुनाई दी म्याऊँ।।
जल्दी -जल्दी दरवाजा खोला ।
एक मोटा बिल्ला गुर्राकर बोला ।।
मुझको तो अब मजा भी आया ।
बुद्धू हूँ बडबडाते हुए वापस आया।।
नाम :संजय, कक्षा :12 
स्कूल : पंडित रामनारायण इन्टर कॉलेज ,कानपुर 

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

शीर्षक : आसमान

शीर्षक : आसमान 

आसमान तो खुला हुवा है ।
पानी झरना जैसे  बरस रहा है।
आओ बच्चो खूब नहाओ ।
हँसो कूदो और गाना -गाओ ।
बचपन है अपना मस्ती का ।
इसमें तुम मस्त -मस्त हो जाओ ।
बचपन हो न पाए पचपन ।
ठहाके मारो लगा के तन-मन ।
आसमान तो खुला हुवा है ।
मारकर ईटा तारे तोड़ो ।
और चाँद सितारे तोड़ो।
बच्चे होते है सच्चे ।
प्यारे - प्यारे दिल के अच्छे ।
आसमान तो खुला हुवा है ।
पानी झरना जैसे  बरस रहा है ।

नाम : मुकेश कुमार, कक्षा : 11,  "अपना घर",  कानपुर

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

शीर्षक : चुटकुला

    शीर्षक : चुटकुला
 पहला व्यक्ति :यार मुझे पंडितो से
 बहुत ही नफरत होती है ,
 और  बहुत गुस्सा आता है ।
 लगता है कि पेट्रोल डालकर आग लगा दूँ
 दूसरा  व्यक्ति: तो फिर सबसे पहले तू अपने
 आप को आग लगाकर फूंक ले ।
 पहला व्यक्ति: क्यों?
 दूसरा  व्यक्ति: क्यों कि तू खुद भी तो पंडित है
 पहला व्यक्ति: :यार मुझे आत्महत्या करने से दर लगता है ।
नाम :   आशीष कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

शीर्षक :मन

      शीर्षक :मन
 जो कहता है तू कह दे ।
 तू न डर किसी से ,
 जो बहकावे तुझको ।
 मत आना उसके बहकावे मे ,
 सोच के अपने मन मे ।
 करले पक्का वादा मन में ,
 कठोर बनने दे अपने को ।
 न  बहके   रोक ले अपने  मन को ,
 मन बड़ा ही चंचल ।
 मन बहके तो मच जायेगी हल -चल ।
 यदि मन को रखेगा ठान के ,
 तभी तो आगे बढ़ पायेगा सीना तान के ।
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर 

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

शीर्षक :जो कली खिली बाग में ...

 "जो कली खिली बाग मे"

जो कली खिली बाग में ।
जों कली है समाज मे ।।
वह क्यों कुचल गई ।
फूल बनकर कली ने जग को महकाया ।।
क्यों कि फिर कली को समाज ने ठुकराया ।
फूलों का खिलान तो गले का हार होता है ।।
क्यों कि ये गले का फंद्दा बन गया ।
जिस कली का हार हो ये ।।
कली फूल बनकर सारे।
संसार को महकाएगी ।।
लेकिन कली को फूल बनाने का मौका तो मिले
तब तो वह कुछ करके दिखाएगी ।।
नाम : जितेन्द्र कुमार, कक्षा : 9, "अपना घर" ,कानपुर

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

शीर्षक : कितने बिगड़े बच्चे

      शीर्षक : कितने बिगड़े बच्चे
    कितने बिगड़े बच्चे सारे ,
   आपस मे टोलिया बनाते है। 
  कट्टा से गोली चलाते है ,।
  और  साधना कट बाल कटाते है। 
  और बेल बाटम की पैंट सिलाते ,
  और फैसन कोई न बच पाता ।
  महंगी वाली क्रीम लगाते ,
  और अपना चेहरा  साफ  दिखाते। 
  और खूब बॉडी स्प्रे लगाते ,
  छोटे -छोटे बाल कटवाते ।
  दाढ़ी ,मूंछे साफ  कराते ,
  जल्दी से पहचान न आते। 
  सिगरेट का वो धुआं उड़ाते ,
  फिल्म देखने रोज जाते ।
  रोज पुड़िया गुटखा खाते,
  और घर पर मारे जाते ।
  कितने बिगड़े बच्चे सारे,
नाम : जितेन्द्र कुमार 
कक्षा :9
अपना घर ,कानपुर 

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

शीर्षक :- गणित

     शीर्षक :- गणित
  गुणा भाग और जोड़ घटाना।
  गणित मे है खूब ध्यान लगाना।।
  गणित मे कुछ समझ मे नहीं आती है।
  मैडम बहुत हड़काती है ।।
 समझ मे  न कुछ आता है ।
 वह बैठे हुए पछताता है ।।
 गणित जब नहीं आती है ।
 खोपड़ी गरम हो जाती है ।।
नाम : अजय कुमार
कक्षा : 6
अपना स्कूल , कालरा ब्रिक  फील्ड ,चौबेपुर 
 

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

शीर्षक : गांधीजी

                                               
       शीर्षक : गांधीजी
    गांधीजी आये ,गांधीजी आये ।
   साथ मे अपने आंधी लाये ।।
   गांधीजी सबको अच्छी बात सिखाते है।
   सत्य की राह चलते है ।
   सत्य की रह पर चलना है ।।
   शिक्षक यही हमें सिखाते है ।
   ज्ञान की बात यही बताते है ।।
   बच्चो को यही बात सिखाते है ।
नाम : अजय कुमार 
कक्षा : 6
अपना स्कूल ,कानपुर 

                    

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

शीर्षक :- जारी

    शीर्षक :- जारी
 सोचता हूँ जिंदगी में क्या करूँ ।
 इस गंदे संसार मे कंहा रहूँ ।।
 हर जगह है दुराचारी ।
 हर जगह है भ्रष्टाचारी ।।
 और हर तरह यौन हिंस्सा है जारी।
 सोचता हूँ जिंदगी में क्या करूँ ।।
 जिधर देखो उधर है जाती वाद ।
 हर चीज के लिय है मारा मारी ।।
 इस संसार मे सुरक्षित नहीं है नारी ।
 जंहा देखो वही  यौन हिंस्सा है जारी ।।
 नाम : सागर कुमार 
 कक्षा : 9
 अपना घर , कानपुर 

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

शीर्षक :- धरती उठी थी खिल

  शीर्षक :- धरती उठी थी खिल
   भोर का समय था ,
   आसमान में चन्द्रमा की रोशनी ।
   फैली थी पूरी धरती पर ,
   आसमान मे काले बादलो का डेरा ।
   चन्द्रमा को घेर रहा था ,
   मैं यह देख रहा था  बैठा छत पर ।
   उसी समय  चन्द्रमा पर संकट आया था ,
   देख नजारा हवा ने मंद हँसी से मुस्काया ।
   देखते ही  देखते उसने  ऐसा रूख बदला ,
   जिससे काले बादल चंदा पर कर सके हमला ।
   पूर्व से पश्चिम को चली ,
   उत्तर से दक्खिन   को चली ।
   पवन के झोंको ने सारे बादलो को दिया झोर ,
   बेचारे डर कर भागे देख हवा का शोर ।
   अब चंदा का संकट गया था टल ,
   देख शशि की ज्योति सारी  धरती उठी थी खिल ।
नाम :आशीष कुमार 
कक्षा :10
अपना घर ,कानपुर 

रविवार, 30 सितंबर 2012

शीर्षक :- पानी

     शीर्षक :-  पानी
 पानी बरसा झमाझम ।
 धान लगाएंगे  खेतो  मे हम ।।
 मक्का भी अब लगायेंगे ।
 मक्का  खूब हम खायेंगे ।।
 किसानो की तो  प्रसन्नाता आ गई।
 बदल तो पानी बरसा गई ।।
 किसानो के खेत  लहलहाने लगे।
 बादल अब तो पानी  बरसाने लगे।।
 रात की  चाँदनी मे लहलहाएंगे खेत।
 खेतो मे  नही है कोई रेत ।।
 पानी बरसा झमाझम ।
  धान लगाएंगे  खेतो  मे हम  ।।
नाम :मुकेश  कुमार 
कक्षा :11
 अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 29 सितंबर 2012

शीर्षक :- जिंदगी

शीर्षक :- जिंदगी
 जिंदगी के इस भव सागर का ।
 कोई तो किनारा होगा ।।
 मेरी इस जिंदगी मे ।
 मेरा कोई तो सहारा होगा ।।
 उस किनारे का ही तो ।
 मुझे है इन्तजार ।।
 वो जो आ जाये तो ।
 जिंदगी में मेरे आये बहार ।।
 जिंदगी बड़ी अनमोल है ।
 बिना किनारे के नहीं चलती ।।
 बचपन और बुढ़ापा दो स्टेप है इसके ।
 जो बिना सहारे के नहीं चलते।।
नाम : सोनू कुमार 
कक्षा :11
अपना घर, कानपुर  


शीर्षक :- अंतर

 शीर्षक :- अंतर
 गाँव जैसा माहौल ।
 वो शहरों में कहां।।
 शहरों जैसी दुकाने ।
 वो गाँव में  कहां।।
 सभी स्थानो  का है।
 अपनी -अपनी जगह ।।
  अपना -अपना महत्व।
 फिर क्यों होता है।।
 एक -दूसरे मे मतभेद ।
  गाँव के निवासी ।।
  शहरों में बसे है ।
  फिर क्यों वो अपने को ।।
  शहरी समझ रहें हैं ।
  गाँव से ही अन्न जाता है।।
  सभी शहरों में ।
  इसीलिये ठहरे हुए  हैं ।।
  वो शहरों में।
नाम : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 


 

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

शीर्षक :- पढ़ाई

    शीर्षक :- पढ़ाई
 बड़ा भारी ये अपना बस्ता लेकर ।
 जाते है रोज सुबह स्कूल ।।
 स्कूल पहुंचते ही आती है नींद ।
 और सब कुछ जाते है भूल।।
 जब शुरू होती है पढाई ।
 पहले ही पीरियड मे पढ़ाते है भुगोल ।।
 कुछ न समझ मे आता है ।
 सब कुछ हो जाता है गोल ।।
 इतिहास की तो  मत पूछो बात ।
 पुराने से भी पुराने जमाने की हैं बात बताते ।।
 समझ नही आता है कि क्यों ।
 भूतकाल की बातों को ये दोहराते।।
नाम :धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर , कानपुर 

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

शीर्षक :-नेता




 शीर्षक :-नेता
रात मे एक ,
घनघोर  अँधेरे ।
कुछ आये मच्छर ,
पैसा बटोरे ।
उसने    मेरे हाथ मे,
 एक गड्डी जो  थमाई ।
 आने वाले पाँच साल की ,
 कुर्सी उसने हथियाई ।
 पाने के बाद कुर्सी,
 उसने  ऐसा हड़कंप मचाया ।
 आने वाली सुबह को ,
  न आये आंसू न  जा रहा रोया ।
  अब  तो है  केवल उनके ,
  सिर पर भय सवार ।
  बैठा था इन पांच सालो में ,
  जो नेता हाथ - पांव पसार ।
  उसने अपना मुंह ऐसा  फाड़ा ,
  और ऐसा पांव पसारा ।
  उस नेता के चक्कर मे,
  अपना देश फंसा बेचारा ।
  एक रात ............
  घनघोर  अँधेरे।
    आये मच्छर ,
      पैसा बटोरे ।
  
 नाम :सोनू कुमार 
कक्षा :11
अपना घर ,कानपुर 
  

शीर्षक :-खेल

शीर्षक :-खेल

 शुरू हुआ ट्वेंटी -ट्वेंटी खेल।
 मैदानों पर उतरेंगे मेल ।।
 जो जीतेगा वही होगा सिकंदर ।
 जो जीतेगा वही होगा सेमीफाईनल के अंदर ।।
 सभी खेल -खिलाड़ी आयेंगे ।
 रनों का अम्बार लगायेंगे ।।
 छक्के -चौक्के की कर देंगे बरसात ।
 क्यों न बीत जाये आधी रात ।।
 गेंदबाज ,गेंदबाजी में हाथ जमायेंगे ।
 बल्लेबाज , बल्ले से रन बरसायेंगे ।।
 शुरू हुआ ट्वेंटी -ट्वेंटी खेल ।
 मैदानों पर उतरेंगे मेल ।।
नाम :मुकेश कुमार 
कक्षा :11
अपना घर  ,कानपुर 

बुधवार, 26 सितंबर 2012

शीर्षक :-सभी के दिन



शीर्षक :-सभी के दिन
आते है सभी के,
खुशी के दिन । 
आते है सभी के,
दुखी के दिन ।
फर्क दोनों में,
काफ़ी बड़ा है । 
दुख खुशी से,
काफ़ी बड़ा है ।
दुःख के दिन,
आते है जब । 
तब खुशी के,
दिन चले जाते है सब ।
नाम :ज्ञान कुमार 
 कक्षा :7
अपना घर, कानपुर 

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

शीर्षक :- पानी

  "पानी"

  रिम -झिम -रिम झिम ,
 पानी बरस रहा है ।
 बच्चे  स्कूल जा रहे है ,
 बच्चा उठाता बर्तन धोता ।
 बर्तन धोकर पढ़ने जाता ,
 और कक्षा मे प्रथम है आता ।
 और मम्मी पापा को पढ़ाता ,
 पानी बरसे झम -झम ।
 स्कूल रोज जायेंगे हम ,

नाम :चन्दन कुमार, कक्षा :7, अपना  घर  ,कानपुर

शीर्षक :-मौसम

शीर्षक :-मौसम
मौसम सुहाना ,
मन   सुहाना ।
बदल को है आना ,
जल को है बरसाना।
मन को है  नहलाना ,
बरसात मौज मस्ती करना ।
दोस्तों को खुंशिया बाटना,
ये दिन हो अनमोल ।
इसका न कोई मोल ,
ये रतन बड़ा है अनमोल ।
नाम : हंसराज कुमार , कक्षा : 9, अपना घर ,कानपुर

सोमवार, 24 सितंबर 2012

शीर्षक:सीख ले


 शीर्षक:सीख ले
कोई तुझे कुछ कहे ।
तू जाने या ना जाने ।।
हो सके की वह कुछ और कहे ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
चाहे रात हो या दिन ।
तेरी चीजे मांगे तुझसे जबरन ।।
ऐसी न आये कोई घड़ी ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
यदि कोई नेता आये तेरे घर पर ।
जब बैठा हो तू अपनी चौखट पर ।।
आकर तुझे फसाये अपने चुंगल में ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
 बाप बड़ा ना भईया ।
सबसे बड़ा रुपैया ।।
ऐसी न सुनाने को मिले कहावात ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
घर का आदमी घर के काम न  आवे ।
कुछ करवाने को कहो तो वह अपनी औकात दिखावे।। 
ऐसे रंगीन सियारों से तू बच ले ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
एक मदारी बन्दर और बंदरिया ।
भरता अपनी झोली -डलिया ।।
तुझे भी ना बनना पड़े  बन्दर  -बंदरिया ।
इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
ऐसी ना कर तू दोस्त से दोस्ती ।
जू तुझे रोज खिलावे चाट पकौड़ी ।।
संकट आने पर बना दे तुझे ही बलि का बकरा ।
 इससे पहले तू कुछ सीख ले ।।
हो ना हो तेरे नसीब में ।
मिले तुझे  जी न हो तेरे नसीब मे ।।
ऐसे सपने मन मे जग जाये ।
जो ना पूरे हो इस काल मे ।।
 इससे पहले तू कुछ सीख ले ।                                                       नाम : आशीष कुमार 
                                                                                             कक्षा :10
                                                                                           अपना घर ,कानपुर 

रविवार, 23 सितंबर 2012

शीर्षक :- स्वत: के नजारे में


स्वत: के नजारे में 
ख्यालों  की बारिश  में , 
बारिश  के   झोंके  में । 
पसीने मे लतपत ,
उस नज़ारे को देखने में । 
प्रार्थना की खुदा से ,
उन्हें लाने  की ।
वो तो नहीं आये ,
ख्यालों  के सपनों में । 
बारिश  की कोई सीमा न रही ,
जिनको आना था ।
ख़ुदा की दुआ से ,
जिनके ख्यालों मे ।
डूबे थे हजारों  लोग ,
उनके आने के ख्यालों में  ही ।
बारिश के नज़ारे थे ,
वो जो पड़े थे ।
उनके ख्यालों में ,
वे ही बूंदों का मजा ले रहे थे ।
रास्ते में  चलते हुये ,
हाथों  में  हाथ लिये ।
बालों  को सहलाते हुये , 
ख्यालों की बूंदो से ।
स्वतः  को ही वे ,
गम  के बूँद पिला रहे थे  ।

                                        नाम :  अशोक कुमार 
                       कक्षा : 10
                                                       अपना घर ,कानपुर 

शीर्षक:-बचपन

"बचपन"..

जब मैं छोटा था।
मन चाहा खेल -खेला करता था ।।
जब दीदी गोद में सुलाती थी ।
कविता कहानिया रोज सुनती थी।।
ये मेरा बचपन था ।
माँ मुझे मारने दौडती थी।।
मै पेड़ पर चढ़ जाती थी ।
ये मेरा बचपन था ।।
मेरा बचपन खो गया ।
पता नही कहा खो गया  ।।

  नाम:-चन्दन कुमार, कक्षा:-7, "अपना घर"

बुधवार, 19 सितंबर 2012

शीर्षक :- महंगाई

शीर्षक :- महंगाई 
महंगाई की ऐसी मार पड़ी। 
कि जनता सारी हो  बेहाल।। 
टूट गई अब सारी आशाएँ। 
महंगाई ने जब बिछाया जाल।। 
गरीबी नहीं है इस देश में। 
गरीबों को तो बनाती है ये सरकार।। 
महंगाई को बढ़ा-बढ़ा कर। 
कर दिया सबको बेरोजगार।। 
महंगा हो गया आटा चावल। 
महंगाई ने जब बिछाया जाल।। 
आलू टमाटर का मत पूछो भाव। 
लेकर खाली झोला वापस जाओ।। 
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर  

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

शीर्षक :- मनुष्य

शीर्षक :- मनुष्य 
मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव आते है। 
कभी सफल हो जाते है।। 
तो कभी असफल हो जाते है। 
यदि मनुष्य ले उद्देश्य को ले पहचान।। 
तो उसे है पाना आसान। 
और अपने काम को महान बनाना है आसान।। 
अपनी जिन्दगी में कोई फेल तो कोई है पास। 
मेहनत और लगन की आदत ही खास।। 
सपने देखना है आसान। 
लेकिन उसके बराबर मेहनत करना आसान।। 
मनुष्य के जीवन में उतार चढ़ाव आते है। 
कवि:- मुकेश कुमार 
कक्षा:- 11 
अपना घर  

रविवार, 16 सितंबर 2012

शीर्षक :-उम्मीद

शीर्षक :-उम्मीद  
खुद में एक उम्मीद लिए।
अपने में एक आस लिए।।
पंखो में आकाश लिए।
उड़ते चले गये हम।।
सहते हुए सभी गम।
अब गमो के पार चले हम।।
हमसे सब हार गये गम।
चलेंगे एक साथ जब।।
ये आकाश जायेगा थम।
उनको हमने हराया कुछ ऐसा।।
अब समय वापस न आएगा वैसा।
हम हो गए अब इसमें निपुण।।
आया हममें एक अच्छा गुण।
कवि:- सोनू कुमार 
कक्षा:- 11 
अपनाघर  

शनिवार, 15 सितंबर 2012

शीर्षक :- समस्या विश्व पर्यावरण की

शीर्षक :- समस्या विश्व पर्यावरण की ...................।
वर्तमान समय के इस दुनिया में। 
विकट एक समस्या आ गई।। 
विश्व पर्यावरण है वो समस्या। 
जो संक्रामक की तरह छा गई।। 
एक तरफ दौड़ती कार और मोटर गाड़ियाँ। 
और एक तरफ कटते पेड़ जंगल और झाड़ियाँ।। 
विश्व पर्यावरण दिवस सब मन रहे। 
और फैक्ट्रियों का पानी गंगा में बहा रहे है।। 
पर्यावरण समस्या है ये विश्व समस्या। 
इसका निदान नहीं हो सकता।। 
जब तक हम स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर।
इसके प्रति सचेत न हो जाएँ।। 
कवि :- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर 

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

चित्र:- बगुले को है इंतजार

चित्र:- बगुले को है इंतजार .................। 


नाम :- लवकुश कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर 

शीर्षक :- सपने

शीर्षक :- सपने
सपनों को साकार किये। 
आखों में एक आस  लिए।। 
वे आगे बढ़ते जाते है।
इच्छा अपने पास लिए।।
इच्छा बिना पूरी उनकी।
सब अधूरा सा लगता है।। 
जब तक न हो लक्ष्य तो। 
सब कूड़ा सा लगता है।। 
कवि:- सोनू कुमार 
कक्षा:- 11
अपना घर 

बुधवार, 12 सितंबर 2012

शीर्षक:- प्रथ्वी को बचाओ

शीर्षक:- प्रथ्वी को बचाओ 
चल रहा है चक्र। 
बदल रहा है युग।। 
मानव ने तो हद कर दिया है। 
प्रथ्वी को प्रदूषित कर दिया है।। 
मानव ने जंगलों को काट डाला। 
बहुत से जीव-जंतु को मार डाला।। 
अगर ऐसी ही तबाही मचेगी। 
तो प्रथ्वी भी नहीं बचेगी।। 
अभी भी हमारे पास मौका है।
प्रथ्वी को बचाने का।। 
और प्रथ्वी को फिर से।
हरा-भरा और सुन्दर बनाने का।। 
कवि :- ज्ञान कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर  

सोमवार, 10 सितंबर 2012

शीर्षक:- कुछ पल की बातें

शीर्षक:- कुछ पल की बातें 
हर पल एक बात। 
नयी शुरू होती है।। 
दो पल की बातें है। 
जो हर पल होती है।। 
शुरू में वे मीठी लगती है। 
घुल मिल जाने के बाद।। 
वही बात बुरी लगती है। 
हा-हा ही-ही की बातों में।। 
वही बात बुरी लग जाती है।
वही बात सभी से होती है।। 
जो मिलता उसी पर चर्चा होती है। 
जब भी होती चर्चा।। 
एक नयी बात जुडती है।
हर पल एक बात।। 
नयी शुरू होती है। 
कवि:- अशोक कुमार 
कक्षा:- 10 
अपना घर 

शनिवार, 8 सितंबर 2012

शीर्षक :- क्या वह आदमी है

शीर्षक :- क्या वह आदमी है 
क्या वह आदमी है।
उसके दो पैर है।। 
और दो हाथ है। 
क्या वह आदमी है।। 
हाथ में कटोरा है। 
और भीख मांग रहा है।। 
अपने पापी पेट के लिए। 
इस पेट से मजबूर है।। 
पेट की भूख से चूर-चूर है। 
क्या वह आदमी है।।
कवि:- मुकेश कुमार 
कक्षा:- 11
                                           अपना घर 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

शीर्षक:- बीती जिन्दगी

शीर्षक:- बीती जिन्दगी 
बीती हुई जिन्दगी के। 
कुछ पल हमें याद आते है।। 
याद उन्हें करके अब। 
हम बहुत पछताते है।। 
तब हम सोंचते है कि। 
काश! ये जिन्दगी इससे।।
आगे न बढ़ी होती। 
तो उस समय हमने।। 
ये कहानी न गढ़ी होती।
गढ़ी हुई कहानी के।। 
कुछ पैराग्राफ याद आते है। 
उस समय के कुछ दोस्त।। 
साथ है तो कुछ चले गए। 
जाते-जाते कुछ दोस्त।। 
हमें हैं कुछ दे जाते। 
उन्ही ग़ालिब दोस्तों की।। 
याद कर हम बहुत पछताते है। 
कवि :- सोंनू कुमार 
कक्षा :- 11 
अपना घर 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

शीर्षक :- लापरवाही

शीर्षक :- लापरवाही 
हर मोड़ मुकाम पर मिलते है राही। 
सडको पर अपनी मर्जी से, चलने में नहीं कोई लापरवाही।।
ठेके पर बैठकर पीने में, या चौपाल पर सही। 
पीकर एरोप्लेन चलाने में, नहीं कोई लापरवाही।।
बिना हेलमेट के गाड़ी चलाने में। 
ट्रैफिक पुलिस के रोकने में।। 
उनसे बचने के लिए घूंस देना सही। 
इसमें नहीं कोई लापरवाही।।
बच्चे हो या बूढ़े। 
अमीर हो या गरीब सही।। 
उनको गाली देने और सुनने में कोई ऐतराज नहीं। 
ये कविता जिसने लिखी याद नहीं।। 
कवि ने शीर्षक दिया ही नहीं। 
पर इसमें कवि की नहीं कोई लापरवाही।। 
कवि:- आशीष कुमार 
कक्षा:- 10 
अपना घर 

सोमवार, 3 सितंबर 2012

शीर्षक :- बचपन

शीर्षक :- बचपन 
याद आते वो बचपन के दिन।
न बीतता था समय खेले बिन।। 
वो मौजमस्ती और बीते वो पल।
याद आ जाते है आजकल।। 
वो कबड्डी और गुल्ली डंडा। 
दिन भर खेलना अपना था बस यही फंडा।। 
दोस्तों संग वो लुका छुपाई। 
कभी याद आ जाते है भाई।। 
खेल-खेल में समय गया कब बीत। 
समझ आई अब दुनिया की रीति।। 
दोस्तों में न करते थे भेदभाव। 
एक दुसरे के लिए था दिलों में घाव।। 
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर  

शनिवार, 1 सितंबर 2012

शीर्षक :- सपने में

शीर्षक :- सपने में 
सुबह के सुहाने मौसम में।
मैं निकल पड़ा अपने स्कूल।। 
आकाश की बदरिया छाने लगी। 
बुँदे बारिश के बरसाने लगी।। 
मै भागा तेजी से स्कूल।
अचानक में मुझसे हुई एक भूल।। 
मैं उल्टे पैर पहुंचा स्कूल। 
स्कूल से कर ली कुट्टी।। 
मैं सपने में मन रहा था छुट्टी। 
कवि:- चन्दन कुमार 
कक्षा:- 7 
अपना घर

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

चित्र:- फोटो

चित्र:- फोटो 


चित्रकार:- चन्दन कुमार 
कक्षा:- 7
अपना घर 

शीर्षक :- संसार में जीना

शीर्षक :- संसार में जीना 
सोंच समझ कर चलना।
मुसीबतों से बचकर निकलना।।
यह सिखाया जाता है।
सभी जगत के प्राणियों को।।
नहीं आता जिसको समझ में।
जिसे आता है मुसीबतों में पलना।।
वो सीख जाता है संसार में जीना।
कवि:- ज्ञान कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर 

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

शीर्षक :- पतंग

शीर्षक :- पतंग 
आकाश और गगन में। 
उड़े पतंग संग में।। 
मन चाहा घूमा करती। 
पक्षियों से बातें करती।। 
ठुमक-ठुमक कर नाचा करती। 
सभी के मन को भाती।। 
पतंग ये ऐसी उड़-उड़ जाती। 
मन चाहा ऊपर जाती।। 
मन चाहे तो नीचे आती। 
मन चाहा घूमा करती।। 
आकाश और गगन में। 
कवि:- हंसराज कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर 

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

शीर्षक :- पानी

शीर्षक :- पानी 
बरस रहा है पानी। 
अब हो रही है सभी को हानि।। 
भर रहा गलियों में पानी। 
अब घर से सभी को।। 
निकलने में हो रही है परेशानी। 
स्कूल जाने में भी हो रही है हैरानी।। 
क्योंकि रोड़ो पर भरा है। 
बरसात का ढेर सारा पानी।। 
कहीं धंस रहीं है रोड़े। 
कहीं मिल रहे बड़े-बड़े गड्डे।। 
बरस रहा है पानी। 
अब हो रही सभी को हैरानी।। 
कवि:- ज्ञान कुमार 
     कक्षा:- 9
अपना घर