शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

कविता: कौन है वो ...

"कौन है वो"

ओस की चमकती बूँद जैसी निर्मल
फूलों की पंखुड़ियों जैसी कोमल ।।
रंगीन तितलियों की वह सहेली  है
कभी वो लगती एकदम अकेली है
रेशम की नाजुक डोर सी लगती है
 सुबह की ठंढी हवा सी चलती है
खुश्बू की मद्धिम बयार सी बहती है
वो हर बातें अनकही सी कहती है।

कवि: देवराज, कक्षा 6th, अपना घर, कानपुर नगर

रविवार, 8 जनवरी 2017

कविता: आज़ाद

"आज़ाद" 
आज़ादी का तूफान उठ रहा है
सागर की तरह ये मचल रहा है
आज़ादी तो तूने दिलाई खुद को मिटाकर
खुशियां भी दिलों कि बेचीं गुलामी को मिटाकर
तब जाके तूने मौत को गले लगाया
हम सभी को आज़ादी दिलाया
कहते तो सभी है पर करते नहीं
करते वही है जो बुराई से डरते नहीं
ऐसा ही था यार अपना
कहते हैं वो था आज़ाद हमारा
कवि: विशाल कुमार, कक्षा 7th, अपना घर, कानपुर


शनिवार, 7 जनवरी 2017

कविता: इक्षा की राह

"इक्षा की राह" 
 
 इच्छा की राहों में, मैं चलना चाहा ।  
बारिस की बूंदे की, तरह बिखरना चाहा । ।  
इच्छा तो बहुत हुई, भगत सिंह बन जाऊ।  
राजगुरु की तरह, आंदोलन में कूद जाऊ । 
और कुच्छ न कर सकूँ, तो कम से कम ।  
नेहरू की तरह , राजगद्दी पर बैठ जाऊ ।
इच्छा के बल पर, बहुत चलना चाहा । 
कभी जमीं तो कभी, आसमां बनना चाहा  
इक्षा को संघर्ष और जज़्बो, कि जरुरत है ।
पर हर इक्षा न होती पूरी, ये हकीकत है । 

कवि: राजकुमार,कक्षा 7th,अपना घर, कानपुर 
 
     

कविता: ये काले काले बादल

"ये काले-काले बादल"

ये काले-काले बादल,मचलना चाहते है,
गरज गरज कर कुछ कहना चाहते  है । 
ये बादल शायद हमको बुलाते  है ,
बूंद के बौछार से ये मन बहलाते  है
दूर खड़े रहूँ तो मेरा मन ललचाता है,
अगर भीग जाऊ तो दिल बहल जाता है। 

कवि: देवराज, कक्षा 6th, अपना घर

कविता: ईद

"ईद"
आओ भाई सब ईद मनाएं ,
मिलकर हम खुशियां मनाएं
गले मिले आज कुछ इस तरह ,
कि हिन्दू-मुस्लिम को भूल जाएं । 
वर्षों से था जिसका इंतजार ,
वो आई है ईद कई महिनों बाद । 
आओ अब इंतजार ख़त्म करो,
सेवईयां खाकर ईद मिलन करो

कवि: नितीश कुमार, कक्षा 6th, कानपुर
बारिश 
ये सुनहरे बूंदे कह रही हैं ,
मौसम बड़ा मस्ताना है /
आयो मेरे साथ खेल कूद कर तुम्हे नहाना है ,
हर बूँद का मजा तुन्हें उठाना है /
पता नहीं हम कब चलें जाए ,
सूरज को ही फिर आना है /
हर बूँद के साथ तुम्हें नहाना है ,
फिर बताओगे वाह भाई मौसम मस्ताना है /
नाम = विक्रम कुमार

कक्षा 6th 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

बारिश 
डाकिया बन के जब मोर आया ,
पंख से अपने इशारे लाया /
इसका मतलब आसमान में, 
काले घना बादल छाया /
बच्चों का मन बहलाते, 
एक बूँद धरती पर आया 
घना बारिश को देख-देखकर /
मेरा मन यूं ललचाया 
तन पे पड़ी बूँदें टप टप /
फिर रोक न मुझको कोई पाया 
बारिश में उछल कूदके 
बच्चों ने आनंद उठाया /
नाम = देवराज 

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

तू कितना जरुरी है 


  तू कितना जरुरी है
तेरे बिन सम्मान अधूरी है । 
बदन ढका है तेरे सहारे 
तुछे पहनती दुनिया सारी 
तेरे बल पे भिखारी बन जाऊ 
तेरे बल पे आदर्श मैं पाऊ 
तुछे से बचती सबकी लाज 
तुझ से सजती सर पर ताज 
इसे समझना न तू बकरा 
ये त सिम्पल सा है कपडा । 



            नाम  =देवराज 
                 अपना घर 

बुधवार, 4 जनवरी 2017

तारे 
आसमान के तारे लगते प्यारे ,
बच्चों से है दूर तारे /
मन करता छू ले तारे ,
बिखरे हैं आसमान में तारे /
बच्चों को ललचाते तारे, 
रात में जगमगाते तारे /
सपने में मिलते तारे,
सुबह नहीं दिखते तारे /
नाम = नितीश कुमार 
सफलता 
उभरते-उभरते आसमान में पहुंचे ,
पर मंजिल बाकि है /
लड़खड़ाते -लड़खड़ाते खड़े हुए 
पर चलना बाकि है /
सरे सरहदों को पर करके 
हमीं बनानी है अपनी दुनियां /
क्योंकि अत्याचारी की नहीं है कमी यहाँ ,
अच्छाइयों के तरफ सिकनी है इस दुनियां को /
भगानी है बुराइयों को 
सफलता दिखानी है बच्चों को /

नाम =देवराज