शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

कविता: समझ में न आता

समझ में न आता

मुझे समझ में नहीं आती,
मेरे मन में एक बात...
बड़े बड़े आफिसर,
चलते फोर्स को लेकर...
फोर्स में मानव ही होते,
कोई जानवर नही होते...
अगर बीच में कभी युद्ध,
तो मानव ही मारे जाते...
आफिसर बैठ गाड़ी में,
आफिस को चले जाते...
दुख होता है,
इन अफसरों से.....
जो अपनी जान बचाकर,
चुपके से निकल जाते...
आम लोग ही मरते है,
वह अपने ख्यालो में है....
डूबे रहते है,
मुझे समझ में नही आती...



लेखक -अशोक कुमार, kksha 6, apna घर, 15/12/2009

कविता: तितली


तितली

जब -जब आती तितली प्यारीं
मन को भाती तितली प्यारी ॥
रंग -बिरंगी तितली प्यारी
फूलो से भी है सबसे न्यारी
फूलो पर मडराती है
यहा-वहा उड़ जाती है
हाथ में हमारे आती है
पख फैलाकर उड़ जाती है

लेखक: ज्ञान, कक्षा ६, अपना घर, १३/१२/२००९



सोमवार, 14 दिसंबर 2009

कविता हो गयी दिकत ख़त्म

हो गयी दिकत ख़त्म
आज के विज्ञान ने सब कुछ नापा है ,
आकाश को तक नहीं छोड़ा.....
सागर और धरती को पता नहीं,
उसने कैसे नापा है.....
छोटे -छोटे आणुओं से मिल कर,
न जाने कितने पदार्थ बनाया......
मानव उनका करता है उपयोग,
कभी न होता उनका सदुपयोग.......
जिससे बड़ी आसानी से होता कार्य,
कभी न होती उनमे दिकत.......
बड़े -बड़े आविष्कार हुए है,
जिनका बड़ा उपयोग हुआ है........
आज के विज्ञान ने सब कुछ नापा है,
आकाश को तक नहीं छोड़ा.......
लेखक अशोक कुमार कक्षा ७ अपना घर
क्या क्या मै बोउ
मेरे खेतो की मिट्टी है उपजाऊ ,
मै सोचू इसमे सब कुछ बोउ....
मन करता है गेहूं और मक्का बोउ,
जिसकी रोटी बनवा कर खाऊ......
मन करता है लगाऊ,
जिसमे में चावल की खीर खाऊ......
मन करता है गन्ना लगाऊ,
जिसमें गुड की भेली मै खाऊ.......
मन करता है सरसो बोउ ,
जिसे पिराकर तेल के पापड़ तल के खाऊ ......
मन करता है सब्जी बोउ,
जिन्हें बाजार में बेचने जाऊ.....
मन करता है फूल लगाऊ,
जिससे अच्छी सुगंध में पाऊ......
मन करता है बेर लगाऊ,
जिससे चूरन बनाकर खाऊ.....
खेती करने में लगती लागत,
साथ में लगती मानव की ताकत.......
मै चाहता सब कुच्छ बोउ,
पर इतने रूपये कहाँ से में लाऊ ....
मेरे खेती की मिट्टी है उपजाऊ,
मै सोचू सब कुछ बोउ......
लेखक कविता मुकेश कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपूर ,

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

कविता सुनो भाइयों और बहिनों

सुनो भाइयों और बहिनों
सुनो-सुनो भाई बहाना,
सावधान तुम रहना....
चोरो धोखे बाजों से सावधान रहना,
अपहरण से तुम बचना....
शहर में अकेले न घूमना,
कितने बच्चे किडनैप हो गये....
अपहरण करने वाले पकड़े गये,
मासूम बच्चों को मार डाला.....
न्यायलय में न कोई अपील करने वाला,
सुनो-सुनो सब भाई बहना.....
सावधान तुम रहना,
जिसका मासूम बच्चा मारा गया.....
उनसे रात में सोया न गया......
लेखक कविता मुकेश कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपुर

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

कविता: मैंने सोचा

मैंने सोचा

मैंने सोचा था कि खेत हो मेरे पास,
मेरे खेत की मिट्रटी अच्छी...
वह मिट्रटी बहुत उपजाऊ हो.
मै सोचा था कि इसमे क्या बोउं...
भइया बोले मिर्च लगाओ,
खेत मे मिर्च लग जाती..
और बैगन मे बैगन,
बैगन बोले मिर्च से...
साथ चलोगी क्या मेरे,
मिर्च बोली कहाँ चलोगे....
बैगन बोला जिसने बोया,
उसके घर में जायेंगे....
भइया नें बाजार दिखाया,
मोल भाव कर बेच देते....
मैंने सोचा था कि खेत हो मेरे पास.....

लेखक: जीतेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २४/११/२००९

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

कविता मन

मन
मन हमारा मन हमारा ,
कितना सुंदर मन हमारा....
मन इधर भी घूमता,
मन उधर भी घूमता....
मन चाहे जिधर भी घूमता,
मन अच्छे बातों में रहता....
मन गन्दी बातों में रहता,
मन चाहे जो करता....
मन अपने काबू में नही रहता,
मन जबाबो को देता....
मन हमारा मन हमारा,
कितना सुंदर मन हमारा....
लेखक कविता लवकुश कक्षा ६ अपना घर कानपुर
नीम बड़ी उपयोगी है

नीम बड़ी उपयोगी है,
औषधि के काम आती है...
बड़े बड़े फर्नीचर बनते,
कीड़े उसमें कभी लगते....
मानव सुबह उठता है,
दातून उसी से करता है....
फ़िर अपना कार्य करता है,
नीम बड़ी उपयोगी है....
औषधि के काम आती है,


लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २५/११/२००९