सोमवार, 30 दिसंबर 2019

कविता : बरसात

" बरसात "

बरसात के दिन आए,
नहाने में मज़ा आए | 
ये बड़ी - बड़ी बूँदें,
जब भी धरती पर कूदें | 
बरसात के दिन आए 
छतरी न खोल बरसात 
भीगने को मन ललचाए | 
नहाले इस बरसात में  
भीगा ये मैदान इस जहाँ में | 
कहाँ खेले बच्चे बेचारे,
बरसात के दिन आए 

कवि परिचय : यह कविता कामता के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक "बरसात" है | कामता को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और हर विषय पर कविता लिख सकते हैं | इस कविता में कामता ने बरसात की विशेषताएँ बताई है | कामता एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं |

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

कविता : ठण्ड के कोहरे

" ठण्ड के कोहरे "
ये कोहरे भी कितने अजीब, 
जो देख नहीं सकते दूर दूर तक | 
भरी है कोहरे और प्रदूषण की चीज़,
जो हमेशा हर लोगों के लिए हो रही है | 
कठिन भरी जिंदगी तनाव की अजीज, 
कुछ करने के लिए हो रही है | 
कठिनाइयों से भरपूर,
ये ठण्डी और कोहरे है अजीब | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी है जो की बिहार के रहने वाले हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | अभी तक विक्रम ने बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | इस कविता का शीर्षक " ठण्ड के कोहरे " हैं | 

शनिवार, 14 दिसंबर 2019

कविता : नदी

" नदी "

नदियाँ कैसे बहती हैं,
न कभी ये थकती हैं | 
न ही ये कभी आराम करती हैं | 
नदियाँ अपने रस्ते को छोड़ देती है | 
लेकिन दूसरा बनाकर, 
अपनी मंजिल को छूती है | 
मैं भी नदियों की तरह,
बहना चाहता हूँ | 
हर एक रास्ते से मंजिल,
तक पहुंचना चाहते हैं |  

                                                                                             कवि : महेश कुमार , कक्षा : 5th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता महेश के द्वारा लिखी गई है जिसमें एक नदी की प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया है | महेश को कविता लिखना बहुत अच्छा लगता है | इस कविता का शीर्षक " नदी " है | हमें भी एक नदी की तरह बहना चाहिए | जितनी भी बाधाएं हो उन बाधाओं का सामना करना चाहिए | 

रविवार, 8 दिसंबर 2019

कविता : पानी

" पानी " 

पानी है तो मेरा जीवन, 
अगर पानी न होता तो हम नहीं | 
पानी रहे साफ तो मैं भी साफ, 
पानी नहीं तो कोई नहीं माफ़ | 
पानी है तो जीवन है, 
पानी है तो कल की सुबह है | 
 सुधर जाओ तुम तुम सभी, 
वरना पाओगे पानी न कभी | 
पानी की करो अभी से बचत, 
हाथ मलते रह जाओगे जब होगी खपत | 

कवि : बिट्टू कुमार , कक्षा : 3rd , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता बिट्टू के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | यह बिट्टू की पहली कविता है जिसको बहुत ही मन से लिखी है | इस कविता का शीर्षक " पानी " है | बिट्टू कवितायेँ लिखने के अलावा स्केटिंग भी चलाता है |

कविता : फूल जो कुछ कहना चाहती है

" फूल जो कुछ कहना चाहती है "

हवाओं में हिलती हुई,
वह फूल जो कुछ कहना चाहती है |
अपनी सजी हुई टहनियाँ लेकर,
हवाओं के साथ खेलना चाहती है |
खुशबू से तन को महकाना चाहती हैं |
आस पास पेड़ -पौधे से कहकर,
अपनी खुशबू से मन को |
यूँ ही बहलाना चाहती है |
यह फूल के पौधे
हवाओं से खेलना चाहती हैं | 

कवि : सुल्तान कुमार  , कक्षा : 5th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | इस कविता का शीर्षक " फूल जो कुछ कहना चाहती है " है | सुल्तान कवितायेँ बहुत अच्छी लिखतेहैं | सुल्तान पढ़ाई के प्रति बहुत ही गंभीर रहते हैं |


शनिवार, 7 दिसंबर 2019

कविता : गाना

" गाना "

जब मेरा गाना गाने  मन  करता है,
बस डर उसी में खो जाने का रहता है |
मैं खूब गाउँ ये मेरा दिल कहता है,
बस डर इस आग में जल जाने का रहता है |
बिना जले गाते रहना ये दिल कहता है,
कितनी भी हो दिक्कत सह लेने को कहता है |
आज मेरा गाना गाने का करता है,
बस डर  उसी में खो जाने का रहता है |

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर ने यह कविता एक गाने पर लिखी है | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है अपनी कविताओं से औरों को भी प्रभावित करते हैं |

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

कविता : लोग

" लोग "

कैसे हैं लोग,
क्या है लोग | 
क्यों हैं लोग,
मेरे कभी समझ में न आया | 
सबसे पूछा तो सबने,
जवाब कुछ इस प्रकार दिया | 
लोग तो पागल है,
लोग लचार है | 
लोग बेकार हैं,
और कुछ बोलते है  | 
लोग ही भगवन है, 
फिर मैंने मुस्कुराया | 
और दिल को सहलाया, 
और शांत जगह बैठकर | 
ये समझाया, 
लोग समझना बेकार पहले खुद को समझो | 
क्योंकि तुम ही एक बड़ा संसार है | 

नाम : देवराज कुमार ,  कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी  की बिहार के रहने वाले हैं और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | देवराज को कवितायेँ लिखने    | देवराज विज्ञानं में बहुत रूचि रखते हैं साथ ही साथ विज्ञानं से जुड़े प्रयोग भी करते हैं | 

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

कविता : खुले आसमान में छत नहीं है

"  खुले आसमान में छत नहीं है "

मैं उस परिवार के बारे में सोचता हूँ 
जिसके पास खाने को कुछ नहीं है | 
खुले आसमान में छत नहीं है,
तड़पकर जिन्दगी जीने में ख़ुशी नहीं है | 
फिर भी जिंदगी जीने की खुशियां है,
लेकिन वे पैसे से कमज़ोर हैं | 
चार वक्त का खाना मिलना मुश्किल है,
पर वे जिंदगी की चुनौतियों को टक्कर देते हैं | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | विक्रम कविताओं का शीर्षक समाज को ध्यान में रख कर रखता हैं | विक्रम पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं |