शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

चित्र:- फोटो

चित्र:- फोटो 


चित्रकार:- चन्दन कुमार 
कक्षा:- 7
अपना घर 

शीर्षक :- संसार में जीना

शीर्षक :- संसार में जीना 
सोंच समझ कर चलना।
मुसीबतों से बचकर निकलना।।
यह सिखाया जाता है।
सभी जगत के प्राणियों को।।
नहीं आता जिसको समझ में।
जिसे आता है मुसीबतों में पलना।।
वो सीख जाता है संसार में जीना।
कवि:- ज्ञान कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर 

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

शीर्षक :- पतंग

शीर्षक :- पतंग 
आकाश और गगन में। 
उड़े पतंग संग में।। 
मन चाहा घूमा करती। 
पक्षियों से बातें करती।। 
ठुमक-ठुमक कर नाचा करती। 
सभी के मन को भाती।। 
पतंग ये ऐसी उड़-उड़ जाती। 
मन चाहा ऊपर जाती।। 
मन चाहे तो नीचे आती। 
मन चाहा घूमा करती।। 
आकाश और गगन में। 
कवि:- हंसराज कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर 

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

शीर्षक :- पानी

शीर्षक :- पानी 
बरस रहा है पानी। 
अब हो रही है सभी को हानि।। 
भर रहा गलियों में पानी। 
अब घर से सभी को।। 
निकलने में हो रही है परेशानी। 
स्कूल जाने में भी हो रही है हैरानी।। 
क्योंकि रोड़ो पर भरा है। 
बरसात का ढेर सारा पानी।। 
कहीं धंस रहीं है रोड़े। 
कहीं मिल रहे बड़े-बड़े गड्डे।। 
बरस रहा है पानी। 
अब हो रही सभी को हैरानी।। 
कवि:- ज्ञान कुमार 
     कक्षा:- 9
अपना घर

सोमवार, 27 अगस्त 2012

शीर्षक :- मोबाइल गीत

शीर्षक :- मोबाइल गीत 
ले मोबाइल चल पड़े है...
लोग मेरे साथ के,
रात दिन संलग्न रहते है....
लोग मेरे गाँव के,
अब इन्टरनेट भी....
लगवा रहें है,
ये सोंचकर कब तलक....
मेमोरी लोड करवाएंगे,
लोग मेरे साथ के....
ले मोबाइल चल पड़े है,
लोग मेरे साथ के....
बिगड़ रहा है पर्यावरण,
यह नहीं दिखता है इनको....
एस0 एम0 एस0 और फेसबुक में,
व्यस्त रहते है देर रात तक....
लोग मेरे साथ के,
ले मोबाइल चल पड़े है....
लोग मेरे साथ के,
कवि:- किशन व्यास 
अपना घर

रविवार, 26 अगस्त 2012

शीर्षक :- मेरा मन

शीर्षक :- मेरा मन कहाँ 
जाने कहाँ को चलता है ये मन....
जाने क्यों मचलता है ये मन,
जिधर भी चलता है ये मन....
उधर ही चल पड़ता है ये तन,
मन सोचंता है कि....
बिन पढ़े सफलता मिल जाये,
और स्कूल में सबसे ज्यादा....
मेरे ही नंबर आये,
इसी प्रकार के हजारों विचार....
हमारे मन में है आते,
इन्ही हजारों विचारों में....
हमारे सब विचार खो जाते,
मन के इन्ही विचारों से....
मिलती है मन को संतुष्टी,
धीरे-धीरे मेहनत करके....
होती इन विचारों की पुष्टि,
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर

शनिवार, 25 अगस्त 2012

शीर्षक:- बाग बगीचे और खेत

शीर्षक:- बाग बगीचे और खेत 
अगर न होते बाग-बगीचे....
और न होते खेत,
कहाँ से आता सब्जी गेहूं....
कैसे भरता पेट,
इसलिए किसान उगाता....
सब्जी गेंहू धान,
इन्ही को खाकर पेट....
करता है आराम,
तभी तो मिलती है ऊर्जा....
जिससे शरीर है करता रहता काम,
अगर न होते बाग-बगीचे....
और न होते  खेत,
कवि:- जितेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर 

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

शीर्षक :- समंदर

शीर्षक :- समंदर 
यह संसार एक समंदर है....
जिसमें जिन्दगी यूँ तैरती है,
न कभी ठहरती है, बस यूँ तैरती है....
यह संसार एक समंदर है,
इस समंदर में सभी तैरते है....
अपनी मंजिल को ढूंढ़ते है,
मंजिल नहीं  मिलती है तो....
बस अपने से गरीबों को लूटते है,
यह संसार एक समंदर है....
कोई भूखे तैर रहा है तो,
कोई पेट भर कर तैयार रहा हूँ....
कवि:- सागर कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर  

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

शीर्षक :- आजादी

शीर्षक :- आजादी 
हमें इंतजार है उस आजादी का....
जब हम आजाद होंगे,
न खून बहेगा न हम लड़ेंगे....
हम तो आजादी चाहते है,
जिसमें ये भेदभाव जति-पाति....
का हो जाये अंत,
हमें चाहिए एक ऐसा....
आजादी युक्त रत्न,
जब राह चलते किसी को....
डर न हो,
जब इस भारत का कोई....
नागरिक बेघर न हो,
न हिन्दू न ईसाई....
भारत वासी भाई-भाई,
न मुस्लिम न सिख....
याद रखेंगे हर तारीख,
तब शायद हम होंगे आजाद.... 
जब धर्म पर न हो दंगा फसाद,
हमें इंतजार है उस आजादी का....
जब हम आजाद होंगे,
न खून बहेगा न हम लड़ेंगे....
कवि:- सोनू कुमार 
कक्षा:- 11 
अपना घर  

बुधवार, 22 अगस्त 2012

शीर्षक :- एक प्रभात

शीर्षक :- एक प्रभात 
प्रभात होते ही रवि किरणे हम देखते है....
शीतल मंद एवं सुगन्धित हवा हम लेते  है,
इससे ठीक रहता है हमारा स्वास्थ....
मेरे मन की है जिज्ञासा,
हवा न हो तो क्या होगा?.... 
जीवन क्या संभव होगा?,
थोडी ही देर  मे....
फेफड़ा फूलने लगेगा,
इससे हमें यह चलता है पता....
जीवन के लिए आवश्यक है हवा,
कवि:- चन्दन कुमार
कक्षा:- 7 
अपना घर

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

शीर्षक :- कैसे सूरज उगता है

शीर्षक :- कैसे सूरज उगता है 
पूरब का दरवाजा खोला....
धीरे-धीरे सूरज उगता,
नारंगी रंग का दिखता है....
ऐसे सूरज उगता है,
सारी चिड़ियाँ गाती है....
खिलती कलियाँ सारी है,
दिन भर सीडी चढ़ता है....
जैसे सूरज बढ़ता है,
लगते है सभी कामों में मन....
आलस में न रहता तन,
धरती गगन धमकता है....
सूरज जैसे चमकाता है,
गर्मी कम हो जाती है....
धूप थकी सी जाती है,
सूरज आगे चलता है....
जैसे सूरज ढलता है,
कवि:- जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर

सोमवार, 20 अगस्त 2012

शीर्षक :- हमें दुःख है अपनी आँख से

शीर्षक :- हमें दुःख है अपनी आँख से 
हमें बड़ा दुःख है....
अपनी आँख से,
आँख से आँख से....
इसकी चाहत से,
इसकी कुदरती चाल से....
लोग बड़े परेशान है,
आँख से आँख से....
क्या-क्या नहीं होता,
आँख से आँख से....
क्या सोंचा है आपने?,
अपनी आँख से....
बड़े नज़ारे देखे है,
आपने आपने....
अपनी आँख से,
आँख से आँख से....
हमें बड़ा दुख है,
अपनी आँख से.... 
आँख से आँख से,
कवि:- अशोक कुमार 
कक्षा:-10
अपना घर 

रविवार, 19 अगस्त 2012

शीर्षक :- धरती

शीर्षक :- धरती 
धरती की है अपनी काया....
धरती की है अपनी माया,
कभी पानी बरसाती है....
कभी पानी को तरसती है,
ये सब है धरती की माया....
धरती प्रकृति को हरा भरा रखती है,
प्रकृति संग धरती....
गंगा में अमृत भरती है,
सर्दियों में कड़कड़ाहट लाती है....
हमें मजा चखाती है,
ये सब धरती की माया है....
इसे बदल नहीं सकता कोई,
धरती से जो टकराएगा....
वह चूर-चूर हो जायेगा,
धरती की तो बात निराली है....
धरती है जो इतनी शक्तिशाली,
धरती की है अपनी काया....
धरती की है अपनी माया,
कवि :- मुकेश कुमार 
कक्षा :- 11 
अपना घर 

शनिवार, 18 अगस्त 2012

शीर्षक :- मेरा बचपन

शीर्षक :- मेरा  बचपन 
कहाँ गया वो मेरा बचपन....
छोटी सी इस दुनिया में,
जाने कहाँ खो गया वो बचपन....
मेरा बचपन बस अब एक,
याद बनकर ही रह गया....
सोंचता हूँ काश! वापस लौट आये,
मेरा वो प्यारा बचपन....
बचपन है एक ऐसा पल,
न होती इसकी सुबह, न आता कल....
याद आते हैं अब वो पल,
सोंचता हूँ कि काश!....
वहीँ ठहर जाता वो बचपन,
वो बारिश का पानी वो सावन के झूले....
वो पल भुलाये न भूले,
पीपल की वो छाँव....
कागज की वो नाव,
याद आता अपना गाँव....
पता नहीं कहाँ गया वो मेरा बचपन,  
अब एक याद बनकर ही रह गया....
कवि :- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर 

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

शीर्षक :- नहीं है आजादी

शीर्षक :- नहीं है आजादी
अभी नहीं है अपने देश में आजादी....
क्योंकि भूखी है अभी आधी आबादी,
कहते है भारत देश अपना महान है....
लेकिन भूख से लोंगो की जा रही जाने है,
देखो यहाँ की शासन व्यवस्था....
हो रही है इसकी हालत खस्ता,
अभी नहीं है अपने देश में आजादी....
क्योंकि भूखी है अभी आधी आबादी,
कवि :- ज्ञान कुमार 
कक्षा :- 9 
अपना घर  

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

शीर्षक :- बस सोंचता हूँ

शीर्षक :- बस सोंचता हूँ 
बस कापी पेन लेकर बैठा हूँ....
कुछ लिखने के लिए सोंचता हूँ,
क्या लिखूं समझ में नहीं आता....
बस यूँही कापी पर पेन चलाता हूँ,
बस कापी पेन लेकर बैठा हूँ....
सोंचता हूँ, समझता हूँ,
और आजाद भारत को देखता हूँ....
कैसे हम फिर गुलामी को प्राप्त करते जा रहें हैं,
और हर साल आजादी मनातें आ रहें हैं....
बस कापी पेन लेकर बैठा हूँ,
कवि :-सागर कुमार 
कक्षा :- 9
अपना घर 

बुधवार, 15 अगस्त 2012

शीर्षक :- देखिये तब कहिये

शीर्षक :- देखिये तब कहिये
विद्यालय में जा कर देखिये....
शिक्षा न, मिले तो कहिये,
अच्छे गुण वाले व्यक्ति के साथ रह के तो देखिये....
आप के अन्दर अच्छे गुण न, आ  जाये तो कहिये,
भूमि पर पेड़-पौधे लगा कर तो देखिये....
हरियाली न, आ जाये तो कहिये,
कोई अपराध करके तो देखिये....
कार्यवाही न, हो जाये तो कहिये,
जनता का पैसा खाकर तो देखिये....
आर0 टी0 आई0 आवेदन न, लग जाये तो कहिये,
आवेदन का उत्तर न देने पर....
देश में क्रांति न, हो जाये तो कहिये,
कवि लवकुश कुमार
   कक्षा 9
अपनाघर

सोमवार, 13 अगस्त 2012

शीर्षक :- कब तक याद रखेगा

शीर्षक :- कब तक याद रखेगा 
कब तक याद रखेगा....
तेरा ये गाना वो ज़माना,
कभी तो आएगा अपना गाना....
जो गायेगा ये जमाना,
हिंसा मुक्त जहाँ मजदूरी हो....
सबको बोलने की आजादी हो,
न बीजा हो न बाडर हो....
सब को जाने की आजादी हो,
पी0 एम0 हो डी0 एम0 हो....
न कोट बूट न सूट हो,
तन में खादी कुर्ता हो....
न नेता अफसर गुंडा हो,
न स्विज बैंक में पैसा हो....
जितना भी हो कार्य देश में,
उसका विवरण हो जनता के हाथ में....
न छोटा कोई न बड़ा हो नाम में,
सबको बराबर अधिकार हो....
कब तक याद रखेगा,
तेरा ये गाना वो जमाना....
कवि :-अशोक कुमार
कक्षा :-10 
अपनाघर

रविवार, 12 अगस्त 2012

शीर्षक :- कैसी ये जिन्दगी है

शीर्षक :- कैसी ये जिन्दगी है 
कैसी ये जिन्दगी है.... 
कुछ समझ में नहीं आता, 
रात दिन सुबह शाम.... 
सिर्फ पेट ही सबको भाता, 
सोचता हूँ कुछ पल.... 
दूसरों के  लिए जी लूं, 
पर ये पेट है जो मेरा पीछा नही छोड़ता.... 
और कहता पहले खुद के लिए जियो, 
फिर दूसरों के लिए जीना.... 
कैसी ये जिन्दगी है, 
कुछ समझ में नहींआता.... 
कवि : सागर कुमार 
कक्षा : 9 
अपनाघर 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

शीर्षक:- प्रकृति

शीर्षक:- प्रकृति
प्रकृति को इस वक्त....
जो दिया जा रहा धोखा,
एक दिन जरुर आएगा....
प्रकृति का दिया हुआ झोका,
जिसमें होगा सब कुछ....
मर मिटने को तैयार,
इसीलिए तो मैं कहता हूँ....
इतने अत्याचारी न बनो यार,
प्रकृति को जब अपना....
खुमार आ जायेगा,
तो इन हत्यारों को....
बुखार आ जायेगा,
उस खुमार की आंधी में....
जब सब कुछ उठ जायेगा,
तब किसी कोने में बैठ....
वही हत्यारा चिल्लाएगा,
तब जो भी उस वक्त....
रोता हुआ पाया जायेगा,
तो शायद वह केवल गीत गायेगा....
मैं तो चाहता हूँ की तुम,
अभी से गीत गाते रहो....
प्रथ्वी यूँ ही सुख चैन से चलाते रहो,
उस समय जो भी....
गुमसुम सा जायेगा पाया,
उसके द्वारा यही....
गीत जायेगा गुनगुनाया,
इन खुबसूरत फूलों से....
सजी इस धरती को मत उजाड़ो,
इस न्यारी सी धरती को....
कवि :- सोनू कुमार
कक्षा :- 11
अपनाघर

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

शीर्षक :- बात

शीर्षक :- बात 
बात की भी क्या बात है....
बातों से भी बड़ी बात है,
बात का बड़ा प्रभाव है....
बात से भी होता घाव है....
किसी बात पर आता है गुस्सा ,
तो किसी बात पर आता हँसना....
बड़ा ही कठिन है भाई,
बात के इस अर्थ को समझना....
सिर्फ एक ही बात से हुई,
इस महाभारत की रचना....
पता नहीं कौन सी बात, किसको बुरी लग जाये,
भाई मुंह की इस बात से बचना....
बात के है बहुत प्रकार,
छोटी बात, बड़ी बात, मीठी बात, कडवी बात....
इन बातों ही बातों में तो हो जाती है घूंसा लात,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपनाघर

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

शीर्षक :- आसमान

शीर्षक :- आसमान 
आसमान क्यों नीला-नीला....
आम क्यों हैपीले-पीले,
बादल क्यों है काले-काले....
क्या हमने कभी ये सोंचा है,
क्या हमने कभी ये जाना है....
रूप को पहचाना है,
आखिर इनमे क्या है खास....
ये बात मुझे नहीं आ रही रास,
उनके विषय में जानना एक कला है....
उनको पहचानना एक राज है,
आसमान क्यों नीला-नीला....
हरा भरा और रसीला,
कवि मुकेश :कुमार 
कक्षा : 11 
अपनाघर 

बुधवार, 8 अगस्त 2012

शीर्षक :- कदम

शीर्षक :- कदम 
इन छोटे-छोटे हाथों को....
ऊपर उठने की आजादी दो,
बंध कर धागों में....
उन पतंगों को उड़ने दो,
इन छोटे-छोटे पैरों को....
कब चलने की आजादी दो,
अब समय आ गया इनका भी....
अब ये कुछ भी करेंगे,
रुक-रुक कर जो इनके....
नन्हे-नन्हे कदम आगे बढ़ेंगे,
इनके कदमों के बढ़ने से....
यदि ये हो गए सफल,
क्योंकि ये इन्साफ की....
डगर पर, जो रहे है चल,
चल पड़े है तो अब....
ये  नहीं रुकने वाले,
क्योंकि इनके कदम है....
संभल-संभल कर आगे बढ़ने वाले,
आंधी में भी ये....
तूफान की तरह बढ़ रहे है,
इनको तो अब देख-देख....
घूंसखोर भी अब डर रहे है,
चल पड़े है तो अब....
ये नहीं रुकने वाले,
क्योंकि इनके कदम संभल-संभल....
कर आगे बढ़ने वाले,
कवि : सोनू कुमार 
कक्षा : 11 
अपनाघर

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

शीर्षक :- दिन ने कहा

शीर्षक :- दिन ने कहा 
दिन ने दिनकर से कहा....
दिनकर हो तुम बड़े महान,
सुबह होते ही....
तुम मेरी गोद में,
कर देते हो उजाला....
और हो जाता है,
सभी प्राणियों का बसेरा....
तब दिनकर ने कहा,
मैं नहीं इतना महान....
मुझसे भी है कुछ और,
जो फैले चारों ओर....
कवि : ज्ञान कुमार
कक्षा : 9 
अपना घर 

सोमवार, 6 अगस्त 2012

शीर्षक :- दुःख सुख

शीर्षक :- दुःख सुख 
दुःख तेरे हम दर्द है....
सुख तेरे दर्द है,
ये किस्मत का खेल है....
ये तेरे कर्म है,
जो तेरे साथ है....
दुःख सुख का खेल है,
सारे जग मे दोनों का मेल है....
खेलते ये सब खेल मिलके,
हर के लिए शुरू होता है खेल....
जो आता इस जग में,
उससे होता है इसका मेल....
सुख दुःख को वे क्या जाने,
जो यूरो-डालर कमाते है....
दुःख सुख तो उनसे पूछो,
जो कड़ी धूप में फसलें रोपा करते है....
दुःख तेरे हम दर्द है,
सुख तेरे दर्द है....
ये किस्मत का नहीं,
ये तेरे कर्म है....
जो तेरे साथ,
कवि :अशोक कुमार 
कक्षा :10 
अपनाघर 

रविवार, 5 अगस्त 2012

शीर्षक :- ये सब सपने में

शीर्षक :- ये सब सपने में 
तपती धरा उबलता रवि....
प्रकृति पर लिखता है कवि,
ये क्या संसार है.... 
सबको अपने जीवन से प्यार है,
ये संसार हमारा है....
संसार में जो आता है,
वह जरुर ऊपर जाता है....
ये कवि का कहना है,
कवि रवि से कहता है....
तू क्यों ? अकेला रहता है,
तुमसे दुश्मन डरता है....
या दोस्ती नहीं करना चहता है,
तू रवि...................
तुझसे कवि कहता है,
प्राणी मानवों को इतनी रोशनी देता है....
उदास क्यों रहता है,
तुम्हे ठंडी में लोग देखने को तरसे है....
गर्मी में क्यों आग बरसते हो,
मैं हूँ एक मात्र कवि....
तुम दोस्ती करोगे रवि,
इतने में घनघोर गगन छाया....
मैं निकल पड़ा अपने आगन में,
मैंने खूब की बरसात में मस्ती....
देखते ही देखते डूब गई पूरी बस्ती,
कवि ने रवि को आवाज लगाई....
तू क्यों सुन नहीं रहा भाई,
लगता मुझसे डर गया भाई....
ये तो थी कवि की रचना,
सोया जो रात में, देख रहा सपना....
कवि : चन्दन कुमार
कक्षा : 7 
अपना घर  

बुधवार, 1 अगस्त 2012

कहानी :- लालची महापुरुष

कहानी :-  लालची महापुरुष 
आप सभी लोंगो ने बहुत सी कहानियां पढ़ी होंगी और सुनी भी होंगी हो सकता है। कि आप ने लिखा भी हो, आज मै आपको जिस कहानी से परिचित कराने जा रहा हूँ। वह वाकई में सुनने और सुनाने लायक है।
         भयानक घना जंगल था। और उस जंगल में से अजीब-अजीब सी चीखें और डरावनी आवाजें सुनाई दे रही थी। जंगल इतना घना था, कि धोखे से यदि एक पक्षी भी किसी झाड़ी में फंस जाये तो उसे निकलने में काफी वक्त लग जायेगा। आखिर उस जंगल में घुसने की चेष्टा कौन करेगा। आइये आगे बढ़ते है, कि आगे क्या हुआ ? यह जो जंगल था, उस जंगल तह पहुँचने के लिए सर्वप्रथम पहाड़ों पर चढ़ना और उन पहाड़ों को पार कर कटीली झाडियों से चौड़ी नदी पड़ती थी। जो भी उस नदी के किनारे पहुँच जाता था। तो उस नदी को पार करने के लिए बहुत देर तक इंतजार करना पड़ता था। क्योंकि उस नदी में केवल एक ही नाव चलती थी, वो भी मुफ्त में बिना पैसे लिए वह नाव ही किसी भी व्यक्ति को उस पार ले जाने और इस पार लाने के लिए उपलब्ध थी। लेकिन एक शर्त थी जो भी उस नाव में बैठता नाव चलाने वाला उससे प्रश्न करता था। यदि सही जवाब होता तो नाव नदी में डूब जाती थी। इस तरह से बहुत से व्यक्ति गए और जंगल में पहुँचने से पहले ही नदी में डूब कर मर गए। मैं आप लोगों को यह बताना भूल ही गया कि आखिरकार उस जंगल में लोग जाते ही क्यों थे ? वो इस लिए की उस जंगल में जो भी एक बार यदि धोखे से भी पहुँच जाये। तो उसका भला ही भला होता था। वैसे तो वहां पर पहुँचाना ही मुश्किल था। पर  कुछ भी हो एक पढ़े लिखे व्यक्ति ने दिमाग लगाया। एक न बोलने वाले( गूंगा ) को पढ़ा-लिखा कर उस जंगल में भेजा। जिससे नाविक उससे कोई भी प्रश्न पूछे तो वह जवाब ही न दे पाए क्योंकि वह तो  गूंगा था। इस तरह  से उस होशियार व्यक्ति ने उस गूंगे को लेकर नदी के तट तक किसी तरह से पहुँच गया। और उसने गूंगे को बैठा दिया। गूंगा बैठ गया लेकिन नाव आगे ही नहीं बढ़ रही थी। क्योंकि शर्त यह थी, कि नदी के पास जितने भी व्यक्ति होंगे वह सभी एक साथ ही एक बार में जायेंगे और एक बार जो बैठ गया तो उसका उतरना तभी संभव है। जब तक कि वह एक बार नदी पार कर जंगल में घूमकर वापस न आए अत: उन होशियार महापुरुष को भी बैठना पड़ा। जब नाव बीच में पहुँचने ही वाली थी। कि तभी उस नाविक नें एक प्रश्न पूछा ? एक ही प्रश्न अभी से पूछा जाता था। और उसमे शर्त यह थी कि जो पहले नाव में बैठेगा वही जवाब देगा अब वह जवाब कैसे देता ? क्योंकि वह तो गूंगा था। अत: इस प्रकार से वह दोनों नदी को पार कर उस घने जंगल में पहुँच ही गए। जंगल में प्रवेश करते ही उनको अचानक अचंभा हुआ। आज तक उन लोगों ने इतना घना जंगल कभी नहीं देखा था खैर छोडिये इन बातों में क्या रखा है। जंगल में पाई जाने वाली शक्ति( रहस्य ) के अनुसार वह दोनों बदल गए गूंगा बोलने लगा और दिमाग से भी तेज हो गया। होशियार महापुरुष तो इतने ज्ञाता हो गये कि कुछ कह ही नहीं सकते अंत में जब वह दोनों वापस नाव में बैठकर वापस हो रहे थे। तब नाविक ने पुन: वही प्रश्न किया। इस बार अचानक से गूंगे ने जवाब दे दिया क्योंकि जंगल की शक्तियों के अनुसार अब वह बोलने लगा था।  अत: गूंगे के जवाब देते ही नाव डगमगाने लगी। और नाव अब डूब रही थी अंत में नाव डूब ही गई। और वह दोनों बचते-बचते मारे गए वाकई में हमें इतना लालच नहीं न करना चाहिए कि हमें अपनी जान तक कि परवाह न हो। 
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें "लालच नहीं" करना चाहिए  

लेखक : आशीष कुमार , कक्षा : 10 , "अपना घर" 

शीर्षक :- ओलम्पिक

शीर्षक :- ओलम्पिक 
शुरू हुआ अब ओलम्पिक का खेल....
आ गए सब दूर देशों के खिलाडी,
हुआ कम्पटीशन निशानेबाजी का....
पड़ गया चीन का पलड़ा भारी,
चार साल के बाद शुरू होता है खेल....
खिलाडी करते है खूब मेहनत,
जीत-जीत स्वर्ण पदक ये....
बटोरते है खूब शोहरत,
एक बार जो चूक गये....
करना पड़ता है लम्बा इंतजार,
चार साल की ये मेहनत....
हो जाती है बेकार,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर