गुरुवार, 30 जून 2011

कविता -ख़त्म हुई छुट्टिया

ख़त्म हुई छुट्टिया
 गर्मी की छुट्टियाँ हुई ख़त्म,
 अब तो रोज जाना हैं स्कूल ....
 छुट्टियों में की हैं जो मस्ती ,
 अब बच्चो उसको जाओ भूल.....
 अब तो रोज जाना हैं स्कूल ,
 पढना- लिखना और मार खाना .....
 नई कक्षा में हैं हम सब को जाना ,
 नई -नई कांपियां और किताबे पाना.....
 रात-दिन हैं अब तो जागना ,
 देर से उठे तो जल्दी स्कूल को भागना ......
अब तो करना होगा खूब पढाई ,
 मस्ती तो ख़त्म हुई अब मेरे भाई....
 लेखक - धर्मेन्द्र कुमार 
 कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 29 जून 2011

कविता : संसार

 संसार 

इस परिवर्तनशील संसार में ,
बढ़ रही है मनुष्यों की आबादी ....
जिससे पर्यावरण व प्रकृति में ,
हो रही है हर वस्तु की बर्बादी ....
मानव है इससे परिभाषित ,
फिर भी करता इसको प्रदूषित ...
पर्यावरण बचाना नहीं है इतना आसान ,
यदि बच जाए तो जग हो जाए महान ....


लेखक : सागर कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 

मंगलवार, 28 जून 2011

कविता : हौसलों से होती उड़ान

हौसलों से होती उड़ान....
पंख है मेरे फिर भी न मैं उड़ पाता,
किसी तरह हर राह आसान बनाता ....
पंख हैं मेरे सुलझे-सुलझे ,
काँटों में हम हैं उलझे ....
नयी बात क्या बतलाऊं ,
मैं कैसे उलझा तुमको कैसे समझाऊं ....
जीवन के इस डगर पे है कठिनाई,
नहीं किसी से अब तुम डरना भाई.....
पंख हैं हमारे कोमल,
कठिन है जीना यह जीवन....
पंख है एक मात्र सहारा,
जिससे उड़ना जीवन सारा... 
पंख हर किसी के पास होती है,
मगर उड़ान हौंसलों से होती है ....
लेखक : आशीष कुमार , कक्षा : ९, अपना घर   

कविता : ज्यादा पानी न डालो रानी

ज्यादा पानी न डालो रानी
क्यारियों के किनारों में ,
छाई हैं हरियाली .....
जिसको  देख रही हैं रानी  ,
लगी हैं उसके ओठो में लाली ....
क्यारियों में लगा रही हैं पानी ,
 उगा रही हैं पौधों के बीज .....
 छोटी -छोटी क्यारियों  में ,
 जिसमे हो रही हैं पानी के बर्बादी .....
 पानी उतना बर्बाद करो रानी ,
जिससे लोगो को न हो हैयरानी.... 
क्यारियों के किनारों में ,
 छाई हैं हरियाली .....
 लेखक - हंसराज 
 कक्षा - ८ अपना घर ,कानपुर

शनिवार, 25 जून 2011

कविता -नेता

नेता 
अपने देश के नेता हैं कैसे ,
लूटते रहते देश के पैसे ....
कालाधन को विदेशों में जमा कर रहे हैं,
भ्रष्ट नेता अपने बुढ़ापे के लिए ......
लेकिन जनता भूखी मर रही हैं  ,
इन भ्रष्ट नेताओं के कारण......
आखिर ये भ्रष्ट नेता इस कालेधन को क्या करेगे,
मुझे लगता हैं ,ये इन पैसों से अपनी चिता जलायेगे......
राजा हो या कलमाड़ी ,
सब के सब करते हैं घोटाला .....
कोई नहीं हैं इन्हें बोलने वाला .....
लेखक -मुकेश कुमार 
कक्षा -१० अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 24 जून 2011

कविता -सपनों में खो गया

सपनों में खो गया 
एक दिन की हम बात बताते ,
अध्यापक जी हैं हमको पढ़ाते....
एक बार मुझे क्या हो गया ,
मैं अपने सपनों में खो गया .....
जैसा की अध्यापक ने पढाया ,
मैं उसको अपने ऊपर से उड़ाया.....
अध्यापक जी हमको पढ़ाते हैं,
 हम अपने सपनों में खो जाते हैं ......
लेखक - ज्ञान कुमार 
कक्षा -८ अपना घर ,कामपुर

कविता -दो इसे अंग

दो ऐसे अंग 
हमारे शरीर में दो ऐसे अंग ,
जिनकी बात निराली हैं ....
उनके हाथ में कुछ नहीं हैं ,
सब ऊपर वाले का खेल .....
जिसको थोड़ी सी आहट सी मिल जाये ,
वह सब को चौका देता .....
उससे नहीं कोई महान,
हो रही मस्तिष्क और कान की बात....
हमारे शरीर में दो ऐसे अंग ,
जिनकी बात निराली हैं ....
कुछ भी कोई कहता ,
कान मगर सुन तो लेता हैं....
वह तो मस्तिष्क के हाथ में हैं ,
क्या रखना हैं क्या भुलाना हैं .....
हमारे शरीर में दो ऐसे अंग ,
जिनकी बात निराली हैं .....

लेखक -अशोक कुमार , कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

बुधवार, 22 जून 2011

कविता :बढ गयी महंगाई

 बढ गयी महंगाई 
छोटी मोटी तितली ,
सीढ़ियों से फिसली ....
नालियों में गिरने से , 
बच गयी मरने से ....
पर चोट लग गयी गिरने से ,
वह अस्तपताल पहुंची जल्दी से ....
वहां पे भीड़ लगी थी इतनी ,
थोड़ी देर में भीड़ लग गयी दुगनी ....
तितली का जब आया नंबर ,
वह पहुँची डाँक्टर के रूप के नीचे .....
डाँक्टर ने दी जब से उसको दवाई ,
तब से बढ गयी है महंगाई  ....

लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर   





























मंगलवार, 14 जून 2011

कविता : किसान का बेटा हुआ महान

 किसान का बेटा हुआ महान 

बच्चे ने जन्म लिया ,
घर में आयीं खुशियाँ ...
खेतों में हरियाली छायीं,
घर में अनाज की बोरियां आयीं ...
माता ने पढ़ा था ग्रहविज्ञान,
घर पर बनाती है पकवान ....
पिता था उसका अज्ञान ,
इसलिए वह बना किसान....
माता-पिता ने बच्चे को पाला,
हर सुख उसको दे खुद को दुख में डाला ....
माता-पिता ने बच्चे खातिर मेहनत की रातो-दिन ,
आगें जाकर 'किसान का बेटा हुआ महान'.....

लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : ९
अपना घर 

सोमवार, 13 जून 2011

कविता : भुखमरी

 भुखमरी 

जब पड़ता है आकाल जहां पर ,
आ जाती है भुखमरी वहां पर ....
भुखमरी का अर्थ है ' भूख से मरना ,'
इसलिए कहते हैं खाना कभी न बर्बाद करना ....
भुखमरी से लोग तड़प-तड़प कर मरते ,
उस समय सारे दुख दर्द हैं सहते  ....
जब पड़ता है आकाल जहां पर ,
आ जाती है भुखमरी वहां पर......

लेखक : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 

शनिवार, 11 जून 2011

कविता -डिस्कबरी

डिस्कबरी
डिस्कबरी चैनल कितना अच्छा हैं ,
अच्छे -अच्छे चित्र दिखाता हैं....
पुराणों की याद दिलाता हैं ,
इतिहासिक चित्र दिखाता हैं.....
भरपूर हमारा मनोरंजन कराता, 
सारा संसार दिखाता रहता .....
संसार हमारा कितना प्यारा,
विभिन्न खोज दिखाता रहता ......
टी.वी. आदि के माध्यम से,
मनोरंजन हमारा कराता हैं......
डिस्कबरी चैनल कितना अच्छा है,
अच्छे -अच्छे चित्र दिखाता हैं .....
लेखक -मुकेश कुमार
कक्षा -१० अपना घर ,कानपुर

शुक्रवार, 10 जून 2011

कविता -आम रसीले

आम रसीले
आम क्या हैं ये रसीले ,
पेड़ो पर लगे हैं पीले - पीले ....
सोच रहे हैं कब जोर से हवा चले,
पीले- पीले आम खाने को मिले ....
आम का हैं अब समय आया ,
खट्टे-मीठे आम खाने का जी ललचाया ....
पेड़ो पर लगे हैं कच्चे -पक्के आम ,
बाजारों में हैं इनके कितने मंहगे दाम.....
आम क्या हैं ये रसीले ,
पेड़ो पर लगे हैं पीले - पीले .....
लेखक - धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर ,कानपुर 

गुरुवार, 9 जून 2011

कविता -ईट भट्ठे की प्रार्थना

ईट भट्ठे की प्रार्थना 
भट्ठे के मालिक और भट्ठे के मुनीम ,
भट्ठे का नाम और भट्ठे का दान ....
सरस बने  प्रभु सरस बने ,
भट्ठे की मिट्टी और भट्ठे की चिमनी ...
भट्ठे पर पथाई और भट्ठे में भराई ,
सरस बने प्रभु सरस बने .....
भट्ठे के बच्चे और भट्ठे के मजदूर,
भट्ठों का जीवन और भट्ठों पर चलने वाला स्कूल...
खुशहाल बने प्रभु खुशहाल बने ......
लेखक -के .एम. भाई

कविता: वर्षा का मौसम आया है ...

वर्षा का मौसम आया है. 
संग ठंडी   हवाएं लाया हैं ..
छाता  लेकर निकले घर से. 
रपट पड़े हैं हम सर से.. 
अब हमको कौन उठाएगा.
कीचड़ से कौन बचाएगा..
अब तो हैं पानी बरस रहा. 
फिर डंडे हम पर बरसेगे..
अब घर हम कैसे जायेंगे.
माँ को कैसे समझाएँगे ?

साक्षी अवस्थी, कक्षा ६, 
पुत्री: बलराम अवस्थी, 
पता: नई बस्ती, लखीमपुर खीरी 

बुधवार, 8 जून 2011

कविता : आसमान क्यों नीला

 आसमान क्यों नीला 

आसमान है क्यों नीला ,
यह बात है किसने जानी....
एक लड़के ने दिमाग में यह बात ठानी ,
याद आ गई अब उसकी नानी ....
तभी दूसरे लड़के ने पूछा क्या बात है ?
इस धरती में बड़े समुंदर सात हैं ....
आसमान है क्यों नीला ,
यह बात है किसने जानी ....

लेखक : चन्दन कुमार 
कक्षा : 6
अपना घर 

मंगलवार, 7 जून 2011

कविता : सबको अधिकार हो

 सबको अधिकार हो 

हमें वह राह चाहिए ,
जिसमें सबको जाने का अधिकार हो .....
न कोई ताला चाभी का साथ हो ,
सबको सामान अधिकार हो .....
हमें वह राह चाहिए ,
जिसमें सारे इंसान जाएँ ....
अमीरी-गरीबी का भेद न हो ,
सारे इंसान बराबर हों .....
हमें वह राह चाहिए ,
जिसमें सबको जाने का अधिकार हो .....

लेखक : अशोक कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर   

रविवार, 5 जून 2011

कविता : बच्चे चार

 बच्चे चार 

एक चिड़िया के बच्चे चार ,
कर रहे थे उड़ने का विचार ....
नहीं पेट में था उनके दाना ,
इसलिए असम्भव था उनसे उड़ पाना ....
तभी अचानक उनकी मम्मी आयी ,
साथ में अपने दाना लायी ....
एक चिड़िया के बच्चे चार ,
कर रहे थे उड़ने का विचार .... 

लेखक :ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर 

शनिवार, 4 जून 2011

कविता -मँहगाई

मँहगाई 

बढ़ रहा देश में भष्ट्राचार ,
जिससे पिछड़ रहा यह देश
लोग भष्ट्राचार होने से ही भष्ट्राचार फैलता हैं ,
भष्ट्राचार न फैले तो ......
जिससे देश अच्छे से चले होता ,
अन्ना  हजारे जैसे लोग देश में रहते हैं.....
हर दम देश के  लिए  लड़ते हैं.....

लेखक -चन्दन कुमार 
कक्षा -६ अपना घर ,कानपुर

गुरुवार, 2 जून 2011

कविता -बढ़ता ही गया

बढ़ता ही गया 
रात को किसी के घर से निकला ,
वो था शायद अन्दर से पगला .....
शायद वो नयी राह चला था ,
किसी के पैसे के झंझट में पड़ा था......
रास्ते में उसको एक राही मिला ,
जैसे उसको लगा कोई पहाड़ खड़ा....
लेकिन वो पहाड़ से टकरा कर आगे बढ़ा,
और आगे जीवन में बढ़ता ही गया .....
रात को किसी के घर निकला ,
वो था शायद अन्दर से पगला .....
लेखक -ज्ञान कुमार 
कक्षा -८ अपना घर ,कानपुर