शीर्षक :- कैसी ये जिन्दगी है
कैसी ये जिन्दगी है....
कुछ समझ में नहीं आता,
रात दिन सुबह शाम....
सिर्फ पेट ही सबको भाता,
सोचता हूँ कुछ पल....
दूसरों के लिए जी लूं,
पर ये पेट है जो मेरा पीछा नही छोड़ता....
और कहता पहले खुद के लिए जियो,
फिर दूसरों के लिए जीना....
कैसी ये जिन्दगी है,
कुछ समझ में नहींआता....
कवि : सागर कुमार
कक्षा : 9
अपनाघर
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