शीर्षक :- पतंग
आकाश और गगन में।
उड़े पतंग संग में।।
मन चाहा घूमा करती।
पक्षियों से बातें करती।।
ठुमक-ठुमक कर नाचा करती।
सभी के मन को भाती।।
पतंग ये ऐसी उड़-उड़ जाती।
मन चाहा ऊपर जाती।।
मन चाहे तो नीचे आती।
मन चाहा घूमा करती।।
आकाश और गगन में।
आकाश और गगन में।
उड़े पतंग संग में।।
मन चाहा घूमा करती।
पक्षियों से बातें करती।।
ठुमक-ठुमक कर नाचा करती।
सभी के मन को भाती।।
पतंग ये ऐसी उड़-उड़ जाती।
मन चाहा ऊपर जाती।।
मन चाहे तो नीचे आती।
मन चाहा घूमा करती।।
आकाश और गगन में।
कवि:- हंसराज कुमार
कक्षा:- 9
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें