शीर्षक :- धरती
धरती की है अपनी काया....
धरती की है अपनी माया,
कभी पानी बरसाती है....
कभी पानी को तरसती है,
ये सब है धरती की माया....
धरती प्रकृति को हरा भरा रखती है,
प्रकृति संग धरती....
गंगा में अमृत भरती है,
सर्दियों में कड़कड़ाहट लाती है....
हमें मजा चखाती है,
ये सब धरती की माया है....
इसे बदल नहीं सकता कोई,
धरती से जो टकराएगा....
वह चूर-चूर हो जायेगा,
धरती की तो बात निराली है....
धरती है जो इतनी शक्तिशाली,
धरती की है अपनी काया....
धरती की है अपनी माया,
कवि :- मुकेश कुमार
कक्षा :- 11
अपना घर
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