शीर्षक :- ये सब सपने में
तपती धरा उबलता रवि....
प्रकृति पर लिखता है कवि,
ये क्या संसार है....
सबको अपने जीवन से प्यार है,
ये संसार हमारा है....
संसार में जो आता है,
वह जरुर ऊपर जाता है....
ये कवि का कहना है,
कवि रवि से कहता है....
तू क्यों ? अकेला रहता है,
तुमसे दुश्मन डरता है....
या दोस्ती नहीं करना चहता है,
तू रवि...................
तुझसे कवि कहता है,
प्राणी मानवों को इतनी रोशनी देता है....
उदास क्यों रहता है,
तुम्हे ठंडी में लोग देखने को तरसे है....
गर्मी में क्यों आग बरसते हो,
मैं हूँ एक मात्र कवि....
तुम दोस्ती करोगे रवि,
इतने में घनघोर गगन छाया....
मैं निकल पड़ा अपने आगन में,
मैंने खूब की बरसात में मस्ती....
देखते ही देखते डूब गई पूरी बस्ती,
कवि ने रवि को आवाज लगाई....
तू क्यों सुन नहीं रहा भाई,
लगता मुझसे डर गया भाई....
ये तो थी कवि की रचना,
सोया जो रात में, देख रहा सपना....
तपती धरा उबलता रवि....
प्रकृति पर लिखता है कवि,
ये क्या संसार है....
सबको अपने जीवन से प्यार है,
ये संसार हमारा है....
संसार में जो आता है,
वह जरुर ऊपर जाता है....
ये कवि का कहना है,
कवि रवि से कहता है....
तू क्यों ? अकेला रहता है,
तुमसे दुश्मन डरता है....
या दोस्ती नहीं करना चहता है,
तू रवि...................
तुझसे कवि कहता है,
प्राणी मानवों को इतनी रोशनी देता है....
उदास क्यों रहता है,
तुम्हे ठंडी में लोग देखने को तरसे है....
गर्मी में क्यों आग बरसते हो,
मैं हूँ एक मात्र कवि....
तुम दोस्ती करोगे रवि,
इतने में घनघोर गगन छाया....
मैं निकल पड़ा अपने आगन में,
मैंने खूब की बरसात में मस्ती....
देखते ही देखते डूब गई पूरी बस्ती,
कवि ने रवि को आवाज लगाई....
तू क्यों सुन नहीं रहा भाई,
लगता मुझसे डर गया भाई....
ये तो थी कवि की रचना,
सोया जो रात में, देख रहा सपना....
कवि : चन्दन कुमार
कक्षा : 7
अपना घर
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