" नदी "
नदियाँ कैसे बहती हैं,
न कभी ये थकती हैं |
न ही ये कभी आराम करती हैं |
नदियाँ अपने रस्ते को छोड़ देती है |
लेकिन दूसरा बनाकर,
अपनी मंजिल को छूती है |
मैं भी नदियों की तरह,
बहना चाहता हूँ |
हर एक रास्ते से मंजिल,
तक पहुंचना चाहते हैं |
कवि : महेश कुमार , कक्षा : 5th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता महेश के द्वारा लिखी गई है जिसमें एक नदी की प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया है | महेश को कविता लिखना बहुत अच्छा लगता है | इस कविता का शीर्षक " नदी " है | हमें भी एक नदी की तरह बहना चाहिए | जितनी भी बाधाएं हो उन बाधाओं का सामना करना चाहिए |
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