गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

कविता: मैंने सोचा

मैंने सोचा

मैंने सोचा था कि खेत हो मेरे पास,
मेरे खेत की मिट्रटी अच्छी...
वह मिट्रटी बहुत उपजाऊ हो.
मै सोचा था कि इसमे क्या बोउं...
भइया बोले मिर्च लगाओ,
खेत मे मिर्च लग जाती..
और बैगन मे बैगन,
बैगन बोले मिर्च से...
साथ चलोगी क्या मेरे,
मिर्च बोली कहाँ चलोगे....
बैगन बोला जिसने बोया,
उसके घर में जायेंगे....
भइया नें बाजार दिखाया,
मोल भाव कर बेच देते....
मैंने सोचा था कि खेत हो मेरे पास.....

लेखक: जीतेन्द्र कुमार, कक्षा ७, अपना घर, २४/११/२००९

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

एक अच्छी रचना है ......... स्वागत है आपका ..........