मेरे खेतो की मिट्टी है उपजाऊ ,
मै सोचू इसमे सब कुछ बोउ....
मन करता है गेहूं और मक्का बोउ,
जिसकी रोटी बनवा कर खाऊ......
मन करता है लगाऊ,
जिसमे में चावल की खीर खाऊ......
मन करता है गन्ना लगाऊ,
जिसमें गुड की भेली मै खाऊ.......
मन करता है सरसो बोउ ,
जिसे पिराकर तेल के पापड़ तल के खाऊ ......
मन करता है सब्जी बोउ,
जिन्हें बाजार में बेचने जाऊ.....
मन करता है फूल लगाऊ,
जिससे अच्छी सुगंध में पाऊ......
मन करता है बेर लगाऊ,
जिससे चूरन बनाकर खाऊ.....
खेती करने में लगती लागत,
साथ में लगती मानव की ताकत.......
मै चाहता सब कुच्छ बोउ,
पर इतने रूपये कहाँ से में लाऊ ....
मेरे खेती की मिट्टी है उपजाऊ,
मै सोचू सब कुछ बोउ......
लेखक कविता मुकेश कुमार कक्षा ८ अपना घर कानपूर ,
1 टिप्पणी:
एक बोओ बाजार ले जाओ बेचो और पैसे से सब खाओ !
एक टिप्पणी भेजें