"इक्षा की राह"
इच्छा की राहों में, मैं चलना चाहा ।
बारिस की बूंदे की, तरह बिखरना चाहा । ।
इच्छा तो बहुत हुई, भगत सिंह बन जाऊ।
राजगुरु की तरह, आंदोलन में कूद जाऊ । ।
और कुच्छ न कर सकूँ, तो कम से कम ।
नेहरू की तरह , राजगद्दी पर बैठ जाऊ ।।
इच्छा के बल पर, बहुत चलना चाहा ।
कभी जमीं तो कभी, आसमां बनना चाहा ।।
इक्षा को संघर्ष और जज़्बो, कि जरुरत है ।।
पर हर इक्षा न होती पूरी, ये हकीकत है ।।
कवि: राजकुमार,कक्षा 7th,अपना घर, कानपुर
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