"आज़ाद"
आज़ादी का तूफान उठ रहा है ।
सागर की तरह ये मचल रहा है ।।
आज़ादी तो तूने दिलाई खुद को मिटाकर ।
खुशियां भी दिलों कि बेचीं गुलामी को मिटाकर ।।
तब जाके तूने मौत को गले लगाया ।
हम सभी को आज़ादी दिलाया ।।
कहते तो सभी है पर करते नहीं ।
करते वही है जो बुराई से डरते नहीं ।।
ऐसा ही था यार अपना ।
कहते हैं वो था आज़ाद हमारा ।।
कवि: विशाल कुमार, कक्षा 7th, अपना घर, कानपुर
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