"एक दिन"
कला घना अँधेरा रात था ।
बड़ा ही भयानक रात था ।।
पवन भी धीरे -धीरे बह रहा था ।
मानो मुझसे कुछ कह रहा था ।।
किचन मे कुछ शोर था ।
मेरे मन मे भी जोर था ।।
सर -पट , झटपट मै अन्दर भागा।
खिड़की से तब मै अन्दर झाँका ।।
पसीने से में डूब गया था ।
फिर भी मुझसे रहा न गया था ।।
सोचा की अब किचन मे जाऊं।
सहसा आवाज सुनाई दी म्याऊँ।।
जल्दी -जल्दी दरवाजा खोला ।
एक मोटा बिल्ला गुर्राकर बोला ।।
मुझको तो अब मजा भी आया ।
बुद्धू हूँ बडबडाते हुए वापस आया।।
कला घना अँधेरा रात था ।
बड़ा ही भयानक रात था ।।
पवन भी धीरे -धीरे बह रहा था ।
मानो मुझसे कुछ कह रहा था ।।
किचन मे कुछ शोर था ।
मेरे मन मे भी जोर था ।।
सर -पट , झटपट मै अन्दर भागा।
खिड़की से तब मै अन्दर झाँका ।।
पसीने से में डूब गया था ।
फिर भी मुझसे रहा न गया था ।।
सोचा की अब किचन मे जाऊं।
सहसा आवाज सुनाई दी म्याऊँ।।
जल्दी -जल्दी दरवाजा खोला ।
एक मोटा बिल्ला गुर्राकर बोला ।।
मुझको तो अब मजा भी आया ।
बुद्धू हूँ बडबडाते हुए वापस आया।।
नाम :संजय, कक्षा :12
स्कूल : पंडित रामनारायण इन्टर कॉलेज ,कानपुर
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