शीर्षक :- बचपन
याद आते वो बचपन के दिन।
न बीतता था समय खेले बिन।।
वो मौजमस्ती और बीते वो पल।
याद आ जाते है आजकल।।
वो कबड्डी और गुल्ली डंडा।
दिन भर खेलना अपना था बस यही फंडा।।
दोस्तों संग वो लुका छुपाई।
कभी याद आ जाते है भाई।।
खेल-खेल में समय गया कब बीत।
समझ आई अब दुनिया की रीति।।
दोस्तों में न करते थे भेदभाव।
एक दुसरे के लिए था दिलों में घाव।।
याद आते वो बचपन के दिन।
न बीतता था समय खेले बिन।।
वो मौजमस्ती और बीते वो पल।
याद आ जाते है आजकल।।
वो कबड्डी और गुल्ली डंडा।
दिन भर खेलना अपना था बस यही फंडा।।
दोस्तों संग वो लुका छुपाई।
कभी याद आ जाते है भाई।।
खेल-खेल में समय गया कब बीत।
समझ आई अब दुनिया की रीति।।
दोस्तों में न करते थे भेदभाव।
एक दुसरे के लिए था दिलों में घाव।।
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा:- 9
अपना घर
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