शीर्षक : उम्मीदों को छोड़ो
उम्मीदों को छोड़ो ।
हकीकत को मानो ।
पता को पहचानो ।
उस पथ पर चलाना सीखो ।
खुद की उमीदो को छोड़ो ।
बात मानो तो ,
खुद को पहचानो ।
न मिले कोई तो ,
अकले ही चल दो ।
थोडा कष्ट होगा जरूर ।।
लेकिन पता को पहचान होगी ।
चलने का अनुभव होगा ।।
न भोजन हो तो भी ।
जल से भूख मिटा लेंगे
हिम्मत करके ।
कुछ करके देखे ।
जो होगा ।।
उसका झेलेंगे ।
लेकिन उम्मीदों को ,
न छोड़ेंगे ।।
इस जग मे भूखे ही ।
सो लेंगे ।
नींदों को छोड़ेंगे ।।
न मिलेगा इंसान तो ।
पौधों को ही मित्र बना लेंगे ।।
इस धरती को ।
अनंत सा बना देंगे ।।
उम्मीदों को छोड़ो ।
हकीकत को मानो
उम्मीदों को छोड़ो ।
हकीकत को मानो ।
पता को पहचानो ।
उस पथ पर चलाना सीखो ।
खुद की उमीदो को छोड़ो ।
बात मानो तो ,
खुद को पहचानो ।
न मिले कोई तो ,
अकले ही चल दो ।
थोडा कष्ट होगा जरूर ।।
लेकिन पता को पहचान होगी ।
चलने का अनुभव होगा ।।
न भोजन हो तो भी ।
जल से भूख मिटा लेंगे
हिम्मत करके ।
कुछ करके देखे ।
जो होगा ।।
उसका झेलेंगे ।
लेकिन उम्मीदों को ,
न छोड़ेंगे ।।
इस जग मे भूखे ही ।
सो लेंगे ।
नींदों को छोड़ेंगे ।।
न मिलेगा इंसान तो ।
पौधों को ही मित्र बना लेंगे ।।
इस धरती को ।
अनंत सा बना देंगे ।।
उम्मीदों को छोड़ो ।
हकीकत को मानो
नाम : अशोक कुमार
कक्षा 10
अपना घर ,कानपुर
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर कविता अशोक. इसी तरह आगे ही लिखते रहो.
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