" एक दूजे का साथ देना होगा "
क्यों खुशियों का समंदर
आज शमशान सा लगने लगा है,
क्यों वो जानी पहचानी वो सड़कें
आज अनजान सी लगने लगी हैं |
ये तो वही खुशियाँ है
जहाँ हम एक साथ हँसते थे,
ये तो वही वो सड़कें हैं
जहाँ हम -तुम साथ चलते थे |
क्यों आज हँसी में रुकावटें आ रही है,
क्यों प्यार का भँवरा कहीं और मंडरा रही है |
क्यों वो मिटटी के खिलौने आज टूटने लगे है
क्यों आज हम एक दूसरे से लड़ने लगे हैं |
हम अब भी खुशियों को सजा सकते हैं,
उन टूटे खिलौनों को फिर बना सकते हैं |
इस शुभ कार्य को अब ही करना होगा,
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ में
एक दूजे का साथ जीवन भर देना होगा |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " एक दूजे का साथ देना होगा " है | बढ़ती दुनिया में रिश्ते -नाते ख़त्म न हो इसीलिए इस कविता को लिखने का मकसद है | इस कविता में पुराने दिन को compare कर आज जो चल रहा है और उसमें क्या बदलाव आ रहे हैं उसको लिखा है |