बुधवार, 2 जनवरी 2019

कविता : मम्मी की मार बेकार न था

" मम्मी की मार बेकार न था "

मम्मी की मार बेकार न था,
दादी का प्यार बेकार न था |
बचपन में खिलौनों का खो जाना ,
वो कोई चिंता का बात न था |
घर लाई गई मिठाई में कम मिलना
पर रूठना रूठना था ही नहीं |
हमें तो अब समझ में आया,
नरिजग का मतलब सही |
हर गलत बात पर  सभी चिढ़ाते है,
चिढ तब होती है जब कोई दोस्त,
हमें छोड़कर आगे निकल जाता है |
निकल जाए और पीछे रह जाए,
नाराजगी तो तब  होती है जब,
मंजिल सामने और हम बगल में होते हैं |
नाराजगी तो तब होती है जब,
आपकी रात दिन की मेहनत,
ज़ीरो में तब्दील हो जाती है |

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर





कवि परिचय : यह हैं देवराज जिन्होनें यह कविता लिखी है | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और लगभग ये एक शाट कवितायें लिख चुके हैं | देवराज बिहार के नवादा जिले के निवासी हैं और अपना घर में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | देवराज को इसके आलावा डांस करना और विज्ञानं से जुड़े प्रयोग करना बहुत पसंद हैं |

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