शनिवार, 19 जनवरी 2019

कविता : लोग सो रहे

" लोग सो रहे "

इस मुल्क के लोग सो रहे हैं,
इस मुल्क के लोग सो रहे हैं |
और जो कुछ नहीं कर रहे हैं
वो इस मुल्क में हँस रहे हैं |
जहन के जज्बात खो गए,
जहन की आवाज़ गूंज रही है |
और जिसका जहन नहीं है,
वो जहन नहीं ज़हर रह गए |
हँसी तो दूर की बात है,
लोग तो हँसते भी नहीं |
अरे !खो गया है वो नगमा,
जो लोगों के जहन में बस्ता था |
अरे ! बह गया है वो आँसू,
जो कभी मोती बनता था |
यह मैं नहीं कह रहा हूँ मेरे यार,
यह तो उन लोगो की आँखों में हैं |
जो कभी गले लगाकर ईद,
की बधाइयाँ दिया करते हैं |
और कभी दीवाली की रात को मिलकर,
साथ में दिया जलाया करते थे |

कवि : विशाल कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवी परिचय : यह कविता विशाल के द्वारा लिखी गई है | विशाल अपने काम को हमेशा समय से पूरा करते हैं और उसको खूब अच्छे से निभाते हैं | विशाल पढ़लिखकर एक रेलवे इंजीनियर बनना चाहते हैं |

2 टिप्‍पणियां:

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन भाव है, बहुत खूब!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत लाजवाब भावपूर्ण रचना ...