शनिवार, 16 मार्च 2013

               कविता 

इंसान के लिए हमदर्दी नहीं पत्थर दिल इंसान में ,
 से मरते हैं लोग इस जहांन में .......
दुनिया को देखिये चाँद तक पहुंच गयी ,
ईश्वर पर अब भी विश्वास करते हन्दुस्तान में .....
पड़ोसी चाहे भूंख से तडपता रहे लेकिन ,
फल,दूध आदि पहुचाते हैं ईश्वर के मकान में .....
ईश्वर तो लोगों के दिलों में बसे हैं, 
क्यों ढूढ़ते हो पत्थर की मूर्ति और आसमान में ?
भुखमरी हटाने का वादा तो करते हैं ये नेता ,
लेकिन ताकत नहीं उनके जिस्मों जान में  .....


                                              लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
                                              कक्षा :९ 
                                              अपना घर 

गुरुवार, 14 मार्च 2013

    कविता

रोड और क्रासिग पर ,
गाडी और मोटर कारों की.......
लगी रहती है कतार ,
ट्रैफिक पुलिस की बात निराली .......
करते हैं अपनी मनमानी ,
लगे रहते हैं लोडर ट्रकों से .......
रुपयों की वशूली करने ,
ट्रैफिक नियमों का ......
पालन नहीं कराते ,
लोडर ट्रक वालों को है गरियाते.......


             लेखक : जीतेन्द्र कुमार
             कक्षा : ९
             अपना घर 

--

बुधवार, 13 मार्च 2013

कविता : मंहगाई

"मंहगाई"

मंहगाई ने आसमान छू डाला ,
गरीबों को तो भूखा मार डाला .....
सब्जी मंहगी, अनाज मंहगा,
अब तो हर सामान है  मंहगा .....
पेट्रोल तो इतना मंहगा हो गया,
गाड़ियों में पेट्रोल डलवाना .....
कितना ज्यादा मंहगा पड गया ,
नया नेता बनाने से ......
कुछ बदलाव नहीं आया ,
सभी चीजों को मंहगाई ने है खाया ......

नाम : चन्दन कुमार, कक्षा : ७, अपना घर