गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

कैसी है ये दुनिया



आओ बच्चो तुम्हे दिखाऊ 
 कैसी है  कैसी है  ये दुनिया   
इस दुनिया में सब बटे हुए है 
कोई हिन्दू कोई मुश्लिम 
लड़ते लड़ते ही मर जाते है 
पहले थी कितनी सुन्दर यह दुनिया 
पर अब जाने कैसी हो गयी है यह दुनिया
धरती का तो था एक ही सहारा 
जिसका नाम था ओजोन प्यारा 
दुनिया ने इतना कूड़ा करकट मारा
 बन गया डोजोंन  बेचारा
 कैसी है  कैसी है  ये दुनिया  ………………… 
कैसी है  कैसी है  ये दुनिया   …………………… 

प्रान्जुल 
अपना घर , कक्षा -4

पेपर हूँ

पेपर हूँ  मै  पेपर हूँ कितना अच्छा पेपर हूँ जब पेपर छप के आता सब बच्चो को पढ़ने में मजा आतासब बच्चो का मन खुश हो जाता पेपर हूँ   मै  पेपर हूँ ।  पेपर हूँ  मै  पेपर हूँ।  

                                        प्रभात सिंह
                                     अपना घर  ,   कक्षा 2 





मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

कविता: मौसम

मौसम 

नीले - नीले  आसमान में ।
पानी है काले - काले बादल में।। 
बादल है या कोई छाया है। 
यह तो ईश्वर की माया है।। 
पानी कब ये बरसेगा ?
इन्सान कब तक तरसेगा  ? 
जब भी ये पानी बरसेगा।
धरती को पहले सीचेंगा ।।
हम खूब नहायेंगे पानी में। 
कागज की नाव तैरायेंगे नाली में ।।
पानी में झम - झम कूदेंगे।  
 सबके संग हम भीगेंगे।।
पानी पाकर धरती में होगी हरियाली।  
घर घर में छाएगी फिर खुशहाली।। 
 कवि :  नितीश कुमार 
अपना घर, कक्षा: 3rd 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

''किस किस की सुरक्षा ''

''किस किस की सुरक्षा ''
मुकेश अम्बानी जैसे उद्योगपति ,
खतरे से नहीं है खाली 
सरकार हमारी दे रही गाली । 
उनकी सुरक्षा के  लिए सी .आर .पी .ऍफ़ बल शाली ॥ 
सरकार को चिंता है तो पैसे वालो की ,
भाड़ मे  जाए दुनियादरी ,
लूट रही है जिसकी आबरू ,
वो है इस जंहाँ की सारी नारी 
नारी की सुरक्षा करना ,
उन पर हुए जुल्म का ,
उनको इन्साफ दिलाना ,
दायित्व हमारी सरकार का । 
ऐसा क्या बात है अम्बानी मे ,
जो उन्हें सुरक्षा देने  की तैयार ,
 सुरक्षा देना है तो सबको दो ,
मजदूर ,किसान हो बेरोजगार जनता सारी ,
 सारे उद्योग - धंधे चलते है ,
मजदूरों के बल पर ,
कृषि करे किसान भईया ,
बिना सुरक्षा अपने दम पर ,
ऐसा नहीं न होना चाहिए ,
सबको एक सामान अधिकार चाहिए ,
चाहे वह हो पैसा वाला ,
या हो वह मजदूरी  करने वाला  ,
सवाल हमारा यही है ,
हम इसको ही दोहराए ,
किस -किस की सुरक्षा की जाए ,
यह सरकार हमें बताये । 
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा :१ १ 
अपनाघर , कानपुर 


सोमवार, 22 अप्रैल 2013

कविता : प्राणी जा रहा

 प्राणी जा रहा 

प्राणी बड़ा ही बंधा हुआ ,
साबित होता जा रहा है .....
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे से जा रहा है .....
जो वो कर रहा है,
वही करने की वो सोच रहा है ......
न उसकी अपनी समझ है ,
न ही अपनी सोच है ......
जो देख रहा है प्रक्रति और संसार से ,
वो वही कर रहा है ......
हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे जा रहा है ......
अब वह समय दूर  नहीं ,
जिसमें प्राणी को प्राणी बाधेगा .....
आँगन की उस चौपाल में,
जहां प्राणी ही प्राणी आयेगा .....
प्राणी को देख के ,
प्राणी के मुख में मुस्कान होगी .....

 हर एक प्राणी ,
प्राणी के पीछे जा रहा है .......

                           लेखक  : अशोक कुमार
                           कक्षा : १०
                           अपना घर

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

कविता - मुकाम पा लिया

 मुकाम पा लिया 

भोर का समय था ,
मैं  जा रहा था राहों से .....
सून- सान थी सारी जगह ,
मैं डर रहा था तम के गर्दिश में .....
सहसा चली पवन तीव्रता से ,
भागे काले मेघ डरकर ....
खिल उठा रवि हंसकर ,
मन से निकला मेरे डर .....
पवन थी इतनी ठंडी ,
ताजगी भर गयी मेरे जीहान में ....
आगे बढ़ा तो एक तितली आयी ,
आ बैठी मेरे हाथ में ......
कितने वर्णों की थी ,
की मैं  कुछ कह नहीं सकता .....
 देख - देख मैं खूब हंसता ,
उसकी सुन्दरता के बारे में सबसे कहता .....
जिस कार्य से निकला था ,
वह कार्य मैं तो भूल गया .....
आ गयी मेरी मंजिल ,
मैने अपना मुकाम पा लिया ...

                                                             लेखक -आशीष कुमार
                                                             कक्षा -१०
                                                             अपना घर  

कविता - क्यों नहीं याद

 क्यों नहीं याद 

वो भगत का शहीद खून ,
वो जवानी झांसी की रानी की  ........
जो झकझोर दिया था ,
उन गोरे अंग्रेजों को ......
लेकिन आज के इस भ्रस्ट समाज में,
भ्रस्टाचारियों की है भरमार ......
इन  भ्रस्टाचारियों से ही ,
चल रही है हमारी ......
मिली जुली सरकार ,
आज के इस  भ्रस्ट समाज में ......
रह - रहे हैं सभी एक साथ ,
अपने हक़ को मांगने के लिए .....
आगे बढ़ नहीं रहे कभी ,
क्यों हम किसी का जुल्म सहें ?
क्यों न हम अपना हक़ लेकर रहें?

                                                          लेखक -ज्ञान कुमार
                                                          कक्षा -९
                                                          अपना घर 

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

कविता - मेरा गाँव

              कविता

 मेरे गाँव की सुनों कहानी ......
लाइट के प्रति हो रही मनमानी,
कभी रात में लाईट आती है ....
तो कभी हमेशा के लिए जाती है,
विधुत व्यवस्था  है बड़ी ख़राब .....
इस पर चलता है केस्को का राज,
विधुत से गाव के लोग परेशान ......
इसीलिये नहीं है गाँव की शान ,

                                        लेखक -मुकेश कुमार
                                         कक्षा -  १ १ 

शनिवार, 16 मार्च 2013

               कविता 

इंसान के लिए हमदर्दी नहीं पत्थर दिल इंसान में ,
 से मरते हैं लोग इस जहांन में .......
दुनिया को देखिये चाँद तक पहुंच गयी ,
ईश्वर पर अब भी विश्वास करते हन्दुस्तान में .....
पड़ोसी चाहे भूंख से तडपता रहे लेकिन ,
फल,दूध आदि पहुचाते हैं ईश्वर के मकान में .....
ईश्वर तो लोगों के दिलों में बसे हैं, 
क्यों ढूढ़ते हो पत्थर की मूर्ति और आसमान में ?
भुखमरी हटाने का वादा तो करते हैं ये नेता ,
लेकिन ताकत नहीं उनके जिस्मों जान में  .....


                                              लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
                                              कक्षा :९ 
                                              अपना घर 

गुरुवार, 14 मार्च 2013

    कविता

रोड और क्रासिग पर ,
गाडी और मोटर कारों की.......
लगी रहती है कतार ,
ट्रैफिक पुलिस की बात निराली .......
करते हैं अपनी मनमानी ,
लगे रहते हैं लोडर ट्रकों से .......
रुपयों की वशूली करने ,
ट्रैफिक नियमों का ......
पालन नहीं कराते ,
लोडर ट्रक वालों को है गरियाते.......


             लेखक : जीतेन्द्र कुमार
             कक्षा : ९
             अपना घर 

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बुधवार, 13 मार्च 2013

कविता : मंहगाई

"मंहगाई"

मंहगाई ने आसमान छू डाला ,
गरीबों को तो भूखा मार डाला .....
सब्जी मंहगी, अनाज मंहगा,
अब तो हर सामान है  मंहगा .....
पेट्रोल तो इतना मंहगा हो गया,
गाड़ियों में पेट्रोल डलवाना .....
कितना ज्यादा मंहगा पड गया ,
नया नेता बनाने से ......
कुछ बदलाव नहीं आया ,
सभी चीजों को मंहगाई ने है खाया ......

नाम : चन्दन कुमार, कक्षा : ७, अपना घर 

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

शीर्षक : ठंडी

              "ठंडी"
इस बार ठण्ड का आया मौसम ।
जिससे की सारा शहर गया सहम ।।
तूने न पहचान ये तेरा है भ्रम ।
सर्दी में बोले हर -हर गंगे हम ।।
सूरज न दिखता , ये तेरा है भ्रम ।
सर्दी में कोहरे का कोहराम ।।
सुन लो बच्चो सुन लो तुम ।
छुट्टी में कर लो आराम ।
इतना भी न करना आराम ।।
कि कोई न दे तुमको काम ।
कुछ काम करो और हो जाओ लायक ।
जिससे न कहा पाए कोई मक्कार , निक्कमा ,नालायक !
नाम : आशीष कुमार, कक्षा 10, अपना घर, कानपुर  

शीर्षक : स्त्री

            " स्त्री "
एक स्त्री जिसने समाज को बनाया ,
आज उस स्त्री को महत्व ,
लोगों की समझ से परे है ,
क्योंकि लोगों नहीं समझ रहें सामाजिक तत्व ,
की स्त्री वाही नारी है ,
जिसकी गोद मे खेली दुनिया सारी ,
आखिर कब तक सहे वह जुल्म ,
मानव कर रहा दिन प्रति -दिन जुर्म ,
तुम्हे है इतनी बेशर्मी ,
फिर भी बैक स्त्री को ही कहते मम्मी ,
तुम्हारे घर में भी है माँ - बहन ;
यदि उनका करे कोई बलात्कार और लुटे गहने ,
फिर बोल क्या करोगे ?
क्या  इसी तरह के स्त्री पर हो रहे जुलम सहोगे ,
क़ानून तो केवल है अँधा ,
केस मुकदमे चलाना यह है एक धंधा ,
देश मे इतने सारे है क़ानून ,
पानी के भाव बह रहा है खून ,
इतनी है सुरक्षा और  सैन्य बल ,
जिससे हर समस्या हो सकती है हल ,
इस देश की व्यवस्था को चलाने वाले ,
कर दो इन सब के मुंह काले ,
धन -दौलत के चक्कर में हो गए है अंधे ,
लूटमार , बलात्कार ,करना हो गए है रोज के धंधा ,
लक्ष्मी बाई और दुर्गावती के जैसे ,
यदि बन जाए हर स्त्री वैसे ,
तो इस देश से कतम हों जायेंगे जुल्म साते ,
फिर ना बच पायें लूटमार बलात्कार के हत्यारे ,
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 10
अपनाघर कानपुर 

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

 शीर्षक :- आज की फिल्मे
आज की फिल्मे तो आदर्श बनी पड़ी है....
युवा पीढी को भड़काने में |
ऐसे अश्लील से शब्द है....
हर किसी न किसी फ़िल्मी गानों में |
वर्तमान में फिल्मो का ऐसा पड़ा है, सब पर असर....
कि चारो ओर चल रहा है, फिल्मो का ही कहर |
मुन्नी से लेकर शीला की जवानी....
हर बच्चे की जुवां पर है, अजब प्रेम की गजब कहानी |
डायेरेक्टर भी तो कहते है, क़ि लोंगो की जैसी मांग....
वैसी हम करेंगे उनकी पूर्ति |
दुकानदार का कम है, बीडी तम्बाकू को बेचना....
तो तुम अपने आप को रोको मत खाओ सुरती |
मां बाप मना करें तो नहीं मानते बच्चे....
बातें कहेंगे ऐसी जैसे वह सबके चच्चे |
शौक है उनका फिल्म मोबाईल रख गाड़ी से चलना....
और रातों दिन है, मोबाईल से बातें करना |
कवि :- आशीष कुमार
कक्षा :-10
अपना घर 


शनिवार, 26 जनवरी 2013

शीर्षक : दामिनी की आवाज

  '' दामिनी  की  आवाज ''
मरी नहीं मैं जिन्द्दा हूँ ।
सफेद रंग का परिन्द्दा हूँ ।।
नाम  नहीं कोई मेरा ।
न नाम मेरा तुम जानो ।।
मेरी धड़कन को सुन लो ।
मेरी आवाज को पहचानो ।। 
इंसाफ चाहिए मुझको ।
जो तुम ही दिल सकते हो ।।
मैं सो गई तो क्या हुआ ।
तुम तो देश को जगा  सकते हो ।।
दामिनी नाम रखकर ,
इस देश मे बनी मेरी पहचान ।
मई नहीं चाहती की के साथ हो ।।
जैसा मेरा हुआ अंजाम ।
 मरी नहीं मैं जिन्द्दा हूँ ।
 सफेद रंग का परिन्द्दा हूँ ।।
नाम : रितिक चंदेल 
उन्नाव  

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

शीर्षक : बच्ची

         ''बच्ची ''
वह ममता  की कोमल ,  
कमल की चमेली , +
माता ,पिता की ,
वह अकेली ।
वन सुन्दर एक राजकुमारी थी ।।
वह सरजमी की  ममता ,
वह अनंत की  झोली ।
वह हिम जैसी सफेदी ,
वह सरिता झरना की उद्गम झोली ।
वह सुन्दर एक राजकुमारी थी ।।
वह बड़े जोर से हँसती थी ।
वह सारे सरगम गा चुकी थी ,
वह दिनकर का उद्गम खोल चुकी थी ।
 वह ममता  की कोमल ,
कमल की चमेली ,
माता ,पिता की ,
वह अकेली ।
वह सुन्दर एक राजकुमारी थी ।।            
 नाम :अशोक कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर          
      
 
  
  

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

शीर्षक : चिड़िया का बचपन

    '' चिड़िया का बचपन ''
बचपन में मेरे आँगन में ।
एक चिड़िया आती थी ।
आँगन में बिखरे दानों को ।।
चुन - चुन कर खाती थी ।
बस ची -ची शोर मचाती थी ।।
बच्चा  बोल  मम्मी से ।
अम्मा आटे की बना के गोली ।।
दाना रोज चुगाती थी ।
यह भी चिड़िया भूखी है ।।
यह चोच फैलाकर आती है ।
मजबूरी है चिड़िया की ।।
वह दाना चुराकर लाती है ।
बछो के खातिर चिड़िया रानी ।
दाना लेकर आती है ।
डाला दाना चूजे के मुँह मे ,
वह मन ही मन मुस्काती है ।।
नाम : जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

शीर्षक : मेहनत

       मेहनत
जो मेहनत करते रहते है ।
उन्किहार नहीं होती है ।।
जिनकी मुट्ठी में है मेहनत ।
सच्ची जीत उन्हें मिलती है ।।
मेहनत से जो घबराता है ।
बे सब से है पीछे रहत।।
जो मेहनत करता है वह आगे रहता है ।
नाम :अलीजा फात्मा 
आजमगढ़ , उत्तर प्रदेश 
 

रविवार, 13 जनवरी 2013

शीर्षक : रविवार

            रविवार 
मेरे दिमाग में है ख़ास - बात ।
जो भटक रही है रातो -रात ।।
लोग रविवार को छुट्टी क्यों मनाते हैं ।
रविवार को ही बाजार क्यों जाते है ।।
स्कूल हो या बैंक , कल कारखाना ।
रविवार को ही छुट्टी मनान।।
लोग शनिवार को हही छुट्टी क्यों नहीं मनाते है ।
लोग रविवार को स्कूल क्यों नहीं खुलवाते है ।।
आखिर इतहास क्या ? रविवार का ।
इतना महत्व क्यों है , रविवार का ।।
दोस्त कहे रविवार को आना ।
मेरे घर में खाना खाना ।।
आखिर रविवार है क्या ? 
इसका इतिहास मुझको बतलाओ ।
रविवार , रविवार रविवार ,रविवार ।।
तुम्हारा इतिहास है बड़ा अनजाना । 
नाम : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपनाघर ,कानपुर 

शनिवार, 12 जनवरी 2013

शीर्षक : नव वर्ष के पावन अवसर पर युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक कविता

" नव वर्ष के पावन अवसर पर युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक कविता "
एक था आर .टी .ओ . का दलाल ।
शराबी भी था और शौक़ीन भी ।।
दलाली का पैसा कमाना जिसका था शगल ।
जिसे न परिवार की चिंता थी न समाज की ।।
बस रहता था नशे में मस्त ।
पर एक दिन की घटना ने जिसकी बदल दी अक्ल ।।
फिर आर .टी .ओ . की दलाली से निकला एक आर .टी .ओ . कार्य करता ।।
नशे की लत छूटी और शौकीनों ने समाज सेवा का रूप ले लिया ।।
जूनून ऐसा की हाथ आर .टी . आई . आवेदन लिखते - लिखते थकते नहीं और मुंह से आर .टी . आई . के लिए आवाज बंद होती नहीं ।
स्वास्थ विभाग हो या फिर राशन विभाग शंकर सिंह का  आर .टी . आई . का आवेदन आपको जरूर मिलेगा ।।
डी . एम . हाउस से लेकर पीएम हाउस तक शंकर सिंह के नाम की चर्चा है ।
कहते है किसी भी विभाग से सूचना दिलाने का ताकत रखता है ये बंदा ।।
पर जिंदगी का भी खेल देखिये साथियों ।
समाज के लिए लड़ने वाले के घर में रोटी -दाने का इंतजाम करने वाला कोई नहीं ।।
बीमार बच्चे के इलाज की भी कोई व्यवस्था नहीं ।
एक समय ऐसा भी आर्थिक कंगाली से जूझ रहे परिवार के भरण पोषण का भी कोई इंतजाम नहीं ।।
ऐसे में जिंदगी ने दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया जहाँ,
एक तरफ फिर से वही आर .टी .ओ .की काली कमाई और दलाली का स्वर्ग थ।। 
तो दूसरी तरफ मेहनत और ईमानदारी की आलू की ठिलिया  का गर्व था।
साथियों एक आम आदमी की नैतिकता और इंसानियत की अनूठी मिसाल देखिये ,
घोर विपत्ती के समय में भी इस आठवी पास व्यक्ति ने ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ा।।
और  आर .टी .ओ .की दलाली का रास्ता ठुकराकरए आलू की ठिलिया  से नाता जोड़ा।
जीवन के इस कठिन मोड़ पर भी शंकर सिंह ने आर .टी .आई .से मुंह न मोड़ा।।
और अपनी आलू की ठेलिया से आर .टी .आई .की मुहीम को फिर छेड़ा।
दिन में आलू बेचना तो रात रात भर जागकर आर .टी .आई . आवेदन लिखना।।
यहाँ तक कि हर आलू खरीदने वाले को आर .टी .आई .का इस्तेमाल करना भी सिखाना।
इसे शंकर सिंह का जूनून ही कहेंगे जिसने उन्हें आलू की ठिलिया से "जनता सूचना केंद्र " तक पहुँचाया।।
आज वे एक बार फिर अपने इस "जनता सूचना केंद्र" के माध्यम से कमजॊर और असहाय लोगो के अधिकारों   की लड़ाई लड़ रहें हैं।
शायद किसी ने सच कहा है -
"कुछ करने का जूनून रखने वाले अपनी मंजिल खुद -बा -खुद बना लेते हैं।"

शंकर  सिंह के इस जज्बे और जूनून को कोटि कोटि सलाम ......................
शंकर सिंह के  इस जज्बे और जूनून को कोटि कोटि सलाम ......................

(साथियों यह कविता प्रसिद्ध आर .टी .ओ .कार्यकर्ता शंकर सिंह के जीवन से प्रेरित है।)


के .एम .भाई 

मोबाइल नंबर -8756011826

विथ शंकर सिंह . 

गुरुवार, 10 जनवरी 2013

शीर्षक : माँ

          " माँ "
  तू ममता की झोली है ।
 तेरी महिमा जग में न्यारी है।।
 तू साथ समुद्र से भी गहरी है ।
 फिर भी तेरी लहरें  नहीं ।।
 तू ममता की झोली है ।
 तेरी महिमा जग में न्यारी है।।
 तेरे बिना घर गृहस्थी  अधूरी है ।
 तू घर की देवी है ।
तू  है पीयूष चमन की हरदम ।
 तेरे बिन शोक पवन की  चलती ।।
 तू ममता की झोली है ।
 तेरी महिमा जग से न्यारी ।।
 
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा :10
अपना घर , कानपुर 

बुधवार, 9 जनवरी 2013

शीर्षक : मेरा भारत महान


    मेरा भारत महान
सभी देशो से  है महान ।
ये है हमारा प्यार हिन्दुस्तान ।।
लोग यहाँ पर इसका ,
करते खूब गुणगान ।
इसकी महानता का जब पता लगाया ।।
मैं तब कुछ जान पाया ।
घूसखोरी और घोटाला ।
यही है इसकी सबसे बड़ी शान ।।
बहू ,बेटिओं की न इज्जत होती ।
करते है लोग खूब धूम्रपान ।।
इन सब के बावजूद भी ।
भारत मेरा सबसे महान ।।
naam : dharmendra kumar
class : 9
apna ghar , kanpur

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

शीर्षक : महिला की महिमा

     महिला की महिमा 
तुझे देखते ही ।
तेरे पिता ने शीश झुकाया ।।
तेरी माँ को गाली देकर ।
स्त्री तू भी कितनी निराली ।
फिर भी न होती तेरी निगरानी ।।
जब तू एक बच्ची थी ।
अपने माँ के गर्भ से जन्मी थी ।।
घर को दौड़ा आया ।।
पूछने पर ,
मुरझाया सा जवाब पाया ।
माँ को गाली देकर ,
बेटा क्यों नहीं जन्माया ?
बेटे की महिमा ,
बड़ी ही निराली ,
हर महिला इसके चक्कर में ,
होती शोषण का शिकार ,
महिला की यह महिमा है ,
जिससे पुरुष और महिला है ।
महिला की महिमा को पहचानो ।।
फिर शोषण करने की ठानो ,
 स्त्री तू भी कितनी निराली ।
फिर भी न होती तेरी निगरानी ।।
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर , कानपुर 

शीर्षक : चोर

      चोर 
चार चोर की हुई सगाई ।
चारो थे आपस में भाई ।।
चारो एक दिन आये पास ।
ये आपस में थे उदास ।।
एक चोर ने एक बात बताई ।
बोल घर का खर्चा नहीं चलता भाई ।।
चारो हुए एक रात इकठ्ठा ।
बांध कर लाये अपना -अपना गट्ठा ।।
गट्ठे में भरा था  सामान।
रात में उनको दिखने लगा आसमान ।।
रात मे निकले अपने - अपने घर ।
रास्ते मे पुलिस चारो को लिया धर ।।
हो गया उन चोरों का खुलासा ।
टूट गई उनकी घर जाने की आशा ।।
नाम : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर ,कानपुर 

शीर्षक : कुछ काम करो

   कुछ काम करो 
इस बार ठण्ड का आया मौसम ।
जिससे की सारा शहर गया सहम ।।
तूने न पहचाना , यह है तेरा भ्रम ।
सर्दी मे भी बोले हर -हर गंगे  हम ।।
सूरज न दिखता ,यह है तेरा है भ्रम ।
सर्दी में कोहरे का दिखता कोहराम ।।
सुन लो बच्चो , सुन लो तुम ।।
छुट्टी मे कर लो आराम ।
इतना भी न करना आराम ।।
किन कोई जन दे तुमको एक भी काम ।
कुछ काम करो और बन जाओ शाबाशी के लायक ।
जिससे कोई न कह पाए मक्कार , निकम्मा नालायक ।।
नाम : आशीष कुमार 
कक्षा : 10
अपना घर ,कानपुर 

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

शीर्षक : हुई बहस

    हुई बहस 
हुई बहस ,
यह कैसी बहस ,
जिंदगीसे जुड़ी  बहस ,
राहों पर है खड़ी बहस ,
इन्तजार करती बस एक घड़ी ,
बहस हो खड़ी ,बहस से लड़ी ,
सुबह सो कर जल्दी उठने की पड़ी ,
न तो बहस हो जायेगी खड़ी ,
शाम नींदों से भरी ,
रात सोने की पड़ी ,
ये जिंदगी की घड़ी ,
हमको है जीने की पड़ी ,
हो हाथो में छड़ी ,
बहस दूर हो जाए कड़ी ,
नाम :हंसराज कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर , कानपुर 

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

शीर्षक: क्या इसके सिवा कोई काम धंधा नहीं

 क्या इसके सिवा कोई काम धंधा नहीं
भाई बहनों  नहीं के नहीं , बाप बेटी का रहा नहीं ।
हवस के इस दौर में , क्या- क्या नहीं ।।
दिल, जिगर , जज्बात सब बिक चुका है ।
बचाना नहीं इंशा नियत खत्म , हैवान जाग गया है ।।
सुरछित नहीं वो , जिसकी जेब मे पैसा नहीं  है ।।
कितनी दर्दनाक मौत हुई उन मासूमों की ।
फैसला जिसका आजतक हुवा नही।।
जानवर से बत्तर जिंदगी जीते हो ।
इंसानियत की राह पर क्यो चलते नहीं ।
क्यों इस राह पर चल पड़ते है लोग ?
क्या इसके सिवा कोई काम - धंधा नहीं
?
                                                                                                    dharmendra kumar
                                                                   class :9

                                                                   apna ghar ,kaanpur