गुरुवार, 17 मई 2012

कविता :- अधूरी आज़ादी

अधूरी आज़ादी 
जब-जब मिली है....
मुझे अधूरी आज़ादी,
तब-तब किया है....
मैंने समय की बर्बादी,
आज़ादी में नहीं लिया मैंने....
कई सारी किताबों का ज्ञान,
आज़ादी में ही मैंने लगा दिया....
खेलने और मस्ती में ध्यान,
जब एक दिन आज़ादी ख़त्म हुई....
तब मुझे समझ में आया,
आज़ादी में सुधरते है लोग....
आज़ादी में बिगड़ते हैं लोग,
जैसा मन में चाहोगे....
वैसा ही बन जाओगे,
नाम : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 8 
अपना घर 

1 टिप्पणी:

manju gupta ने कहा…

bahut sunder