मास्टर साहब आये पूछा कहाँ गए थे ?
मैने कहा जाने कब से यहीं पर बैठे थे ।
न जाने आप का कोई पता नहीं ,
डर के मारे आपका काम किये बगैर मैं सोया नहीं ....
काम हुआ जैसे ही पूरा ,
खाया मैनें चार- पांच खीरा ....
खीरा था या उसमें थे कंकड़ ,
आगें वाले मेरे दांत टूटे धड़-धड ....
सोया नहीं मैं रात भर ,
क्योंकि दांत दर्द हो रहे थे बड़ी जोर ....
मास्टर साहब बोले इसमें मेरा क्या कसूर ,
काम किया तुमने पूरा इसलिए तुम हो बेकसूर ....
काम किया जब पूरा हमने ,
तब शाबाशी दी मास्टर शाहब ने .....
लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर....
bachhonkakona.blogspot.com
बेहतरीन प्रस्तुति.
एक टिप्पणी भेजें