रविवार, 28 जुलाई 2024

कविता :"चाँद का टुकड़ा "

"चाँद का टुकड़ा "
मै नन्हा चाँद का टुकड़ा ,
मजदूर माँ- बाप का बेटा हूँ | 
मै नन्हा चाँद का टुकड़ा ,
माँ -बाप का छोटा का कलेजा हूँ | 
शाम सवेरे सूरज चाँद ,
एकटक से देखता हूँ | 
मेरे माँ बाप आपसे रूठता मै रोता हूँ ,
आसुंओ से भरे ,मै नयन से अपने | 
चमक को फिर से छूना चाहता हूँ ,
मै दीप दुआ में मांगता हूँ | 
पंख दिला दो हाथ में ,
मै गगन में उड़ना चाहता हूँ | 
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

  

कोई टिप्पणी नहीं: