"चाँद का टुकड़ा "
मै नन्हा चाँद का टुकड़ा ,
मजदूर माँ- बाप का बेटा हूँ |
मै नन्हा चाँद का टुकड़ा ,
माँ -बाप का छोटा का कलेजा हूँ |
शाम सवेरे सूरज चाँद ,
एकटक से देखता हूँ |
मेरे माँ बाप आपसे रूठता मै रोता हूँ ,
आसुंओ से भरे ,मै नयन से अपने |
चमक को फिर से छूना चाहता हूँ ,
मै दीप दुआ में मांगता हूँ |
पंख दिला दो हाथ में ,
मै गगन में उड़ना चाहता हूँ |
कवि :पिंटू कुमार ,कक्षा :9th
अपना घर
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