रविवार, 18 जुलाई 2010

कविता प्रथ्वी है गोल

प्रथ्वी है गोल
प्रथ्वी है गोल गोल ,
आदमी है पोल पोल....
बहुत सारे लागे है पेड़,
इसे कटाने वाले है ये इंशान....
पेड़ को बचाओ मेरे यार,
तभी तो होगा इस प्रथ्वी हल चल बंद....
ये प्रशाषण कुछ भी न करे,
सिर्फ बैठे बैठे ए.सी । की हवा खाये....
लेखक जमुना कक्षा अपना घर कानपुर