गुरुवार, 8 जुलाई 2010

कविता हुयी बरसात

हुयी बरसात
झम झम झम |
चप्पल पहनकर निकले हम||
पानी बरसे तड तड|
ओले गिरते कण कण||
तालाब जाये भर भर|
मेडक बोले टर्र टर्र||
झम झम झम|
चप्पल पहनकर निकले हम ||
पानी का मजा खून लिया|
लेकिन पेड़ पौधों को कुछ नदिया||
पानी हमारा जीवन हैं|
इसके बिना दुनिया आजीवन हैं||
पानी को बर्बाद होने से हम बचायेगे|
पानी सबके लिए बहुत जरुरी हैं||
इसके बिना दुनिया आधूरी हैं||
लेखक मुकेश कुमार कक्षा अपना घर कानपुर

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