जल
इस समय पानी का हैं बहुत तोता|
पैसे में बिकता हैं पानी एक लोटा ||
बरसात में करोड़ों लीटर बर्बाद हो जाता|
लेकिन किसी का इस पर ध्यान न जाता||
बरसात के पानी का कैसे करें उपयोग|
अब हम न करे इसका दुर्पयोग ||
बहुत लोग पानी बचने पर देते हैं तर्क|
लेकिन इसका किसी पर न पड़ता फर्क||
बरसात के पानी का हम करे सरंक्षण|
न होने देगे हम अब इसका भक्षण||
शनिवार, 31 जुलाई 2010
शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
कविता मोर आया
मोर आया
देखो रंग बिरंगा मोर आता हैं |
बच्चे देखकर करते हैं शोर||
मोर आते हैं बच्चों के शोर से|
बच्चे देखकर करते शोर||
एक बच्चे ने मोर को पकड़ा|
बच्चे करने लागे लड़ाई झगडा||
लड़ाई झगडा मत करो|
मिल जुल कर रहे हम सब बच्चे||
देखो रंग बिरंगा मोर आता हैं |
बच्चे देखकर करते हैं शोर||
मोर आते हैं बच्चों के शोर से|
बच्चे देखकर करते शोर||
एक बच्चे ने मोर को पकड़ा|
बच्चे करने लागे लड़ाई झगडा||
लड़ाई झगडा मत करो|
मिल जुल कर रहे हम सब बच्चे||
लेखक चन्दन कक्षा ४ अपना घर कानपुर
बुधवार, 28 जुलाई 2010
कविता :महंगाई का राज
महंगाई का राज
महंगाई का राज है भैया ।
कहाँ गयी है सरकार भैया ॥
परवल,कुंदरू के सामने ।
फेल है गेंहू ,चावल और दाल ॥
महंगाई का राज है भैया ।
टमाटर को न पूँछों भैया ॥
पहुँच गया है पैतालीस के पार ।
यह है मंहगाई का हाल ॥
तो क्या होगा इस देश का हाल ।
मंहगाई का राज है भैया ॥
महंगाई का राज है भैया ।
कहाँ गयी है सरकार भैया ॥
परवल,कुंदरू के सामने ।
फेल है गेंहू ,चावल और दाल ॥
महंगाई का राज है भैया ।
टमाटर को न पूँछों भैया ॥
पहुँच गया है पैतालीस के पार ।
यह है मंहगाई का हाल ॥
तो क्या होगा इस देश का हाल ।
मंहगाई का राज है भैया ॥
लेखक :सागर कुमार
कक्षा :७
अपना घर
कक्षा :७
अपना घर
रविवार, 25 जुलाई 2010
कविता : ब्रह्माण्ड
ब्रह्माण्ड
यह ब्रह्माण्ड है कितना अनोखा ।
इसको गौर से हमने नहीं है देखा ॥
कैसा है ये ब्रह्माण्ड हमारा ।
जिसमें छोटा सा है संसार हमारा ॥
क्या कहीं और भी होगा जीवन ।
क्या वहां पर भी होगा अपना पन ॥
यह तो है एक अनोखी कहानी ।
जो अभी तक हमनें नहीं जानी ॥
मैं भी जाऊँगा एक दिन चाँद पर ।
जहाँ पर नहीं है हवा, पानी और घर ॥
ये अजीब सा ब्रह्माण्ड होगा कैसा ।
जैसा हमने सोंचा क्या होगा वैसा ॥
यह ब्रह्माण्ड है कितना अनोखा ।
इसको गौर से हमने नहीं है देखा ॥
कैसा है ये ब्रह्माण्ड हमारा ।
जिसमें छोटा सा है संसार हमारा ॥
क्या कहीं और भी होगा जीवन ।
क्या वहां पर भी होगा अपना पन ॥
यह तो है एक अनोखी कहानी ।
जो अभी तक हमनें नहीं जानी ॥
मैं भी जाऊँगा एक दिन चाँद पर ।
जहाँ पर नहीं है हवा, पानी और घर ॥
ये अजीब सा ब्रह्माण्ड होगा कैसा ।
जैसा हमने सोंचा क्या होगा वैसा ॥
लेखक : धर्मेन्द्र कुमार, कक्षा :८ ,अपना घर
शनिवार, 24 जुलाई 2010
कविता : एक था राजा
एक था राजा.....
एक था शक्तिशाली राजा ।
वह बजाता था सबका बाजा ॥
प्रजाओं का रखता था ख्याल ।
लेता था सबका हाल-चाल ।।
वह राजा हरदम जाता था ननिहाल।
उसके राज्य में था सुन्दर सा ताल ॥
राजा का सबके प्रति अच्छा था व्यवहार।
सबके साथ मिलकर मनाता था त्यौहार॥
एक था शक्तिशाली राजा।
वह बजाता था सबका बाजा ।।
एक बार युध्द हुआ घमासान।
राजा युध्द जीतकर हुआ महान॥
राजा सभी से करता था प्यार।
नहीं करता गरीबों पर अत्याचार॥
और उसका अच्छा था शासनकाल।
उसके राज में कभी न पड़ा आकाल॥
एक था शक्तिशाली राजा ।
वह बजाता था सबका बाजा ॥
एक था शक्तिशाली राजा ।
वह बजाता था सबका बाजा ॥
प्रजाओं का रखता था ख्याल ।
लेता था सबका हाल-चाल ।।
वह राजा हरदम जाता था ननिहाल।
उसके राज्य में था सुन्दर सा ताल ॥
राजा का सबके प्रति अच्छा था व्यवहार।
सबके साथ मिलकर मनाता था त्यौहार॥
एक था शक्तिशाली राजा।
वह बजाता था सबका बाजा ।।
एक बार युध्द हुआ घमासान।
राजा युध्द जीतकर हुआ महान॥
राजा सभी से करता था प्यार।
नहीं करता गरीबों पर अत्याचार॥
और उसका अच्छा था शासनकाल।
उसके राज में कभी न पड़ा आकाल॥
एक था शक्तिशाली राजा ।
वह बजाता था सबका बाजा ॥
लेखक : मुकेश कुमार, कक्षा ९, अपना घर
शुक्रवार, 23 जुलाई 2010
कविता :बरसात का मौसम
बरसात का मौसम
बरसात का मौसम आया ।
काले-सफेद बादल लाया ॥
पानी की बूंदे गिरती टप-टप-टप ।
बच्चे पानी में फिरते छ्प-छ्प-छ्प ॥
झूम-झूमकर हर डाली गाती ।
ठन्डी-ठन्डी हवा सबके मन को भाती ॥
मेढ़क करता टर्र-टर्र-टर्र ।
मोटर गाड़ी करती भर्र-भर्र-भर्र ॥
कोयल गाती सब मुस्काते ।
हरे-हरे खेत लहराते ॥
खेतों में ट्रैक्टर चलते ।
किसान जौ,makke के बीज बोते ॥
बरसात का मौसम आया ।
काले-सफेद बादल लाया ॥
पानी की बूंदे गिरती टप-टप-टप ।
बच्चे पानी में फिरते छ्प-छ्प-छ्प ॥
झूम-झूमकर हर डाली गाती ।
ठन्डी-ठन्डी हवा सबके मन को भाती ॥
मेढ़क करता टर्र-टर्र-टर्र ।
मोटर गाड़ी करती भर्र-भर्र-भर्र ॥
कोयल गाती सब मुस्काते ।
हरे-हरे खेत लहराते ॥
खेतों में ट्रैक्टर चलते ।
किसान जौ,makke के बीज बोते ॥
लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
कविता :गाते गान
गाते गान
थोड़ी सी ठंडक हुयी
बारिश की बूंदे आयीं
सूखी धरती पर हरियाली आयी
सभी खगों में खुशियाँ छायीं
निकले सारे खग गाते गान
अगुलियों से करें इशारा
बच्चे देखें चन्दा मामा प्यारा
थोड़ी सी ठंडक हुयी
थोड़ी सी ठंडक हुयी
बारिश की बूंदे आयीं
सूखी धरती पर हरियाली आयी
सभी खगों में खुशियाँ छायीं
निकले सारे खग गाते गान
अगुलियों से करें इशारा
बच्चे देखें चन्दा मामा प्यारा
थोड़ी सी ठंडक हुयी
लेखक :अशोक कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
बुधवार, 21 जुलाई 2010
कविता :लूट का शोर मचा
लूट का शोर मचा
शोर मचा भाई शोर मचा
इस जंगल में शोर मचा
चोर आयें हैं माल लूटनें
नेता जी आयें हैं वोट लूटनें
चोर ढूंढे माल कहाँ है
नेता ढूंढे इंसान कहाँ है
चोर ने लूटा बंदूक दिखाकर
नेता ने वोट लूटे धमकी देकर
चोरों के खिलाफ जो भी बोला
समझो उसकी तिजोरी का टूटा ताला
जिसने न दिया नेता जी को वोट
नेता जी ने पहुंचाई उनको गहरी चोट
शोर मचा भाई शोर मचा
इस जंगल में शोर मचा
चोर आयें हैं माल लूटनें
नेता जी आयें हैं वोट लूटनें
चोर ढूंढे माल कहाँ है
नेता ढूंढे इंसान कहाँ है
चोर ने लूटा बंदूक दिखाकर
नेता ने वोट लूटे धमकी देकर
चोरों के खिलाफ जो भी बोला
समझो उसकी तिजोरी का टूटा ताला
जिसने न दिया नेता जी को वोट
नेता जी ने पहुंचाई उनको गहरी चोट
लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
मंगलवार, 20 जुलाई 2010
कविता: फैला दी अपनी लालिमा
फैला दी अपनी लालिमा
जग -मग जग-मग उगता सूरज ,
लेकर अपनी लाली मूरत....
तब पृथ्वी पर आती है छाया,
पृथ्वी पर फैला दी माया....
लाकर अपनी घन घोर छाया ,
चू -चू चिड़िया चह चहा रही है.....
लगता है जंगल में गाना गा रही है,
पेड़ पौधे सब मगन हो गये है.......
लगता है जंगल में बिस्तर डालकर सो गये,
मंद-मंद हवा बह रही है ......
कल- कल करके नदियाँ गीत गा रही है,
अपने उमंग में बही चली जा रही है......
जैसा लगता है शीतकाल आ गया हो,
वनस्पतियों को देखकर भविष्यकाल याद आ गया हो.....
जग -मग जग -मग उगता सूरज,
लेकर अपनी लाली मूरत.....
जग -मग जग-मग उगता सूरज ,
लेकर अपनी लाली मूरत....
तब पृथ्वी पर आती है छाया,
पृथ्वी पर फैला दी माया....
लाकर अपनी घन घोर छाया ,
चू -चू चिड़िया चह चहा रही है.....
लगता है जंगल में गाना गा रही है,
पेड़ पौधे सब मगन हो गये है.......
लगता है जंगल में बिस्तर डालकर सो गये,
मंद-मंद हवा बह रही है ......
कल- कल करके नदियाँ गीत गा रही है,
अपने उमंग में बही चली जा रही है......
जैसा लगता है शीतकाल आ गया हो,
वनस्पतियों को देखकर भविष्यकाल याद आ गया हो.....
जग -मग जग -मग उगता सूरज,
लेकर अपनी लाली मूरत.....
लेखक: मुकेश कुमार, कक्षा ९, अपना घर, कानपुर
सोमवार, 19 जुलाई 2010
कविता बरसात का महीना
बरसात का महीना
बरसा पानी आया बरसात का महीना ,
सभी ने मिलकर खूब झूमा....
फसल कटी और भीगे खेत,
राजस्थान से भी हट गयी रेत....
आ गयी गाँव में हरियाली,
रही न सीमा खुशी से खाली....
खुल गये स्कूल बच्चे खूब पढ़े,
पढ़ लिख कर वे आगे बढे.....
पेपर हुये जब सब हुये पास,
इस बार की छुट्टी रही न खास.....
बरसा पानी आया बरसात का महीना ,
सभी ने मिलकर खूब झूमा....
फसल कटी और भीगे खेत,
राजस्थान से भी हट गयी रेत....
आ गयी गाँव में हरियाली,
रही न सीमा खुशी से खाली....
खुल गये स्कूल बच्चे खूब पढ़े,
पढ़ लिख कर वे आगे बढे.....
पेपर हुये जब सब हुये पास,
इस बार की छुट्टी रही न खास.....
लेखक सोनू कक्षा ९ अपना घर कानपुर
रविवार, 18 जुलाई 2010
कविता प्रथ्वी है गोल
प्रथ्वी है गोल
प्रथ्वी है गोल गोल ,
आदमी है पोल पोल....
बहुत सारे लागे है पेड़,
इसे कटाने वाले है ये इंशान....
पेड़ को बचाओ मेरे यार,
तभी तो होगा इस प्रथ्वी हल चल बंद....
ये प्रशाषण कुछ भी न करे,
सिर्फ बैठे बैठे ए.सी । की हवा खाये....
प्रथ्वी है गोल गोल ,
आदमी है पोल पोल....
बहुत सारे लागे है पेड़,
इसे कटाने वाले है ये इंशान....
पेड़ को बचाओ मेरे यार,
तभी तो होगा इस प्रथ्वी हल चल बंद....
ये प्रशाषण कुछ भी न करे,
सिर्फ बैठे बैठे ए.सी । की हवा खाये....
लेखक जमुना कक्षा ४ अपना घर कानपुर
मंगलवार, 13 जुलाई 2010
कविता :हमारा ब्रह्माण्ड
हमारा ब्रह्माण्ड
यह ब्रह्माण्ड है कितना बड़ा
किस ग्रह पर हवा और पानी
यह सब कितना आजीब है
यह बात है अब हमने जानी
पृथ्वी पर ही देखा बस जीवन
जहां पर जीने की हर सुविधा
कुछ भी कहो लेकिन
यहाँ पर है हर चीज की सुविधा
इस अजीब सी दुनिया की
है हर बात निराली
हमको तो नहीं लगता है
की ब्रह्माण्ड है जीवों से खाली
यह ब्रह्माण्ड है कितना बड़ा
किस ग्रह पर हवा और पानी
यह सब कितना आजीब है
यह बात है अब हमने जानी
पृथ्वी पर ही देखा बस जीवन
जहां पर जीने की हर सुविधा
कुछ भी कहो लेकिन
यहाँ पर है हर चीज की सुविधा
इस अजीब सी दुनिया की
है हर बात निराली
हमको तो नहीं लगता है
की ब्रह्माण्ड है जीवों से खाली
लेखक :धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
रविवार, 11 जुलाई 2010
कविता :बरसात का मौसम
बरसात का मौसम
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ।
देता शीतल हवा और ठंडक ॥
बरसात का अब मौसम आया ।
बादल गरजा बरसा पानी ॥
खूब मजे से बच्चे नहाए ।
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ॥
देता शीतल हवा और ठंडक ।
पानी बरसा हरियाली फैली ॥
घर-घर में खुशहाली आयी ।
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ॥
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ।
देता शीतल हवा और ठंडक ॥
बरसात का अब मौसम आया ।
बादल गरजा बरसा पानी ॥
खूब मजे से बच्चे नहाए ।
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ॥
देता शीतल हवा और ठंडक ।
पानी बरसा हरियाली फैली ॥
घर-घर में खुशहाली आयी ।
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ॥
लेखक :सागर कुमार
कक्षा :७
अपना घर
कक्षा :७
अपना घर
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
कविता हुयी बरसात
हुयी बरसात
झम झम झम |
चप्पल पहनकर निकले हम||
पानी बरसे तड तड|
ओले गिरते कण कण||
तालाब जाये भर भर|
मेडक बोले टर्र टर्र||
झम झम झम|
चप्पल पहनकर निकले हम ||
पानी का मजा खून लिया|
लेकिन पेड़ पौधों को कुछ नदिया||
पानी हमारा जीवन हैं|
इसके बिना दुनिया आजीवन हैं||
पानी को बर्बाद होने से हम बचायेगे|
पानी सबके लिए बहुत जरुरी हैं||
इसके बिना दुनिया आधूरी हैं||
झम झम झम |
चप्पल पहनकर निकले हम||
पानी बरसे तड तड|
ओले गिरते कण कण||
तालाब जाये भर भर|
मेडक बोले टर्र टर्र||
झम झम झम|
चप्पल पहनकर निकले हम ||
पानी का मजा खून लिया|
लेकिन पेड़ पौधों को कुछ नदिया||
पानी हमारा जीवन हैं|
इसके बिना दुनिया आजीवन हैं||
पानी को बर्बाद होने से हम बचायेगे|
पानी सबके लिए बहुत जरुरी हैं||
इसके बिना दुनिया आधूरी हैं||
लेखक मुकेश कुमार कक्षा ९ अपना घर कानपुर
सोमवार, 5 जुलाई 2010
कविता मौसम
मौसम
रोज रोज का ये मौसम कैसा,
बदलता हैं ये रोज रंग कैसा....
आसमान में ये छाये बादल,
टप टप पानी बरसाए बादल.....
पानी ये बरसता कैसा,
हवा के साथ उड़ता जैसा.....
रोज रोज बादल पानी बरसाए,
संग में अपने हवा को लाया.....
चलती है हवाये जब जोर से,
तब बरसात है पानी चारो ओर से....
रोज रोज का ये मौसम कैसा,
बदलता है ये रोज रंग कैसा.....
रोज रोज का ये मौसम कैसा,
बदलता हैं ये रोज रंग कैसा....
आसमान में ये छाये बादल,
टप टप पानी बरसाए बादल.....
पानी ये बरसता कैसा,
हवा के साथ उड़ता जैसा.....
रोज रोज बादल पानी बरसाए,
संग में अपने हवा को लाया.....
चलती है हवाये जब जोर से,
तब बरसात है पानी चारो ओर से....
रोज रोज का ये मौसम कैसा,
बदलता है ये रोज रंग कैसा.....
लेखक ज्ञान कक्षा ७ अपना घर कानपुर
रविवार, 4 जुलाई 2010
कविता गर्मी
गर्मी
इस भीषण काल गर्मी में ,
सूख गयी हैं नदिया सारी....
परेशान हैं हर मनुष्य,
क्यों बरसा नहीं पानी....
इस भीषण काल गर्मी में,
अगर पानी को हैं पाना.....
तो हर हाल में होगा वृक्ष लगना,
इस भीषण काल गर्मी में.....
इस भीषण काल गर्मी में ,
सूख गयी हैं नदिया सारी....
परेशान हैं हर मनुष्य,
क्यों बरसा नहीं पानी....
इस भीषण काल गर्मी में,
अगर पानी को हैं पाना.....
तो हर हाल में होगा वृक्ष लगना,
इस भीषण काल गर्मी में.....
लेखक सागर कुमार कक्षा ७ अपना घर कानपुर
शनिवार, 3 जुलाई 2010
कविता : मौसम हुआ सुहाना
मौसम हुआ सुहाना
अब हुआ सुहाना मौसम
पानी गिर रहा है रिमझिम-रिमझिम
बूदें लगती गालों पर
खुशियाँ आती सब के चेहरों पर
हरियाली आती खेतों पर
हरी-हरी घास उगी है मेड़ों पर
अब खेतों में होगी खेती
अब मैं हूँ ठंठी यह धरती कहती
अब हल चल रहे हैं खेतों पर
और बैल टहल रहे हैं अब खेतों पर
यह मन सबका कैसा है
क्योंकि इस पानी मैं नहाने को तरसा है
अब हुआ सुहाना मौसम
पानी गिर रहा है रिमझिम-रिमझिम
बूदें लगती गालों पर
खुशियाँ आती सब के चेहरों पर
हरियाली आती खेतों पर
हरी-हरी घास उगी है मेड़ों पर
अब खेतों में होगी खेती
अब मैं हूँ ठंठी यह धरती कहती
अब हल चल रहे हैं खेतों पर
और बैल टहल रहे हैं अब खेतों पर
यह मन सबका कैसा है
क्योंकि इस पानी मैं नहाने को तरसा है
लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
शुक्रवार, 2 जुलाई 2010
कविता जब आयेगा तूफान
जब आयेगा तूफान
एक दिन आया एक तूफान ,
कर दिया सबको आनन फेन....
तूफान एतान्री जोर से आया था,
पेड़ पत्ती भी डगमगाया था....
तभी एक चिड़िया आयी,
उसने एक कहानी सुनायी.....
तूफान आया तो आने दो,
फल फूलो को गिर जाने दो....
नया वृक्ष बन जाने दो,
उससे छाया पायगे.....
खुशहाल जीवन बितायेगे,
वृक्ष अगर अधिक लगाओगे.....
पानी खूब बरसाओगे,
हरी भरी दुनिया बनाओगे....
स्वच्छ समाज का निर्माण करायेगे,
एक दिन आया एक तूफान.....
एक दिन आया एक तूफान ,
कर दिया सबको आनन फेन....
तूफान एतान्री जोर से आया था,
पेड़ पत्ती भी डगमगाया था....
तभी एक चिड़िया आयी,
उसने एक कहानी सुनायी.....
तूफान आया तो आने दो,
फल फूलो को गिर जाने दो....
नया वृक्ष बन जाने दो,
उससे छाया पायगे.....
खुशहाल जीवन बितायेगे,
वृक्ष अगर अधिक लगाओगे.....
पानी खूब बरसाओगे,
हरी भरी दुनिया बनाओगे....
स्वच्छ समाज का निर्माण करायेगे,
एक दिन आया एक तूफान.....
कर दिया सबको आमान फेन....
लेखक मुकेश कक्षा ९ अपना घर कानपुर
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
कविता :प्रदूषण
प्रदूषण
प्रदूषण ने किया है परेशान ।
खोले हैं ये फैक्ट्रियों की खान ॥
गर्मी से हैं अब सब बेहाल ।
मत पूछों अब किसी का हाल ॥
जब मार्च के महीने में है यह हाल ।
तो मई जून आदमी हो जाएगा लाल ॥
आगे और पता नहीं क्या होगा ।
आदमी का कुछ पता नहीं होगा ॥
गाड़ी मोटर कार जो चलाते ।
जाने कितना ये प्रदूषण कर जाते ॥
क्यों न करें हम साइकिल का इस्तेमाल ।
शायद सुधर जाए थोड़ा हाल ॥
पड़ रही है गर्मी बहुत इस बार ।
पहुँच गया है पारा ४६ के पार॥
प्रदूषण ने किया है परेशान ।
खोले हैं ये फैक्ट्रियों की खान ॥
गर्मी से हैं अब सब बेहाल ।
मत पूछों अब किसी का हाल ॥
जब मार्च के महीने में है यह हाल ।
तो मई जून आदमी हो जाएगा लाल ॥
आगे और पता नहीं क्या होगा ।
आदमी का कुछ पता नहीं होगा ॥
गाड़ी मोटर कार जो चलाते ।
जाने कितना ये प्रदूषण कर जाते ॥
क्यों न करें हम साइकिल का इस्तेमाल ।
शायद सुधर जाए थोड़ा हाल ॥
पड़ रही है गर्मी बहुत इस बार ।
पहुँच गया है पारा ४६ के पार॥
लेखक :धर्मेन्द्र
कक्षा :८
अपना घर
कक्षा :८
अपना घर
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