"लापरवाह हूँ मैं "
हवाओ के लिए हवा हूँ मै,
पर जिम्मेदारिओं के लिए लापरवाह हूँ मै|
जैसे-जैसे ही उम्र बढ़ रहा है,
जिम्मेदारिओं का सिलसिला चढ़ रहा है|
सोचता हूँ करूंगा हर चीज,
पर समझ नहीं आता की क्या करून मै|
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै,
सपने तो सजाये थे बहुत बड़े-बड़े|
पर उनके समस्यांओ के लिए कभी नहीं लड़े,
मौज मस्ती में ही दिन कट गए सब|
तब जाकर देखा की कंहा हूँ मै ,
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै |
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th
अपना घर