गुरुवार, 20 मार्च 2025

Poem: " End - up of Examination "

  " End - up of Examination "
Ready for the end - up of examination,
after then there will be a Vacation. 
Children can have time learn and spend,
because there will be a dance, music will held. 
many students can also go to home,
to give time to Family and to Roam. 
there will be the time for the result of the year, 
after this new session will be near.
In new session, new class with new friends
and new teachers will be there,
lots of happiness will come with tear.
Ready for the end - up of examination,
I wish you enjoy you all summer vacation.

Poet: Pankaj Kumar, class: 10th,
Apna Ghar.

मंगलवार, 18 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

 " होली आई " 
आ गया है होली का त्योहार। 
आ गया है रंगो का त्योहार। 
लोग भेद - भाव जैसा नहीं करते है व्यवहार , 
चाहे हिन्दू हो या मुश्लिम , 
सब मिलकर मनाते है  त्योहार।  
खुशियाँ लहलाती धीरे - धीरे मे ,
ये है होली का त्योहार। 
खाएगे चुर्री और गुजिया ,
बटेगे सबको प्यार। 
खुशी खुशी मे मनाऐंगे ,
ये होली का त्यौहार ,
आ गया है रंगों  का त्योहार। 
कवि ; नवलेश  कुमार , कक्षा : 10th, 
अपना घर। 

कविता : " परेशानी "

 " परेशानी "
कितनी बदली हुई है महफिले ,
जो फुर्सत नहीं किसी को, 
जो गुजरे हुआ कल को निहारे ,
हर किसी की अपनी परेशानीयाँ है। 
इन परेशानियाँ कि अपनी कहानियाँ है। 
जहा देखू उदासीन मिले जहान सारा ,
ना जाने क्यों बना बैठा बेगाना ,
नजरे भी अब झुक जाती है। 
इन नराहो पर जवाब दे जाती है। 
इन परेशानियाँ न जाने कितनी को दुख दे जाती है। 
कभी - कभी सोचता हूँ सब खत्म हो जाए ,
ये दुखो का पहाड़ कही गुम हो जाए। 
इतनी फुर्सत  नहीं है अब अपने को ,
जो देख सके बीते हुए सपने को ,
वो मस्त बचपन खेल राह था सपने को ,
मन की बात छपा न पाया मन में ,
अब कहाँ छिपाए इन परेशनियाँ को। 
कोई जगह नहीं जहाँ रखू इन कहानियों को। 
कवि : साहिल कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "

 " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "  
 तेरी मैं तलाश में 
मन - मन भटकता हूँ ,
हुआ नहीं कभी भेट ये मंजिल से  ,
एक बैठा जा किस वन - बाग में ,
दिखता नहीं तू कैसा है रे ,
धुँधला - धुँधला क्यों राह में ?

उम्मीदे झलख रही है ,
मन यूँ ही निराश है ,
चार कदम चले बिना है।  
चरण छितराए विराम करुँ, 
पड़ा हु आधी राह में। 
पूछ रहा हूँ तुझसे ये मंजिल ,
गुमसुम , क्यों है ये राह में ? 

माँ - बहन के हाथों खाए ,
हो रहे हैं लम्बे वक्त। 
ठेंस - ठेंस है यहाँ पे इतना ,
की भर आए मेरे आँख ये मंजिल। 
इस जख्म को करे कौन मरहम - पट्टी ,
मैं अकेला ही इस एकांत में। 
कहाँ मिलेगी सतरंग ये मंजिल ,
गरीबी  क्यों है ये राह में। 
कवि : पिंटू कुमार ,कक्षा : 10th,
अपना घर।  

कविता : " रंगो का ये होली "

 " रंगो का ये होली "
होली आया होली आया। 
साथ में बहुत सारे रंग लाया। 
खुशियां ही खुशियां चारो ओर लहराया।  
होली आया होली आया। 
साथ में मिठे - मिठे गुजिया लाया। 
रंगो का नाम ही होली है। 
बोलिए बुरा न मानो होली है। 
कवि : अप्तर हुसैन , कक्षा : 8th,
अपना घर। 

कविता : " होली "

 " होली "  
होली है ये होली है , 
खुशियों की ये होली है।
साल में एक बार आता होली ,
सब का मन बहलाता होली। 
 लोग यही तो चाहते हर साल ,
हम सब मिलकर मनाए होली। 
होली में खाए गुजिया ,
गुजिया खाकर मौज उड़ाए। 
होली है ये होली है। 
कवि : अजय कुमार , कक्षा :6th,
अपना घर। 

सोमवार, 17 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

" होली आई " 
होली रंगो का त्यौहार हैं। 
होली में रंगो का बौछार है। 
तरह - तरह की मिठाइयाँ ,
और नमकीन का स्वाद है।
होली रंगो का त्यौहार है। 
एक - दूसरे को रंग लगाकर प्यार जताए। 
घर - घर जाकर खुशियाँ बाँट आए। 
तरह - तरह के रंगो का सिंगार है। 
बच्चे और बूढ़े रंग लगाने को त्यार हैं। 
होली का यह त्यौहार है। 
कवि : निरंजन कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 
  

कविता : " ज्यादा नाज़ मत करना "

 " ज्यादा नाज़ मत करना "
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफ़लताओं पर। 
वक्त सबकुछ बदल देता है इस जहाँ में। 
इस जहाँ में लोग आते है जिंदगी में हररोज ,
फिजूल वक्त जया मत करना मुस्कुराने में। 
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कभी - कभी नीचे ही उदा  ले जाती सपनो को ,
 सबकुछ बदलकर साहिल पर छोड़ जाती हैं। 
ऊंची सफलताओं में ,
बढ़ती असफलताओ से निराश मत होना जिंदगी में। 
वक्त सबकुछ बदल देता हैं इस जहाँ में। 
विशवास करना अपनी उचाइयो मे ,
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कवि : निरु कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : "बचपन "

  " बचपन "
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
सुबह उठना और स्कूल आना जाना था। 
उस बचपन में डाट मार तो हम ने भी खाए हैं। 
पर रोकर भी बत्तीसी दिखाना ,
बस एक बहाना था। 
पढ़ाई चाहकर भी न करना , 
पर दोस्तो के साथ समय उड़ाना था। 
खेलने के लिए  सबसे पहले आगे पहुच जाना ,
और उसी में पूरा समय बिताना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
दोस्तों के साथ लड़ना और 
दुसरो को लड़ना था। 
कभी - कभी तो मार हम भी खा जाते ,
पर बाद में उसको भी चिढ़ाना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था।  
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

रविवार, 16 मार्च 2025

कविता : " हौसला रखो "

 " हौसला रखो "
 हालातो से तंग आकर ,
उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया। 
जूनून थे शरीर के अंग - अंग में  ,
पर उसको  जगाने के लिए मुँह मोड़ लिया 
हौसले बढ़ जाएगी ,
चीज तो नहीं मिलेगी ,
पर उम्मीद रखो ,
चड़ना होगा तो चाँद पर भी चढ़ जाएगे। 
उम्मीद के नीचे भी बूस्टर लगाने की चाह हैं। 
आगे क्या होगा इसका न कोई परवाह हैं। 
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

सोमवार, 10 मार्च 2025

कविता: " महा मुकाबला "

  " महा मुकाबला " 
होगा आज दो टीमों में छोड़ ,
जीत - हार के बाद होगी तोड़ - फोड़। 
भारत - नेवजीलैंड एक साथ आएगे ,
स्टेडियम में दिखेंगे दोनों टीमों के फैंस ,
भरता से रोहित , विराट व ,
हार्दिक खेलेंगे धुआँ धड़ पारी। 
वरुण , अक्षर वह जादू पड़ेगे नेवजीलैंडपर। 
सभी की निगाहे तिकी रहेंगे ,
टीम इंडिया को जीतनी पड़ेगी ,
 बाद आतिसबाजी दिखेगी। 
सारे खिलाड़ियों को ऑल द बेस्ट। 
जीत कर दिखा दे वो भी है बेस्ट। 
कविः निरंजन कुमार , कक्षा : 8th,
अपना घर।  
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