मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

कविता : " शायद तुमने भी लिखा होता "

 " शायद तुमने भी लिखा होता "  
शायद तुमने भी लिखा होता ,
इन जरजर हालातो को देखा होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
तरवटो पलंगों में जीवन बिता दिया ,
काश ! जमीन पर रहना सीखा होता ,
हर वक्त शोषण न किया होता ,
गरीबों की मेहनत को उड़ाया न होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
सूत - बूत पर रहना न सीखा होता ,
धोती कुर्ता पहनना सीखा होता ,
शयद तुमने भी लिखा। 
खाली पेट रहकर , रोरी का टुकड़ा खाकर ,
रातो को जमींन पर बिताकर ,
राते को बिताना सीखा होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
महलो में रहकर आराम न फरमाया होता ,
चिलचिलाती धुप में भरी दोपहरी  ,
खेत खलिहानो में काम किया होता ,
पाई - पाई का इस्तेमाल करना सीखा होता,
शायद तुमने भी लिखा होता। 
कवि : साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 
 

कविता : " प्यारी माँ "

 " प्यारी माँ " 
माँ आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है। 
तेरी लोरियाँ लगता है मुझे बुला रही है। 
कैसी  होगी मेरी माँ ये बहुत सताती है। 
फोन पर बात करू तो रोना भी आ जाता है। 
 रूठ जाऊ तो बार बार मानती थी। 
वो मुझे अपनी गोद में उठाती थी.
पता नहीं इतना सारा प्यार कहाँ से लाती थी। 
माँ हमेश उचे दर्जे निभाती थी ,
माँ आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है। 
कवि : रमेश कुमार, कक्षा : 5th, 
अपना घर। 

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

कविता : " चेतक "

कविता : " चेतक "
 देखकर चेतक का रंग ,
दुश्मनों को भी कर दिया दंग।  
राणा के हर एक इसरो को भाप जाता था,
हर वार से बचकर लोगो को मार गिराता था।
हवा से भी तेज भागने वाला ,
वह चेतक कहलता था। 
जब युद्ध केबीच उत्तरा हो ,
महाराणा प्रताप का चेतक पुतला हो। 
बीन गिरे सबको गिरा जाता था , 
हवा के सम्मान वह चेतक कह लता था। 
प्राप्त हुआ वीरगति को ,
घायल चेतक राणा की जान बचाया था ,
खाकर तीरो की मार फिर भी मार गिराया था। 
हवा के सम्मान वह चेतक कहलाता था। 
हवा से भी तेज भागने वाला ,
वह चेतक कहलता था। 
वह चेतक कहलाता था ..............।  
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 

मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

कविता : " गर्मी के दिन "

 " गर्मी के दिन "
 गर्मी का दिन वो आया ,
सुबह और शाम को सिर्फ छाया ,
बाकी समय सिर्फ धूप आया। 
दिन को इस गर्मी में ,
पसीना का नदियाँ बह आया ,
गर्मी का वो दिन आया। 
आया पेड़ो के निचे है सिर्फ छाया  ,
बाकी जगह की रोशनी छाया ,
गर्मी का दिन वो आया। 
सुबह और शाम को सिर्फ छाया। 
गर्मी का दिन वो आया। 
कवि : विष्णु कुमार, कक्षा : 6th, 
अपना घर। 

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

कविता : " एकलव्य संग कर्ण महान हुआ "

 " एकलव्य संग कर्ण महान हुआ " 
 जिसके नाम से मौत भी काप उठती थी ,
हर तीर जाके वीरो के सीनो पर जाके लगती थी , 
जिसने लोगो को किया प्रभाभित ,
तीरो के ऊपर तीर लगाया ,
  ए ए ए  से एकलव्य इस धरती पर आया। 
लेकिन थे एक महा युद्धा कर्ण थे आए ,
जो थे अर्जुन से टकराए। 
न होने के बाबजूद भी उन्होने ऊपर चाहा ,
अर्जुन थे एक दुष्ट धनुष बाड़ ,
जिन्होने दोनों का अपमान चाहा। 
कुंती पहचान लिया अपने पुत्र को 
फिर भी मौन रही। 
कर्ण भी उस अर्जुन से से टकराए थे ,
युद्ध भूमि में हारकर भी महान कहलाए थे। 
लगा डाला मौत को पला था। 
तीरो के ऊपर तीर एकलव्य चला डाला था 
कोई नहीं था साथ तो फिर भी कर्ण ने उस अर्जुन पर तीर चलाई थी ,
सोच कर यह मन अभी भी लड़ाई जारी थी। 
कृष्ण ने भी उस अर्जुन को समझया था ,
कहकर हाथ में धनुष बाड़ थमाई थी 
की वो भी जीते युद्ध भूमि को ,
अगर उस कर्ण को न मारा होता। 
क्या होता अगर एकलव्य और कारन एक साथ होते ?
देख कर यह ताल - मेल सब हैरान होते। 
एकलव्य संग कर्ण महान हुआ ,
एकलव्य संग कर्ण महान हुआ ,
एकलव्य संग कर्णमहान हुआ ..............। 
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th, 
अपना घर।  

कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "

कविता : " आपसी व्यव्हार ( २) "
वैसे तो हम नजर अंदाज नहीं करते किसी को ,
न ही बुरी नजर से देखते है ,
अरे गलती हो गई उससे छोटी सी ,
पर कुछ हम भी समझते है। 
थोड़ी सी मजबूती होगी उसकी भी ,
पर हम देखकर सवरते है ,
क्योकि हम आपसी व्यव्हार रखते है। 
अकेला रहना भी हानिकारक है ,
यह मायाजाल दिलो - दिमाग पर हावी है ,
मयूष को भी संभालते है , 
हमें पता है हमसे नाराज़ है वे सब,
लेकिन हम हालातो को देखते है। 
क्योकि हम आपसी व्यव्हार  रखते है। 
क्योकि हम आपसी व्यव्हार  रखते है ...............।
कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 11th,
अपना घर 

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

कविता : " समुद्र की लहरे "

" समुद्र की लहरे  "
वो समुन्द्र का किनारा ,
लगे आसमा जैसा प्यारा। 
लहरे तेजी से आती है और जाती है। 
लोगो के मन को भाती है। 
और लोगो भी पानी के लहरे में ,
सब स्नान कर कर आते है 
ये लहरे मन को खुश कर जाती है। 
 लहरे आती है और जाती है। 
लोगो के मन को भाटी है। 
वो समुद्र का किनारा ,
लगे आसमा जैसा प्यारा। 
कवि : अजय कुमार, कक्षा : 6th, 
अपना घर   

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

कविता : " स्कूल जाने की बारी आई "

 " स्कूल जाने की बारी आई "
 स्कूल  आ गया देखो खुलने को ,
मन करता है स्कूल चलने को।
वही टाइम  काटता सही से ,
पढ़ाई सुरु हो गई अभी से।
कभी - कभी बच्चे बोर हो जाते,
तो कभी समय मौज मस्ती में बिताते।
टीचर भी कभी पड़ने आते ,
बच्चे भी पड़ने से जान बचते।
स्कूल एक है घर के जैसा ,
जहा पर माँ - बाप का जाता पैसा। 
स्कूल में मिलता पढ़ाई अच्छा।
 
कवि : अजय कुमार, कक्षा : 11th, 
अपना घर।

कविता : " एकलव्य "

 " एकलव्य " 
थे वो एक महापुरुष , 
बिता डाली सारी जिंदगी जंगलो में , एक आदिवासी के रूप  में 
ठान रखा था बनुँगा अर्जुन जैसा धनुष बाड़ 
द्रोणाचार्य के मना करने पर भी सीखी धनुष की विध्या 
द्रोणाचार्य ने कहा अर्जुन जैसा कोई नहीं धनुष बाड़ हुआ 
तो फिर महायुद्धा एकलव्य कौन थे। 
जिससे छल से अँगूठा न माँगा होता। 
उसी समय जांगले में शिकार  के लिए गए थे अर्जुन ,
आगे - आगे उनका  कुत्ता था। 
कुत्ते ने जब देखा एकलव्य को लगा दी थी गोहार,
 था एकलव्य का सटीक निशना लगा दी तीरो की बाड़। 
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ। 
फिर उस अर्जुन ने भी द्रोणाचार्य से हरसाया था ,
की एकलव्य कौन जो  सटीक निशना तान रखा है. 
अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।
तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता। 
 फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती 
अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।  
देखकर एकलव्य का यह लड़ कौसलिया ,
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ। 
अर्जुन भी चकित हैरान हुआ............ ।
कवि : निरु कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर 

कविता : " आपसी व्यवहार "

 " आपसी व्यवहार " 
हम लड़ते नहीं है, 
संभलते है। 
गुस्से में हो फिर भी हस्ते है ,
छोटी सी बात पर नाराज़ नहीं होते हम। 
ना ही बदला चुकाते है ,
अरे भूल जाते भूतकाल की बातो को ,
बस आपसी व्यवहार जताते है। 
तुम जैसे मुँह नहीं बनाते ,
न ही दिखावा करते है हम। 
बस किसी तरह संभल जाए ये जहाँ ,
इसलिए आपसी व्यवहार 
जताते है .................। 
कवि :  सुल्तान कुमार,  कक्षा 11th,
अपना घर। 

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

कविता : " कर्ण "

 "  कर्ण हूँ मैं   " 
जिसने मौत भी को ललकार दिया ,
युद्ध के मैदान में वीरो को भी पछाड़ दिया। 
थे वो एक महापुरष , 
न नसीब हो पाया माँ का प्यार।  
क्रोध भयंकर आता था लेकिन किया उनको नाकार 
युद्व के लिए हमेशा रहते थे वो त्यार। 
लोगो ने निचा कहा  और अपमान किया,
परशुराम ने दिया कर्ण को विद्द्या ,
महा युद्धा  कर्ण हमेशा से किया प्रतिज्ञा। 
और कोई नहीं वह परशुराम का शिष्य दानवीर कर्ण हुआ। 
उसभरे समाज में कर्ण ने अर्जुन को भी ललकारा दिया। 
फिर कर्ण का  देख यह रूप कुंती भी नाकार किया। 
था गुरु परशुराम मेरा नाम दानवीर कर्ण हुआ। 
जिसने मौत भी को ललकार दिया ,
युद्व के मैदान में वीरो को पछाड़ दिया। 
कवि : निरु कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

सोमवार, 31 मार्च 2025

कविता : " कभी काम आएगे "

" कभी काम आएगे "   
 वक्त पड़ने पर सब आते है ,
काम हो जाने के बाद चले जातें है। 
वो सिर्फ आप के साथ रहने का दिखवा करते है। 
और तुरंत ही भूल जाते है ,
छड़ भर  में वो बदल जाएगे। 
हमें आधे रास्ते पर ही छोड़ जाएगे। 
तो वो नजर कहा आएगे ,
हमारे साथ रहने का दिखावा करते है। 
जब काम पड़ता है ,
तब छड़ भर में ही भूल जाते है। 
 वक्त पड़ने पर सब आते है ,
काम हो जाने के बाद चले जातें है। 
कवि :मंगल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " काम करो "

"कुछ काम करो  " 
 सुबह हो गया दोस्तों ,
उठाकर थोड़ा सा काम करो। 
क्या सोते रहोगे दिन भर ,
भविष्य में तुम पछताओगे। 
सुबह हो गया दोस्तों ,
उठकर थोड़ा सा काम करो। 
सोते - सोते मोटा हो जाओगे ,
उठकर थोड़ा काम करो। 
सुबह का ये मौसम बहुत अच्छा होता है। 
जल्दी उठकर काम करो। 
कवि : अवधेश कुमार, कक्षा : 12th,
 अपना घर। 

रविवार, 30 मार्च 2025

कविता : " माँ "

 "  मेरी माँ " 
ये लव्ज है तो उन्ही की बदौलत।  
जिंदगी भी तो उन्ही की बदौलत। 
जननी होकर मेरी अम्मा दरजा निभा  लिया। 
इतने काबिल है तो उन्ही की बदौलत ,
खुशियाँ  जिंदगी भेंट में दे दी। 
जिंदगी में मेरा नसीब लिख  दिया ,
दिग्गज है औलाद पर जिसने अपने अम्मा को भुला दिया ,
मेरी तो जान है वो। 
 जिसे मैने  हृदय  में बैठा। 
ये लव्ज है तो उन्ही की बदौलत।  
जिंदगी भी तो उन्ही की बदौलत। 
कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 10th ,
अपना घर। 

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

कविता : " क्या लिखू "

 "  क्या लिखू "
लाइनों में न है कुछ खास ,
क्या लिखू न विचार है मेरे पास। 
सम्मान और आदर का रखता न मै आश , 
झूठी बातो से न करते अपने कविता का सारांश।  
तुम्हे मै क्यों बताऊ अपने मन की बात ,
सच्चे लोग , सच्चे बात।  
याद रखो लिखूँगा वही जो लगते अच्छे। 
लाइनों में न है कुछ खास , 
क्या लिखू न विचार मेरे पास। 
कवि : निरंजन कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " आशमा के दूर कही ,है एक जहां "

 "  आशमा के दूर कही ,है एक जहां  " 
 आशमा के दूर कही ,है एक जहां 
है तो वो पास नहीं ,पर जाना है वहां। 
रास्ते में रूकावट तो आएगी ही 
पर हमें भटकना नहीं है यहां - वहां। 
आशमा के दूर कही , है एक जहां 
हालातो से रोना नहीं है 
बस मेहनत करना है सोना नहीं है 
आज नहीं तो कल सही पर जाना है वहां। 
 आशमा के दूर कही ,है एक जहां 
जब मिलेंगे लोग हमसे , करेंगे बाते 
उनमे से कुछ लोग पूछ भी लिया करते है  
की बड़े होकर रहना है कहां 
आशमा के दूर कही , है एक जहां 
है तो वो पास नहीं ,पर जाना है वहां। 
कवि : गोविंदा कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

गुरुवार, 27 मार्च 2025

कविता : " गैर लोग "

 " गैर लोग "
जो हमसे नजरे चुराते है 
या फिर लव्जो में कडुवाहट लाते है
अरे भूल गए हम उनको 
जो हमारे बारे में गलत फरमाते है। 
कष्ट उनको ना झेलना पड़े 
इस लिए हम शांत रहते 
वरना नजरे चुराना तो हमें भी आता है। 
लव्जो में कडुवाहट हम भी ला सकते है 
बस उनको कष्ट ना हो 
इसलिए हम थोड़ी सी लाज़ रखते है। 
समय आने पर मुँह मोड़ लेते है 
या फिर बोलना ही  छोड़ देते है 
 अरे छोड़ो गैर लोगो पर ध्यान देना 
जो अपनो से ही लड़ जाते है। 
खाख सफलता आए जिंदगी में उनकी 
 जो लोगो के बीच नफ़रत फहलाते है
अरे छोटी सी जिंदगी ही तो है 
अगर साथ जी ले तो क्या चला जाएगा 
बस अपने को जताने के लिए के लिए 
ईगो साथ में रखते है। 
कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 10th ,
अपना घर। 

गुरुवार, 20 मार्च 2025

Poem: " End - up of Examination "

  " End - up of Examination "
Ready for the end - up of examination,
after then there will be a Vacation. 
Children can have time learn and spend,
because there will be a dance, music will held. 
many students can also go to home,
to give time to Family and to Roam. 
there will be the time for the result of the year, 
after this new session will be near.
In new session, new class with new friends
and new teachers will be there,
lots of happiness will come with tear.
Ready for the end - up of examination,
I wish you enjoy you all summer vacation.

Poet: Pankaj Kumar, class: 10th,
Apna Ghar.

मंगलवार, 18 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

 " होली आई " 
आ गया है होली का त्योहार। 
आ गया है रंगो का त्योहार। 
लोग भेद - भाव जैसा नहीं करते है व्यवहार , 
चाहे हिन्दू हो या मुश्लिम , 
सब मिलकर मनाते है  त्योहार।  
खुशियाँ लहलाती धीरे - धीरे मे ,
ये है होली का त्योहार। 
खाएगे चुर्री और गुजिया ,
बटेगे सबको प्यार। 
खुशी खुशी मे मनाऐंगे ,
ये होली का त्यौहार ,
आ गया है रंगों  का त्योहार। 
कवि ; नवलेश  कुमार , कक्षा : 10th, 
अपना घर। 

कविता : " परेशानी "

 " परेशानी "
कितनी बदली हुई है महफिले ,
जो फुर्सत नहीं किसी को, 
जो गुजरे हुआ कल को निहारे ,
हर किसी की अपनी परेशानीयाँ है। 
इन परेशानियाँ कि अपनी कहानियाँ है। 
जहा देखू उदासीन मिले जहान सारा ,
ना जाने क्यों बना बैठा बेगाना ,
नजरे भी अब झुक जाती है। 
इन नराहो पर जवाब दे जाती है। 
इन परेशानियाँ न जाने कितनी को दुख दे जाती है। 
कभी - कभी सोचता हूँ सब खत्म हो जाए ,
ये दुखो का पहाड़ कही गुम हो जाए। 
इतनी फुर्सत  नहीं है अब अपने को ,
जो देख सके बीते हुए सपने को ,
वो मस्त बचपन खेल राह था सपने को ,
मन की बात छपा न पाया मन में ,
अब कहाँ छिपाए इन परेशनियाँ को। 
कोई जगह नहीं जहाँ रखू इन कहानियों को। 
कवि : साहिल कुमार , कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "

 " ये मंजिल क्यों , क्यों है ये राह "  
 तेरी मैं तलाश में 
मन - मन भटकता हूँ ,
हुआ नहीं कभी भेट ये मंजिल से  ,
एक बैठा जा किस वन - बाग में ,
दिखता नहीं तू कैसा है रे ,
धुँधला - धुँधला क्यों राह में ?

उम्मीदे झलख रही है ,
मन यूँ ही निराश है ,
चार कदम चले बिना है।  
चरण छितराए विराम करुँ, 
पड़ा हु आधी राह में। 
पूछ रहा हूँ तुझसे ये मंजिल ,
गुमसुम , क्यों है ये राह में ? 

माँ - बहन के हाथों खाए ,
हो रहे हैं लम्बे वक्त। 
ठेंस - ठेंस है यहाँ पे इतना ,
की भर आए मेरे आँख ये मंजिल। 
इस जख्म को करे कौन मरहम - पट्टी ,
मैं अकेला ही इस एकांत में। 
कहाँ मिलेगी सतरंग ये मंजिल ,
गरीबी  क्यों है ये राह में। 
कवि : पिंटू कुमार ,कक्षा : 10th,
अपना घर।  

कविता : " रंगो का ये होली "

 " रंगो का ये होली "
होली आया होली आया। 
साथ में बहुत सारे रंग लाया। 
खुशियां ही खुशियां चारो ओर लहराया।  
होली आया होली आया। 
साथ में मिठे - मिठे गुजिया लाया। 
रंगो का नाम ही होली है। 
बोलिए बुरा न मानो होली है। 
कवि : अप्तर हुसैन , कक्षा : 8th,
अपना घर। 

कविता : " होली "

 " होली "  
होली है ये होली है , 
खुशियों की ये होली है।
साल में एक बार आता होली ,
सब का मन बहलाता होली। 
 लोग यही तो चाहते हर साल ,
हम सब मिलकर मनाए होली। 
होली में खाए गुजिया ,
गुजिया खाकर मौज उड़ाए। 
होली है ये होली है। 
कवि : अजय कुमार , कक्षा :6th,
अपना घर। 

सोमवार, 17 मार्च 2025

कविता : " होली आई "

" होली आई " 
होली रंगो का त्यौहार हैं। 
होली में रंगो का बौछार है। 
तरह - तरह की मिठाइयाँ ,
और नमकीन का स्वाद है।
होली रंगो का त्यौहार है। 
एक - दूसरे को रंग लगाकर प्यार जताए। 
घर - घर जाकर खुशियाँ बाँट आए। 
तरह - तरह के रंगो का सिंगार है। 
बच्चे और बूढ़े रंग लगाने को त्यार हैं। 
होली का यह त्यौहार है। 
कवि : निरंजन कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 
  

कविता : " ज्यादा नाज़ मत करना "

 " ज्यादा नाज़ मत करना "
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफ़लताओं पर। 
वक्त सबकुछ बदल देता है इस जहाँ में। 
इस जहाँ में लोग आते है जिंदगी में हररोज ,
फिजूल वक्त जया मत करना मुस्कुराने में। 
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कभी - कभी नीचे ही उदा  ले जाती सपनो को ,
 सबकुछ बदलकर साहिल पर छोड़ जाती हैं। 
ऊंची सफलताओं में ,
बढ़ती असफलताओ से निराश मत होना जिंदगी में। 
वक्त सबकुछ बदल देता हैं इस जहाँ में। 
विशवास करना अपनी उचाइयो मे ,
ज्यादा नाज़ मत करना अपनी सफलताओं में। 
कवि : निरु कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर। 

कविता : "बचपन "

  " बचपन "
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
सुबह उठना और स्कूल आना जाना था। 
उस बचपन में डाट मार तो हम ने भी खाए हैं। 
पर रोकर भी बत्तीसी दिखाना ,
बस एक बहाना था। 
पढ़ाई चाहकर भी न करना , 
पर दोस्तो के साथ समय उड़ाना था। 
खेलने के लिए  सबसे पहले आगे पहुच जाना ,
और उसी में पूरा समय बिताना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था। 
दोस्तों के साथ लड़ना और 
दुसरो को लड़ना था। 
कभी - कभी तो मार हम भी खा जाते ,
पर बाद में उसको भी चिढ़ाना था। 
वो बचपन का भी क्या जमाना था।  
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

रविवार, 16 मार्च 2025

कविता : " हौसला रखो "

 " हौसला रखो "
 हालातो से तंग आकर ,
उम्मीदों को पूरा करना छोड़ दिया। 
जूनून थे शरीर के अंग - अंग में  ,
पर उसको  जगाने के लिए मुँह मोड़ लिया 
हौसले बढ़ जाएगी ,
चीज तो नहीं मिलेगी ,
पर उम्मीद रखो ,
चड़ना होगा तो चाँद पर भी चढ़ जाएगे। 
उम्मीद के नीचे भी बूस्टर लगाने की चाह हैं। 
आगे क्या होगा इसका न कोई परवाह हैं। 
कवि : गोविंदा कुमार ,कक्षा : 9th,
अपना घर 

सोमवार, 10 मार्च 2025

कविता: " महा मुकाबला "

  " महा मुकाबला " 
होगा आज दो टीमों में छोड़ ,
जीत - हार के बाद होगी तोड़ - फोड़। 
भारत - नेवजीलैंड एक साथ आएगे ,
स्टेडियम में दिखेंगे दोनों टीमों के फैंस ,
भरता से रोहित , विराट व ,
हार्दिक खेलेंगे धुआँ धड़ पारी। 
वरुण , अक्षर वह जादू पड़ेगे नेवजीलैंडपर। 
सभी की निगाहे तिकी रहेंगे ,
टीम इंडिया को जीतनी पड़ेगी ,
 बाद आतिसबाजी दिखेगी। 
सारे खिलाड़ियों को ऑल द बेस्ट। 
जीत कर दिखा दे वो भी है बेस्ट। 
कविः निरंजन कुमार , कक्षा : 8th,
अपना घर।  

शनिवार, 8 मार्च 2025

कविता: " होली "

 " होली " 
होली आई - होली आई ,
रंग बिरंगी होली आई। 
होली में हम सभी एक- दूसरे को ,
रंग लगाते हैं। 
धूम - धाम से होली को मनाते है। 
सबके यहाँ पकवान बनते है , 
खा - पी के मस्त रहते है। 
होली आई - होली आई ,
रंग बिरंगी होली आई। 
कविः विष्णु कुमार , कक्षा: 5th 
अपना घर 

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

कविता: " तुम्हारे बारे में "

 " तुम्हारे बारे में " 
तुम्हे समझ नही आएगा 
इस कविता का सारांस ,
इसमें  ज्ञान की ही बाते है ,
जो सिर्फ हमको पता है। 
तुम्हे क्या पता ,तुम तो हसकर  
 निकल जाओगे। 
पर तुम्हे समझ नहीं आएगा। 
इसमें मैंने तुम्हारे बारे में ,
भी बताया है। 
जो सिर्फ आच्छी और , 
बुरी चीजों दे भरा है। 
पर तुम्हे नजर नहीं आएगा ,
तुम्हे समझ नहीं आएगा। 
 क्या कहा था तुमने ?
सिर्फ तुम्हे ही लिखना पता हैं। 
मैंने इसमें पूरा संसार रचा हैं। 
जो सिर्फ हमको पता हैं ,
 तुम्हे समझ नही आएगा।
कविः सुल्तान कुमार कक्षा: 10th 
अपना घर  

गुरुवार, 6 मार्च 2025

कविता :"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "

"मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक "

            मैं - एक राह दो मेरे मंजिल भी एक
          आंधी वेग गति से आएगा | 
          या आएगा तो धीमे धीमे 
          कैसे भेष सजा कर आएगा | 
         वर्षा काल की फुहिया भी 
        सूखा घड़ा भर पायेगा या न | 
        शाम ढला तो फिर से वापस 
    सवेरा लौटेगा या अंधार होता ही जाएगा | 
       कैसा सफर इस नाव पे होगा ?
     चलता हूँ अब सवार होने को | 
                                                     मै - एक राह दो - मेरे मंजिल भी एक   |                                                                                                                                                                 कवि :पिन्टू कुमार                                                                                                                कक्षा : 10 th 
                                                                                                              

बुधवार, 5 मार्च 2025

कविता: " क्यूँ मुस्कराता हूँ "

  " क्यूँ मुस्कराता हूँ "
 क्या सोचकर रह जाता हूँ 
चलती रहो में यू रुक जाता हूँ। 
अपने हालातों को सोंचकर , 
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ। 
जब - जब थककर रुकता हूँ , 
आगे निकलने वाले पर सोचकर हूँ ,
न जाने खूद पर क्यूँ मुस्कराता हूँ। 
अजीब सा पागलपन दिमाग पर होती है। 
बढ़ने की चाह ये भारी है ,
सबकुछ जानते हुआ हुए भी मैं करता हूँ। 
कभी - कभी अपने को भूला बैठता हूँ। 
चलती रहो में यूँ रुक जाता हूँ ,
न जाने  क्या सोचकर ,
खुद पर ही मुस्कराता हूँ। 
कविः साहिल कुमार , कक्षा: 8th 
 अपना घर 

मंगलवार, 4 मार्च 2025

कविता : " बदलते मौसम "

 " बदलते मौसम "
आने वाला  है वो मौसम 
जिस मौसम का है इन्तजार। 
ठंडी से बच -  बचकर ,
बीत गया है आधा साल।,
सिर्फ था गर्मी का इन्तजार। 
ये गर्मी आने वाला है फिलहाल , 
ये ठंडी को जाने के लिए ,
है फिर एक सप्ताह की बाद। 
फिर आ जाएगा गर्मी ,
और खूब मजे करेंगे , 
चाहे गर्मी हो या बरसात। 
बस कुछ दिनों की है इन्तजार। 
आने वाला है वो मौसम 
जिस मौसम का है इन्तजार। 
फिर तो खूब मजे करेंगे ,
 चाहे गर्मी हो या बरसात। 
बस कुछ दिनों का है इन्तजार। 
इस कविता के कवि है नवलेश कुमार। 
कविः नवलेश कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 

सोमवार, 3 मार्च 2025

कविता: " बचपन के दिन "

 " बचपन के दिन "
 सुबह से लेकर शाम तक शाम तक। 
खेलता रहता पुरे दिन तक 
थकता न था फिर भी 
वे भी क्या दिन थे। 
 मेरे बिते हुए बचपन के दिन थे। 
. खाना और खेलना लगता था 
पुरे जीवन भर। 
जब नहीं निकले थे मेरे पर ,
पापा के मार से डरता था।  
जब गुस्सा करता था। 
माँ के पास जाया करता था। 
वे भी  क्या दिन थ,
वे मेरे बचपन के दिन थे। 
गुब्बारे वाले आते थे ,
माँ चारो ओर पुकारते थे। 
कभी खेलौना वाला आता था। 
दस -पाँच का ही सही 
खेलौना खरीद ले देती थी। 
माँ तो माँ है वे कभी दुखी नहीं होती थी। 
बचपन के  वे भी दिन,
गुजरा यारो के बिना। 
वे भी क्या दिन थे,
वे मेरे बिते हूँए दिन थे। 
कविः पंकज कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 

रविवार, 2 मार्च 2025

कविता :" बंद पिंजरे में "

" बंद पिंजरे में " 
 कब तक बंद रहुगा इस पिंजरे में 
 एक दिन तो बहार आना हैं। 
बहुत ही जी लिए घुट - घुट  कर, 
कुछ  करके तो दिखाना हैं। 
वे वक्त कब आएगा ,
जब करुगा सपने सकार 
 एक मौका देकर तो देखोये। 
नहीं जाने दुगा बेकार ,
खुश नहीं हूँ अपनी इस जिंदगी से 
एक बार तो बहार आना हैं। 
देखाऊगा मंजिल को छूकर 
लोगो की मन की जलने 
 को मिटाना है। 
कविः मंगल कुमार ,कक्षा: 9th 
 अपना घर  

शनिवार, 1 मार्च 2025

कविता : " ख्वाबों पर पहरा "


 "ख्वाबों पर पहरा "
 ख्वाबों पर पहरा , 
पर हर - कदम कठिनाई से चला। 
किसी तरह उस और तक पहुँचा। 
जहा कब्र का निशान मिला 
हो रहा था मुझमें ,
पर  हमारे लिए वक्त काम था। 
पर अब मिला ,
ख्वाबो पर पहरा। 
चाँदनी रात की शाम थी। 
सोचा था कुछ अनोखा 
पर यह बात गिल को दर्द देता था। 
ख्वाबो पर पहरा ,
जैसे की सपनो का मर जाना। 
अब बस सुकून की लम्हे गुजारना 
चाहता हूँ। 
अब बात हो गई ख्वाबो से लड़ने की। 
जख्म का दाग अभी तक नहीं मिटा सका 
पर ख्वाबो पर पहरा ,
अभी तक  हटा नहीं सका। 

कविः अमित कुमार ,कक्षा: 10th 

अपना घर 

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

कविता : " परीक्षा "

" परीक्षा "
चल रहा परिक्षा का दिन 
काट नहीं रहा सोए बिन 
शरीर में थकान और आँखो , 
में नींद। 
कैसे करेंगे परिक्षा , पढ़े बिन 
सामग्री और उत्तर को देख
आ जाता नींद।
फिर पढ़ने से हट जाता है दिल
मन करता हैं हम भी इंस्टा पर
बनाए रील।
ये सात - आठ दिन में ,
नींद - नींद ही होगा
परिक्षा खत्म होने के बाद ,
रट नींद बिन होगा।

कविः पंकज कुमार , कक्षा: 9th 
 अपना घर 

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

कविता : " फरिस्ते "

" फरिस्ते "
फरिस्ते भी किसी को याद करेंगे ,
आकर गुन - गुनाकर चलते बनेगे | 
घुमता रहुँगा उस जगह मैं , 
जहाँ मुश्किलों के बीच रह गए 
इंतजार हैं वो सुनहरे दिन का 
फरिस्ते भी  आयेंगे कल क्या ?
क्या पता वो आयेंगे भी की नहीं, 
लेकिन मेरा वहां  जाना तो है लिखा | 
उसे पाने के अलावा कुछ भी नहीं दिखा | 
फरिस्ते भी मुझे क्या याद करेंगे 
उसकी यादे हम भूल गए क्या ?
नहीं यादे कभी भुलाई नहीं जाती 
कविः अजय कुमार , कक्षा: 10th 
अपना घर 
  

कविता : " मेरा गाँव "

  " मेरा गाँव " 
आज भी वे दिन याद आते हैं , 
जब हम बचपन में तलाब में नहाते थे | 
आज भी वे गलियाँ  याद आती है ,
जहाँ हम क्रिकेट खेला करते थे | 
आज भी वे दोस्त  याद आते है ,
जिसके साथ हम समय बिताया करते थे,
बाते किया  करते थे , घूमा करते थे | 
अपने दोस्तों के लिए हम घर में ,
डांट भी खाते थे ,
फिर भी मिलने जाते थे |
आज भी वे दिन याद है ,
जिसके साथ हम वक्त बिताते थे |


कविः संतोष  कुमार , कक्षा: 9th 
अपना घर  

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

Poem: "flowers "

" flowers "
flowers are good enough
they have pleasant smell  
they attract the people with 
beautiful cells
It blooms it glows 
and make the people day 
dream flow.
the plants of flowers 
make the beautiful scenes
It's for the happiness 
sadness doesn't mean
It flows and it glow 
and make the people 
daydream flow
flowers have pleasant smell
that I have didn't scaled
I kept I smelled.
Poet: Nand Kumar, class 8th 
Apna Ghar 

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

कविता : " पल "

" पल " 
क्या बया करू अपने  बात 
मन में चल रहे हलचल ,
                                              याद कर रहा हूँ अपने अतीत को                                         
हर पल | 
मैं ना करुगा अपने मन की 
हलचल ,बया इसपल | 
आएगा  एक पल जब जान , 
जाओगे कहानी उस पल 
मैं ना बया करुगा अपनी ,
परेशानी  इसपल  
कवि : अप्तर हुसैन , कक्षा : 8th 
अपना घर  

कविता : "मैं एक , राह दो मेरे "

                                                     
  "मैं एक , राह दो मेरे "
                                                    क्या लेकर चलु ?                                                   
चलूँगा नए दिशा में जब ,
कितने दिन का सफ़र  में होगा | 
चलूँगा नए अंदाज में  जब 
क्या करना होगा ?
अज़नवी सी रहो में, 
दर उत्पन होगा नजूकसेमन में   
या रोना पढ़ेगा या कतराना होगा | 
 अंतिम तक जाने में, 
 मैं एक , रह दो मेरे रह | 

कवि : गोविंदा कुमार , कक्षा :8th 
                                                                                                                                                          अपना घर  

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

कविता :" मैं हूँ एक , राह है दो मेरे "

 " मैं हूँ एक , राह है दो मेरे "
  मैं हूँ एक , राह है दो मेरे 
पहला जिसमे भीड़ जमा है 
 दूसरा जिसपे कोई चला नहीं है 
  सवाल करता मेरे से मन मेरा 
ज़िद्दी सा बार - बार 
चलूं तो पहला रह पे ही क्यों ?
क्या ही कमियाँ  होगी 
अगर चला ढूंढने नई रह जो ?
इस सफर में बढ़ने से पहले 
बीनू तो किस रह को बीनू ?
मैं एक पर राह दो मेरे 
                                                                        कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 9th 
                                                                                                       अपना घर 

रविवार, 12 जनवरी 2025

कविता :"गुमसुम परिंदा "

"गुमसुम परिंदा "
सोए हुए गुमसुम परिंदा,
अब जाग जाओ तुम| 
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है,
हर एक उम्मीदों पर| 
अब जरा एक झलक देख लो,
अपने अंदर की आत्मा को| 
तुम्हारी हर बातों से दुःख है,
सोए हुए गुमसुम परिंदा| 
अब जाग जाओ तुम ,
तुमने सबको देखा है| 
और देखा है लोगो की कयामत,
अब क्या सोचते हो| 
बस एक ही बात में उलझे रहते हो,
सोए हुए गुमसुम परिंदा| 
अब जाग जाओ तुम,
कवि :पंकज कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर