" शायद तुमने भी लिखा होता "
शायद तुमने भी लिखा होता ,
इन जरजर हालातो को देखा होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता।
तरवटो पलंगों में जीवन बिता दिया ,
काश ! जमीन पर रहना सीखा होता ,
हर वक्त शोषण न किया होता ,
गरीबों की मेहनत को उड़ाया न होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता।
सूत - बूत पर रहना न सीखा होता ,
धोती कुर्ता पहनना सीखा होता ,
शयद तुमने भी लिखा।
खाली पेट रहकर , रोरी का टुकड़ा खाकर ,
रातो को जमींन पर बिताकर ,
राते को बिताना सीखा होता ,
शायद तुमने भी लिखा होता।
महलो में रहकर आराम न फरमाया होता ,
चिलचिलाती धुप में भरी दोपहरी ,
खेत खलिहानो में काम किया होता ,
पाई - पाई का इस्तेमाल करना सीखा होता,
शायद तुमने भी लिखा होता।
कवि : साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर।