सोमवार, 1 दिसंबर 2025

कविता: "सितारे"

"सितारे"
 गिनने की कोशिश की तारो को,
 सौ बार नहीं हजार बार ,
पाने की कोशिश की इन सितारों को ,
हस्ते और गाते चमकते है ,
रात अँधेरे में। 
खुसियों से बंधे रहते है ख्वाब में ,
कितने सारे है ये आसमान में,
रोशनी से अपनी जगमगा देते है ,
काली रात को। 
 मिटा देते है अपनी रौशनी से ,
राते  की काली हस्तियां को ,
कभी सुनो तो क्या कहते है ,
शायद खुश रहने का देते है संदेश। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
 अपना घर। 

शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

कविता: वो बचपन का भी किया जवना था।

"वो भी किया जवना था"
हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके, 
वो बारिश की गिरती बूंदे में हमने भी खेले है ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
 बारिश की पानी में नाव को बहाना था ,
तूफान हो या आंधी स्कूल ही था ,
दोस्ती यारी तो वही होती थी ,
घर में तो सिर्फ पापा की ही ख्वाफ चलती थी ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
   की हमने भी मार खाए है पापा से ,
गुस्सा हो के भी खुश रह लिया करता था ,
 नहीं तो पापा की वो मार याद कर लिया करता था। 
उनका गुस्सा भी हम ही दिलते थे ,
उस गुस्से को झेलना भी मेरे काम हो जाता था ,
हमने भी खाए है तेज चलती हवा की झोके,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
कवि: गोपाल II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

गुरुवार, 27 नवंबर 2025

कविता: "दिल में राज करता मेरा भाई"

"दिल में राज करता मेरा भाई"
 भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में ,
तेरे हर एक बात याद दिलाती है ,
मुझे आज भी बहुत याद आती है। 
तेरे बिन सब कुछ फीका फीका सा लगता है ,
यहाँ तक की मेरा चेहरा रुठा - रुठा सा लगता है ,
जब तू उदास सा दिखता है ,
सूरज भी उदास सा अपने घर से देखाई देता है ,
भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में। 
राजा के तरह बैठा के रखा है तुम्हे, 
बस ताज पहनाना बाकी है ,
चाँद भी रुठी - रुठी सी लगती है ,
भाई आज भी तू जिन्दा है मेरे दिल में। 
तेरे सामने सुरजा और चाँद भी बेकार है, 
तेरे लिए तो ये बनाया मेरे द्वारा संसार है।
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  

कविता: "स्वागत करने को तयार है"

"स्वागत करने को तयार है"
 हर कदम ,हर राह ,
परेशानियाँ परेशान करने को तयार है ,
कठिनाई तुम्हारी राह देख रही है , 
उन्हें बस तेरा स्वागत करना है। 
काटे होंगे, रास्ते बहुत होंगे अपने मन को संभालना  ,
फूल तो तेरे नसीब में है ही नहीं ,बस काटे से स्वागत होगा। 
तेरे लिए तो आएंगे बहुत सरे पर न होंगे तुम्हारे ,
पसीना तुम्हे बहाना है , बाकी तो आएंगे देखने। 
जोश तो दिलाना उनका काम है 
शेरो में शेर तेरा नाम होगा। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 


मंगलवार, 25 नवंबर 2025

कविता: "मेरे गुरु जी"

"मेरे गुरु जी"
 गुरु बस तेरा ही एक सहारा था ,
राहो का वो एक सहारा था ,
चाँदो का वो एक तारा था ,
कठिन परिस्थित्यों में भी मुस्कुराना था। 
सबके साथ रहना भी था ,
अपनी मन की बात को बताता था ,
समय बिताने के लिए मन को बहलाता था। 
कभी - कभी तो खुद से बात कर लिया करता था ,
न जाने परिंदा कैसा था वो दुखी में भी ख़ुशी नजर आती थी। 
रातो को चाँद को देखा करता था ,
सुबह सूरज की पूजा करता था ,
अपनी मन की बात को बता था ,
गजरता हुआ वह एक सहारा था। 
रहो के लिए रह था वो ,
जीवन जीने के लिए वो एक चाह था वो। 
कवि: गोपाल II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

 

सोमवार, 24 नवंबर 2025

कविता: "नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"

"नए - नए उतरे हो अभी रहो पर"
 ख्यालों में खो रहे हो अभी से राहो पर,
तर्क करते हो बुजूर्गो के तजुर्बो पर ,
जिंदगी जो जी रहे हो यादो में। 
इसके किस्से रहते है उनके जज्बातो में ,
उड़ाने आओ असल जिंदगानी में। 
नादान हो तुम अभी ,
भीतर से खोखले और कमजोर हो अभी ,
खोओ नहीं किसी और की दुनिया पर ,
क्यूंकि नए नए उतरे हो रहो पर अभी। 
हाव - भाव से बहुत कुछ बदलाव दीखते है बाहर ,
इन बदलावे के लक्षण, खिखते है खतरनाक ,
ज्यादा बड़े नहीं हुए अभी। 
तर्क करो बुजूर्गो से इतने बड़े नहीं हो अभी,
अभी ठहरो जमी पर ,
क्यूंकि नए - नए उतरे हो रहो पर। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपन घर 

रविवार, 23 नवंबर 2025

कविता: "मेरा बचपन"

 "मेरा बचपन"
वो बचपन का क्या जवना था, 
जब कार्टून के फोटो हमारे लिया खजाना है। 
न काम की टेंसन न पढ़ाई की चिंता ,
बस मौज मस्ती में ही मन लगाना था ,
सुबह घर से बहार निकल जाना ,
और पुरे दिन न किसी का ठिकाना था। 
बस गुल्ली ठंडा खेलना और चिड़ियाँ को देखना ,
 दिन भर का यही एक ठिकाना था ,
बिन बताए घर से बहार जाना था ,
वो बचपन का भी किया जवना था। 
कभी कभी तो घर का ही ठिकाना था ,
पेट दर्द तो एक बहाना था। 
स्कुल बंक करना एक बहाना था ,
वो बचपन का भी किया जवना था ,
जब 75 % अपने जिंदगी को उड़ाना था ,
वो बचपन का क्या जवना था। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

शनिवार, 22 नवंबर 2025

कविता: "मेरे पापा"

"मेरे पापा"
सुबह से लेकर शाम तक काम है वे करते, 
मेहनत कर के खाने को एक तिनका है लाते,
उनके काम भी आसान नहीं होते,
बड़ी ही मुश्किल से रातो को चैन की नींद सो पते। 
इस ठंडी की आग में, करते है वो दिन रात काम, 
हाथो पर अभी भी है पड़े छाले, फिर भी उनके सपने है बड़े निराले। 
अपनी परिवार के लिए सब कुछ करते है,
हर त्यौहार में अपनी परिवार के ख़ुशी के लिए,
कही देर न हो जाए इसलिए समय से पहले आ जाते है, 
 खिलौने नहीं तो खाने को ही सही ले आते है। 
 उनके मेहनत से बड़े - बड़े इमारत खड़े है, 
 फिर भी वे देश के किसी कोने में लचार से पड़े है। 
उनको भी तो कुछ हक़ दो, नहीं उनके बच्चों पढ़ने दो,
उनके वो नन्हे - मुंहे बच्चे पढ़ने को बेताब है ,
उन्हे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक बास्ते से भरी किताब दो,
 आसमान ज्यादा दूर नहीं है किताबो की जरिए उन्हें उड़न भरने दो।
कही देर न हो जाए इसलिए समय से पहले आ जाते है, 
घर के किसी कोने में वे सो जाते है।  
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

कविता: "मेरा बचपन"

"मेरा बचपन"
वो भी क्या यादे थी ,
बचपन भी दोस्ती यारी के बीच गुजारी थी ,
शैतानी तो करते ही साथ में पढ़ते भी थे। 
ख़ुशी तो मिलती थी साथ खेला करते थे 
एक तरफ दोस्तों का प्यार तो दूसरी तरफ माँ और पापा का प्यार ,
सबके साथ बैठ कर खाना खाना , 
हाथ बहार जाकर धोना तो एक बहाना था ,
बिन बताए घर के बाहर तो जाना ही था ,
वो भी क्या यादे थी। 
घूमना तो एक बहाना था , 
असली बात तो यह थी की दोस्तों के ,
 साथ कही बेर तोड़ने जाना था। 
कवि: शिवा कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

गुरुवार, 20 नवंबर 2025

कविता: "बताए रखना"

"बताए रखना"  
ये बात हवाओ को भी बताए रखना,
अंधेरी रोशनी में भी चिराागो को जलाऐ रखना। 
जिस वीरो के नाम से काँप उठती थी ब्रिटिश ,
उन वीरो को अपने दिलो में बसाए रखना। 
ये बात हवाओ को भी बताए रखना। 
वीरो ने अपनी लहू को देकर अपने देश की हिफाजत की ,
उस देश के तिरंगे की शान हमेशा बनाए रखना। 
ये बात हवाओ को बताए रखना। 
कवि: रवि कुमार, कक्षा:4th,
अपना घर 

बुधवार, 19 नवंबर 2025

कविता: "बढ़ती ठंडी"

"बढ़ती ठंडी"
ये  मौशम भी न कितना सुहाना है ,
इस ठंडी को भी हर साल नवंबर में आना है। 
कर देता है मुशिकल जीना ,
यहाँ तक की पानी को कर रखता है ठंडा ,
स्वेटर हो या जैकेट सबको करता है फ़ैल ,
ये ठंडी कर देता है कम्बल को भी फ़ैल। 
रातों को ओस गिरता है ,
सबको घर में ही बैठता है।
ये मौशम भी न कितना सुहाना। 
अब रात हो रही है लम्बी दिन को कर दिया है खबरदार ,
रुक - रुक कर चल है अब हमारी जिंदगी इस ठंडी के मौशम में ,
मुशिकल कर रखा है जीना बिन कम्बल में। 
ये  मौशम भी न कितना सुहाना है ,
इस ठंडी को भी हर साल नवंबर में आना है। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 


मंगलवार, 18 नवंबर 2025

कविता: "जन्मों का रिस्ता"

"जन्मों का रिस्ता"
ऐ मेरे दोस्त , इस दोस्ती को भूलना मत,
ये दोस्ती का रिस्ता तोड़ना मत ,
चाहे कुछ भी हो जाए तुम , 
हमें मत भूलना ऐ मेरे भाई। 
हर एक परेशानी में काम आएंगे एक दूसरे के ,
चाहे जो भी हो जाए , एक साथ रहेंगे एक दूसरे के। 
हमारी दोस्ती भी कितनी हसीन है , 
जैसे खुसबू से महकता हर एक दिन है। 
साथ चले तो राहो आसान हो जाती है ,
दोस्ती से जिंदगी में रौनक सी छा जाती है। 
 ऐ दोस्त मेरे हमेशा मेरे साथ ही रहना तुम ,
सब कुछ खो जाए पर न खोना तुम। 
लड़ाई कर के भी साथ रहेंगे, भले ही हमारे बिच छुपी छा जाए,
फिर बात करेंगे तुम एक दूसरे से। 
उदास स चेहरा मत बनाना तुम ,
रोने के जगह हसना तुम। 
अपने आँशु को संभलकर रखना ऐ मेरे दोस्त,  
ये मोती से दिखने वाले, करोड़ो में बिकने वाले,
अपने भी है बहुत से चाहने वाले। 
कवि: नीरज कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 




सोमवार, 17 नवंबर 2025

कविता: "ठंडी का मौशम"

"ठंडी का मौशम"
 ठंडी धीरे धीरे बड़ रही है ,
दिन छोटे तथा राते लंबी है ,
 सभी के जुबान में एक ही चीज ,
है की बहुत सर्दी हो  रही है। 
लड़के - बच्चे , बूढे दादा ,
सब है ओढ़े है साल ,
पता नहीं कब जाएगी सर्दी। 
शायद लग जाए कई साल ,
सर्दी में कपकपी छूटी है ,
क्यूंकि ये मुस्कान सर्दी की जूठी है। 
कवि नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

रविवार, 16 नवंबर 2025

कविता: "कविता"

"कविता"
कविता ऐसा हो जिसमे मजा आए ,
रस हो खिलखिलाहट हो ,
जो पढ़ने में भा जाए, 
पहाड़ हो, रंग - बिरंग तितलियाँ हो ,
अहसास हो उस पल का। 
तेज हवाए और आंधी भी हो ,
फसले भी खिल उड़े और हरियाली भी ,
जो दिल और दिमाग में समा जाए ,
कविता ऐसा हो। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 


कविता: "14 नवंबर"

"14  नवंबर"
 आज चाचा नेहरू के फोटो पर फूल चढ़ाते है ,
वो नही है तो क़्या हुआ ,
हम फिर भी उनकी जयंती मानते है। 
 वापस खुशियाँ चाचा नेहरू पर आती है ,
यही खुशियाँ चाचा की याद दिलाती है।  
वह बच्चो के सिखाते थे, की कोशिश करते रहो ,
यह आकाश तुम्हारा है, मिलेगा तुमको सब कुछ तुमको ,
बस संघर्ष तुम्हारा हो। 
 आज चाचा नेहरू के फोटो पर फूल चढ़ाते है। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "बहारों का साथ छोड़ना"

"बहारों का साथ छोड़ना"
 ए सदाएँ पूछती है इस बहारों से, 
क्या जिया तुमने दुनिया में ?
जिंदगी भी रूठी और साथ भी छूटा ,
न जाने कैसा रिस्ता टुटा ,
हर बदलते मौशम में ,
कशमकश भरी जिंदगी में ,
मिलती नहीं नजरे - नजरे से ,
मुस्कुराकर छिप जाती है इन भीड़ भरी सड़के पे। 

बहारो ने रास्ता छोड़ा, सदाओं ने साथ भी,
आँखों ने रोना छोड़ा, चेहरे ने मुस्कुराना भी ,
बहारो ने साथ छोड़ा और तुमने हाथ भी ,
जिंदगी भी रूठी और साथ भी छूटा।

अब पूछती है सदाएँ इन बहारों से ,
क्या जिया तुमने दुनिया में ,
जिंदगी भी रूठी और साथ भी चुटी ,
न जाने कैसे ये रिस्ता टुटा। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "मेरा बचपन"

"मेरा बचपन"
 गाँव में वह बचपन मेरा ,
यादो का संसार था। 
खुशियो हर पल ही था ,
बड़े का प्यार ही प्यार था। 
बचपन के दोस्त भी मजेदार थे ,
अनोखा राज से भरे थे। 
बारिश में आँगन में खेला कप्ते थे। 
कागज के नाव बनाकर,
बाँध बनाकर छोटे तलाब बनाते थे 
गाँव में वह बचपन मेरा ,
खुशियों से भरा हुआ था। 
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

गुरुवार, 13 नवंबर 2025

कविता: "अँधेरे में जलता दीपक"

"अँधेरे में जलता दीपक"
 अब गुमसुम हो रही गालियाँ ,
अब पराए हो रहे अपने लोग। 
अब कठिनाई की मेधा चली आई मंडराते हुए। 
अँधेरी रातो की चाँदनी भी छीन ली गई। 
अब बस उम्मीद की दीपक जल रहा मुझमे। 
सोचकर भी नहीं मिल सकता वह पल ,
जो कभी सबसे कीमती हुआ करते थी। 
यह जमी भी मुझसे रूत चुकी है ,
यह मुस्कान भी मुझसे चीन चुकी। 
सब पल भर की सोच में ,
अपने मन की इच्छा को बदल लेता हूँ। 
अब गुमसुम हो रही गालियाँ। 
अब पराए हो रहे अपने लोग। 
कवि: अमित कुमार, कक्षा: th,
अपना घर 

बुधवार, 12 नवंबर 2025

कविता: "माँ का आँचल"

"माँ का आँचल"
 कभी पीछे छिप करता था ,
कभी डरकर भाग जाया करता था ,
भीड़ देखकर माँ के आँचल में छिप जाता था ,
थोड़ी सी उलझन में और डर  की गुर्राहट से ,
शर्माते हुए इन लोगों से ,
डरकर भाग जाया, करता था। 
करीब होता था तो माँ के आँचल में छिप जाता था ,
अब बदल गया, बड़े हुआ तो बड़ा चढाव आया। 
रहो में गिरे, तो माँ ने उठाया ,
जब मैं रुठा तब माँ ने मनाया। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

मंगलवार, 11 नवंबर 2025

कविता: "ठंडी"

"ठंडी"
 फिर से वही दिन आएंगे ,
ठंडी वाले कपड़े निकाले जाएंगे। 
कम्बल का फिर से उपयोग होगा ,
और रजाई फिर से ओढे जाएगे ,
हो सकेगा तो शायद हप्ते में रोज नहाएंगे,
फिर से वही दिन आएंगे। 
ना चाहते हुआ भी स्कूल जाएंगे ,
और शायद जाकर भी डॉट खाएंगे। 
इतना होने बाद भी रोज नहाएंगे ,
बाकी के बच्चे भी बत्तीसी दिखाएंगे 
हम भी उसी में मिल जाएंगे। 
और रोज की तरह वही दिन आएगे। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "सफलता की कुंजी"

कविता: "सफलता की कुंजी"
 ये खुशनसीब किस्मत है हमारी,
टीम टिमाते बहुत सारे तारे ,
चमकते है जिंदगी में जैसे सारे। 
कही दो पल दुख सहने तो रहने दो ,
कही दो पल की ख़ुशी तो रहने दो। 
अरे! रब ने ही भेजा था मुझे अपने कष्ट सहने को ,
कभी पेड़ो की छाव की तो कभी भटकते  राहो में ,
उस समय चेहरे पर मुश्कान थी ,
पर दिलो में जिंदगी की ही नुकसान थी। 
कवि: अजय कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

शनिवार, 8 नवंबर 2025

कविता: "सर्दी का मौशम"

"सर्दी का मौशम"
 ये मौशम है सर्दी का,
रजाई काम करता है है वर्दी का। 
इस मौशम में कुछ भी पहनो ,
सब कुछ कम पड़  जाता है ,
चाहे जैकेट कम हो या रजाई, कंम्बल ,
फिर भी ये मौशम है ठंडी का ,
थोड़ा भी महसूस न होता गर्मी,
चाहे जितना छोड़कर रखो रजाई कंम्बल ,
क्यूंकि ये मौशम है सर्दी का। 
ये मौशम बहुत सुहाना लगता है। 
कवि: अप्तार हुसैन, कक्षा: 8th,
अपना घर। 

गुरुवार, 6 नवंबर 2025

कविता: "खुशियो की लहर"

 "खुशियो  की लहर"  
जगमगा रहे है गलियाँ और चौराहें,
हर तरफ है झालर के जाले ,
टिमटिमाते रहे है सारे। 
जैसे टिमटिमाते जुगुनू सारे दिए में है खुशियाँ बाटते ,
आसमान में दिखे रंग बिरंगे तारे ,
बस प्रदूषाण है बहुत सारे। 
खुशियाँ तो मनाए आपने ,
बस बात नहीं राखी मन में आपने ,
सारे होश तो खो दिए ,
आँखी पटाखे जला दिए हजार सारे। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर 

कविता: "अँधेरी दुनिया"

 "अँधेरी दुनिया"
 रोशनी से भरपूर इस दुनिया में,
एक अँधेरी दुनियाँ भी मौजूद है। 
जहाँ इंसान ही नहीं जानवर भी मजबूर है ,
दाने - दाने को मोहताज है लोग ,
भूखों हालत परेशान है लोग।,
गरीबी की कीरण पहुँचकर ,
आशा जगाती है उनकी, जिसकी न कोई पहचान है। 
बस अँधेरे से लड़कर जीतना ,
और गरीबी में रहकर, खुश रहने ,
ये बड़ा मुशिकल और आसान है। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर 

बुधवार, 5 नवंबर 2025

हमारा "Kho - Kho मैच"

हमारा "Kho - Kho मैच"
 चारो तरफ से सीटी की आवाज थी, 
कुछ टीमों थी और वही सक्ले तैयार थी,
जूनून सभी  के अंदर भरा हुआ था ,
बस उसको निकलने की बारी थी सबको जितना था, 
बस यही सोच में आए थे, 
हार जाएंगे, वह तो बाद की बात है ,
आ गए तो कोशिश करके जाएंगे। 
सफलता उसी को मिल रही है ,
जो बल, बुद्धि का प्रयोग कर रहा है ,
बाकी तो बुद्धिमान लोग तो थे ही, 
और उसी में हम लोगो का मैच चल रहा था। 
पर उनसे ज्यादा हम लोग ने कर दिया ,
हम ने भी कर दी इतनी मेहनत ,
की हो गया उनकी मेहनत फर्जी। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

कविता: "माँ की ममता"


"माँ की ममता"
आज भी याद आती है मुझे,
वो मेरी माँ का ममता। 
जब भी मैं डरता था ,
तो वो मुझे साहस दिलाती थी ,
माँ आज तेरी बहुत याद आती है। 
 दूर रह के भी पास रहती हो ,
बार - बार मेरे सपनो में तू ही आती है। 
वैसे तो रोज तेरी याद सताती है ,
तेरी ही हर पल याद आती है ,
माँ तेरी कमी का ही अहसास होता है। 
दिल ये मेरा अभी  बच्चा है तेरी याद में बार बार रोता ,
माँ तेरी बहुत याद आती है। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

रविवार, 2 नवंबर 2025

कवि: "आज का दिन"

"आज का दिन"   
आज का दिन बीता नहीं कुछ खास, 
शाम के 8 बजे हो रहा है मुझे अहसास। 
न जाने क्यों लाग रहा मुझे  बुखार,
सर दर्द हो रहा है जुखाम भी है,
सिर्फ बिस्तर पर जाना बाकी है,
दिमाग भी खराब हो गया है न जाने कहा सो गया है। 
सिगनल  बंद हो गया है आना,
फिर भी बढ़ाना है देश की शान। 
 आज का दिन बीता नहीं कुछ खास,
शाम के 8 बजे हो रहा है मुझे अहसास। 
कवि: रवि कुमार, कक्षा: 4th,
अपना घर। 



शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

कविता: "Sunday"

"Sunday" 
सुबह सूरज आसमान से निकला,
मेरा आँख किसी  गुड मॉर्निंग कहने पर खुला। 
फेका चददर बेड पर छोड़ छोड़ भागा ,
मंजन किया नास्ता नहीं मैंने खाना खाया। 
बाल कटवाया दोपहर मे लंच के पहले ,
खाना खाने भागा मेस के के अंदर ,
पेट भर गया मेरा बैगन का भर्ता खाकर। 
कविता है ये मेरा पूरा तो नहीं हो होगा कभी। 
कोशिश तो यही रहेगी मेरे ,
हो सपना सब का पूरा। 
कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

कविता: "बर्थडे"

"बर्थडे"
 आज का दिन है बहुत खास,
होगी बर्थडे केक का ही बरसात। 
साल में एक बार आता है ,
सारा का सारा खुशियां  ले जाती है। 
सारा दिन मुस्कुराते हुआ ही गुजरता ,
सॉस लेने का मौका भी नहीं मिलता की बर्थडे।
 की बधाईंया मिलना सुरु हो जाता है ,
आज का दिन है बहुत खास। 
कवि: नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

 

बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

कविता: "ठंडी"

"ठंडी" 
आ गया देखो सर्दी का मौशम,
सुबह सुबह मौशम लगता है औसम। 
चारो ओर कोहरा ढक लिया सबके ,
नहाने का मन नहीं करता, 
सुबह की वो अच्छी सी नींद खराब नहीं करना चाहता हूँ। 
खिड़की से जब बहार देखो अंधेरा ही अंधेरा ,
 न जाने इस बार कैसी ठंडी होगी ,
 ये मौशम पल पल भर में बदलता है। 
कवि: अजय कुमार II, कक्षा: 6th,
अपना घर। 

सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

कविता: "वो आखरी घर"

"वो आखरी घर" 
गाँव का वो आखरी घर 
जहाँ खामोशी, हमेशा बरकरार है 
किस खौफनाक मंज़र मे है 
जहाँ बस अजीब सी नजरे हट गई 
खुशियों की लड़ी गायब  हो गई 
बसेरा बन गया काली परछायो का 
अब घर बन गया इन बुराइंयो का 
कितने वर्षो से यहाँ खुशियाँ नहीं ठहरी 
इसकी गलियों में कब से लोगो की यादे नहीं लौटी 
सुने आँगन में कलियाँ नन्ही खिली 
लिखा मौन उस घर के लिए, मगर 
गाँव के आखरी घर में दुबारा खिशियाँ नहीं लौटी 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर 

रविवार, 26 अक्टूबर 2025

कविता: "दिवाली"

"दिवाली"
इस खुशियाँ की त्यौहार में,
हम अनजान सा बने घूम रहे है। 
सभी खुश है, मुस्कुरा रहे है ,
 और हम यहाँ गप्पे - सप्पे लड़ा रहे है, 
नीचे पटाके फूट रहे है, 
 तो कुछ चकरी से खेल रहे है, 
और हम उपर बैठे है,
झिलमिलाते आसमा को देख रहे है ,
हर तरफ से पटाके की आवाज नीचे बच्चो की शौर, 
पर किया करे झिलमिलाहट ,
को देख देख कर रहे है बोर। 
 इस खुशियाँ की त्यौहार में ,
आसमान को देखकर ही मजे ले रहे है।
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  

कविता: "याद कर लेता हूँ"

 "याद कर लेता हूँ"
 वैसे वो मेरी आदत नहीं फिर, 
भी याद कर लेता हूँ। 
आजकल मैं बातो को भूलने लगा हूँ, 
फिर भी याद करने की कोशिश कर लेता हूँ। 
वो सभी बाते जो निराले थे,
वो भी बाते जो महीनो पुरानी थी। 
वो सारे किस्से जो मिलकर सुनाए थे,
वो सभी चीज जो हम मिलकर सीखे थे।  
जिसने पूरा का पूरा वक्त दिया,
वो सारे राज उसने खोल दिया। 
भरोसा कर के साथ वो रह गई,
वक्त आने से पहले ही निशानी दे गई। 
वैसे तो मेरी आदत नहीं फिर,
भी याद कर लेता हूँ। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

कविता: "ठंडी का ये मौशम है आया"

 "ठंडी का ये मौशम है आया"
 जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का,
उठाओ अपनी अपनी  कम्बल और रजाई ,
अब तो रात भी होने लगी है बड़ी ,
ऐसा लगता है अब धीमे हो गए है घड़ी। 
अब तो शाम भी जल्दी हो रहे है ,
मोती जैसे ओस भी गिर रहे है। 
मैदानों में और खेत खलियान में ,
हो रहा है अब देर से सुबह रात अब जल्दी ,
जागो मेरे साथियो अब समय है ठंडी का ,
ये मौशम है आया ठंडी का। 
गरम गरम होगा अब खाना ,
सुनेंगे रातो को मजे से गाना। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 


शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

कविता : "वॉलीबॉल टूर्नामेंट्स"

"वॉलीबॉल टूर्नामेंट्स" 
आज था Altair  और allies  का final,
दोनों टीम थी आगे की ओर ,
 लगा रहे थे सभी अपनी ओर जोर ,
कौन होगा वॉलीबॉल का हक़दार। 
पहली पारी तो सुरु ही हुआ था टीम अटलाइर ने गवा बैठा पॉइंट, 
allies धीरे धीरे आगे बाद कर ऊपर आया ,
Altair को कई पॉइंट्स से पीछे छोड़ आया। 
पहली पारी तो  था allies वालो ने ,
दूसरी की कोशिश थी Altair  वालो की पर ,
चूक गए कुछ कमी की वजह से  न हाथ आया वि भी ,
और इसी के साथ ले गया final को अपनी ओर। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

कविता: "कभी अकेले रहना सीखो"

 "कभी अकेले रहना सीखो"
कभी अकेले रहना सीखो।  
आपको भी पता चलेगा अकेला पन क्या होता है ?
जो उदास हो या नाराज़ हो किसी से,
उनसे उनकी परेशानी क्या पूछ सकते हो,
वो बताने भी झिझक कर बात करेगा तुमसे। 
हो सके तो उसे अकेला रहने दो उस पल ,
दो पल ही सही पररहने कुछ पल के लिए उनको ,
कभी अकेला रहना सीखो। 
मन की बता को जानो कभी ,
उनकी सकल को जानो,
बीन देखे सवाल मत। 
 अकेला रहना सीखो । 
कवि: संतोष कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर। 

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

कविता: "हमारे संग के बच्चे"

"हमारे संग के बच्चे"
 हमने भी काम किये है ईट भठ्ठो पर,
ईटो की दीवार खड़े किये है,
अपने इन नन्हे हाथे से, अकार देखर बनाई है,
जलते आग में से ईटो को निकाला है,
इन हाथो की लकीरे भी मिटने लगी है,
अब ये जंजीरे भी टूटने लगी है। 
खड़ा कर दिया है बड़े - बड़े इमारते,
जिसका सामना करना मुमकिन था,
याद है आज भी मुझे जब जलते आग से ईटे को निकलता था,
हाथ में पड़ गए थे छाले, हाथ में पड़ गए थे छाले,  
पर हौसले अब भी थे निराले।  
धूप में जलते रहे कदम,  
सपनों ने फिर भी थामा दम।  
हर ठोकर ने कुछ सिखाया,  
हर आँसू ने रास्ता दिखाया।  
अब मंज़िल दूर नहीं लगती,  
क्योंकि मेहनत कभी खाली नहीं जाती।
 सारा का सारा बचपन तो पथाई से गुजरा है,
 जलते सूरज, तपती धुप से गुजरा है।  
उनको नहीं पता किया होता है जाट - पात का लेन देन,
उन्हें तो सिर्फ पढ़ाई चाहिए, एक नई जिंदगी के लिए। 
वे बड़ी - बड़ी इमारते जब दिखती है उन्हें, 
दिल की धरकने को हिला देने वाली काम करती है,
न जाने कियु उसे देख बेचैनी सी लगती है। 
खाने को खाना नहीं पीने को साफ़ पानी नहीं, 
जीने को कोई और जिंदगी नहीं है। 
झूझ रहे है कई लोग इस परेशानी से होक बर्बाद ,
जिंदगी उनकी भी चल रही है,जब तक है वो अवाद। 
 हमने भी काम किये है ईट भठ्ठो पर ,
ईटो की दीवार खड़े किये है।
तमाम ख्वाब अपने भी देखे होंगे पर कुछ हमारे भी है, 
अपनी इस ख्वाब को लेकर,
आपके साथ जीने की चाह भी  रखते है। 
 हमने भी काम किये है ईट भठ्ठो पर,
खड़ा कर दिया है बड़े - बड़े इमारते। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  

कविता: "गाँव का वो आखरी घर"

 "गाँव का वो आखरी घर"
जहाँ दुनियाँ मना रही है दिवाली, 
उस गाँव की आखरी घर से पूछो जिसके, पास नहीं है पीने को पानी। 
खुशी भी सही से मना नहीं पा सकते वो ,
जो हो सकता है वो सब कुछ करते है अपने बच्चे के लिए,  
मिठाई से लेकर पटाके तक भी लेकर देते है उनके लिए। 
खुद परेशान रहकर भी अपने बच्चे को खुश,
रखने की छमता रखते है अपने अंदर ,
अपनी दुखी को अलग कर के उनके साथ खुशी से रहते है, 
गाँव का वो आखरी घर। 
की दुखी में भी खुशी छिपी हुई है,
कुछ नहीं तो थोड़ा ही सा ही पर पटाके लाते  है ,
दिये भी लाते है , पूजा भी करते है पर ,
उनका रोज का खाना वही होता है। 
उसमे भी वे खुशी से रहते है, खा - पीके सपने भी देख लेते है ,
मेहनत वो भी करते है हर त्यौहार को अच्छे से मनाने के लिए पर ,
उनकी भी मज़बूरी है काम भी जरुरी है । 
जहाँ दुनियाँ मना रही है दिवाली, 
वे झेल रहे अपनी परेशानी। 
जहाँ दुनियाँ मना रही है दिवाली। 
कवि: नीरू कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर 


सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

कविता : "दीपावली "

"दीपावली "
 आ गई है दिवाली।
बच्चो की खुशी और  पटाको की आवाज आएगी।   
घरो को सफाई और तरह - तरह के लइटो से सजाएँगे। 
बच्चे धूम धाम से दीवाली मनाएँगे। 
दिए को जलाएँगे खुशियाँ सभी को बाटेंगे  आएँगे। 
की जब पटाके फूटेंगे गाँव की गलियों में, देवरो पर पॉप - पॉप मारेंगे। 
हैप्पी दिवाली सभी के लिए लिख देंगे दीवारों पर। 
वे सोर जब होंगी गाँव की गलिओं में। 
वे पटाके की जब आवाज सुनाई देंगी लोगो की। 
ताल में ताल मिलाने लग जाएँगे साथ में। 
खुशियाँ बाटेंगे साथ में। 
कवि = रमेश कुमार 
कक्षा = 5 
अपना घर 

शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

कविता: "पी. टी. यम. का दिन आया"

 "पी. टी. यम. का दिन आया"
हुआ है हम सभी का आज पी. टी. यम.,
देखने को मिले है नए रैंक होल्डर्स ,
जो होता आ रहा है हर वर्ष।  
सभी के चेहरे पर खुशी ही खुशी थी ,
कुछ की चेहरे पर छाए हुई थी दुखी ,
फिर भी वो दिखा रहे थे अपने चेहरे पर खुशी, 
इस पीटीएम ने ते सब ख़राब कर के रख दिया है। 
सारा का सारा मज़ा पी .टी. एम. ने ले  लिया है। 
दुखी के मरे घर से बाहर निकला ना जाए ,
खुशियों का त्यौहार दीपावली दिन पर दिन पास बढ़ता जाए ,
हुआ है हम सभी का आज पी. टी. यम.। 
सब की मेहनत रंग लाया है ,
काला ही सभी पर कर के दिखलाया है ,
हुआ है हम सभी का आज पी. टी. यम.। 
कवि: रौशन कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 



शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

कविता: "2025 की दीपावली"

 "2025 की दीपावली"
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
हो सके तो आप सभी ग्रीन दीपावली मनाए ,
आप सभी को "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए। 
अब फूटेंगे पटाके रातो को दिन को छाए चुप्पी ,
बच्चे जलाएंगे छूरछुरीया और होंगे हैप्पी - हैप्पी। 
अब घरो में बनेगी मिठाइयाँ खट्टे और मीठे ,
खाएँगे बच्चे भर पेट होके मस्त - मगन ,
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
इस बार होंगे नए पटाके नए तरंगे ,
जोश के साथ जलाए इस नए युग की पटाके, 
इस बार की दीपावली होगी "2025" की शान की तरह,
आप सभी की दीपावली की हार्दिक सुभकामनाए। 
सब पटाके फोड़ेंगे जैसे लगे कोई तीर,
खाश कर रात के खाने में बने खीर ही खीर। 
मिल कर अभी दीपावली मनाए ,
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
खुश होंगे सब के चेहरे ,
मिठाइयाँ एक दूसरे को देकर बनाए रिस्ते गहरे ,
आप सभी को "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए। 
अपना घर के बच्चे की तरफ "दीपावली" की हार्दिक सुभकामनाए।
 अपना घर के बच्चे, 
अपना घर। 

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

कविता: "पापा ज़रा बूढ़े हो चले है"

 "पापा ज़रा बूढ़े हो चले है"
अब कंधे झुक गए है, 
उम्र निकल भी रही है,
रोशनी आँखों की धुंधला रही है,
थोड़ा धीरे चलते है, 
और अब भूलने भी लगे है, 
मेरे पापा ज़रा बूढ़े हो रहे है।  
आज भी बचपन हमारा,
आँखों में उनकी झूलता है, 
बड़े हो रहे है विश्वास छोड़ बच्चा समझा है। 
हमारी आज भी चिंता करते है,
अपनी फिक्र छोड़ हमारा ख्याल रखते है, 
मेरे पापा ज़रा बूढ़े हो रहे है। 
कवि: साहिल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

कविता: "फिलिस्तीन भी संघर्ष कर रहा है"

"फिलिस्तीन भी संघर्ष कर रहा है"
  आज़ादी का क्या मतलब है,
जहँ आज भी गुलामी बकरार है।
हुआ है जंग सुरु इजराइल और फिलिस्तीन के बिच,
बढ़ती जा रही है जलती आग की तरह।  
आज़ादी की रह पर,
लोग निकल पड़े है, लोगो की चाह पर,
है वो भी एक देश प्यारा,  
जिसे दिया देश का दर्जा है,
इजराइल रुक नहीं रहे हैं हमला करने से,
हर रोज बस मिसाइल गुरा रहा है, 
अरे! उनको मौका मत दो,
रक्त से उनका भी इतिहास लिखा जाएगा, 
हमेशा के लिए वो राजा ही कहलाएगा।  
दुनिया को रक्त से सजा रहा है, 
लोग बिन कुछ किये मृत्यु की बड़ रहे है,
दिन पर दिन लोग उन पर हावी हो रहे हैं। 
अरे! उन्हें भी जीने का हक़ दो,
ये लोगो दुनिया को बहकावा मत दो। 
मुश्किल कर देगा तेरा भी जीना,
ऊपर से निचे से निकले गए पसीना ही पसीना,
तेरा भी हो जाएगा मुश्किल जीना। 
अरे! उनमे उनका किया गलती है ,
थोड़ा बहुत तो सबके बीच में चलती है,
पर इसका ये मतलब नहीं है की तुम पूरा का पूरा पासा पलट दो। 
जिन्दा रहना तो सब के सर पर चहड़कर मत नाचो। 
कवि: नीरू कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।  
 

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

कविता : "बस एक मुस्कान दे बहिन"

  "बस एक मुस्कान दे बहिन"
सब कुछ था ठीक, सब कुछ था प्यारा,  
हर दिन था जैसे कोई त्योहार हमारा।
 फिर एक दिन आई वो खामोशी की आंधी, 
ना जाने क्यों हो गई बातों में बंदी।
तेरी चुप्पी अब दिल को चुभती है, 
तेरे बिना हर खुशी अधूरी लगती है। 
तेरे बिना ये घर भी सूना लगता है, 
तेरी हँसी ही तो थी जो सबको जगाता है।
तेरा जन्मदिन है आने वाला,
 मैं दूँगा तुझे सबसे बड़ा तोहफ़ा निराला। 
ना कोई चीज़, ना कोई सामान, 
बस एक बार दे दे अपनी मुस्कान।
जो भी गलती हुई, मुझे माफ़ कर दे, 
तेरे बिना ये दिल अब तन्हा सा रह गया है।
मैं तुझसे फिर से बात करना चाहता हूँ, 
तेरे बिना अब जीना नहीं आता है।
कवि: नीरज कुमार II, कक्षा: 5th, 
अपना घर।  

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

कविता: "आइ है दीपावली"

 "आइ है दीपावली" 
आ गई है द्वियो का त्यौहार दिवाली,
चारो ओर छाई है खुशहाली, 
द्वियो से सजाएंगे "अपना घर" का  द्वार, 
खुसी से मनाएंगे ये त्यौहार अपना घर के परिवार। 
हम लोग कभी नहीं छुटाते है पटाके, 
क्योकि प्रदुषण से लो हो जाते है परेशान, 
हम सब हमेशा रखते है ये सब चीजों का ख्याल, 
इस लिए हम सब मानते है ग्रीन दिवाली हर साल।  
ये है द्वियो का त्यौहार,
हर साल आता है लोगो के लिए उपहार,  
हर जगह जलाते है द्विय, 
क्योकि दीपावली है द्वियो त्यौहार।  
आ गई है दीपावली है द्वियो का त्यौहार दीपावली,
चारो ओर छाए है खुशहाली , 
द्वियो से सजाएगने "अपना घर" एक द्वार ,
खुसी से मनाएंगे ये त्यौहार अपना घर के परिवार।  
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।  
 

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

कविता: "तबाही"

 "तबाही"
तड़ा - तड़ हुआ गोला बारुद,
झाड़ - झाड़ हुआ गोलियों की बरसात। 
जो भी आमने - सामने आया ,
मौत को वो गले लगाया। 
जैसे - तैसे जी जान लगाया जिन्दा रहने के लिए , 
सब संम्पतियो को छोड़ - छाड़ आया ,
है! बेतहारना छोड़ा और भागा 
मगर कैसे ये हो पाता संभव कोई वहाँ से बच निकलता ,
चाहे कर लेते वो भी अगर लाखो कोशिश ,
फिर भी कुछ नहीं वो कर पाते। 
तड़ा - तड़ हुआ गोला बारुद ,
झाड़ - झाड़ हुआ गोलियों की बरसात।
कवि: पिन्टू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर।  

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

कविता : "गाज़ा की कहानी"

 "गाज़ा की कहानी"
 जिस तरह इसराइल ने गाज़ा ,
पर बम वारुद दागने लगे है।  
ठीक उसी तरह बाकी देश ,
उसको बचाने के बजाए वो खुद भागने लगे है। 
सभी घरो में बैठे बैठे देख ,
रहे है उसके जंग।  
बेचारा ग़ज़ा भी सोच रहा है। 
काश कोई पल भर के लिए हो जाए संग, 
खाना मिलने की परेशानी है। 
चारो तरफ आग और रक्त की निशानी है।  
पर अभी भी जाने की चाह है, 
भले ही उसके लिए नहीं कोई रहा है। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

कविता: "पढ़ - लिख रहा हूँ"

 "पढ़ - लिख रहा हूँ" 
इस समय फुल जोश में पढ़ रहा हूँ,
लिख भी रहा हूँ। 
ये भी बता दू की मैं अभी तैयारी कर राहु,
क्यूंकि परीक्षा का एलान है न ,
तभी इस तरह पागल सा पढ़ रहा हूँ।  
लिख भी रहा हूँ। 
तुमने ने कहा मैं सो जाता हूँ, 
ऐसी बात नहीं है यार, 
वो गलती से आँख बंद होता है।  
जान बूझकर वैसे भी तो आज तक सोया नहीं, 
कभी ऐसी कोशिश भी किया होगा,
मुझे अच्छे से कुछ याद नहीं। 
खेल - कूद तो, है कुछ खाश नहीं, 
इसलिए छोड़ दिया हमने उसको न जाने कब का। 
ये भी मुझे याद नहीं, 
अगर दंग से कुछ कर हूँ ,
तो सिर्फ में पढ़ हूँ लिख रहा हूँ,
इस तरह मैं। 
तैयारी कर रहा हूँ.......... ।। 
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th,
अपना घर। 

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

कविता: "मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी "

 "मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी "
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी।  
न जाने कहा से दुखो का पहाड़ टूट पड़ा,
जीना कर रखा है मुश्किल अब मेरा 
क्या करे कुछ समझ नहीं आए रहा है?
जहाँ मै कभी हस्ता था अब रोया न जाए,
धीरे - धीरे से दुखो का पहाड़ बढ़ता जाए।
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी।  
आपको मेरी खुशी देखी नहीं जा रहा क्या?
अरे मुझे भी जीने का हक़ है अपनी तरह से,
अब बस करो मुझे परेशान करना 
अब मुझे भी है जीना और मरना। 
न जने कौन सा परिंदा है तू, 
अब तक क्यों जिन्दा है तू ?
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी। 
न जाने क्यों हसी नहीं आती है अब ?
रूठा रूठा सा लगता हूँ अकेला सा लगता हूँ। 
क्या ये कोई रिस्ता है। 
मस्त मगन मेरी भी जिंदगी थी। 
कवि: नीरु कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 


सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

कविता: "मुझे अकेला ही रहने दो"

 "मुझे अकेला ही रहने दो" 
क्यों छीन रहे हो मेरी खुसी मुझसे,
क्या हमसे कोई नाराजगी है। 
अरे जीने दो जिंदगी मुझे अपनी तरह,
इसमें क्या कोई बुराई है. 
हर वक्त रुकावट दी आपने,
जो मेरे तक ही रहती है। 
है कभी पूछा आपने हमसे,
की मेरे मन में क्या रहती है।  
कभी घूम ले बाहर जाके, 
पर आपकी नहीं मर्जी है।  
घुटन हो रही है मुझे आपसे ,
या फिर आप में ही कोई बुराई है।  
रहने दो बस अब इतना,
अब आगे की जिंदगी मेरी है। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

कविता: "कब होगा भारत मेरा ऐसा"

 "कब होगा भारत मेरा ऐसा"
 खेतों में किशान फसल लगाएगा।  
तो चारो ओर हरियाली छाएगा। 
तभी ये देश प्रदूषण से बच पाएगा। 
और हरियाली चारो ओर छाएगा। 
अब वो मौशम आएगा , 
जब भारत  देश विकास की रेस में आएगा। 
किशानो की मेहनत से चारो और हरियाली छाएगा। 
जब देश में फसल लहराएगा 
पेड़ो पर सारे चिड़िया चहचहाएगा ,
सभी लोग खुसी से गाएगा। 
भारत देश विकाश के रेस में आएगा ,
जब फसल चारो ओर लहराएगा 
फसल भी झूम - झूमकर गाएगा। 
खेतों में फसल किशान लगाएगा ,
तो खेतो में फसल लहराएगा 
किशान भी झूम - झूमकर गाएगा ,
जब फसल खेतो में लहलहाएगा। 
झूम- झूमकर गाएगे और फसल लहराएगा 
जब देश में हरियाली आएगा। 
तो सारे फसल लहराएगा, लहराएगा, लहराएगा।  
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 

कविता: "मेरा अधूरा सपना "

"मेरा अधूरा सपना " 
सुबह हो गयी , दोपहर हो गयी, और शाम भी हो गयी।  
अब बैठे - बैठे समय कट रहा है। 
इस बिच रत भी हो गई है। 
जब अंदर गया तो नींद आ गयी,
जब सोया तो सपनो में खोया,
एक अन बेसुनि सी आवाज से नींद खुली 
सपना टूटने की वजह से मैं खूब रोया, 
दूर जाती रही वो आवाज पीछा करती रही। 
जब तक उसने मेरी नींद खराब नहीं,
कर दिया तब तक उसे चैन न रही। 
घूमता - फिरता मस्ती मैं चलता, 
गिरता - संभलता रहो में चलता,
सुबह से शाम कब हो गयी।  
कवि: मंगल कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

कविता: "नींद आ रहा था"

 "नींद आ रहा था"
मन की गहरी छत में किताब लिए पढ़ रहा था। 
खोया मेरा नाजुक दिल , खली,
और रुवासा चेहरा मी साथ था। 
आगे के प्रश्न धुंधली और कठिनाई से उभर रहा था। 
मन थोड़ा परेशान था मगर दिल में , 
न हार माने का जीगर था 
पर उसी समय मेरा पूरा शरीर सिमट कर हार रहा था,
आँखे मानो ज्वाला से जल रहा हो। 
सच्च बताऊ दोस्तों। 
ये सब सिर्फ निंदा में होता है। 
कवि: निरंजन कुमार, कक्षा: 9th 
अपना घर। 

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

Poem: "Ant's kingdom"

"Ant's kingdom"
what's gang in ant's kingdom?
finding something that all the time.
whether it is day or night,
they are working so unlike, 
and are very fast too. 
don't know what purpose they special,
seeing not a bit of pause, 
  there may be a captain or leaders.
under whose guiding they're,
working with full of fear, 
is in the kingdom jewels is more. 
for safety and security of it,
combination is preparing on, 
what's gang there, do you have on idea?
it's a matter if you don't,
why they seem so crazy, 
in the kingdom of ants.
what's does they have 
and 
what we can't have?
Poet: Pintu Kumar, Class: 10th 
Apna Ghar 

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

Poem: "Sun in the Sky"

 "Sun in the Sky" 
Sun is shining in the sky,
which I like mos.t 
in my whole life dream,
I was giving lost. 
my life was given for away, 
which I would not stop. 
I want to begin me new life dream,
like a dreamer's shop. 
just like sky silence in, 
silence without stars.
my life was given very for, 
imagine the new world full of happiness.
if anyone not come to you, 
you will feel loveliness.
Poet: Mangal Kumar, class 9th, 
Apna Ghar.

Poet: "Future is Our Gaming"

 "Future is Our Gaming"
 I started dreaming that,
future in now gaming.
all talented children are,
participating in it.
from the apps YouTube, insta to reddit.
children are playing with full interest,
Infront of their parents or even secret, 
all are blaming. 
But Who Care?
Future is our Gaming.
Poet: Mangal Kumar, Class: 9th,
Apna Ghar 

मंगलवार, 30 सितंबर 2025

Poem: "Minister's Meeting"


"Minister's Meeting"
meeting is still underway .
we will set again another day,
some comments and suggestion shared anyone,
some positive and negative points some.
minister represented their responsibility,
by showing their inners capability. 
everyone is serious about their reports,
I have not anymore Quotes.
Poet: Pankaj Kumar, Class: 10th,
Apna Ghar

कविता : "जब मुझे कुछ होता अहसास"

 "जब मुझे कुछ होता अहसास"
जब मुझे कुछ होता अहसास,
कुछ देर के लिए हो जाता उदास। 
फिर उस बात का लगता आस ,
उस दिन बैठे सोच रहा था खिड़की के पास। 
कभी वो सपनो में आती ,
कभी आकर जगा वो जाती।
क्या है ो कुछ समझ न आता ?
बार - बार याद उसी का आए ,
अच्छी यादो का कैसे भुलाए। 
जब मुझे कुछ होता अहसास ,
कुछ देर के लिए हो जाता उदास। 
कवि: बीरेंद्र कुमार, कक्षा: 4th,
अपना घर। 

सोमवार, 29 सितंबर 2025

कविता: "पेपर का आतंक"

 "पेपर का आतंक" 
आया है पेपर का दिन , 
नहीं आएगी नींद आराम के बीन। 
करना पड़ेगा अब तैयारी लाना है अच्छे नंबर। 
फिर होगा मौज मस्ती ,
होने वाला है "हाफ इयरली एग्जाम" । 
अब आया है  पेपर करने है तैयारी ,
बच्चे नहीं सौ पाते है। 
पढ़ाई करते है दिन और रात ,
पूरी रात वो करते है मेहनत।
आया है पेपर का दिन।  
कवि: नितीश कुमार, कक्षा: 6th,
अपना घर।  
 

कविता: "दशहरा का आनंद"

 "दशहरा का आनंद"
 दशहरा का मेला 
चमचमाते हाउ जैसे जुगुनू अकेला। 
दशनन रावड़ खड़ा शांत सुनेहरा ,
5 का जलेबी और 15 का समोसा ,
 खाओ भर पेट। 
बस 10  का मेला झूले ही झूला बस चारो ओर ,
सब जगह खिलौना ही बस दिखे घनघोर। 
कवि: रौशन कुमार, कक्षा: 3rd 
अपना घर। 

कविता: "मन की बाते"

कविता: "मन की बाते"
 सोच - सोच कर थक गया हूँ। 
कब आएगा वो दिन ,
जब साथ में रहते थे ,
और साथ खेलते थे ,
कभी तो वो दिन आएगा। 
जब हम साथ रहेंगे ,
अब वो दिन बीत रहे है ,
सोच - सोच कर थक गया हूँ। 
कवि: रवि कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

कविता: "हिंदी तेरा नाम है"

कविता: "हिंदी तेरा नाम है"
 हिंदी दिवस है देखो आया ,
हिंदी में यह चार चाँद लगाया। 
हिंदी हमारी मात्र भाषा ,
लोगो को न करता निराशा। 
सब को में यह भाषा आए ,
बच्चे - बूढ़े खूब बतियाए। 
क, खा, ग, घ सबको आए ,
हिंदी भाषा सबको आए। 
हिंदी सबसे अच्छी भाषा ,
लोगो को न करता निराश। 
कवि: विष्णु II, कक्षा: 4th 
अपना घर। 

कविता: "मौषम बदल रहा है"

"मौषम बदल रहा है"
आज कल दिन बदल रहा है। 
सुबह से शाम ढल रहा ,
है ये गर्मी का मौषम चल रहा है। 
आजकल के मौषम में ,
हर दिन बदल रहा है। 
कभी बारिश तो कभी धुप ,
आजकल ये मौषम ढल रहा हैं। 
गर्मी का मौषम चल रहा है। 
आजकल का दिन बदल ,
 कभी गर्मी तो कभी मौषम ठंडा। 
ऐसा कुछ मौषम चल रहा है ,
हर दिन मौषम बदल रहा है ,
ये गर्मी को मौषम चल रहा है। 
कवि: गया कुमार, कक्षा: 5th,
अपन घर 

 

शनिवार, 27 सितंबर 2025

कविता: "परीक्षा के दिन"

 "परीक्षा के दिन"
 अब परीक्षा के दिन आए 
पढ़ाई में सबने मन लगाया। 
सौ दिन का संघर्ष ,
एक दिन करके दिखलाया।  
उम्मीद का दीप जलाया ,
एक दिन के गैप में। 
सब बच्चे का होश उड़ाया। 
अब मौज - मस्ती पर रोक टोक लगाया। 
खेलने में मन नहीं लगता है। 
किताब  कॉपी को दोस्त बनाया। 
अब पैरिश के दिन आए ,
पढ़ाई में सब ने मन लगाया। 
कवि: नसीब कुमार, कक्षा: 3rd,
अपना घर। 

गुरुवार, 25 सितंबर 2025

कविता: " रात कब ढल गए "

 " रात कब ढल गए "
 सोचते - सोचते इस जिंदगी को ,
खो गया जाने कहाँ। 
कितनी जिद्दी है ये तंग रहे ,
जो छोड़ गए है इस हल में ,
सबकुछ छूट रहा है। 
सोचते सोचते रत कब ढल  गए ,
कुछ एहसास न रहा है,
 अब सब्र जरा खो रहा है। 
अब सब्र जरो खो रहा है। 
विश्वास जरा टूट रहा है उखड रही है। 
आत्म विश्वास की दीवारे ,
समा रहा है गुप अंदर में सोचते हुए ये ,
कब रात ढल गए है कुछ एहसास न रहा। 
कवि: नीरज, कक्षा: 7th  
अपना घर।   

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

कविता: "तेरे साथ"

 "तेरे साथ"
 क्या ये आसान होता की हम ,
आग पानी व् हवा को महसूस व जान पाते ?
गगन की उचाइयो ,
सगरो की गेहराई .
हम कैसे नाप पते ?
पृथ्वी की विशाल भुला को ,
एक नक्से में बदल पते ?
मेरे गात साथ। 
गम शूम जहाँ में घनघोर रजनी की रंग में ,
टिमटिमाती , चमकती व चलती, 
समारे की दुनिया को ,
किस तरह निहार पाते ,
अंतरिक्ष की चाँद चांदनी .
तारो - सितारों की छिपी किस्से,
 कैसे हम सुन और बुझ  पाते ,
जो तुम न होते आज ,
मेरे गात साथ। 
कवि: पिंटू कुमार, कक्षा: 10th, 
अपना घर। 

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

कविता: "रातो का राजा"

"रातो का राजा"
रात में टिमटिमाते है तारे ,
वह दिखते है आसमान में बहुत सारे। 
रात में आसमान को वो सजाते है। 
और दिन में सूरज अपनी गर्मी से लोगो को बजाते है। 
दिन में सूरज का राज रहता है। 
रात में तारो का राज रहता है। 
रात में टिमटिमाते है तारे ,
वह दिखते है आसमान में बहुत सारे।
तारे रहते है बहुत दूर ,
पर वो दिखने में कभी  नै करते है मजबूर। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

सोमवार, 15 सितंबर 2025

कविता: "हमारी हिंदी भाषा "

 "हमारी हिंदी भाषा "
हर भाषा अपने अंदर रंग घोलकर रखती है। 
अपने लफ्जो से दिल को सुकून दे ,
अंदर अपने कुछ ऐसा अंदाज रखती है। 
हिंदी मिश्रित  है अनेक भाषाओ की ,
पर अपने अंदर बड़ा ज्ञान का समदर रखती है। 
 हर भाषा की होती अपनी पहचान ,
हिंदी हिंदुस्तान की है जान ,
हर जब्ज में हिंदी बहेगी। 
हिन्दुस्तानियों का गौरव रहेगी ,
हर हिन्दू का हिंदुत्व दिखेगी ,
सूंदर लफ्जों से इसका गौरव सजेगा। 
मेरे तरफ से आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक सुभकामनाए !
कवि: साहिल कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर 

रविवार, 14 सितंबर 2025

कविता: " हिंदी दिवस "

 " हिंदी दिवस "
 कुछ उनका भी सम्मान है। 
जिसने दिया हिंदी का नाम है। 
सिमट गए सारे लोग जहां के ,
बस जपते जपते हिंदी का नाम है। 
बात - बिवाद तो हुई जरूर इन पर 
पर लोग खड़े थे सीना तान के ,
के सम्मान दिया उन्होंने अपने राष्ट्र भाषा।  
अभिमान के अंग्रेज के अत्याचार से , 
कोड़े खा - खाकर उसने काम किया ,
भाषाए तो बनाई अनेक है। 
पर हिंदी भाषा का सम्मान किया ,
 कुछ उनका भी सम्मान है। 
जिसने दिया हिंदी का नाम है। 
मेरे तरफ से आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक सुभकामनाए !
कवि: सुल्तान कुमार कक्षा: 11th,
अपना घर। 

शनिवार, 13 सितंबर 2025

कविता: "मौशम की किया तारीफ करो"

 "मौशम की किया तारीफ करो"
आज का मौशम कितना अच्छा है , 
देखो ठंडी - ठंडी हवा चल है। 
और चिड़ियाँ भी उड़ रहे है। 
जैसे सब हो मैदान में ,
तितली भी उड़ रही हो। 
बच्चे बड़ी मेहनत से तितलियाँ पकड़ रहे है। 
लेकिन तितलियाँ बड़ी चालक है ,
पकडने से पहले उड़ जा रही है। 
आज का मौशम कितना अच्छा है 
 कवि: रमेश कुमार, कक्षा: 5th,
अपना घर। 

गुरुवार, 11 सितंबर 2025

कविता: "सपनों को नया आकार"

 "सपनों को नया आकार"
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे से होगी कोशिश पूरी। 
जो सपने टूट चुके ,
अब उसे है सजाना। 
सूंदर सी उसको आकार देना। 
चहकती गौरैया सी मुस्कान देना। 
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे बढ़ना है कदम से कदम मिलाए।
गुस्सा के रहो में प्यार बढ़ते - बढ़ते। 
आगे बढ़ाना है हौसलो की चिंगारी जलाते  ,
अंधकार को दूर करते - करते। 
अब जो हो चूका वो हो चूका ,
अब आगे बढ़ना है कदम से कदम मिलाए।
कवि: अमित कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर। 


सोमवार, 8 सितंबर 2025

कविता: "खुश खेत, हैरान इंसान"

 "खुश खेत, हैरान इंसान" 
खामोश है यह मौशम आज ,
थोड़ा सा उमड़ रहा गरज रहा है। 
और सूरज हाँस रहा है। 
तो आ रही है धरती पर ,
लेकिन बारिश भी जमा रही उन पर ,
पहले जैसा गिला कर दिया है। 
गली और रास्ते भर दिया है। 
खेत खलियान तो खुश है इनसे ,
पर मनुष्य हैरान है। 
क्यूंकि उनको भी खेत में काम है।  
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11th, 
अपना घर।  
 

कविता: "विज्ञान और गणित की भूमिका"

"विज्ञान और गणित की भूमिका"  
 बायोलॉजी हमें जीवन जीना सिखाया है। 
केमिस्ट्री हमें प्रैक्टिकल करके दिखाया है। 
फिजिक्स हमें रहना बताता है।  
  ये सभी  साइंस हमारे जीवन में जताता है। 
मैथ्स हमें जीवन के समस्याओ से  लड़ना सिखाता है। 
उसको कैसे सुलझाए जाए  है। 
 अपने बातो  को प्रकट करना बताता है। 
इंग्लिश हमें विदेश में जीना सिखाता है। 
ऐ सभी  को हर एक मनुष्य जताता है।
कवि:  गोविंदा कुमार,  कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

रविवार, 7 सितंबर 2025

कविता: "बहन की कमी"

 "बहन की कमी"
 मेरी एक बहन भी थी, 
वो भी मुझे छोड़ गई। 
न जाने क्यों मुझसे मुँह मोड़ गई ,
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
बहन से किया हुआ वादा टूट गया है,
न जाने क्यों वो टूट गई। 
वो कहती थी भैया आप ही आएगा,
आप हर जगह मुझे ही पाएगा। 
न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
क्या करे इस बीते लम्हे को जो ,
रोलता है तो कभी हसता है। 
न जाने क्यों ये रिस्ता मुँह मोड़ लिया हैं ,
इस बड़े भाई का दिल तोड़ दिया हैं। 
मैं न जाने क्यों अंदर ही अंदर टूट गया हूँ। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th,
 अपना घर। 


गुरुवार, 4 सितंबर 2025

कविता: "सपने सकारने हैं"

 "सपने सकारने हैं"
 ख्वाब जो देखे , वो अब बिखड़ गया , 
पहले तो पास में थी , पर अब लगता बिखर हो गया। 
अब तो लगता है शायद , 
मन ने भी कोशिश करना छोड़ दिया। 
वरना ये मन मेरा न जाने क्यों , 
काम करना छोड़ दिया। 
हरे हैं  न जाने कितने मैंच फिर भी कोशिश करना छोड़ दिया,
पर कभी लगता है सांत रहने में ही भलाई हैं। 
चिल्लाने का कोई फायदा नहीं। 
बस एक बार मुस्कुरा के देख चाँद भी हस देगा।  
 ख्वाब जो देखे , वो अब बिखड़ गया। 
कवि: गोविंदा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर। 

बुधवार, 3 सितंबर 2025

कविता: "बादलों की कहानी"

 "बादलों की कहानी"
बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बरस रही थी। 
छाए थे काले घनघोर बादल ,
चारो ओर अँधेरा ही था। 
हवा रुख ने बदल दिया ,
मौशम जब उमड़ी थी। 
उड़ा ले गए बादलो को ,
कही दूर जाके फेकि थी। 
रोशनी आ पहुंची धरती पर ,
जब सूरज चमका था। 
 बूंदा बाँदी सुरु हुई थी ,
कुछ खास नहीं पर बार्स रही थी। 
कवि: सुल्तान कुमार, कक्षा: 11TH 
अपना घर। 

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

कविता: "भगवान का कुछ दिया हुआ है"

 "भगवान का कुछ दिया हुआ है"
 भगवान ने कुछ दिया मुझको ,
मैं तुमको खो नहीं सकता तुमको। 
चाहे हँसा लू उसको पर रुलाना नहीं चाहता। 
 भगवान ने कुछ दिया मुझको ,
  वो मेरी जान से भी कीमती हैं। 
मेरे बीन एक पल भी नहीं रहती हैं। 
  चाहती है मेरा शिकायत ,
फिर भी मैं खामोश हूँ इस बदलते दुनिया में। 
मैं मनाता हूँ की मै गलत हो सकता हूँ ,
पर मेरे बीना कैसे रह सकती हो तुम। 
आशु बहाएगी जैसे नदी की धारा ,
फिर भी है सबसे प्यारी। 
 भगवान ने कुछ दिया मुझको ,
मैं तुमको खो नहीं सकता तुमको। 
कवि: निरु कुमार, कक्षा: 9th 
अपना घर 

सोमवार, 1 सितंबर 2025

कविता: "जिंदगी की तलाश में"

"जिंदगी की तलाश में" 
 ये मौसम फीका - फीका सा हैं ,
ये दिन सूखे - सूखे से हैं। 
सब लोग बेगाने से हैं  ,
इन सब के बीच हम अनजाने है। 
घर - बार छोड़कर इस अनजान सी हवेली में ,
आये है नई जिंदगी की तलश में ,
बन रहा है आगे भविष्य चलो चले हम पर्वत कैलाश में। 
नये जिंदगी की आश में ,
निकल पड़े साथी की तलाश में।  
आँखे में हमेश आँशु लेके ,
रहते है एक कोने में पड़े ,
एक पर्दे के पीछे छाया बनके ,
रहते है हमेश खड़े।
कवि: मंगल कुमार कक्षा: 9th 
अपना घर।  

शनिवार, 30 अगस्त 2025

कविता "एक न एक दिन वो भी आएगा "

  "एक न एक दिन वो भी आएगा "
लोगो ने उन जमीनों को कवजा लिया ,
जो उनके कभी थे ही नहीं। 
नदी का झोका फिर से आया ,
सबकुछ बहा ले गया छोड़ा कुछ भी नहीं। 
सब को पता था एक वो भी आएगा ,
एक न एक दिन सब कुछ बहा ले जाएगा। 
वो लेगी अपनी हिस्से की ज़मीन ,
देने में अगर की लापरवाहीं तो वो लेगी सबकुछ छीन। 
की जब न मिले शेर को उसका हिस्सा तो चिल्लाता हैं ,
तो उसे दहाड़ कहते हैं। 
ठीक उसी प्रकार नदी को न मिले तो बहा ले जाती सबकुछ ,
 तो उसे हम सभी बाढ़ कहते हैं। 
वो लेते अपने हिस्से का हक ,
जो की छीन ली गए थी वो आएगा सब को पता था ,
बहा ले जाएगी किसी को नहीं पता था। 
कवि: नवलेश कुमार, कक्षा: 11th,
अपना घर।